मानसून आने के साथ बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएं तेज हो जाती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन इस तरह की घटनाओं का जिम्मेदार है.
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बिहार में पिछले 10 दिनों में 147 लोगों की मौत आकाशीय बिजली गिरने के कारण हुई है. अधिकारियों की चेतावनी है कि आने वाले दिनों में मौसम और अधिक कठोर हो सकता है और इसका कारण जलवायु परिवर्तन है. इस साल मार्च महीने से अब तक बिहार में 215 लोगों की मौत बिजली गिरने के कारण हो चुकी है. इनमें किसान, खेती मजदूर और चरवाहे शामिल हैं.
बिहार के आपदा प्रबंधन मंत्री लक्ष्मेश्वर राय ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "मुझे मौसम विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और अधिकारियों ने बताया कि जलवायु परिवर्तन से बढ़ते तापमान के कारण आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएं अधिक हो रही है." उन्होंने बताया कि चार जुलाई को 25 लोगों की मौत आकाशीय बिजली गिरने से हुई. भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक आने वाले दिनों में बिजली के गिरने की और अधिक संभावनाएं हैं.
हर साल मानसून के समय में भारत में बिजली गिरना सामान्य घटना है, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि इस साल बिहार में आसमानी आफत के कारण मौतों की संख्या पिछले कुछ सालों के सालाना संख्या को पार कर गई है. भारत में बिजली गिरने से हर साल जान के साथ-साथ संपत्ति का भी नुकसान होता आया है. हर साल जून से लेकर सितंबर के महीने में देश के अलग-अलग राज्यों से बिजली गिरने और उससे होने वाले नुकसान की खबरें आती हैं. लेकिन बिहार में जून महीने में ही मौत के आंकड़े चिंता का विषय बन गए हैं.
पिछले साल मानसून के दौरान बिजली गिरने से 170 लोगों की मौत हो गई थी. बिहार के कृषि मौसम विज्ञानी अब्दुस सत्तार ने एएफपी से कहा कि बिजली और गरज का कारण वायुमंडल में बड़े पैमाने पर अस्थिरता, तापमान में वृद्धि और अत्यधिक नमी है. राज्य सरकार ने संभावित बिजली गिरने की भविष्यवाणी को लेकर मोबाइल ऐप लॉन्च किया है. लेकिन कई गरीब किसानों के पास स्मार्टफोन नहीं है. पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में 200 लोगों की मौत बिजली गिरने के कारण अप्रैल महीने से अब तक हो चुकी है.
राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2018 में देश में 2,300 लोगों की मौत आकाशीय बिजली गिरने के कारण हुई थी.
जलवायु परिवर्तन से समुद्र तेजी से गर्म होते जा रहे हैं. इनका सिर्फ समुद्री जीवन पर ही बुरा प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि इसका मतलब भविष्य में मौसम में और तेज परिवर्तन, समुद्री तूफान का आना और जंगलों में आग लगना होगा.
तस्वीर: NGDC
दक्षिणी ध्रुव पर कैलिफोर्निया
अंटार्कटिका पर तैनात वैज्ञानिकों ने वहां का तापमान मापा तो लॉस एंजेलेस के बराबर निकला. फरवरी में रिकॉर्ड 18.3 डिग्री तापमान और वह भी उत्तरी अंटार्कटिक में अर्जेंटीना के रिसर्च स्टेशन पर. नासा के अनुसार यह वहां अब तक का सबसे ज्यादा तापमान था.
तस्वीर: Earth Observatory/ NASA
नियमित रूप से आता तूफान
समुद्रों के गर्म होने से ट्रॉपिकल तूफानों की तादाद बढ़ रही है. हरिकेन या टायफून का सीजन लंबा होने लगेगा और खासकर उत्तरी अटलांटिक और पूर्वोत्तर प्रशांत में उनकी संख्या भी बढ़ेगी. मौसम बदलने का असर भविष्य में भारी नुकसान पहुंचाने वाले तूफान के रूप में सामने आएगा.
तस्वीर: AFP/Rammb/Noaa/Ho
समुद्र का बढ़ता जलस्तर
धरती के वातावरण में तापमान बढ़ता है तो सागर भी गर्म होने लगते हैं. इसका नतीजा पानी के बढ़ने के रूप में दिखता है. पानी बढ़ेगा तो समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा और बाढ़ आएगी या समुद्र तट पर स्थित इलाके डूबने लगेंगे.
पानी की सतह के गर्म होने से उसका वाष्पीकरण होगा और बरसात के बाद बाढ़ आएगी. कुछ इलाके डूब जाएंगे तो दूसरे इलाकों में सूखा पड़ेगा. नतीजा होगा फसल का न होना या जगलों में आग लगने से उसका नष्ट होना. भविष्य में आग का मौसम लंबा खिंचेगा और जंगलों पर खतरा लंबे समय तक बना रहेगा.
तस्वीर: Reuters/AAP Image/D.
इकोसिस्टम में बदलाव
गर्म सागर का मतलब होगा समुद्री जीव अपने पुराने घरों से भागने लगेंगे और आखिर में सारा समुद्रूी जलजीवन ठंडे इलाकों में चला जाएगा. मछलियां और समुद्री जानवर समतल से ध्रुवीय इलाकों की ओर चले जाएंगे. उत्तरी सागर में तो मछली का भंडार पहले से ही सिकुड़ने लगा है.
तस्वीर: by-nc-sa/Joachim S. Müller
समुद्रों का अम्लीकरण
गर्मी की वजह से कार्बन डाय ऑक्साइड पानी में घुल जाता है, समुद्री पानी का पीएच वैल्यू बढ़ जाता है और पानी का अम्लीकरण हो जाता है. पानी में अम्ल की मात्रा बढ़ने से स्टारफिश, शीप, कोरल और झींगों का बढ़ना रुक जाता है. नतीजा ये होगा कि उनका अस्तित्व मिट जाएगा.
चारे की कमी
कार्बन डाय ऑक्साइड के समुद्री पानी में घुलने से पीएच वेल्यू घटेगी तो छोटे अल्गी आयरन को सोख नहीं पाते. अल्गी यदि आइरन को नहीं सोखेंगे तो उनका विकास नहीं होगा और समुद्री जीवों को चारा नहीं मिलेगा. इस तरह वे भी पानी के अम्लीकरण से प्रभावित होंगे.
तस्वीर: picture alliance / dpa
ऑक्सीजन की कमी
गर्म पानी कम ऑक्सीजन का संग्रह करते हैं. इस तरह गर्म होते समुद्र का मतलब ये भी है कि ऑक्सीजन की प्रचुर मात्रा वाले इलाके कम होते जाएंगे. बहुत सी नदियों, झीलों और तालाबों में अभी ही कम ऑक्सीजन वाले मौत के कुएं मौजूद हैं. यहां कम ऑक्सीजन के कारण जीवों का रहना मुश्किल है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Schmidt
अल्गी का बढ़ना
गर्म और कम ऑक्सीजन वाले पानी में जहरीले अल्गी तेजी से बढ़ते हैं. उनका जहर मछलियों और दूसरे समुद्री जीवों को मार डालता है. पानी पर अल्गी या शैवाल के कालीन बहुत सारी जगहों पर मछली उद्योग को नुकसान पहुंचा रहे हैं. यहीं चिली के तट की एक तस्वीर.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/F. Marquez
सफेद कोरल का कंकाल
पानी के गर्म होने से समुद्री कोरल का सिर्फ रंग ही खत्म नहीं होता बल्कि ब्लीचिंग की वजह से बढ़ने की उसकी क्षमता भी खत्म हो जाती है. कोरल रीफ मरने लगते हैं और समुद्री जीवों को न तो सुरक्षा दे पाते हैं और न ही खाना. समुद्री जीवों के शिकार करने की जगह भी खत्म हो जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Naupold
बदलती समुद्री लहरें
यदि समुद्र के गर्म होने से उत्तरी अटलांटिक लहर की धारा बाधित होती है तो इसका मतलब पश्चिमी और उत्तरी यूरोप में शीतलहर होगा. यही लहर समुद्री पानी के प्रवाह को निर्धारित करती है और इसी से सतह का घना पानी घूमकर गहरे ठंडे इलाके की ओर जाता है.