1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
विज्ञानविश्व

साइबेरिया में 600 गुना बढ़ गई गर्मी

१६ जुलाई २०२०

साइबेरिया दुनिया के सबसे सर्द इलाकों में से एक है. लेकिन इस साल वहां रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ी है. गर्मी की यह लहर जलवायु परिवर्तन के मौसम पर पड़ रहे खतरनाक असर को साफ साफ दिखा रही है.

Das Werchowjansker Gebirge von oben
तस्वीर: imago/Russian Look

एक ताजा शोध में पाया गया है कि ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण साइबेरिया में गर्मी की संभावना कम से कम 600 गुना बढ़ गई है. रिसर्चरों की टीम ने जनवरी से जून 2020 तक साइबेरिया के मौसम का डाटा जमा किया. उन्होंने पाया कि इस दौरान एक दिन ऐसा भी था जब तापमान रिकॉर्ड 38 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया. साइबेरिया में आम तौर पर साल का अधिकतम तापमान 10 से 17 डिग्री के बीच ही पहुंच पाता है.

ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, नीदरलैंड्स, जर्मनी और स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिकों ने 70 अलग अलग मॉडलों का इस्तेमाल कर के पता लगाने की कोशिश की कि अगर कोयला, तेल और गैस जलाने जैसी इंसानी गतिविधियां ना होतीं, तो क्या ग्लोबल वॉर्मिंग का इतना बुरा असर पड़ सकता था. उन्होंने पाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण साइबेरिया के तापमान में जिस तरह का बदलाव आया है, ऐसा 80,000 सालों में एक बार होता है. इस शोध के प्रमुख लेखक और ब्रिट्रेन के मौसम विभाग के वैज्ञानिक एंड्रयू सियावरेला का कहना है कि ऐसा इंसानी हस्तक्षेप के बिना नहीं हुआ होता.

वहीं, ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी के एन्वायरनमेंटल चेंज इंस्टीट्यूट के निदेशक फ्रीडेरीके ऑटो का कहना है कि शोधकर्ताओं ने कई इलाकों पर रिसर्च की लेकिन 2020 में साइबेरिया जैसे हाल और कहीं भी देखे नहीं गए. रिसर्चरों ने साइबेरिया में साल के पहले छह महीनों में औसत तापमान पर ध्यान दिया. उन्होंने तापमान सामान्य से 9 डिग्री ज्यादा पाया. इसी तरह उन्होंने जून में रूसी शहर वेरखोयस्क में भी तापमान में वृद्धि देखी. वैज्ञानिकों का कहना है कि जीवाश्म ईंधन को जलाने से वातावरण में ऐसी गैसें फंसीं, जिन्होंने अतिरिक्त गर्मी फैलाई. इसके अलावा जंगलों की आग, कीटों के प्रकोप और पर्माफ्रॉस्ट ने भी स्थिति खराब की.

इतनी गर्मी क्यों है?

03:19

This browser does not support the video element.

पर्माफ्रॉस्ट यानी भीषण पाला पड़ने के कारण एक तरफ तेल रिसाव हुए क्योंकि सर्दी में तेल की पाइपें फटीं, तो दूसरी ओर पाले की बर्फ जब पिघलती है, तो उसके नीचे की जमीन अतिरिक्त ग्रीनहाउस गैसें छोड़ने लगती है. इस तरह से यह ग्लोबल वॉर्मिंग को और बढ़ा देता है. शोध की एक अन्य लेखक और रूस की पीपी शिर्शोव इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोलॉजी की ओल्गा जोलीना का कहना है, "यह एक चिंताजनक प्रक्रिया है."

वैज्ञानिक जगत में इस शोध को बेहद विश्वसनीय बताया जा रहा है. फ्रांस की वैज्ञानिक वैलेरी मेसन डेलमोटे का कहना है, "इस तरह के शोध लोगों और दुनिया के नेताओं को एक मौका देते हैं कि वे बिंदुओं को जोड़ें और मौसम में बदलाव की घटनाओं को जलवायु परिवर्तन के मुद्दे के साथ जोड़ कर समझ सकें." पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के मौसम विज्ञानी डेविड टिटले का कहना है कि यह शोध दिखाता है कि भविष्य का मौसम कितना अलग हुआ करेगा, "हमें या तो खुद को बदलना होगा या फिर पछताना होगा."

आईबी/एमजे (एपी)

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें