आईएमएफ: जलवायु परिवर्तन से कमजोर देशों में बढ़ेगा संघर्ष
४ सितम्बर २०२३
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का कहना है कि जलवायु संबंधी झटकों से होने वाला आर्थिक नुकसान कमजोर देशों में अधिक गंभीर है.
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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में कहा कि जलवायु परिवर्तन से दुनिया भर के कमजोर देशों में संघर्ष और मौतें बढ़ने का खतरा है.
आईएमएफ का कहना है कि हालांकि जलवायु के झटके अकेले नयी अशांति पैदा नहीं कर सकते, लेकिन वे "संघर्ष को काफी खराब करते हैं, भूख, गरीबी और विस्थापन जैसे मुद्दों को बढ़ाते और जटिल बनाते हैं."
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2060 तक संवेदनशील और संघर्ष प्रभावित देशों (एफसीएस) की आबादी के हिस्से के रूप में संघर्ष से होने वाली मौतों में 8.5 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है और तापमान में अत्यधिक वृद्धि का सामना करने वाले देशों में 14 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है.
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रिपोर्ट में क्या कहा गया?
विश्व बैंक के वर्गीकरण के मुताबिक 39 देशों में लगभग एक अरब लोग रहते हैं और दुनिया की 43 फीसदी आबादी एफसीएस श्रेणी के अंतर्गत आती है. इनमें से आधे से अधिक देश अफ्रीका महाद्वीप में हैं जो जलवायु परिवर्तन का असंगत बोझ झेल रहे हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु संबंधी झटकों से आर्थिक नुकसान अन्य देशों की तुलना में कमजोर देशों में अधिक "गंभीर और लगातार" हो रहा है.
आईएमएफ ने एक अलग बयान में कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि सोमवार से शुरू हो रहे पहले अफ्रीकी जलवायु शिखर सम्मेलन के लिए इकट्ठा होने वाले नेता कमजोर देशों के सामने आने वाली समस्याओं का समाधान खोजें. अन्य देशों की तुलना में कमजोर देश आपदाओं से तीन गुना अधिक प्रभावित होते हैं.
आईएमएफ ने अपने बयान में लिखा, "हर साल नाजुक देशों में अन्य देशों की तुलना में तीन गुना अधिक लोग प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित होते हैं."
रिपोर्ट के मुताबिक नाजुक देशों में आपदाएं अन्य देशों की तुलना में दोगुनी से अधिक आबादी को विस्थापित करती हैं. आईएमएफ ने कहा कि 2040 तक इन देशों में साल में औसतन 61 दिन तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर हो सकता है, जो अन्य देशों की तुलना में चार गुना अधिक है.
आईएमएफ का कहना है, "अत्यधिक गर्मी और उसके साथ आने वाली चरम मौसम की घटनाओं से मानव स्वास्थ्य को खतरा होगा और कृषि और निर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में उत्पादकता और नौकरियों को नुकसान होगा."
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अफ्रीकी देशों की मांग
शिखर सम्मेलन 4 से 6 सितंबर तक नैरोबी में आयोजित हो रहा है, जिसका उद्देश्य 1.4 अरब लोगों के महाद्वीप के सामने आने वाली जलवायु चुनौतियों से निपटना है. यह सम्मेलन नवंबर और दिसंबर में संयुक्त अरब अमीरात में संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता के अगले दौर से पहले आयोजित किया जा रहा है.
अफ्रीकी सरकारें सालों से मांग कर रही हैं कि दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषक उनके उत्सर्जन से होने वाले नुकसान की भरपाई करें. इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप की वरिष्ठ विश्लेषक नाजनीन मोशिरी ने कहा, "दुबई में कोप28 शिखर सम्मेलन से पहले पर्यावरण और संघर्ष पर एक साथ विचार करना महत्वपूर्ण है."
उन्होंने कहा, "हमें केवल हॉर्न ऑफ अफ्रीका की स्थिति पर विचार करने की जरूरत है, जहां जलवायु परिवर्तन और संघर्ष के अलावा पिछले लगातार पांच वर्षों से खराब मौसम, अभूतपूर्व बाढ़ और दुनिया की सबसे खराब खाद्य आपात स्थिति के कारण दुनिया में सबसे बुरा खाद्य संकट पैदा हो गया है."
एए/वीके (एएफपी, रॉयटर्स)
इतनी गर्मी कि फोटोसिंथेसिस बिना मर सकते हैं पेड़
फोटोसिंथेसिस, पृथ्वी पर मौजूदा ज्यादातर जीवन के लिए बेहद अहम है. क्या हो अगर पत्तियां ये कर ही ना पाएं? धरती के एक बड़े हिस्से में इतनी गर्मी पड़ रही है कि कुछ पौधों की पत्तियां शायद फोटोसिंथेसिस कर ही नहीं सकेंगी.
तस्वीर: Carlos Fabal/AFP/Getty Images
क्या है फोटोसिंथेसिस
सूरज की रोशनी में पौधे, हवा और मिट्टी से सीओटू और पानी लेते हैं. पौधों की कोशिकाओं में जाकर पानी ऑक्सीडाइज होता है और सीओटू कम हो जाता है. इस क्रिया में पानी, ऑक्सीजन में बदल जाता है और सीओटू बदलता है ग्लूकोज में. फिर पौधा ऑक्सीजन वातावरण में छोड़ देता है और ऊर्जा को ग्लूकोज मॉलिक्यूल्स में जमा कर लेता है.
तस्वीर: ED JONES/AFP
पौधों को कहां से मिलता है हरा रंग
पौधों की कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट होता है, जो सूरज की रोशनी से मिलने वाली ऊर्जा जमा करता है. इसके थाइलाक्लॉइड मेंमब्रेन्स में रोशनी को सोखने वाला क्लोरोफिल नाम का एक पिगमेंट होता है. इसी की वजह से पौधों को मिलता है हरा रंग.
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पेड़ों की भी गर्मी सहने की सीमा है
फोटोसिंथेसिस करने की पत्तियों की क्षमता, तापमान के एक सीमा से पार होने पर नाकाम होने लगती है. यानी जब पेड़ बहुत गरम हो जाते हैं, तो पत्तियों में ऊर्जा उत्पादन की मशीनरी तपकर खत्म होने लगती है. ऊष्णकटिबंधीय इलाकों के पेड़ों में तापमान की यह सहनशक्ति तकरीबन 46.7 डिग्री सेल्सियस है.
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क्या कहता है नया शोध
नेचर पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण अमेरिका से लेकर दक्षिणपूर्व एशिया के ऊष्णकटिबंधीय जंगलों में इतनी गर्मी हो रही है कि वहां कई पत्तियां शायद फोटोसिंथेसिस करने की हालत में ना रहें.
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40 डिग्री सेल्सियस के भी पार
वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से करीब 400 किलोमीटर ऊपर स्थित अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर लगे थर्मल सैटेलाइट सेंसरों से लिए गए तापमान के आंकड़े इस्तेमाल किए. उन्होंने इसे लीफ-वॉर्मिंग प्रयोगों से जमा किए आंकड़ों से मिलाया. वैज्ञानिकों ने एक्सट्रीम तापमान पर गौर किया. पाया गया कि फॉरेस्ट कैनपी का औसत तापमान, 34 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा. लेकिन कुछ मामलों में यह 40 डिग्री सेल्सियस के पार भी चला गया.
तस्वीर: S. Derder/picture alliance
मर सकते हैं पेड़
रिपोर्ट के मुताबिक, अभी 0.01 फीसदी पत्ते तापमान की सीमा रेखा पार कर रहे हैं. इस सीमा के बाहर फोटोसिंथेसिस करने की उनकी क्षमता दम तोड़ देती है. यानी, पत्ते और पेड़ की मौत हो सकती है.
तस्वीर: Ricardo Oliveira/AFP/Getty Images
ग्लोबल वॉर्मिंग
0.01 फीसदी पत्तों का आंकड़ा अभी कम मालूम होगा. लेकिन तापमान तो लगातार बढ़ रहा है. सबसे गर्म जुलाई! अब तक का सबसे गर्म जून! ऐसे में ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के ऊष्णकटिबंधीय खतरों पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है.
तस्वीर: Juancho Torres/AA/picture alliance
ऊष्णकटिबंधीय जंगलों की अहमियत
पृथ्वी के करीब 12 फीसदी इलाके में ऊष्णकटिबंधीय जंगल हैं. इतने से इलाके में पौधों और जानवरों की तीन करोड़ से ज्यादा प्रजातियां हैं. यानी, पृथ्वी पर मौजूद वन्यजीवन का आधा हिस्सा और पेड़-पौधों की कम-से-कम दो तिहाई विविधता. माना जाता है कि वर्षावनों में तो अब भी सैकड़ों प्रजातियां हैं, जिनका हमें पता नहीं.
तस्वीर: Andre Coelho/Agencia EFE/imago images
जल चक्र: पानी-भाप-बादल-बारिश
ये जंगल पृथ्वी के पारिस्थितिकीय संतुलन के लिए अहम हैं. ये हमें ऑक्सीजन देते हैं. सीओटू सोखते हैं. ये पानी का चक्र भी बनाए रखते हैं. ये वाष्पन क्रिया से वातावरण को पानी और नमी मुहैया करते हैं, जिससे बादल बनते हैं, बारिश होती है और इस तरह पानी का एक चक्र घूमता रहता है. ऐसा नहीं कि एक जगह के जंगल से उसी जगह बारिश होती हो. इस बारिश से नदियों, झीलों और सिंचाई व्यवस्थाओं को खुराक मिलती है.