कनाडा और अमेरिका के कई हिस्सों में पिछले दिनों जानलेवा गर्मी और लू ने भयंकर तबाही मचाई. वैज्ञानिकों और जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि ठंडे इलाकों में ये हालात खतरे की घंटी हैं. वैश्विक तापमान धरती को जला रहा है.
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जलवायु वैज्ञानिकों ने विभिन्न मॉडलों का अध्ययन कर इस बात की तस्दीक की है कि जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल से अमेरिका और कनाडा के कई इलाके और गरम हुए हैं. जून के आखिरी दिनों में कनाडा और अमेरिका में लू ने कहर बरपाया था.
घरों में अकेले रहते बुजुर्ग मारे गए. जंगल की आग भड़क उठी जिसने एक गांव को ही निगल लिया. वैज्ञानिकों का कहना है कि जीवाश्म ईंधनों को जलाने से जलवायु में इतना बदलाव हो चुका है कि तापमान की अत्यधिकताएं और तेज हो चुकी हैं.
वर्ल्ड वेदर एट्रीब्युशन इनीशिएटिव (डब्लूडब्लूए) के 27 वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम की एक त्वरित स्टडी के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते उत्तरी अमेरिका की गर्म लहरों के सबसे ज्यादा गरम दिन, 150 गुना अपेक्षित थे और दो डिग्री सेल्सियस ज्यादा गरम थे. अमेरिका के ओरेगन और वॉशिंगटन में तापमान के रिकॉर्ड टूटे और कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया में भी. 49.6 डिग्री सेल्सियस की अधिकतम मियाद पर तापमान पहुंच गया जो शोधकर्ताओं के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के बिना तो कतई नामुमकिन था.
असाधारण लेकिन अवश्यम्भावी हकीकत
इस अध्ययन की अभी अन्य वैज्ञानिकों ने समीक्षा नहीं की है. ये इस बात का भी सबसे ताजा उदाहरण है कि वैज्ञानिक किस तरह मॉडलों के जरिए, मौसमी भीषणताओं में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की भूमिका का त्वरित आकलन कर पा रहे हैं. इसके निष्कर्षों ने अमीर देशों में व्याप्त इस मिथक को ध्वस्त किया कि जलवायु परिवर्तन उनसे बहुत दूर के लोगों या आने वाले समय में किसी को नुकसान पहुंचाएगा, उन्हें नहीं.
स्विट्जरलैंड के ईटीएच ज्यूरिख में इन्स्टीट्यूट फॉर एट्मोस्फरिक ऐंड क्लाइमेट साइंस से जुड़ी और ताजा अध्ययन की सह लेखक सोनिया सेनेविरत्ने कहती हैं, "हम एक अनजान इलाके में दाखिल हो रहे हैं. अगर हम ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नहीं रोक पाते हैं और वैश्विक तापमान पर भी काबू नहीं कर पाते हैं तो और भी ऊंचे तापमानों तक पहुंचेंगे.”
तस्वीरों मेंः कहां कहां टूटे गर्मी के रिकॉर्ड
ये तापमान देखकर छूट जाएंगे पसीने
कनाडा का लैपलैंड हो या भारत, दुनिया के कई हिस्सों में इस साल गर्मी का रिकॉर्ड टूट गया है. दक्षिणी गोलार्ध में जहां सर्दियां होती हैं, वहां भी तापमान नई ऊंचाई छू रहा है. देखिए, कहां कहां टूट गया रिकॉर्ड.
तस्वीर: kavram/Zoonar/picture alliance
लिटन, कनाडा
कनाडा के शहर लिटन में 2 जुलाई को गर्मी सारी हदें तोड़ गईं जब तापमान लगभग 50 डिग्री सेल्सियस हो गया. कुछ ही दिन बाद यह शहर जंगल की आग में जल रहा था.
तस्वीर: JENNIFER GAUTHIER/REUTERS
लैपलैंड, फिनलैंड
1914 के बाद फिनलैंड की यह अब तक की सबसे तेज गर्मी है. उत्तरी फिनलैंड में 33.6 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया. स्कैंडेनेविया के कई हिस्सों में तापमान औसत से 10-15 डिग्री तक ज्यादा दर्ज हुआ है. वैज्ञानिकों ने उत्तरी यूरोप में गर्मी को उत्तरी अमेरिका के ऊपर बने डोम से संबंधित बताया है.
तस्वीर: Otto Ponto/Lehtikuva/AFP/Getty Images
नई दिल्ली, भारत
भारत की राजधानी में जुलाई की शुरुआत में ही 43 डिग्री सेल्सियस तापमान पहुंच गया था, जो नौ साल में सबसे अधिक है. मॉनसून दो हफ्ते की देरी से चल रहा है. गर्मी से भारत में पिछले 11 साल में 6,500 जानें गई हैं.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
निजन्याया पेशा, रूस
साइबेरिया भी इस बार कड़ी गर्मी झेली है. मई में तापमान 30 डिग्री के ऊपर था जो यूरोप के कई हिस्सों से ज्यादा था. सूखे और तेज गर्मी ने उत्तरी रूस के जंगलों को आग में झोंक दिया है और भारी मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड वातावरण में जा रही है.
तस्वीर: Thomas Opel
न्यूजीलैंड
जब बाकी दुनिया में गर्मी होती है, दक्षिणी गोलार्ध के देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में सर्दी का मौसम होता है. लेकिन न्यूजीलैंड में इस बार सर्दी पहले से कहीं ज्यादा गर्म है. पिछले महीने तापमान 22 डिग्री पहुंच गया, जिस कारण 110 साल में सबसे गर्म जून रहा. सर्दी में इतनी गर्मी का असर खेती पर भी हो रहा है.
तस्वीर: kavram/Zoonar/picture alliance
मेक्सिको
इस साल जून में मेक्सिको में 51.4 डिग्री तापमान दर्ज हुआ है जो इतिहास में अब तक सबसे ज्यादा है. देश पिछले 30 सालों के सबसे बुरे सूखे से गुजर रहा है. बाजा कैलिफोर्निया में हालात इतने बुरे हैं कि कॉलराडो नदी वहां सूख चुकी है.
तस्वीर: Fernando Llano/AP/picture alliance
गडामेस, लीबिया
अरब प्रायद्वीप और उत्तरी अफ्रीका में भी यह साल औसत से ज्यादा गर्म रहा है. सहारा रेगिस्तान में पिछले महीने तापमान 50 डिग्री सेल्यिसस दर्ज किया गया. इस बीच पश्चिमी लीबिया में जून सामान्य से 10 डिग्री ज्यादा गर्म रहा. गडामेस में रिकॉर्ड 46 डिग्री तापमान दर्ज हुआ और राजधानी त्रिपोली में 43 डिग्री.
तस्वीर: DW/Valerie Stocker
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अधिकारियों का अनुमान है कि इन तापमानों की वजह से सैकड़ों लोग मारे गए हैं और ये तापमान अपने ऐतिहासिक रिकॉर्डों को भी लांघ गए हैं. शोधकर्ता ये पता लगाने के लिए जूझ ही रहे हैं कि आखिर कितनी दफा गर्मी की ये लहर या लू आ सकती हैं. उनका सबसे अच्छा अंदाजा यही है कि ऐसे तापमान हर हजार साल में एक बार ही आ सकते हैं. तापमान इतना अधिक कैसे हुआ, यह बताने के लिए उनके पास दो सिद्धांत हैं.
कैसे हुआ इतना तापमान
एक व्याख्या यह है कि जेट स्ट्रीम यानी जेट धारा कहलाने वाली वायु लहर में आए घुमाव से एक जगह फंसी गरम हवा का एक ताप-गुंबद बन जाता है. पहले से मौजूद सूखे और असाधारण वायुमंडलीय स्थितियों से मिलकर ऐसा होता है. यह मौसमी परिघटना, जलवायु में आए परिवर्तनों के साथ मिलकर तापमान में भारी उछाल ले आती है. इस रिसर्च के लेखकों का कहना है कि कुल मिलाकर "आंकड़ों के रूप में इसे दरअसल बदकिस्मती ही कह लीजिए जिसे जलवायु परिवर्तन और तीव्र बना देता है.”
एक वैकल्पिक और ज्यादा कष्टकारी संभावना ये हो सकती है कि जलवायु प्रणाली उस दहलीज को पहले ही पार कर चुकी हो जहां हल्की सी तपिश भी पहले के मुकाबले तापमान में और तेजी से उछाल ले आती है. अगर ये सच है तो इसका मतलब ये हुआ कि ऐसी रिकॉर्ड तोड़ लू, किसी क्लाइमेट मॉडल के अनुमानों और अंदाजों के पहले से ही चली आ रही हो सकती है.
ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में एन्वायरेन्मेंटल चेंज इन्स्टीट्यूट से जुड़े और अध्ययन के सह लेखर फ्रीडेरिके ओटो कहते हैं, "हम एक अप्रत्याशित चीज देख रहे हैं. यह एक बहुत ही अनोखी परिघटना है और हम इस संभावना से इंकार नहीं कर सकते कि हम आज जिस चरम तपिश को महसूस कर रहे हैं वह यूं वैश्विक तापमान के उच्च स्तरों में ही संभव हो सकती थी.”
जर्मनी के पोट्सडाम इन्स्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च में अर्थ सिस्ट्मस एनालिसिस के प्रमुख स्टीफान राह्मश्टोर्फ कहते हैं कि गर्मी के पिछले रिकॉर्ड इतने बड़े अंतरों से "चूर-चूर” हो चुके हैं कि मानो "कुछ और ही चल रहा होगा.” राह्मश्टोर्फ इस अध्ययन का हिस्सा नहीं थे लेकिन उनका कहना है कि "अध्ययन सही है और आला दर्जे का है.”
गर्म लहर पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
जलवायु परिवर्तन से गरम लहरें ज्यादा तपिश वाली, ज्यादा देर तक चलने वाली, और ज्यादा आमफहम हुई हैं. ग्रीनहाउस की तरह सूरज की गर्मी को कैद करने वाली गैस छोड़ने वाले फॉसिल ईंधनों को जलाकर इंसानों ने धरती को पूर्व औद्योगिक स्तरों से करीब 1.1 सेल्सियस ऊपर तक गरम कर दिया है. इससे रिकॉर्ड तोड़ तापमान के मौके बढ़ जाते हैं.
कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया के लिटन गांव में दो जुलाई को गर्मी ने रिकॉर्ड तोड़ डाला. तापमान 45 डिग्री सेल्सियस के पुराने रिकॉर्ड से पांच डिग्री सेल्सियस ऊपर जा पहुंचा. दूसरे ही दिन गांव को जंगल की आग ने निगल लिया.
तस्वीरेंः कैसे पूजी जाती है प्रकृति
किस किस रूप में पूजा जाता है प्रकृति को
दुनिया के कई कोनों में लोगों की पशु पक्षी और पेड़ पौधों में धार्मिक और आध्यात्मिक आस्था है. जानिए कहां कहां किस किस पशु और पौधे को पवित्र माना जाता है.
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अनार
लाल अनार ना केवल पौष्टिक होता है, बल्कि धार्मिक रूप से पवित्र भी. इसे प्रेम, जीवन और उर्वरता का प्रतीक माना गया है. ईसाई धर्म में अक्सर अनार का जिक्र आता है. बौद्ध भी इसे पवित्र मानते हैं. ऐसा भी माना जाता है कि ग्रीस में देवी एफ्रोडाइट के लिए इसका पेड़ लगाया गया.
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गोरक्षी
इस पेड़ को कई संस्कृतियों में पूजनीय माना गया है. गोरक्षी की पत्तियों का कई बीमारियों के इलाज के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.
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खजूर
माना जाता है कि अरब की रेतीली धरती पर इंसान ने जब पहली बार खेती करनी शुरू की, तो उगाई गई चीजों में खजूर भी शामिल थे. ईसाई और यहूदी धर्म में खजूर को खास अहमियत दी गयी है. मुसलमान रमजान के दौरान खजूर खाकर ही अपना उपवास खत्म करते हैं.
तस्वीर: imago/imagebroker
कमल
कीचड़ में उगने वाले कमल जैसा पवित्र और कुछ भी नहीं हो सकता. केवल भारत में ही नहीं, पूरे एशिया में यह मान्यता है. हिन्दू धर्म की मान्यताओं में भगवान विष्णु और लक्ष्मी को कमल के फूल पर ही बैठा दिखाया जाता है.
तस्वीर: Fotolia/Aamon
गिंगको
दिल जैसे आकार की पत्तियों वाले इस पेड़ को चीन और जापान में इतना पवित्र माना जाता है कि इसे मंदिरों में लगाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि यह पेड़ तीस करोड़ साल पहले भी धरती पर था.
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बुज्जा
सारस जैसा दिखने वाला यह पक्षी भी मिस्र सभ्यता के देवता ठोठ से नाता रखता है. ऐसी मान्यता है कि मिस्र की लिपि की रचना ठोठ ने ही की थी और वे सभी देवताओं के बीच संवाद के लिए जिम्मेदार हैं.
तस्वीर: hyper7pro / CC BY 2.0
लंगूर
कोई बच्चा बहुत उछल कूद करे, तो मजाक मजाक में उसे बंदर या लंगूर कह कर पुकारा जाता है. लेकिन प्राचीन मिस्र में लंगूर को पवित्र माना जाता था. विज्ञान और चांद के देवता ठोठ को अधिकतर लंगूर के रूप में दर्शाया जाता था.
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गुबरैला
लाल रंग के गुबरैले को अक्सर अच्छी किस्मत से जोड़ कर देखा जाता है. साथ ही मिस्र में इस काले गुबरैले को इतना पवित्र माना जाता है कि किसी को दफनाने के दौरान कब्र में पत्थर के बने गुबरैले का ताबीज भी रखा जाता है ताकि मरने के बाद गुबरैला व्यक्ति की रक्षा कर सके.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
चूहा
प्लेग जैसी बीमारी फैलाने और नालों में रहने के कारण चूहों को घृणा की दृष्टि से देखा जाता है. लेकिन भारत में यही चूहा भगवान गणेश की सवारी भी है. राजस्थान में चूहों को मारा नहीं जाता. बीकानेर के करीब तो चूहों का मंदिर भी है. (क्लाउस एस्टरलुस/आईबी)
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लिटन से जान बचाकर निकले गॉर्डन मुरे ने सरकारी टीवी चैनल सीबीसी न्यूज को दिए इंटरव्यू में बताया कि, "हम लोगों की छोटी सी, देहाती, मूल निवासियों वाली, कम आय वाली बिरादरी है और हम लोग जलवायु परिवर्तन की नोक पर हैं. लेकिन यह तो किसी को नहीं बख्शेगा, हम तो आसन्न खतरे की आहटें हैं.”
गर्म लहरों का सेहत पर असर
पिछले कुछ साल में सबसे जानलेवा तबाहियों में से एक है, गरमी की लहर. इंसानी देह को वह तोड़ कर रख देती है. गरमी दिल, फेफड़े और गुर्दे की बीमारियों को और भड़का देती है और डायबिटीज को भी बढ़ाती है. बुजुर्गों, बच्चों, निर्माण कार्य में लगे मजदूरों और बेघरों पर इसका ज्यादा कहर टूटता है.
उत्तर-पश्चिम प्रशांत क्षेत्र में ठंडक भरा, अक्सर बरसातों वाला मौसम रहता है. दक्षिणी राज्यों के मुकाबले यहां कुछ ही लोग एयर कंडीशनिंग का इस्तेमाल करते हैं. आग उगलते तापमान में तबीयत बिगड़ने से, अधिकारियों का अनुमान है कि, ओरेगन में 107 लोगों की मौत हुई. इनमें से अधिकतर 60 या उससे ज्यादा की उम्र के लोग थे.
ओरेगन के सबसे बड़े शहर पोर्टलैंड में ओरेगन हेल्थ ऐंड साइंस यूनिवर्सिटी में आपातकालीन चिकित्सक ब्रैंडन मॉन कहते हैं कि रात में भी मौसम तपा ही रहा तो लोगों को उबरने का मौका ही नहीं मिल पाया. पोर्टलैंड में जून के आखिरी दिनों में तीन दिन आसमान आग उगलता रहा और तापमान 46.7 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा था. वह कहते हैं कि बहुत से लोगों को लगा कि पिछली गर्मियों की तरह इस बार भी झेल लेंगे लेकिन ये तो बिल्कुल ही अलग सी चीज थी.
देखेंः जरूरी है महासागरों की सेहत
जरूरी है महासागरों का स्वस्थ रहना
विश्व महासागर दिवस 2021 एक अवसर है पृथ्वी के महासागरों को बचाने का और यह सुनिश्चित करने का कि धरती की नाजुक व्यवस्था का स्वास्थ्य बना रहे. जानिए कैसे यह लक्ष्य 2030 तक हासिल किया जा सकता है.
तस्वीर: World Resources Institute
नीले ग्रह की रक्षा
इस साल विश्व महासागर दिवस का लक्ष्य है 2030 तक पृथ्वी के कम से कम 30 प्रतिशत हिस्से को बचा रखना. समुद्री जल जीवन धरती पर जीव जंतुओं की तुलना में दोगुनी गति से खत्म हो रहा है. उसको बचाने के साथ साथ महासागरों को उनके तापमान के बढ़ने से भी बचाना है. इससे मूंगे की चट्टानें भी खत्म हो रही हैं और पानी में मौजूद ऑक्सीजन की मात्रा भी घट रही है.
तस्वीर: Colourbox
धरती का सहारा
महासागर धरती की सतह के 70 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्से में फैले हुए हैं और धरती पर मौजूद ऑक्सीजन का कम से कम 50 प्रतिशत वही बनाते हैं. वो धरती की अधिकांश जैव-विविधता को पनाह देते हैं और पूरी दुनिया में एक अरब से भी ज्यादा लोगों के लिए प्रोटीन का स्त्रोत हैं. समुद्र पर आधारित अर्थव्यवस्थाओं को समुद्र को बचाने के लिए आगा आना होगा.
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धरती का सहारा
कार्बन उत्सर्जन से बचाव
मैंग्रोव, समुद्री शैवाल और कच्छ भूमि मिल कर "नीला कार्बन" इकोसिस्टम बनाते हैं जो जमीन पर जंगलों के मुकाबले चार गुना ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड को अलग कर पर्यावरण में उसकी मात्रा घटा सकते हैं. इसकी वजह से पेरिस में तय हुई जलवायु संधि के तहत 2050 तक उत्सर्जन घटाने के लक्ष्यों को हासिल करने में महासागरों की अत्यावश्यक भूमिका है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/ESA/USGS
नीली अर्थव्यवस्था को कायम रखना
लेकिन समुद्र जीविका का स्त्रोत तभी तक रह पाएंगे जब समुद्र-आधारित अर्थव्यवस्थाओं, या नीली अर्थव्यवस्थाओं, का ठीक से प्रबंधन हो पाएगा. जैसे मछली पकड़ने के पारंपरिक तरीकों को जिंदा रखने से वैश्विक दक्षिण की तटीय अर्थव्यवस्थाएं जीविका भी बचाए रख सकती हैं और जैव-विविधता और संस्कृति को भी. अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल कर समुद्र को तापमान में बढ़ोतरी से भी बचाने का लक्ष्य है.
तस्वीर: picture-alliance/Demotix
'ओवरफिशिंग' पर रोक
महासागरों को बचाए रखने के लिए गैर कानूनी तरीके से मछलियां पकड़ने के व्यापार और 'ओवेरफिशिंग' यानी जरूरत से ज्यादा मछलियां पकड़ने को बंद करना होगा. चीनी जहाज लातिन अमेरिका में यह करने के लिए बदनाम हैं. इसके अलावा ग्रीनपीस ने भूमध्यसागर में ब्लूफिन टूना की आबादी पर मंडरा रहे खतरे के बारे में कई बार चेताया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Solaro
प्लास्टिक कचरा
प्रशांत महासागर का ग्रेट पैसिफिक गार्बेज पैच प्लास्टिक और माइक्रोप्लास्टिक का एक विशालकाय द्वीप बन चुका है. आकार में ये अब अमेरिकी राज्य टेक्सास का दुगुना है. कहते हैं इसमें प्लास्टिक के इस तरह के 1,000 अरब टुकड़े हैं और 80,000 टन कचरा है. प्लास्टिक कचरे को समुद्र में जाने से रोकना एक बड़ा लक्ष्य है.
तस्वीर: Greenpeace/Justin Hofman
ऊर्जा के स्त्रोत
ओशन एनर्जी यूरोप संस्था के मुताबिक लहरों की ऊर्जा से अगर बिजली बनाई जाए तो उससे यूरोप की 10 प्रतिशत बिजली जरूरतों को पूरा किया जा सकता है. यूरोप के सागरों में पूरे यूरोप की ज्वारीय ऊर्जा का 50 प्रतिशत और लहरों की ऊर्जा का 35 प्रतिशत का उत्पादन होता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Bielmann
मानवता का समुद्र से संबंध
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने एक बार कहा था कि "हम सभी की नसों के खून में ठीक उतना प्रतिशत नमक है जितना समुद्र में है." उन्होंने यह भी कहा था, "हम समुद्र से बंधे हुए हैं और जब हम उसकी तरफ वापस लौटेंगे तो हम अपनी शुरुआत के तरफ ही लौट जाएंगे." - स्टुअर्ट ब्राउन
तस्वीर: picture-alliance/AA/M. Ciftci
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मॉन कहते हैं कि एक औसत वर्ष में ओरेगन के अस्पतालों में गरमी से निढाल हुए कई मरीजों का इलाज किया जाता है. तबीयत ठीक न लगी तो घर में ही आराम या उपचार कर सकते हैं लेकिन कुछ लोगों को लू लगने पर ज्यादा गंभीर लक्षण होते हैं. उनके शब्दों में, "हमें इस साल ऐसे मरीज ज्यादा दिखे.”
मई में नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि 1991 से, गर्मी से होने वाली तीन में से एक मौत की वजह जलवायु परिवर्तन है. स्विट्जरलैंड की बर्न यूनिवर्सिटी में क्लाइमेट चेंज और हेल्थ की ग्रुप लीडर और अध्ययन की सह लेखक आना विसेडो के मुताबिक उत्तरी अमेरिका की गर्मी की लहर दिखाती है कि "ऐसी चरम किस्म की परिघटनाओं के लिए मौजूदा अनुकूलन प्रणालियां नाकाफ़ी हैं.”
2003 में यूरोप में 70 हजार लोगों की जान लेने वाली गर्म लहरों की संभावना ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से दोगुना हो चुकी थी. यानी ग्लोबल वॉर्मिंग ने उस गर्मी को अवश्यंभावी बना दिया था. अकेले पेरिस में ही जलवायु परिवर्तन ने गर्मी से होने वाले मौतों का जोखिम 70 प्रतिशत तक बढ़ा दिया था. 500 लोगों की मौत हुई थी.
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गर्म लहर के थपेड़ों से बचने के उपाय
लोगों को शेड जैसी सार्वजनिक जगहों में रहकर या एयर कंडीशनिंग जैसे उपायों से गर्म लहर या लू से निजात पा सकते हैं. खूब पानी पिएं और असहाय और बुजुर्ग पड़ोसियों का ध्यान रखें.
शहरों में स्थिति थोड़ा पेचीदा हो सकती है जहां कंक्रीट की इमारतें और डामर की सड़कें गर्मी को सोखकर आसपास के तापमान को और ज्यादा बढ़ा देती हैं. स्थानीय प्रशासन इस बोझ को कम कर सकते हैं- शहरों में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाकर, नहरें निकालकर और पार्क बनाकर.
वैसे तो लोग ज्यादा गरम तापमानों में रहने के आदी हो जाते हैं, लेकिन वैज्ञानिकों का जोर इस बात पर है कि उत्सर्जनों पर अकुंश लगाने वाली जलवायु नीति ही गर्म लहरों की ताकत, अवधि और फ्रीक्वेंसी तय करेगी.
2015 में विश्व नेताओं ने ग्लोबल वॉर्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखने का वादा किया था. लेकिन उनकी मौजूदा नीतियां, जर्मन रिसर्च ग्रुप क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर के मुताबिक, धरती को करीब तीन डिग्री सेल्सियस तक गरम कर रही हैं.
डब्लूडब्लूए के अध्ययन ने पाया कि दो डिग्री सेल्सियस की ग्लोबल वॉर्मिंग, उत्तरी अमेरिका जैसी गर्म लहरों को इतना मुमकिन बना देगी कि वे हर पांच से दस साल में कहर बरपाएंगी.
रिपोर्टः अजित निरंजन
देखिएः 17 साल बाद निकले झींगुर
17 साल बाद जमीं से निकले खरबों झींगुर
अमेरिका के कई शहरों में खरबों झींगुर जमीन से निकल आए हैं. गलियों, सड़कों, दीवारों, पेड़ों पर हर जगह झींगुर नजर आ रहे हैं. क्या है माजरा, देखिए और समझिए...
तस्वीर: Amira Karaoud/REUTERS
खरबों झींगुर
यूनिवर्सिटी ऑफ मैरिलैंड के कीटविज्ञानियों का कहना है कि हर एक एकड़ में 10 से 15 लाख झींगुर हो गए हैं. लाल आंखों वाले से काले जीव करोड़ों की संख्या में हर जगह मौजूद हैं.
तस्वीर: Chip Somodevilla/Getty Images/AFP
ब्रूड एक्स
ब्रूड एक्स नस्ल के ये झींगुर 17 साल तक भूमिगत रहने के बाद अमेरिका के कम से कम 15 राज्यों में निकल आए हैं. इंडियाना से लेकर जॉर्जिया तक और न्यूयॉर्क से लेकर टेनेसी और नॉर्थ कैरोलाइना तक.
तस्वीर: Amira Karaoud/REUTERS
झींगुरों की चादरें
कई जगह तो लोगों के आंगनों में झींगुर की चादरें बिछ गई हैं और इनका शोर किसी घास काटने वाली मशीन से भी ज्यादा होता है.
तस्वीर: Joseph Ax/REUTERS
मरने से पहले
वैज्ञानिकों के मुताबिक यह एक अद्भुत घटना है. 17 साल जमीन के नीचे एकांतवास में बिताकर ये जीव बच्चे पैदा करने और फिर मर जाने के लिए बाहर निकलते हैं.
तस्वीर: Kevin Lamarque/REUTERS
रात भाती है
आमतौर पर ये झींगुर दिन ढल जाने के बाद निकलते हैं. फिर से पेड़ों पर चढ़ने की कोशिश करते हैं. इस दौरान ये अपनी पुरानी त्वचा को उतार देते हैं.
तस्वीर: MANDEL NGAN/AFP
छोटा सा जीवन
वैज्ञानिक बताते हैं कि जमीन पर आने के बाद ये झींगुर बच्चे भी पैदा करते हैं. लेकिन इनका जीवन बहुत लंबा नहीं होता क्योंकि अक्सर वे पक्षियों, चींटियों, बिल्लियों या कुत्तों का शिकार बन जाते हैं.
तस्वीर: AP
डरना जरूरी नहीं है
लेकिन इनकी मौजूदगी डरावनी भी है. अमेरिका में तो इस डर से परेशान लोगों ने मनोवैज्ञानिकों तक के दरवाजे खटखटा दिए हैं.
तस्वीर: Chip Somodevilla/Getty Images/AFP
अच्छी खबर है
लेकिन वैज्ञानिक इस घटना से खुश हैं. उनका कहना है कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और बड़ी संख्या में जीव प्रजातियों के खत्म होने के बावजूद इन झींगुरों का जमीन से निकल आना दिखाता है कि कुदरत में कुछ तो ठीक चल रहा है.
तस्वीर: Chip Somodevilla/Getty Images/AFP
सिर्फ अमेरिका में
दुनिया में अमेरिका ही ऐसी जगह है जहां ये झींगुर 13 से 17 साल तक जमीन के नीचे रहकर फिर बाहर निकल आते हैं. 1950 से पहले ये मई के आखिरी हफ्ते से निकलना शुरू करते थे. इस साल ये मई के पहले हफ्ते में ही नजर आ गए थे.
तस्वीर: Carlos Barria/REUTERS
बुरे नहीं हैं झींगुर
ये जीव फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाते और अक्सर युवा पेड़ों के पत्तों को खाते हैं. कुछ वैज्ञानिकों कहते हैं कि जिस साल झींगुर निकलते हैं, उसके अगले साल पेड़ों पर ज्यादा फल आते हैं.