कोकोआ किसानों की आफत
११ मई २०१७दुनिया का मजा लेती है, लेकिन उसे उगाने वालों के लिए दो जून की रोटी जुटाना मुश्किल होता है. देखिए, चॉकलेट की मिठास में छुपी स्याह दुनिया को, तस्वीरों में.
चॉकलेट: गरीब किसानों का अमीर प्रोडक्ट
दुनिया चॉकलेट का मजा लेती है, लेकिन उसे उगाने वालों के लिए दो जून की रोटी जुटाना मुश्किल होता है. देखिए, चॉकलेट की मिठास में छुपी स्याह दुनिया को.
खराब फसल
2016 में पश्चिमी अफ्रीका में कोकोआ की ज्यादातर फसल खराब हो गई. इसी इलाके से 70 फीसदी काकोआ सप्लाई होता है. चॉकलेट कोकोआ से ही बनाई जाती है. खराब फसल के चलते निर्यातकों ने दाम बढ़ा दिए लेकिन कोकोआ उगाने वाले किसानों को इससे फायदा नहीं हुआ.
2017 से उम्मीदें
ब्राजील में भी कोकोआ की फसल खराब हुई. निर्यातकों और चॉकलेट कंपनियों को 2017 में आइवरी कोस्ट समेत पश्चिमी अफ्रीका के कई देशों में अच्छी फसल के संकेत मिले हैं.
भारी मांग
दुनिया भर में चॉकलेट की मांग में लगातार इजाफा हो रहा है. बीते 10 साल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोकोआ का दाम दोगुना हो चुका है. लेकिन महंगी फसल के बावजूद कोकोआ उगाने वाले कई लोगों ने आज तक चॉकलेट चखा तक नहीं है. चॉकलेट उनके लिए बहुत महंगा है.
छोटे किसानों को ठेंगा
ऊंची कीमत का मतलब है, बेचने वालों को ज्यादा मुनाफा. पश्चिम अफ्रीका, इंडोनेशिया और दक्षिण अमेरिका में करीब 60 लाख से ज्यादा छोटे किसाने कोकोआ उगाते हैं. लेकिन उन्हें बाजार में चॉकलेट बार की कीमत का सिर्फ छह फीसदी दाम ही मिलता है. 1980 के दशक में किसानों को 16 फीसदी पैसा मिलता था.
कहां से करें निवेश
आइवरी कोस्ट या घाना में कोकोआ की खेती करने वाले एक आम परिवार को बेहद गरीबी का सामना करना पड़ता है. ज्यादातर किसान गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं. वे नई पौध में निवेश नहीं कर सकते. पुराने पेड़ों पर कम फल आते हैं. नए किसान खरीद नहीं सकते.
बुजुर्गों के बुजुर्ग पेड़
पश्चिमी अफ्रीका के किसानों की औसत उम्र 50 साल है. बहुत ही कम आमदनी के चलते युवा कोकोआ की खेती में कोई भविष्य नहीं देखते. घाना में सिर्फ 20 फीसदी किसान अपने बच्चों को कोकोआ की खेती करते देखना चाहते हैं.
फेयर ट्रेड की कोशिश
एक तरफ कोकोआ के किसानों की गरीबी है तो दूसरी तरफ अमीर चॉकलेट निर्माता कंपनियां. तीन कंपनियां दुनिया भर में लिक्विड चॉकलेट के 74 फीसदी बाजार को नियंत्रित करती हैं. अब इन कंपनियों को साथ लाकर गरीब किसानों को उनका हक दिलाने की कोशिश की जा रही है. जर्मनी समेत कई देशों में फेयरट्रेड से बनी चॉकलेट की मांग बढ़ रही है.