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कांग्रेस ने वापस लिया कर्नाटक

१३ मई २०२३

कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस बड़ी जीत की तरफ बढ़ रही है. मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने हार स्वीकार कर ली है. अब कांग्रेस के लिए बड़ा सवाल यह रहेगा कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा.

कांग्रेस
कांग्रेस कार्यकर्तातस्वीर: Ab Rauoof Ganie/DW

244 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस पार्टी कम से कम 137 सीटों पर जीत हासिल करने की तरफ बढ़ती नजर आ रही है. चुनाव आयोग के मुताबिक कांग्रेस इस समय 50 सीटें जीत चुकी है और 87 सीटों पर आगे चल रही है. 2018 में कांग्रेस ने सिर्फ 80 सीटें जीती थीं.

वहीं 2018 में 104 सीटें जीतने वाली बीजेपी इस बार 63 सीटों तक सिमटती हुई नजर आ रही है. चुनाव आयोग के मुताबिक पार्टी 21 सीटें जीत चुकी है और 42 में आगे है. मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने हार स्वीकार करने की घोषणा कर दी है.

बीजेपी, जेडीएस निराश

पत्रकारों से बात करते हुए बोम्मई ने कहा, "प्रधानमंत्री से लेकर हमारे कार्यकर्ताओं की पूरी कोशिश के बावजूद हम जीत हासिल नहीं कर पाए हैं. कांग्रेस ने जीत हासिल कर ली है. हम सभी नतीजों के आने के बाद विस्तार से समीक्षा करेंगे और कमियां को पहचानने की कोशिश करेंगे."

जेडीएस को भी अपने प्रदर्शन से निराशा ही हाथ लगी होगी क्योंकि पार्टी सिर्फ 20 सीटों की तरफ बढ़ती हुई नजर आ रही है. चुनाव आयोग के मुताबिक पार्टी ने 12 सीटें जीती हैं और आठ पर आगे चल रही है.

कई मोर्चों पर समस्याओं से घिरी कांग्रेस के लिए इस जीत को ताकत की एक खुराक की तरह देखा जा रहा है. पूर्व पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' जब कर्नाटक से गुजरी थी तो वहां यात्रा में उमड़ी भीड़ को समीक्षकों ने राज्य में कांग्रेस की बढ़ती लोकप्रियता का संकेत बताया था.

उसके बाद मानहानि के मामले में दोषी पाए जाने के बाद गांधी की लोकसभा की सदस्यता चली गई और इसे उनकी पार्टी के लिए एक बड़ी नाकामयाबी माना जाने लगा. लेकिन कर्नाटक के नतीजों ने साबित कर दिया कि राज्य में पार्टी की स्थिति काफी मजबूत हो गई है.

"नफरत का बाजार बंद"

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि हमने सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ा जिससे हमें बल मिला और हम अपने वायदों को जरूर पूरा करेंगे.

राहुल गांधी ने एक संदेश में कहा कि इन चुनावों में एक तरफ याराना पूंजीवादियों की ताकत थी और दूसरी तरफ गरीब जनता की शक्ति थी और शक्ति ने ताकत को हरा दिया. उन्होंने यह भी कहा, "कर्नाटक में नफरत का बाजार बंद हुआ और मोहब्बत की दुकानें खुली हैं."

समीक्षक कांग्रेस की जीत के पीछे कई कारण देख रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार और कर्नाटक की राजनीति के जानकार जॉयजीत दास कहते हैं कि राज्य के मतदाता बीजेपी के गवर्नेंस से और पार्टी के स्थानीय नेतृत्व से खुश नहीं थे. इसके अलावा भी कई कारण थे जो बीजेपी की हार का कारण बने.

दास ने डीडब्ल्यू को बताया, "हिजाब, धर्मांतरण आदि जैसे भावनात्मक मुद्दों की जगह महंगाई, कमाई का ना बढ़ना और बेरोजगारी जैसी समस्याएं यहां बड़े मुद्दे थे और राज्य की जनता इसके लिए बीजेपी के स्थानीय नेतृत्व को जिम्मेदार मान रही थी."

दास मानते हैं कि बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाने का भी खामियाजा भुगतना पड़ा क्योंकि उनके दरकिनार हो जाने से उनका तजुर्बा और उनके समर्थक लिंगायत समाज का वोट बीजेपी ने गंवा दिया. इसके अलावा मुख्यमंत्री के रूप में बोम्मई भी लोगों के बीच लोकप्रिय नहीं हो पाए.

कांग्रेस की रणनीति

दास का कहना है कि कांग्रेस का काम बीजेपी की इन कमजोरियों को भुनाना था, जो उसने एक कसे हुए अभियान, नेतृत्व की एकजुटता और स्थानीय मुद्दों को रेखांकित करने के जरिए किया. उनके मुताबिक साथ ही राहुल गांधी की लोकप्रियता और पांच गारंटियों का चुनावी वादा काम आया.

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अब इसके आगे कांग्रेस के लिए चुनौती मुख्यमंत्री चुनने की है. पद के लिए दो प्रबल दावेदार एक दूसरे से प्रतियोगिता में हैं - पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और राज्य में पार्टी के अध्यक्ष डीके शिवकुमार. देखना होगा पार्टी हाई कमांड किसे चुनती है और उसके बाद क्या होता है.

ये चुनाव कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण थे, जिस वजह से दोनों पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. बीजेपी के अभियान का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेतृत्व कर रहे थे. वो कई बार कर्नाटक गए और वहां कई रैलियां की, लेकिन उनकी कोशिशें भी उनकी पार्टी को बचा नहीं पाईं.

इन नतीजों की आने वाले चुनावों पर भी छाया पड़ सकती है. आने वाले कुछ महीनों में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिनमें से तेलंगाना को छोड़ कर बाकी तीनों राज्यों में लड़ाई सीधे कांग्रेस और बीजेपी के बीच है.

इन राज्यों में चुनावों का दौर 2024 के लोकसभा चुनावों की जमीन भी तैयार करेगा.

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