बड़े बदलाव के लिए कमर कसता यूरोप का प्रॉपर्टी सेक्टर
१९ जनवरी २०२४यूरोपीय संघ की वित्तीय स्थिरता पर अपनी व्यापक छमाही समीक्षा के तहत, पिछले नवंबर यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ईसीबी) ने प्रॉपर्टी सेक्टर की हालत पर कड़ी चेतावनी जारी की थी. उसका कहना था कि प्रॉपर्टी के काम से जुड़ी यूरोपीय कंपनियां भारी नुकसान उठा रही हैं और उनका कर्ज 2007-2008 के वित्तीय संकट के मुकाबले उच्चतर स्तर पर पहुंच गया है. उसने आगाह किया कि सेक्टर के भीतर पनप रही ये समस्याएं एक खराब परिदृश्य को और ज्यादा सघन बना सकती हैं.
ये खतरे की आहटें रेखांकित करती हैं कि पिछले साल के दौरान कमर्शियल प्रॉपर्टी सेक्टर के भीतर हालात कितने गंभीर हो चुके हैं. ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स में प्रमुख अर्थशास्त्री एडम स्लेटर ने डीडब्लू को बताया, "अगर आप कभी वित्तीय सेक्टर और बैंकिंग सेक्टर के लिए मुश्किल खड़ा करना चाहते थे तो वाणिज्यिक संपत्ति के सेक्टर को देखिए." वो कहते हैं, "ये उन चुनिंदा क्षेत्रों में से है जो बहुत ज्यादा उधारी की वजह से लगातार नुकसान झेलते हैं."
2024 में भी ये सवाल इस सेक्टर पर कायम है कि उसके भीतर पनप रहा संकट आखिर कितना बुरा साबित होगा.
ब्याज की बढ़ती दरों से नुकसान
वित्तीय संकट के बाद ऐतिहासिक रूप से निम्न ब्याज दरों की अवधि के दौरान, निवेशकों ने प्रॉपर्टी में खूब पैसा झोंक दिया था. लेकिन पिछले दो साल के दौरान प्रॉपर्टी की कीमतों में तीखी गिरावट के बीच इस सेक्टर पर ब्याज दरों में वृद्धि की कड़ी मार पड़ी. कमर्शियल प्रॉपर्टी मजबूती से ब्याज दरों से जुड़ी है. जब कर्ज लेने की कीमत ऊपर जाती है, तो प्रॉपर्टी के दाम नीचे जाते हैं क्योंकि निवेशक उच्चतर ब्याज दरों पर खरदीने को कम इच्छुक होते हैं.
पीजीआईएम रियल एस्टेट में प्रबंध निदेशक सेबस्टियानो फेरांते ने डीडब्लू को बताया, "मैं इसे एक बड़ा बदलाव कहता हूं. ये काफी आसान ढंग से समझ में आने वाली और हैरान न करने वाली बात है क्योंकि हम लोग जाहिर तौर पर ब्याज दरों से जुड़े हैं." लेकिन इस रिसेट यानी बदलाव का स्तर पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है क्योंकि बाजार में मंदी है और बहुत ज्यादा सौदे नहीं हो रहे हैं.
स्लेटर कहते हैं, "ये नुकसान अभी पूरे तौर पर नहीं दिखा है. मूल्य सूचकांकों में इसे नहीं पहचाना गया और बैंक की बैलेंस शीटों में भी इसे उस हद तक नहीं पहचाना जा रहा है कि ये बढ़ता ही जा रहा है."
अमेरिकी रिसर्च समूह और वित्तीय कंपनी एमएससीआई के मुताबिक, अमेरिका और यूरोप में पिछले 12 महीनों के दौरान, पूरे हो चुके कमर्शियल प्रॉपर्टी सौदों की कीमत 50 फीसदी से ज्यादा गिर चुकी है. इसका मतलब संपत्तियों के मालिक, उस चीज को यथासंभव टालने की कोशिश कर रहे हैं, जो होकर रहेगी.
जर्मनी की बड़ी समस्या
लेकिन कुछ देशों के लिए तो तूफान आ ही चुका है. जर्मनी के कई प्रमुख डिपार्टमेंट स्टोरों की मालिक, और न्यू यार्क की प्रसिद्ध क्राइसलर बिल्डिंग में हिस्सेदारी रखने वाली ऑस्ट्रिया की रियल एस्टेट कंपनी सिग्ना होल्डिंग ने 2023 के आखिरी दिनों में खुद को दिवालिया घोषित कर दिया. सिग्ना ने हाल के वर्षों में प्रॉपर्टी सौदों के जरिए कर्ज में 13 अरब यूरो (14 अरब डॉलर) से ज्यादा की पूंजी बनाई थी. लेकिन ब्याज दरों में बढ़ोतरी से वो गंभीर दबाव में आ गई क्योंकि उसे बहुत सारे कर्जों को निपटाना पड़ा.
कमर्शियल प्रॉपर्टी की तकलीफें वैसे तो पूरे यूरोप और उससे बाहर भी फैली हुई हैं, लेकिन उससे जुड़ी समस्याएं खासकर जर्मनी में ज्यादा प्रत्यक्ष हैं. गर्च समूह, यूरोबोडेन, और प्रोजेक्ट इममोबिलियन ग्रुप जैसी कंपनियां गंभीर वित्तीय संकट में फंसी हुई हैं. वित्तीय नियंत्रक बाफिन ने नवंबर में आगाह किया था कि सेक्टर से जुड़े ऋणदाताओं को नुकसान के लिए खुद को तैयार रखना होगा. जर्मन मार्केट में व्यापक तौर पर सक्रिय और फ्रैंकफर्ट में मौजूद, पीजीआईएम के फेरांते कहते हैं, "वैश्विक वित्तीय संकट के बाद स्पेन की जो हालत थी- वही आज अलग अर्थों में जर्मनी की है."
वो मानते हैं कि संपत्ति बाजार के कुछ खास कारकों से मिलकर पैदा हुए जर्मनी के मौजूदा आर्थिक संकट का मतलब ये है कि वो बढ़ती ब्याज दरों और सुस्त रेंटल वृद्धि से खासतौर पर परेशान है. वो कहते हैं, "जर्मनी में पिछले दशक की निम्न ब्याज दरों की अवधि में अपेक्षाकृत रूप से कीमतों का तीव्र उतार-चढ़ाव रहा था. इसलिए दूसरों के मुकाबले हमारी शुरुआत धीमी थी, लेकिन फिर ग्राफ बड़ी तेजी के साथ ऊपर उठता गया."
हालांकि जर्मनी में कड़े रेंटल रेगुलेशन का मतलब किराया नहीं बढ़ा है भले ही निवेशकों को उच्च ब्याज दरों की वजह से ज्यादा कीमतें चुकानी पड़ी. दूसरी समस्या वो ये देखते हैं कि जर्मनी में कमर्शियल प्रॉपर्टी सेक्टर बैंक फाइनेंसिंग पर खासतौर पर निर्भर है. उन्हें लगता है कि आने वाले वर्षों में सेक्टर में लिक्विडिटी की बड़ी कमी होगी क्योंकि बैंक ज्यादा कड़े ऋण नियमों के हिसाब से खुद को ढाल रहे होंगे.
महामारी से आया बदलाव
वैसे तो ब्याज दरों में बदलाव विमर्श पर हावी रहा है लेकिन सेक्टर के भीतर प्रमुख तौर तरीकों से जुड़े बुनियादी बदलाव, महामारी के बाद नजर आए. जैसे कि घर से काम और ऑनलाइन खरीदारी. महामारी के बाद, ज्यादा से ज्यादा लोग घरों से काम कर रहे हैं, इसके अलावा दूसरे रुझानो में भी तीव्रता देखी गई जैसे कि ई-कॉमर्स और होम एंटरटेनमेंट. इस वजह से भी, दफ्तर और रिटेल जैसे कुछ कमर्शियल प्रॉपर्टी ठिकानों की 2020 से पहले की तुलना में मांग कम हुई है.
फेरांते कहते हैं, "महामारी के ज्यादा गहरे प्रभाव थे, दूरगामी प्रभाव और इसीलिए दूरगामी रुझानों के लिए भी ब्याज दरों की हलचल के मुकाबले वो ज्यादा अहम है क्योंकि गणितीय रूप से उसका आकलन किया जा सकता है." वो कहते हैं कि घरों के काम करने का रुझान कितना गहरा है, इसे देखने के लिए और समय की जरूरत है लेकिन दूरगामी स्तर पर कमर्शियल प्रॉपर्टी सेक्टर के पहलुओं को बदलने की उसकी सामर्थ्य उनमें उत्सुकता पैदा करती है.
संक्रामक या नियंत्रित?
प्रॉपर्टी के संकटों में व्यापक संक्रमण को भड़काने और वित्तीय सेक्टर में दूसरी दुश्वारियां पैदा करने की क्षमता भी है. 2007-2008 के वित्तीय संकट दिखा चुका है. ईसीबी और अन्य की हालिया चेतावनी, प्रॉपर्टी सेक्टर में हालात की गंभीरता रेखांकित करती हैं लेकिन कुछ ही लोग ये मानते हैं कि ये एक मुकम्मल वित्तीय संकट में तब्दील हो पाएगा. फेरांते कहते हैं कि सेंट्रल बैंक अब बैंक बैलेंस शीटों की बेहतर समीक्षा कर पाते हैं. फेरांते को उम्मीद है कि संकट को काबू में कर लिया जाएगा. "मैं निश्चिंत हूं कि ये कोई व्यवस्थित प्रक्रिया नहीं होने जा रही."
लेकिन वो मानते हैं कि कमर्शियल प्रॉपर्टी बाजार खुद भी लंबी अवधि के समायोजन से गुजर रहा है.
वो कहते हैं, "बाजार को अभी ढर्रे पर आने में वक्त लगेगा. और मुझे लगता है कि हमें एक ऐसा बाजार देखने को मिलेगा जिसकी ऋण देने की क्षमता पहले के मुकाबले काफी कम होगी."
अंततः, वो मानते हैं कि सेक्टर के जीवन में उच्च ब्याज दरें एक सामान्य बात हैं और ऋणात्मक ब्याज दरों की ज्यादा "असामान्य" दुनिया से खुद को समायोजित करने की तकलीफ से ही संकट पैदा होता है.
वो कहते हैं, "पिछला दशक असामान्य अवस्था का था. अभी रियल एस्टेट कारोबार के लिए खासा सामान्य फेज है. ऐसा कुछ नहीं जो इस सेक्टर ने पहले न देखा हो. लेकिन शून्य से नीचे की (ऋणात्मक) असामान्य ब्याज दरों की अपेक्षा आज की दरों पर आने को ही मैं एक बड़ा बदलाव कहता हूं."