भारत में बाघ बचाने की कोशिशें रंग लाईं, दोगुने हुए बाघ
फ्रेड श्वालर
२१ फ़रवरी २०२५
पिछले दशक में भारत में बाघों की संख्या दोगुनी होकर लगभग 3,682 हो गई है. बाघ अब उस जगह पर भी अच्छी संख्या में हैं जहां इंसान रहते हैं, पर इससे आस-पास रहने वाले समुदायों पर क्या असर पड़ेगा?
भारत में बाघों के संरक्षण कार्यक्रम का असर दिख रहा है, बाघों की संख्या दोगुनी हो गई हैतस्वीर: RealityImages/Zoonar/picture alliance
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तेजी से बढ़ते शहरीकरण और इंसानी आबादी के बावजूद, दुनिया के करीब तीन-चौथाई बाघ अब भारत में रहते हैं. ‘साइंस' में प्रकाशित एक नए अध्ययन के मुताबिक, 2010 से 2022 तक भारत में बाघों की अनुमानित संख्या 1,706 के मुकाबले दोगुनी से ज्यादा लगभग 3,700 हो गई है.
बाघों की आबादी में जो सुधार हुआ है, वह इसलिए हुआ है क्योंकि उन्हें बचाने और उनकी सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए गए हैं. उनकी रहने की जगह को भी सुरक्षित किया गया है और उन्हें शिकारियों से भी बचाया गया है.
रिसर्चरों का मानना है कि इससे दुनिया भर में बाघ को बचाने के कार्यक्रमों के लिए अहम सबक मिलेंगे.
भारतीय वन्यजीवसंस्थान में संरक्षक और नए अध्ययन के प्रमुख लेखक यादवेंद्रदेव विक्रमसिंह झाला ने कहा, "ऐसी जगहें बनाने से जहां इंसान नहीं रहते, बाघों को बच्चे पैदा करने और अपनी संख्या बढ़ाने में मदद मिली. फिर वो वहां से आसपास के जंगलों में भी फैल गए जहां इंसानों की आवाजाही होती है.”
2010 से 2022 के बीच, भारत में बाघों के रहने वाले इलाके में 30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जो सालाना लगभग 1,131 वर्ग मील (2,929 वर्ग किलोमीटर) है. बाघ अब भारत में 53,359 वर्ग मील (1,38,200 वर्ग किलोमीटर) में फैले हुए हैं, जो इंग्लैंड के आकार का क्षेत्र है.
इस साल सबसे शानदार वाइल्डलाइफ तस्वीरों में भारत का एक बाघ भी
'वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर ऑफ दी ईयर' को शुरू हुए 60 साल हो गए. इस साल तो 117 देशों से 59,228 तस्वीरें आई थीं. देखिए, इस ग्रह पर जीवन के विविध रूपों को दिखाती चुनिंदा तस्वीरें जिन्होंने अवॉर्ड जीता है...
दी स्वार्म ऑफ लाइफ
2024 की वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर ऑफ दी ईयर जीतने वाली इस तस्वीर को लिया है, शेन ग्रॉस ने. वह कनाडा में समुद्री संरक्षण के क्षेत्र में पत्रकारिता करते हैं. फोटो में दिख रहे ये जीव हैं, वेस्टर्न टोड टैडपोल्स. जजों ने कहा कि ये तस्वीर दिखाती है कुदरत में जहां देखो, हैरतअंगेज खूबसूरती मिल जाएगी. साथ ही, इस फोटो में यह भी दिखता है कि कैसे जीव, पौधे और उनका वातावरण आपस में गुंथे होते हैं.
तस्वीर: Shane Gross, Wildlife Photographer of the Year
लाइफ अंडर डेड वुड
यह तस्वीर खींची है, जर्मनी के एलेक्सिस टिंकर ने. उन्होंने 15 से 17 साल की श्रेणी में 'यंग वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर' का मुकाबला जीता. फोटो का कैप्शन है, "लाइफ अंडर डेड वुड." तस्वीर में दिख रहा जीव रसबेरी के रंग का एक स्प्रिंगटेल है. ये कुछ ही मिलिमीटर आकार के होते हैं और बला की फुर्ती वाले भी. सेकेंड से भी कम हिस्से में कई छलांग लगा सकते हैं.
तस्वीर: Alexis Tinker-Tsavalas, Wildlife Photographer of the Year
टाइगर इन टाउन
यह तस्वीर वेस्टर्न घाट में ली गई है. जगह है, नीलगिरी. पहाड़ की ढलान पर एक बाघ बैठा है. पास में जो शहर दिख रहा है, पहले वहां भी जंगल था. यह तस्वीर खींची है, जर्मनी के रॉबिन डारीयुस कॉन्ज ने. कॉन्ज एक डॉक्यूमेंट्री के सिलसिले में कई दिनों से इस बाघ की टोह ले रहे थे. यह तस्वीर उन्होंने ड्रोन से ली है, जब बाघ टहलता-टहलता एक जगह पर बैठ गया था. वेस्टर्न घाट, जैव विविधता में सबसे संपन्न इलाकों में है.
तस्वीर: Robin Darius, Wildlife Photographer of the Year
वेटलैंड रेसल
इस तस्वीर को 'बिहेवियर: एम्फीबियंस एंड रेपटाइल्स' श्रेणी में जीत मिली है. तस्वीर ली है, अमेरिका की कैरीन आइग्नर ने. वह एक टूअर ग्रुप के साथ ब्राजील गई थीं. यह ग्रुप हिरणों की तस्वीर लेने रुका, तो आइग्नर ने पानी में एक अजीब हलचल देखी. दूरबीन से देखने पर पता चला, एक पीला एनाकोंडा है जिसने एक कैपन को लपेटा हुआ है. दोनों लड़ रहे थे, पता नहीं कौन जीता. यहां समझ नहीं आ रहा कि शिकार कौन है, शिकारी कौन.
तस्वीर: Karine Aigner, Wildlife Photographer of the Year
फ्रंटियर ऑफ दी लिंक्स
रूस के ईगोर मेतेल्स्की को इस तस्वीर के लिए 'एनिमिल्स इन देअर एनवॉयरमेंट' श्रेणी में मुकाबला जीता है. तस्वीर में नजर आ रहा लिंक्स, कैट फैमिली का एक सदस्य है. शाम की धूप में अंगड़ाई ले रहे इस लिंक्स का घर रूस के एक सुदूर इलाके लाजोव्स्की में है. करीब छह महीने के इंतजार के बाद इगोर को यह तस्वीर मिली.
तस्वीर: Igor Metelskiy, Wildlife Photographer of the Year
ओल्ड मैन ऑफ दी ग्लेन
'प्लांट्स एंड फंगी' श्रेणी की इस विजेता तस्वीर को खींचा है, इटली के फर्टुनाटो गात्तो ने. गात्तो की जंगल में इस पुराने नारेल्ड बिर्च के पेड़ से मुलाकात हुई. स्कॉटलैंड के इस जंगल का नाम ग्लेन एफ्रीक है. गात्तो अक्सर एकांत में समय बिताने यहां आते हैं. यह ब्रिटेन का ऐसा इलाका है, जहां स्थानीय पौधों की सबसे अधिक संख्या पाई जाती है. रिसर्च बताते हैं कि यह जंगल कम-से-कम 8,300 साल से यहां खड़ा है.
तस्वीर: Fortunato Gatto, Wildlife Photographer of the Year
अ ट्रैंक्विल मोमेंट
यह तस्वीर श्रीलंका के हिक्कादुआ प्रशांत विनोद ने खींची है. इसे 'बिहेवियर्स: मैमल्स' श्रेणी में चुना गया है. विनोद, श्रीलंका के विलपट्टू नेशनल पार्क में एक शांत सी जगह पर सुबह के वक्त पक्षियों और तेंदुओं की तस्वीर खींच रहे थे, जब उन्होंने टूक मकाक के एक झुंड को पेड़ों पर उछलते-कूदते देखा. और, फिर उनकी निगाह गई इस खूबसूरत फ्रेम पर. एक टूक मकाक बच्चा बड़ी शांति से मां की गोद में सो रहा है.
प्रैक्टिस मेक्स परफेक्ट
अमेरिकी फोटोग्राफर जैक ची की यह तस्वीर 'बिहेवियर: बर्ड्स' श्रेणी में विजेता है. जैक ने देखा, कैलिफोर्निया में समंदर के ऊपर उड़ता एक बाज, एक नन्ही तितली पर शिकार की आजमाइश कर रहा है. जैक करीब आठ सालों से यहां आ रहे हैं. यह बाज अभी छोटा है. मालूम होता है, शिकार करना सीख रहा है. अगर ये वयस्क होने की उम्र तक पहुंचा, तो 300 किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्यादा की रफ्तार से शिकार पर झपट सकता है. एसएम/आरपी
तस्वीर: Jack Zhi, Wildlife Photographer of the Year
भारतीय संरक्षक हर चार साल में बाघों के रहने की जगहों का सर्वे करते हैं. इस दौरान बाघों की संख्या, उनके शिकार और रहने की अच्छी जगहों की जानकारी इकट्ठा की जाती है.
बाघ सुरक्षित और शिकार से भरपूर इलाकों में तो खूब बढ़े, लेकिन उन्होंने ऐसी जगहों पर भी रहना सीख लिया है जहां लगभग 6 करोड़ लोग खेती-बाड़ी करते हैं और बस्तियों में रहते हैं, यानी टाइगर रिजर्व और नेशनल पार्क के बाहर.
रिसर्च में पता चला है कि बाघों के रहने वाले इलाकों में से केवल 25 फीसदी इलाके ही ऐसे हैं जहां शिकार की कोई कमी नहीं है और जो सुरक्षित भी हैं. लगभग 50 फीसदी इलाकों में बाघ करीब 6 करोड़ लोगों के साथ रहते हैं.
वन्यजीव संरक्षणक रवि चेल्लम ने कहा कि बाघों की आबादी को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है कि इंसान और बाघों के लिए साझी जमीन हो. चेल्लम ने कहा, "अब यह माना जाता है कि बड़ी बिल्लियां इंसानों के साथ रहकर भी जिंदा रह सकती हैं और अच्छे से रह सकती हैं. चुनौतियां और मुश्किलें तो हैं, पर ज्यादातर लोग समझते हैं कि बाघ जैसे जानवरों वाले पारिस्थितिक तंत्र कितने जरूरी होते हैं.”
भारत में बाघों के हमलों से हर साल करीब 56 लोगों की मौत होती है. हालांकि यह मृत्यु दर अन्य वजहों से होने वाली मौतों की तुलना में बहुत कम है. जैसे, भारत में हर साल सड़क दुर्घटनाओं की वजह से 1,50,000 लोगों की मौत होती है.
भारत में बढ़ रही है बाघों की आबादी
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झाला ने कहा कि बाघ और इंसान एक ही जगह पर शांति से रहें, इसके लिए तीन चीजें जरूरी हैं. पहला, स्थानीय लोगों को बड़े मांसाहारी जानवरों के साथ रहने से फायदा हो, ऐसा करना जरूरी है. इसके लिए जरूरी है कि उनसे होने वाली कमाई, इकोटूरिज्म से होने वाली कमाई और अगर कोई नुकसान हो तो उसका मुआवजा, ये सब उनके साथ बांटा जाए.
दूसरा, जो जानवर परेशानी खड़ी करते हैं और इंसानों के लिए खतरा हैं, उन्हें इंसानी बस्तियों से दूर ले जाना. तीसरा, कुछ बदलाव करना. जैसे, खुले में शौच से जुड़ी समस्या खत्म करना, यह सुनिश्चित करना कि लोग जंगल वाले इलाकों में समूहों में घूमें, पर्याप्त रोशनी और सुरक्षित आवास की व्यवस्था करना और मवेशियों के लिए सुरक्षित जगह बनाना.
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आंकड़ेबतातेहैंकिबाघोंकेआवासकमहोगएहैं
भारत के बेंगलुरु में कार्नासियल्स ग्लोबल में पारिस्थितिकीविद् अर्जुन गोपालस्वामी एक दशक से बाघों की आबादी पर नजर बनाए हुए हैं. उन्होंने कहा कि नए अध्ययन के निष्कर्ष दूसरे आंकड़ों से उलट हैं जो दिखाते हैं कि हाल के वर्षों में बाघों के प्राकृतिक आवास कम हो गए हैं.
गोपालस्वामी ने डीडब्ल्यू को बताया, "पिछली रिपोर्टों से पता चलता है कि बाघों के रहने की जगह काफी कम हो गई है. यह 2006 और 2018 के बीच 10,000 से 50,000 वर्ग किलोमीटर तक घट गई है.
भारत में बाघों की दहाड़: संख्या बढ़कर हुई 3,682
भारत में अब दुनिया के 75 फीसदी बाघ रहते हैं. देश में 2018 से 2022 के बीच बाघों की आबादी में 24 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. भारत सरकार ने भारत में बाघों की स्थिति पर रिपोर्ट जारी की है.
तस्वीर: AP
भारत में कितने बाघ
साल 2018 और 2022 के बीच भारत में बाघों की आबादी में 24 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. अब देश में कुल 3,682 बाघ हैं.
भारत में बाघों की स्थिति पर रिपोर्ट के मुताबिक देश में सबसे अधिक (785) बाघ मध्य प्रदेश में हैं. साल 2018 में यहां बाघों की संख्या 526 थी. इसके बाद कर्नाटक का नंबर है, जहां 2022 में बाघों की कुल संख्या 563 रही.
तस्वीर: Mahesh Kumar A/AP/picture alliance
जहां बाघों की संख्या शून्य
जहां एक ओर देश में बाघों की संख्या बढ़ी है वहीं मिजोरम और नागालैंड ऐसे राज्य हैं जहां एक भी बाघ नहीं है.
तस्वीर: DW/M. M. Rahman
इन राज्यों में घटी संख्या
देश के कुछ ऐसे भी राज्य हैं जहां 2018 के मुकाबले 2022 में बाघों की संख्या घट गई. अरुणाचल प्रदेश में जहां 2018 में 29 बाघ थे वहां 2022 में संख्या घटकर 9 रह गई. ओडिशा में 2018 में 28 के मुकाबले 2022 में 20 बाघ थे. झारखंड में 2022 में एक बाघ था, जबकि वहां साल 2018 में 5 थे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/STR
भारत के पांच शीर्ष टाइगर रिजर्व
रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड के कॉर्बेट रिजर्व में सबसे ज्यादा (260) बाघ हैं. इसके बाद कर्नाटक के बांदीपुर में 150, कर्नाटक के नागरहोल में 141, मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ में 135 और तमिलनाडु के मुदुमलई में 114 बाघ हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Chowdhury
बाघों के संरक्षण के लिए अब 53 टाइगर रिजर्व
भारत के 18 राज्यों में 75,796 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले 53 टाइगर रिजर्व का एक नेटवर्क है, जहां बाघ रहते हैं. भारत सरकार का कहना है कि उसने 2014 के बाद छह और नेटवर्क जोड़े हैं. भारत में बाघों की घटती आबादी को देखते हुए 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर लॉन्च किया गया था.
तस्वीर: AP
अवैध शिकार अभी भी खतरा
अवैध शिकार अभी भी बाघों के संरक्षण के लिए खतरा बना हुआ है. इसके साथ ही इंसान और जंगली जानवरों का संघर्ष भी बढ़ा है. जंगल में गिरावट के कारण जंगली जानवरों के रहने वाले इलाके सिकुड़ रहे हैं.
तस्वीर: Sajjad Hussain/AFP/Getty Images
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उन्होंने कहा, "यह कहना मुश्किल है कि पिछले दो दशकों में भारत में बाघों की संख्या बढ़ी है, घटी है या स्थिर रही है.”
बाघों की घटती संख्या एक लंबे समय से चली आ रही प्रवृत्ति का हिस्सा है, क्योंकि सदियों से उनका शिकार किया जा रहा है और उनके रहने की जगहें नष्ट की जा रही हैं. यह सब बहुत पहले शुरू हुआ था, जब औपनिवेशिक काल यानी अंग्रेजों के राज में जानवरों को मारने पर इनाम दिया जाता था.
गोपालस्वामी ने कहा कि अलग-अलग नतीजों के कारण, जमीन पर अलग-अलग काम किए जा रहे हैं, जिनमें विरोधाभास भी है. उन्होंने कहा, "उदाहरण के लिए, ‘साइंस' पेपर में बताया गया है कि बाघ भारत में नए इलाकों में फैल रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ, अधिकारी बाघों को अलग-थलग होने से बचाने के नाम पर उन्हें एक रिजर्व से दूसरे रिजर्व में ले जा रहे हैं.”
गोपालस्वामी का कहना है कि बाघों की संख्या और उनके प्राकृतिक आवासों के बारे में सही जानकारी जुटाने के लिए और ज्यादा वैज्ञानिक तरीके अपनाने चाहिए, ताकि उन्हें बचाने के लिए बेहतर काम किया जा सके.