साइबेरिया दुनिया के सबसे सर्द इलाकों में से एक है. लेकिन इस साल वहां रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ी है. गर्मी की यह लहर जलवायु परिवर्तन के मौसम पर पड़ रहे खतरनाक असर को साफ साफ दिखा रही है.
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एक ताजा शोध में पाया गया है कि ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण साइबेरिया में गर्मी की संभावना कम से कम 600 गुना बढ़ गई है. रिसर्चरों की टीम ने जनवरी से जून 2020 तक साइबेरिया के मौसम का डाटा जमा किया. उन्होंने पाया कि इस दौरान एक दिन ऐसा भी था जब तापमान रिकॉर्ड 38 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया. साइबेरिया में आम तौर पर साल का अधिकतम तापमान 10 से 17 डिग्री के बीच ही पहुंच पाता है.
ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, नीदरलैंड्स, जर्मनी और स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिकों ने 70 अलग अलग मॉडलों का इस्तेमाल कर के पता लगाने की कोशिश की कि अगर कोयला, तेल और गैस जलाने जैसी इंसानी गतिविधियां ना होतीं, तो क्या ग्लोबल वॉर्मिंग का इतना बुरा असर पड़ सकता था. उन्होंने पाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण साइबेरिया के तापमान में जिस तरह का बदलाव आया है, ऐसा 80,000 सालों में एक बार होता है. इस शोध के प्रमुख लेखक और ब्रिट्रेन के मौसम विभाग के वैज्ञानिक एंड्रयू सियावरेला का कहना है कि ऐसा इंसानी हस्तक्षेप के बिना नहीं हुआ होता.
वहीं, ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी के एन्वायरनमेंटल चेंज इंस्टीट्यूट के निदेशक फ्रीडेरीके ऑटो का कहना है कि शोधकर्ताओं ने कई इलाकों पर रिसर्च की लेकिन 2020 में साइबेरिया जैसे हाल और कहीं भी देखे नहीं गए. रिसर्चरों ने साइबेरिया में साल के पहले छह महीनों में औसत तापमान पर ध्यान दिया. उन्होंने तापमान सामान्य से 9 डिग्री ज्यादा पाया. इसी तरह उन्होंने जून में रूसी शहर वेरखोयस्क में भी तापमान में वृद्धि देखी. वैज्ञानिकों का कहना है कि जीवाश्म ईंधन को जलाने से वातावरण में ऐसी गैसें फंसीं, जिन्होंने अतिरिक्त गर्मी फैलाई. इसके अलावा जंगलों की आग, कीटों के प्रकोप और पर्माफ्रॉस्ट ने भी स्थिति खराब की.
इतनी गर्मी क्यों है?
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पर्माफ्रॉस्ट यानी भीषण पाला पड़ने के कारण एक तरफ तेल रिसाव हुए क्योंकि सर्दी में तेल की पाइपें फटीं, तो दूसरी ओर पाले की बर्फ जब पिघलती है, तो उसके नीचे की जमीन अतिरिक्त ग्रीनहाउस गैसें छोड़ने लगती है. इस तरह से यह ग्लोबल वॉर्मिंग को और बढ़ा देता है. शोध की एक अन्य लेखक और रूस की पीपी शिर्शोव इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोलॉजी की ओल्गा जोलीना का कहना है, "यह एक चिंताजनक प्रक्रिया है."
वैज्ञानिक जगत में इस शोध को बेहद विश्वसनीय बताया जा रहा है. फ्रांस की वैज्ञानिक वैलेरी मेसन डेलमोटे का कहना है, "इस तरह के शोध लोगों और दुनिया के नेताओं को एक मौका देते हैं कि वे बिंदुओं को जोड़ें और मौसम में बदलाव की घटनाओं को जलवायु परिवर्तन के मुद्दे के साथ जोड़ कर समझ सकें." पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के मौसम विज्ञानी डेविड टिटले का कहना है कि यह शोध दिखाता है कि भविष्य का मौसम कितना अलग हुआ करेगा, "हमें या तो खुद को बदलना होगा या फिर पछताना होगा."
जलवायु परिवर्तन से समुद्र तेजी से गर्म होते जा रहे हैं. इनका सिर्फ समुद्री जीवन पर ही बुरा प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि इसका मतलब भविष्य में मौसम में और तेज परिवर्तन, समुद्री तूफान का आना और जंगलों में आग लगना होगा.
तस्वीर: NGDC
दक्षिणी ध्रुव पर कैलिफोर्निया
अंटार्कटिका पर तैनात वैज्ञानिकों ने वहां का तापमान मापा तो लॉस एंजेलेस के बराबर निकला. फरवरी में रिकॉर्ड 18.3 डिग्री तापमान और वह भी उत्तरी अंटार्कटिक में अर्जेंटीना के रिसर्च स्टेशन पर. नासा के अनुसार यह वहां अब तक का सबसे ज्यादा तापमान था.
तस्वीर: Earth Observatory/ NASA
नियमित रूप से आता तूफान
समुद्रों के गर्म होने से ट्रॉपिकल तूफानों की तादाद बढ़ रही है. हरिकेन या टायफून का सीजन लंबा होने लगेगा और खासकर उत्तरी अटलांटिक और पूर्वोत्तर प्रशांत में उनकी संख्या भी बढ़ेगी. मौसम बदलने का असर भविष्य में भारी नुकसान पहुंचाने वाले तूफान के रूप में सामने आएगा.
तस्वीर: AFP/Rammb/Noaa/Ho
समुद्र का बढ़ता जलस्तर
धरती के वातावरण में तापमान बढ़ता है तो सागर भी गर्म होने लगते हैं. इसका नतीजा पानी के बढ़ने के रूप में दिखता है. पानी बढ़ेगा तो समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा और बाढ़ आएगी या समुद्र तट पर स्थित इलाके डूबने लगेंगे.
पानी की सतह के गर्म होने से उसका वाष्पीकरण होगा और बरसात के बाद बाढ़ आएगी. कुछ इलाके डूब जाएंगे तो दूसरे इलाकों में सूखा पड़ेगा. नतीजा होगा फसल का न होना या जगलों में आग लगने से उसका नष्ट होना. भविष्य में आग का मौसम लंबा खिंचेगा और जंगलों पर खतरा लंबे समय तक बना रहेगा.
तस्वीर: Reuters/AAP Image/D.
इकोसिस्टम में बदलाव
गर्म सागर का मतलब होगा समुद्री जीव अपने पुराने घरों से भागने लगेंगे और आखिर में सारा समुद्रूी जलजीवन ठंडे इलाकों में चला जाएगा. मछलियां और समुद्री जानवर समतल से ध्रुवीय इलाकों की ओर चले जाएंगे. उत्तरी सागर में तो मछली का भंडार पहले से ही सिकुड़ने लगा है.
तस्वीर: by-nc-sa/Joachim S. Müller
समुद्रों का अम्लीकरण
गर्मी की वजह से कार्बन डाय ऑक्साइड पानी में घुल जाता है, समुद्री पानी का पीएच वैल्यू बढ़ जाता है और पानी का अम्लीकरण हो जाता है. पानी में अम्ल की मात्रा बढ़ने से स्टारफिश, शीप, कोरल और झींगों का बढ़ना रुक जाता है. नतीजा ये होगा कि उनका अस्तित्व मिट जाएगा.
चारे की कमी
कार्बन डाय ऑक्साइड के समुद्री पानी में घुलने से पीएच वेल्यू घटेगी तो छोटे अल्गी आयरन को सोख नहीं पाते. अल्गी यदि आइरन को नहीं सोखेंगे तो उनका विकास नहीं होगा और समुद्री जीवों को चारा नहीं मिलेगा. इस तरह वे भी पानी के अम्लीकरण से प्रभावित होंगे.
तस्वीर: picture alliance / dpa
ऑक्सीजन की कमी
गर्म पानी कम ऑक्सीजन का संग्रह करते हैं. इस तरह गर्म होते समुद्र का मतलब ये भी है कि ऑक्सीजन की प्रचुर मात्रा वाले इलाके कम होते जाएंगे. बहुत सी नदियों, झीलों और तालाबों में अभी ही कम ऑक्सीजन वाले मौत के कुएं मौजूद हैं. यहां कम ऑक्सीजन के कारण जीवों का रहना मुश्किल है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Schmidt
अल्गी का बढ़ना
गर्म और कम ऑक्सीजन वाले पानी में जहरीले अल्गी तेजी से बढ़ते हैं. उनका जहर मछलियों और दूसरे समुद्री जीवों को मार डालता है. पानी पर अल्गी या शैवाल के कालीन बहुत सारी जगहों पर मछली उद्योग को नुकसान पहुंचा रहे हैं. यहीं चिली के तट की एक तस्वीर.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/F. Marquez
सफेद कोरल का कंकाल
पानी के गर्म होने से समुद्री कोरल का सिर्फ रंग ही खत्म नहीं होता बल्कि ब्लीचिंग की वजह से बढ़ने की उसकी क्षमता भी खत्म हो जाती है. कोरल रीफ मरने लगते हैं और समुद्री जीवों को न तो सुरक्षा दे पाते हैं और न ही खाना. समुद्री जीवों के शिकार करने की जगह भी खत्म हो जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Naupold
बदलती समुद्री लहरें
यदि समुद्र के गर्म होने से उत्तरी अटलांटिक लहर की धारा बाधित होती है तो इसका मतलब पश्चिमी और उत्तरी यूरोप में शीतलहर होगा. यही लहर समुद्री पानी के प्रवाह को निर्धारित करती है और इसी से सतह का घना पानी घूमकर गहरे ठंडे इलाके की ओर जाता है.