जलवायु परिवर्तन: दुनिया का 90 प्रतिशत समुद्री भोजन खतरे में
२७ जून २०२३
एक नए शोध में पता चला है कि जलवायु और पर्यावरणीय परिवर्तन ने दुनिया के 90 प्रतिशत से ज्यादा समुद्री भोजन को खतरे में डाल दिया है. सबसे ज्यादा खतरा चीन, नॉर्वे और अमेरिका जैसे सबसे बड़े उत्पादकों को होगा.
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बढ़ते तापमान और प्रदूषण जैसे कारणों को इस परिवर्तन का जिम्मेदार माना जा रहा है. 'ब्लू फूड' यानी समुद्री भोजन में 2190 से भी ज्यादा मछलियों, शेलफिश, पौधे, एल्गी और ताजे पानी में पाली गई 540 से भी ज्यादा प्रकार की नस्लें शामिल हैं. इनसे दुनियाभर में 3.2 अरब लोगों को भोजन मिलता है.
पत्रिका 'नेचर सस्टेनेबिलिटी' में छपे इस अध्ययन के मुताबिक इन खतरों के अनुकूल कदम उठाने की दिशा में पर्याप्त प्रगति नहीं हो रही है. स्टॉकहोल्म रेसिलिएंस सेंटर में शोधकर्ता और इस शोध की सह लेखिका रेबेका शार्ट ने बताया, "हालांकि हमने जलवायु परिवर्तन के मोर्चे परथोड़ी तरक्की हासिल की है, ब्लू फूड सिस्टमों को लेकर हमारी अनुकूलन रणनीतियां अभी ठीक से विकसित नहीं हुई हैं और उन पर तुरंत ध्यान दिए जाने की जरूरत है."
इस उद्योग में हो रहे अति-उत्पादन ने वेटलैंड ठौर-ठिकानों को नष्ट कर दिया है और पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाया है. लेकिन इसके अलावा और भी कारण हैं जो समुद्री भोजन की मात्रा और गुणवत्ता पर असर डाल रहे हैं. इनमें समुद्र का बढ़ता स्तर, बढ़ता तापमान, बारिश में बदलाव, ज्यादा एल्गी का होना और पारे, कीटनाशकों और एंटीबायोटिक से प्रदूषण जैसे कारण शामिल हैं.
सीपियां खाने से पर्यावरण का भी फायदा
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शोध के सह-लेखक और चीन के शियामेन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर लिंग शाओ ने कहा, "मानवों द्वारा लाए गए पर्यावरणीय बदलाव से जो कमजोरी उत्पन्न होती है उससे ब्लू फूड के उत्पादन पर बहुत दबाव पड़ता है. हम जानते हैं कि एक्वाकल्चर और मछली पकड़ने के व्यवसाय से अरबों लोगों की आजीविका चलती है और पोषण संबंधी जरूरतें पूरी होती हैं."
चीन, जापान, भारत और वियतनाम में दुनिया के पूरे एक्वाकल्चर का 85 प्रतिशत उत्पादन होता है और इस शोध में कहा गया है कि इन देशों की स्थिति को मजबूत बनाना प्राथमिकता होनी चाहिए. समुद्री भोजन पर निर्भर रहने वाले छोटे द्वीप राष्ट्र भी विशेष रूप से कमजोर हैं.
चाओ ने कहा कि मार्च में समुद्र में सस्टेनेबल विकास पर संयुक्त राष्ट्र की जिस संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे वह स्टेकहोल्डरों की साझा हित में कदम उठाने में मदद कर सकता है, लेकिन आगे और भी जोखिम नजर आ रहे हैं.
कार्बन फार्मिंग से पर्यावरण का भी भला हो रहा है और जेब का भी
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प्रशांत महासागर में स्थित नाउरू समुद्र तल से धातुओं के खनन की गतिविधियों में अग्रणी भूमिका निभा रहा है, लेकिन पर्यावरणविदों का कहना है कि इससे समुद्री जीवन का भारी नुकसान हो सकता है.
नॉर्वे भी एक और बड़ा समुद्री भोजन का उत्पादक है. पिछले हफ्ते उसने घोषणा की अब वह भी समुद्री इलाकों में खनन की इजाजत देगा, लेकिन इसके बाद उसे काफी आलोचना झेलनी पड़ी. चाओ कहते हैं, "समुद्र तल में खनन का जंगली मछलियों की आबादी पर असर पड़ेगा. कई वैज्ञानिक अब सरकारों से मांग कर रहे हैं कि वो मूल्यांकन करें कि खनन कहां करना है जिससे इस असर को कम किया जा सके."
सीके/एए (रॉयटर्स)
स्पेन में सीपियां बटोरने वाली महिलाएं
उत्तर पश्चिमी स्पेन के गैलिसिया प्रांत में, क्लैम यानी बड़ी सीपियों को बटोरना पीढ़ियों से चली आ रही एक पुरानी परंपरा है. और इस काम को अधिकांश रूप से महिलाएं ही करती हैं.
तस्वीर: Alvaro Barrientos/AP/picture alliance
खाड़ी में उतरना
गैलिसिया के लूरीजां में कम ज्वार के समय महिलाओं के ज्यादातर समूह खाड़ी की गीली रेत में उतर कर फैल जाते हैं. बातें करती और हंसती हुई ये महिलाएं रेन बूट पहनती हैं और साथ में सीप जमा करने का औजार और बाल्टियां लिए रहती हैं. इन्हें 'क्लैम डिगर' यानी सीपियां बटोरने वाली कहा जाता है. वो खुद को "समंदर की किसान" कहती हैं.
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परंपरा और कड़ी मेहनत
इस इलाके में सीपियां बटोरने की परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है. पुराने समय में, लूरीजां गांव के पुरुष जब समंदर में महीनों लंबी यात्राओं पर चले जाते थे तब महिलाएं वहां की गीली रेत में सीपियां खोजती थीं.
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कैसे मिलती हैं सीपियां
क्लैम को इकठ्ठा करने के लिए दो तरीके इस्तेमाल किये जाते हैं. पहला, एक रेक से मुलायम रेत को कुरेदा जाता है और एक बाल्टी में जितने मुमकिन हों उतने क्लैम इकठ्ठा किये जाते हैं. दूसरे तरीके में वाटरप्रूफ कपड़े या नदी से मछली पकड़ने वाले कपड़े पहन कर खाड़ी के ठंडे पानी में कमर तक उतर जाते हैं. धातु के पिंजरे से जुड़े हुए एक रेक से समुद्र के तल की रेत को कुरेदते हैं. फिर वहां मिली सीपियों को ऊपर लेकर आते हैं.
तस्वीर: Alvaro Barrientos/AP/picture alliance
कम हो रहे हैं क्लैम
हर दिन इन महिलाओं को कुल लगभग 10 किलो के बराबर दो अलग-अलग किस्म के क्लैम घर ले जाने की इजाजत मिलती है. काम कब किया जा सकता है यह ज्वार और मौसम तय करते हैं, लेकिन कभी कभी पानी के मैला होने की वजह से इन्हें इकठ्ठा करना प्रतिबंधित कर दिया जाता है. लोगों का कहना है कि आजकल हर तरह के क्लैम मिलने कम हो गए हैं, शायद जलवायु परिवर्तन की वजह से.
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आर्थिक स्वतंत्रता
बटोरे गए क्लैमों को स्थानीय मछली बाजार में बेच दिया जाता है. वहां से यह पूरे देश में मछली बेचने वालों के पास पहुंच जाती हैं. फिर इन्हें घरों और रेस्तरां में महंगी डिश के रूप में परोसा जाता है. आजकल यह गतिविधियां रेगुलेट की जाती हैं और महिलाओं को एक तरह से वेतन की गारंटी दी जाती है. इससे उन्हें थोड़ी सी आर्थिक स्वतंत्रता मिलती है. आजकल तो परमिट मिलने में सालों लग सकते हैं.
तस्वीर: Alvaro Barrientos/AP/picture alliance
ब्रेक का समय
इन महिलाओं का कहना है कि दशकों पहले यह काम ज्यादा मुश्किल था, क्योंकि तब ना सुरक्षात्मक कपड़े थे और ना काम बंद होने के समय मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा. इनमें से कई तो तैरना भी नहीं जानती थीं. आज यह एक महीने में 15 से 16 दिनों तक करीब तीन घंटा रोज काम करती हैं. बाजार में चल रही कीमत के हिसाब से ये एक शिफ्ट में औसत 100 यूरो तक कमा लेती हैं.
तस्वीर: Alvaro Barrientos/AP/picture alliance
सस्टेनेबिलिटी
क्लैम के इन समुद्री खेतों को बीज लगा कर या बेबी क्लैम रोप कर लगातार फिर से भरा जाता है. जहां से क्लैम पूरी तरह निकाल लिए गए हैं, उन इलाकों को घेर दिया जाता है ताकि वे फिर से स्वस्थ हो सकें. इस तरह एक साइक्लिकल और सस्टेनेबल उद्योग को बनाये रखा जाता है.
(केविन मार्टेंस, एपी से सामग्री के साथ)