जलवायु अनुकूल खेती महिलाओं को कैसे सशक्त बना रही है
राहत राफे
८ जनवरी २०२२
बांग्लादेश उन देशों में से है जो जलवायु आपदाओं के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील हैं. लेकिन स्थानीय समुदायों, खासकर महिलाओं को जलवायु संबंधी समस्याओं के प्रभावों को दूर करने में मदद के लिए कई तरह की कोशिशें की गई हैं.
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गीता मोनी मंडल अपने घर में दिन में कई घंटे बिताती है जहां वो इस सर्दी में कई तरह की सब्जियों की खेती कर रही हैं. एक दिहाड़ी मजदूर की पत्नी और दो बच्चों की मां मंडल ने दो साल पहले अपने पति की आमदनी में आई कमी के बाद अपने यार्ड में सब्जियां उगाना शुरू कर दिया था.
वो कहती हैं, "अत्यधिक बाढ़ और जलभराव ने कई खेत मालिकों को कृषि उत्पादन छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया. मेरे पति जैसे दिहाड़ी मजदूरों के लिए नियमित काम मिलना मुश्किल था. मैं अब सब्जियां बेचकर अपने परिवार और अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई का इंतजाम कर रही हूं.”
मंडल इस क्षेत्र में अकेली ऐसी महिला नहीं हैं बल्कि बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में रहने वाली कई महिलाओं की ऐसी ही कहानियां हैं, जहां जलवायु परिवर्तन से जुड़ी मौसमी अति की घटनाएं नियमित रूप से स्थानीय समुदायों में दुख का कारण बनती हैं.
10 आपदाएं जो जलवायु परिवर्तन की वजह से आईं
आग हो या बाढ़, शीत लहर हो या टिड्डियों का हमला, विशेषज्ञों का कहना है कि मानव-निर्मित जलवायु परिवर्तन दुनिया के मौसम पर कहर बरपा रहा है. देखिए पिछले दो सालों में कैसी कैसी आपदाएं आईं.
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जंगली आग
इसी साल गर्मियों में ग्रीस में गर्मी की ऐसी लहर देखी गई जैसी पहले कभी नहीं आई. उसकी वजह से घातक जंगली आग फैल गई जिसने करीब 2,50,000 एकड़ जंगलों को जला कर राख कर दिया. अल्जीरिया और तुर्की में तो आग से करीब 80 लोग मारे गए. इटली और स्पेन में भी आग का प्रकोप देखा गया.
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रिकॉर्ड-तोड़ गर्मी
जून में पश्चिमी कनाडा और उत्तर पश्चिमी अमेरिका में अभूतपूर्व गर्मी देखी गई. ब्रिटिश कोलंबिया के लिट्टन शहर में पारा 49.6 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया जो कि एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड था. वर्ल्ड वेदर एट्रीब्यूशन (डब्ल्यूडब्ल्यूए) विज्ञान संघ का कहना था कि इस तरह की रिकॉर्ड-तोड़ गर्मी मानव-निर्मित जलवायु परिवर्तन के बिना "वास्तव में असंभव" थी.
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घातक बाढ़
जुलाई में जर्मनी में भारी बारिश के बाद आई बाढ़ में 165 लोग मारे गए. स्विट्जरलैंड, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड, ऑस्ट्रिया और बेल्जियम में भी बाढ़ का प्रकोप रहा और 31 लोग मारे गए. डब्ल्यूडब्ल्यूए ने कहा कि धरती के लगातार गर्म होने की वजह से इस तरह की भीषण बारिश की संभावना बढ़ जाती है.
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चीन में तबाही
जुलाई में ही चीन में भी बाढ़ की तबाही देखी गई. केंद्रीय शहर जेनजाउ में एक साल के बराबर की बारिश बस तीन दिनों में हो जाने के बाद ऐसी बाढ़ आई कि उसमें 300 से भी ज्यादा लोग मारे गए. कई लोग तो सुरंगों और सबवे ट्रेनों में अचानक बढ़े पानी में डूब कर ही मर गए.
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ऑस्ट्रेलिया में भी बाढ़
मार्च में पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में भारी बारिश के बाद ऐसी बाढ़ आई जो दशकों में नहीं देखी गई थी. कई दिनों तक लगातार हुई बारिश की वजह से देश की नदियों में पानी का स्तर 30 सालों में सबसे ऊंचे स्थान पर पहुंच गया. हजारों लोगों को बाढ़ ग्रस्त इलाकों से दूर भागना पड़ा.
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फ्रांस में शीत लहर
बसंत में फ्रांस में आई शीत लहर ने देश के लगभग एक तिहाई अंगूर के बागीचों को नष्ट कर दिया, जिनसे करीब 2.3 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. डब्ल्यूडब्ल्यूए के मुताबिक जलवायु परिवर्तन ने इस ऐतिहासिक ठंड की संभावना को 70 प्रतिशत बढ़ा दिया.
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अमेरिका में तूफान
अगस्त में इदा तूफान ने उत्तरपूर्वी अमेरिका में भारी तबाही फैलाई. कम से कम 100 लोग मारे गए और करीब 100 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. अमेरिका के छह सबसे ज्यादा नुकसानदायक तूफानों में से चार पिछले पांच सालों में ही आए हैं.
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टिड्डियों का हमला
जनवरी 2020 में पूर्वी अफ्रीका में अरबों टिड्डियों ने इतनी फसलें तबाह कीं कि इलाके में खाद्य संकट का खतरा पैदा हो गया. विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में टिड्डियों के जन्म के पीछे भी जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली चरम मौसम की घटनाएं ही हैं.
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अफ्रीका में बाढ़
अक्टूबर 2019 में भारी बारिश की वजह से सोमालिया में हजारों लोग विस्थापित हो गए, दक्षिणी सूडान में पूरे के पूरे शहर जलमग्न हो गए और केन्या, इथियोपिया और तंजानिया में बाढ़ और भूस्खलन में दर्जनों लोग मारे गए.
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अमेरिका में सूखा
अमेरिका के पश्चिमी हिस्सों में आए 500 साल में सबसे बुरे सूखे का प्रकोप जारी है. 'साइंस' पत्रिका में छपे एक अध्ययन के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से सूख के ये हालात दशकों तक जारी रह सकते हैं. -सीके/एए (एएफपी)
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जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशील
बांग्लादेश उन देशों में से एक है जो जलवायु आपदाओं के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं. देश में लगातार बाढ़, सूखा, नदी के किनारे का कटाव, तटीय कटाव और बंगाल की खाड़ी में बनने वाले चक्रवातों का सामना करना पड़ता है.
देश का दक्षिणी तटीय भाग, जहाँ करीब तीन करोड़ लोग रहते हैं, वह इलाका अक्सर जलवायु से संबंधित प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित होता है और लाखों लोगों को वहां से विस्थापित होना पड़ता है. जमीन का एक बड़ा हिस्सा अक्सर जलमग्न हो जाता है.
दिहाड़ी मजदूरों को अक्सर इन आपदाओं का खामियाजा भुगतना पड़ता है क्योंकि कई लोग अपनी आमदनी के स्रोतों को खो देते हैं.
तेज और लगातार बाढ़, भारी वर्षा, ज्वार-भाटा और पानी के खारेपन ने भी पिछले कुछ वर्षों में फसल उत्पादन को प्रभावित किया है, जिसका असर कृषि श्रमिकों पर भी हुआ है. बांग्लादेश में कृषि कार्यों में लगे श्रमिक देश की कुल श्रम शक्ति का करीब 60 फीसद और ग्रामीण गरीबों का 70 फीसद हैं.
प्रतिकूल जलवायु घटनाओं से महिलाएं बुरी तरह प्रभावित होती हैं. इन क्षेत्रों में महिलाएं ज्यादातर अपनी आजीविका के लिए छोटे पैमाने की कृषि, मवेशी, मुर्गी पालन के साथ ही हस्तशिल्प पर निर्भर हैं. कृषि को प्रभावित करने वाली जलवायु संबंधी समस्याओं के कारण, गरीब परिवारों की महिलाएं खासतौर पर बुरी तरह प्रभावित हुई हैं.
जलवायु शोधकर्ता मोहम्मद अब्दुर रहमान ने डीडब्ल्यू को बताया कि पारंपरिक खेती क्षेत्र में महिलाओं की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है. लेकिन प्रतिकूल जलवायु घटनाएं जैसे जलभराव और लवणता उन्हें पारंपरिक खेती के तरीकों का उपयोग करके सब्जियां उगाने से रोक रही हैं.
जलवायु तनाव और इसके परिणामस्वरूप आमदनी में आई गिरावट ने नौकरियों की तलाश में गांवों से शहरों की ओर पुरुषों के प्रवास को बढ़ा दिया है लेकिन महिलाएं ऐसी स्थितियों में अक्सर घर पर ही रह जाती हैं. जलवायु चुनौतियां इस क्षेत्र में महिलाओं के सामने आने वाली अन्य सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों को और भी जटिल बना देती हैं.
यहां पितृसत्तात्मक सामाजिक मानदंडों का मतलब है कि महिलाओं की गतिशीलता और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनकी भागीदारी बहुत अधिक प्रतिबंधित है. उनके पास भूमि और अन्य उत्पादक संपत्तियों तक पहुंच बहुत ही सीमित है और संपत्ति के स्वामित्व मामले में तो यह स्थिति और भी खराब है.
इसके अलावा, बाजार और पूंजी तक उनकी पहुंच सीमित है, जबकि उनमें से कई को घरेलू हिंसा और कम उम्र में शादी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
नदी का रौद्र रूप, तीन देशों में लाखों प्रभावित
भारत, बांग्लादेश और नेपाल में कोरोना संकट के बीच बाढ़ से भारी तबाही मची हुई है. असम, बिहार में तो हालात बेहद खराब हैं. वहीं बांग्लादेश और नेपाल में भी बाढ़ का पानी मुसीबत बना हुआ है. बाढ़ के कारण लाखों लोग विस्थापित हुए.
तस्वीर: DW/M. Kumar
बाढ़ और बर्बादी
बिहार में बाढ़ के कारण लाखों लोग प्रभावित हुए. कोसी, गंडक और बागमती नदियों का पानी घरों और फसलों को नुकसान पहुंचा रहा है. बिहार सरकार ने बाढ़ प्रभावित इलाकों में इससे निपटने के लिए प्रबंधन का दावा किया है. बाढ़ के हालात से निपटने के लिए नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (एनडीआरएफ) की 19 टीमें बिहार में तैनात की गईं हैं.
तस्वीर: DW/M. Kumar
पानी का कहर
उत्तर और पूर्वी बिहार में नदियों के बढ़ते जलस्तर ने लोगों को खौफ में डाल दिया है. पहले तो कोरोना वायरस का खौफ और अब बाढ़ और उससे जुड़ी बीमारी होने का भय. लोग किसी तरह से पानी के बीच जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं. कोसी नदी में आई बाढ़ ने कई गांवों को अपनी चपेट में ले लिया है.
तस्वीर: DW/M. Kumar
असम में आफत
ऐसा लगता है कि हर साल मॉनसून में असम की किस्मत में भयावह बाढ़ लिखी हुई है. साल दर साल आने वाली बाढ़ लाखों लोगों को प्रभावित कर रही है. इस बार बाढ़ से 70 लाख लोग प्रभावित बताए जा रहे हैं. यहां राज्य की आपदा टीम के अलावा एनडीआरएफ की कई टीमें लगातार काम कर लोगों तक राहत पहुंचा रही है.
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ब्रह्मपुत्र का कहर
पूर्वोत्तर राज्य असम में बाढ़ ने सरकार और आम जनता के लिए मुसीबतों का पिटारा खोल दिया है. राज्य के 33 में से 30 जिले बाढ़ की चपेट में हैं. हजारों एकड़ की फसल बाढ़ के पानी के कारण बर्बाद हो गई है. ब्रह्मपुत्र नदी कई जिलों में खतरे के निशान के ऊपर बह रही है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Nath
कम नहीं हुई मुसीबत
आने वाले दिनों में असम को बाढ़ से राहत की कम उम्मीद है क्योंकि नदियों का जलस्तर बढ़ रहा है और भूस्खलन की वजह से रास्ते बंद हो गए हैं. आम जनता को एक जगह से दूसरी जगह तक जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Nath
जोखिम के साथ
असम के कुछ इलाके ऐसे भी हैं जहां पानी का स्तर कम है और वहां लोग जोखिम के साथ मोटरसाइकिल चला रहे हैं. हालांकि यह खतरों से भरा है क्योंकि पता नहीं आगे सड़क का क्या हाल हो.
तस्वीर: DW/P. Tewari
बांग्लादेश में बाढ़
भारत ही नहीं पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में भी बाढ़ से भारी तबाही मची है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 1988 के बाद बांग्लादेश में ऐसी बाढ़ आई है. यूएन के मुताबिक देश में 24 लाख लोग प्रभावित हुए हैं. बाढ़ के कारण लाखों लोग विस्थापित हुए हैं.
तस्वीर: Reuters/M. P. Hossain
खतरा अभी टला नहीं
बांग्लादेश के अधिकारियों का कहना है कि अगले 10 दिनों तक जानलेवा बाढ़ के हालात बने रहेंगे. बांग्लादेश का एक बड़ा हिस्सा बाढ़ में डूबा हुआ है. यूएन के रिकॉर्ड के मुताबिक बांग्लादेश में 1988 में आई बाढ़ में 500 लोगों की मौत हो गई थी और 25 लाख लोग बेघर हो गए थे.
तस्वीर: Reuters/M. P. Hossain
डूबने से मौत
बांग्लादेश में बाढ़ के कारण अब तक 81 लोगों की मौत हो चुकी है और कुछ लोग लापता हैं. अधिकतर लोगों की मौत डूबने के कारण हुई है. बाढ़ का पानी घरों में घुस आया है और लोगों को शिविरों में रहना पड़ा रहा है.
तस्वीर: Mortuza Rashed
जान की चिंता
बाढ़ की वजह से ना केवल आम लोग प्रभावित हुए हैं बल्कि जानवरों की जान भी जोखिम में पड़ गई है. लोग तो शिविरों में पनाह ले रहे हैं लेकिन पालतू जानवरों को देखने वाला कोई नहीं है.
तस्वीर: Mortuza Rashed
नेपाल में भी आफत
पड़ोसी मुल्क नेपाल में भारी बारिश के बाद नदियां उफान पर हैं और बाढ़ के कारण कई गांव डूब चुके हैं और अब तक 51 लोग लापता बताए जा रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/S. Gautam
नेपाल में भी कई जानें गईं
नेपाल में भारी बारिश और फिर बाढ़ के कारण अब तक 84 लोगों की मौत हो चुकी है. बचाव और राहत दल लापता लोगों की तलाश में जुटे हुए हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Mathema
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पर्यावरणीय लचीलेपन का निर्माण
कई स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय संगठन स्थानीय समुदायों, विशेषकर महिलाओं को जलवायु संबंधी समस्याओं के प्रभावों से उबरने में मदद करने के प्रयास कर रहे हैं.
उदाहरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी), बांग्लादेश की सरकार के साथ जुड़ गया है और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और लवणता जैसी समस्याओं से निपटने के लिए सतखिरा और खुलना जिलों में लोगों, खासकर महिलाओं और लड़कियों की मदद कर रहा है. स्विस एनजीओ हेल्वेटास भी इस क्षेत्र में सक्रिय रहा है जिससे स्थानीय लोगों को स्थाई खेती के तरीकों में मदद मिल रही है. इसमें उपयुक्त जल प्रबंधन प्रणाली का निर्माण शामिल है जो वर्षा के पानी को खेतों में प्रवाहित करने और जलवायु के अनुकूल बीजों और जैविक उर्वरकों के उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है.
साथ ही किसानों को बाजार से जोड़ने में भी मदद की जाती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि उनकी उपज उपभोक्ताओं तक पहुंच जाए. एनजीओ का कहना है कि इस सहायता से महिलाओं की आय बढ़ाने में मदद मिली है. हेल्वेटास के जलवायु परिवर्तन और आपदा जोखिम न्यूनीकरण विशेषज्ञ आशीष बरुआ ने डीडब्ल्यू को बताया कि देश भर में उनके संगठन की परियोजना ने कम से कम 1,800 महिलाओं को सहायता प्रदान की है.
वो कहते हैं, "अन्य सामाजिक-आर्थिक कारकों को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि जलवायु नम्य आजीविका दृष्टिकोण ने महिलाओं को उनकी स्थिति में सुधार करने में मदद की है.”
ब्रह्मपुत्र पर भिड़ते भारत, चीन और बांग्लादेश
08:17
महिलाओं के वित्तीय सशक्तिकरण की कुंजी
बांग्लादेश के दक्षिणी बागेरहाट जिले के समदरखली गांव की रहने वाली श्यामली रानी अपने घर के पास एक भूखंड पर सब्जियां उगाती हैं. श्यामली ने एक स्थानीय एनजीओ की ओर से आयोजित प्रशिक्षण के दौरान वर्टिकल फार्मिंग करना सीखा.
वर्टिकल फार्मिंग के माध्यम से, शहरी क्षेत्रों में जगह बचाने और सिंचाई के लिए कम से कम ऊर्जा और पानी का उपयोग करने के लिए खड़ी खड़ी परतों में पौधों का रोपण करके खाद्य फसलों की खेती आसानी से की जा सकती है.
उन्होंने बताया कि इस पद्धति ने उन्हें न केवल बाढ़ से निपटने में मदद की है बल्कि भूमि के एक छोटे से टुकड़े का सर्वोत्तम उपयोग सुनिश्चित करने में भी मदद की है. वो कहती हैं, "अपने पति की मदद से, जो कि एक दिहाड़ी मजदूर हैं, मैं बगीचे में कई तरह की सब्जियां उगाती हूं और हर महीने 5,000 से 7,000 टका कमाती हूं.”
जलवायु शोधकर्ता अब्दुर रहमान कहते हैं कि जलवायु नम्य आजीविका दृष्टिकोण न केवल बागेरहाट और खुलना जिलों में, बल्कि देश के अन्य तटीय क्षेत्रों में भी सफल रहा है. वो कहते हैं कि इस तरह के तरीकों ने कम आय वाली महिलाओं को संसाधनों तक पहुंच प्रदान की और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया है.