वैश्विक कोयला उद्योग में जा सकती हैं लाखों नौकरियां
११ अक्टूबर २०२३
एक शोध के मुताबिक वैश्विक कोयला उद्योग को 2050 तक लगभग 10 लाख नौकरियों से छुटकारा पाना पड़ सकता है, भले ही जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का कोई संकल्प नहीं लिया गया हो.
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दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन के विकल्प के तौर पर ग्रीन ऊर्जा को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि पर्यावरण को नुकसान से बचाया जा सके. आने वाले दशकों में कोयले की ऐसी खदानें बंद कर दी जाएंगी जहां सैकड़ों खनन श्रमिक काम करते हैं. ये खदानें इसलिए बंद कर दी जाएंगी क्योंकि इनके भीतर से कोयला निकाला जा चुका है और देश कोयले की जगह पर स्वच्छ और कम कार्बन ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल कर रहे हैं.
लोगों को नौकरी के विकल्प देने होंगे
अमेरिकी थिंक टैंक ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (जेईएम) द्वारा संकलित रिपोर्ट के मुताबिक लाखों लोगों की नौकरी जाने की प्रमुख वजह सस्ती सौर और ऊर्जा उत्पादन की ओर बाजार का बदलाव और कोयले के बाद अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के प्रबंधन के लिए योजना की कमी होगी.
जीईएम ने चेतावनी दी है कि जिन खदानों के बंद होने की संभावना है, उनमें से अधिकांश के पास "उन परिचालनों के जीवन को बढ़ाने या कोयले के बाद अर्थव्यवस्था में परिवर्तन का प्रबंधन करने के लिए कोई योजना नहीं है."
जीईएम के माइन ट्रैकर की प्रोजेक्ट मैनेजर डोरोथे मेई ने कहा कि कोयला खदानों का बंद होना तो निश्चित है लेकिन श्रमिकों की आर्थिक और सामाजिक दिक्कतों को लेकर पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकते. उन्होंने कहा, "सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए योजनाएं बनाने की जरूरत है कि श्रमिकों को ऊर्जा परिवर्तन से नुकसान न हो."
कोयले से पीछा छुड़ा रहे ये देश
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स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्रों में नौकरी देनी होंगी
जीईएम ने दुनिया भर में 4,300 सक्रिय और प्रस्तावित कोयला खदान परियोजनाओं को देखा, जिनमें लगभग 27 लाख श्रमिक काम करते हैं. इसमें पाया गया कि 2035 से पहले ऑपरेशन बंद करने वाली खदानों में 4,00,000 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं.
जीईएम का अनुमान है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए कोयले को चरणबद्ध तरीके से कम करने की योजना लागू की गई तो दुनिया भर में सिर्फ ढाई लाख खनन श्रमिकों की जरूरत पड़ेगी, जो मौजूदा कार्यबल के 10 प्रतिशत से भी कम है.
जीईएम का अनुमान है कि दुनिया के सबसे बड़े कोयला उद्योग देश चीन, जो वर्तमान में 15 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देता है, उसको सबसे ज्यादा झटका लगेगा. चीन के शांक्सी प्रांत में वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक संख्या में नौकरियां जाएंगी. वहां 2050 तक 2,41,900 नौकरियां जा सकती हैं. वहीं कोल इंडिया में सदी के मध्य तक 73,800 नौकरियां खत्म हो सकती हैं.
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नए ढांचे में निवेश की जरूरत
भारत कार्बन उत्सर्जन करने वाले सबसे बड़े देशों में से एक है. चीन, अमेरिका और पूरे यूरोपीय संघ के बाद भारत ही सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करता है. अपनी बिजली जरूरतों का 75 फीसदी हिस्सा वह कोयले से पूरा करता है जबकि कुल ऊर्जा जरूरतों का 55 फीसदी आज भी कोयले से आता है.
इसी साल की शुरूआत में दिल्ली स्थित थिंक टैंक इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायर्नमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (आईफॉरेस्ट) ने एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत अगर कोयले का इस्तेमाल बंद कर दे तो उसके यहां 50 लाख लोग बेरोजगार हो जाएंगे. लेकिन अगले 30 साल में अगर भारत 900 अरब डॉलर यानी करीब 740 खरब रुपये खर्च करे तो किसी की नौकरी नहीं जाएगी और भारत कार्बन उत्सर्जन मुक्त स्वच्छ ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकेगा.
इस रिपोर्ट में कहा गया कि सबसे बड़ा निवेश स्वच्छ ऊर्जा पैदा करने वाले ढांचे के विकास में होगा. रिपोर्ट का अनुमान है कि 2050 तक इसके लिए 472 अरब रुपये खर्च करने होंगे. लोगों को स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्रों में नौकरी उपलब्ध कराने के कुल खर्च का मात्र दस फीसदी यानी करीब नौ अरब डॉलर होगा. रिपोर्ट के मुताबिक 900 अरब डॉलर में से 600 अरब डॉलर तो नए उद्योगों और ढांचागत विकास में निवेश के तौर पर खर्च होंगे जबकि 300 अरब डॉलर प्रभावित समुदायों की मदद में खर्च करने होंगे.
रिपोर्ट: आमिर अंसारी (रॉयटर्स से जानकारी के साथ)
बिजली उत्पादन के विभिन्न तरीके
रोटी, कपड़ा और मकान की तरह ही बिजली भी लोगों की मूलभूत आवश्यकता बन चुकी है. घर रोशन करने से लेकर ट्रेन चलाने तक हर जगह बिजली की जरूरत होती है. एक नजर बिजली उत्पादन के तरीकों पर.
तस्वीर: picture-alliance/imageBROKER/W. Diederich
कोल पावर प्लांट
कोल पावर प्लांट बिजली उत्पादन का परंपरागत तरीका है. इसमें कोयले की मदद से पानी गर्म किया जाता है. इससे बनी भाप के उच्च दाब से टरबाइन तेजी से घूमता है और बिजली का उत्पादन होता है.
तस्वीर: Maciej Kulczynski/epa/picture-alliance
हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट
हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट ऐसी जगहों पर बनाए जाते हैं जहां तेजी से पानी का प्रवाह होता है. सबसे पहले बांध बना कर नदी के पानी को रोका जाता है. यह पानी तेजी से नीचे गिरता है. इसकी मदद से टरबाइन को घुमाया जाता है और बिजली उत्पादन होता है.
तस्वीर: Yi Chang/dpa/picture alliance
सौर ऊर्जा
सौर ऊर्जा प्लांट की स्थापना उन क्षेत्रों में की जाती है जहां पूरे साल सूरज की रोशनी पहुंचती है. सूर्य की किरणों को बिजली में बदलने के लिए फोटोवोल्टिक सेलों का उपयोग होता है. इससे एक बैटरी जुड़ी होती है जिसमें बिजली जमा होती है. सोलर फोटोवोल्टिक सेल से पैदा होने वाली बिजली दिष्ट धारा (डायरेक्ट करंट) के रूप में होती है.
तस्वीर: Imago Images/Le Pictorium
पवन चक्की
पवन चक्की का इस्तेमाल उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां हवा की गति तेज होती है. पवन चक्की लगाने के लिए एक टावर के ऊपर पंखे लगाए जाता है. यह पंखा हवा की वजह से घूमता है. पंखे के साथ शाफ्ट की मदद से एक जेनेरेटर जुड़ा होता है. जेनरेटर के घूमने से बिजली उत्पादन होता है.
तस्वीर: Martin Bernetti/AFP
न्यूक्लियर पावर प्लांट
इस प्लांट में यूरेनियम-235 को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. यूरेनियम के परमाणुओं को विखंडित करने के लिए एटॉमिक रिएक्टर का इस्तेमाल होता है. इससे पैदा होने वाली उष्मा से भाप बनाई जाती है. इसी भाप से टरबाईन को घुमाया जाता है जिससे बिजली का उत्पादन होता है. एक किलो यूरेनियम 235 से उत्पन्न ऊर्जा 2700 क्विंटल कोयले जलाने से पैदा हुई ऊर्जा के बराबर होती है.
तस्वीर: Boris Roessler/dpa/picture alliance
डीजल पावर प्लांट
डीजल पावर प्लांट की स्थापना उन जगहों पर की जाती है जहां कोयले और पानी की उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में नहीं होती है. डीजल मोटर की मदद से जेनरेटर चलाया जाता है जो बिजली का उत्पादन करता है. यह एक तरह का वैकल्पिक साधन है. सिनेमा हॉल, घर, शादी-विवाह या किसी कार्यालय में आपात स्थिति में बिजली की आपूर्ति के लिए इसका इस्तेमाल होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Kraufmann
नैचुरल गैस पावर प्लांट
नैचुरल गैस पावर प्लांट कोल थर्मल पावर प्लांट की तरह ही होता है. फर्क बस इतना है कि इसमें पानी को गर्म करने के लिए कोयले की जगह नैचुरल गैस का इस्तेमाल होता है. पानी गर्म होने के बाद भाप बनता है. उच्च दाब वाले भाप से टरबाइन घूमता है. और इससे बिजली उत्पादन होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
समुद्री लहर
समुद्र की लहरों से बिजली पैदा की जाती है. समुद्र किनारे दीवार या चट्टान में जेनरेटर और टरबाइन लगाया जाता है. (एक हौज बनाया जाता है जहां टरबाइन और जेनरेटर लगे होते हैं. लहरें जब हौज के भीतर आती है उसमें मौजूद पानी ऊपर उठता-गिरता है. इससे हौज के ऊपरी हिस्से में बनी जगह पर हवा तेजी से ऊपर-नीचे आती है.) लहरों के आने जाने पर टरबाइन दबाव से घूमता है और जेनरेटर चलने लगता है. बिजली पैदा होती है.
तस्वीर: Lauren Frayer
समुद्री तरंग
इस तरीके में लोहे के बड़े-बड़े पाइपों को स्प्रिंग के माध्यम से एक साथ जोड़ा जाता है. ये समुद्र की सतह पर तैरते रहते हैं. इनका आकार रेलगाड़ी के पांच डिब्बों के बराबर होता है. इनके अंदर मोटर तथा जेनरेटर लगे होते हैं. तरंगों की वजह से पाइप जब ऊपर नीचे होते हैं तो अंदर मौजूद मोटर चलने लगती है. मोटर से जेनेरेटर चलता है और बिजली उतपन्न होती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बायोमास से बिजली निर्माण
खेती, पशुपालन, उद्योग या वन क्षेत्र के उपयोग में काफी मात्रा में बायोमास सामग्री इकट्ठा होती है. कोल थर्मल पावर प्लांट की तरह ही इसका भी प्लांट होता है. फर्क ये है कि यहां कोयले की जगह बायोमास को जलाया जाता है और पानी को गर्म किया जाता है. पानी गर्म से होने से जो भाप बनती है उससे टरबाइन घूमता है और बिजली उत्पादन होता है.
तस्वीर: picture-alliance/blickwinkel/McPhoto
जियो थर्मल पावर प्लांट
जैसे-जैसे पृथ्वी की गहराई में जाते हैं, धरती गर्म होती जाती है. एक स्थान वह भी आता है जहां गर्मी की वजह से सारे पदार्थ पिघल जाते हैं जिसे लावा कहते हैं. धरती के अंदर मौजूद इसी ताप के इस्तेमाल से बिजली बनाई जाती है. इसके लिए जमीन में कुएं खोदे जाते हैं. अंदर के गर्म पानी और उसकी भाप का अलग-अलग तरह से इस्तेमाल कर टरबाइन घुमाया जाता है और बिजली बनाई जाती है.