हाथ मिलाने से लेकर खेलने तक एथलीट हर समय किसी न किसी को स्पर्श करते हैं. लेकिन इतना सामान्य शारीरिक संपर्क भी आपको सकारात्मक डोपिंग परीक्षण दिलाने के लिए पर्याप्त हो सकता है.
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आपने शायद विश्वास नहीं किया होगा कि ऐसा होगा, लेकिन कोविड और अन्य सभी बाधाओं को पार करते हुए टोक्यो में ओलंपिक सफल रहे हैं. स्टेडियम ज्यादातर खाली हैं और तमाम कोविड प्रतिबंधों के साथ ओलंपिक गांव में रहना एक अलग तरीके का अनुभव देता है.
लेकिन केंद्रीय ओलंपिक सिद्धांत वही रहता है- यह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ एथलीटों के बीच एक प्रतियोगिता है. और इसके साथ ही सदियों पुरानी डोपिंग संबंधी चिंताएं भी सामने आ जाती हैं.
यह सुनिश्चित करने के लिए कि खेल निष्पक्ष हों, विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी यानी वाडा की देखरेख वाली अंतर्राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी यानी आईटीए का कहना है कि वह "टोक्यो 2020 के लिए सबसे व्यापक डोपिंग रोधी कार्यक्रम का नेतृत्व कर रहा है जिसे ओलंपिक खेलों के किसी भी संस्करण में अब तक लागू नहीं किया गया है."
बेहद विनम्र शब्दों में वह यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि प्रदर्शन बढ़ाने वाले पदार्थों का उपयोग करने वाले एथलीटों को मौका न मिले.
डीडब्ल्यू स्पोर्ट्स ने रिपोर्ट किया था कि खेलों के दौरान अंतरराष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी यानी आईटीए की 24 मैनेजरों और 250 डोपिंग कंट्रोल अधिकारियों की टीम 11 हजार खिलाड़ियों के खून और पेशाब के करीब पांच हजार नमूनों की जांच करेगी. आईटीए ने इन परीक्षणों को "लक्षित और अघोषित” बताया है.
एक सकारात्मक डोपिंग परीक्षण के परिणामस्वरूप एक एथलीट को उसके खेल से वर्षों तक प्रतिबंधित किया जा सकता है और उन्हें प्रतियोगिता में जीते गए किसी भी पदक को वापस सौंपना होता है.
यह धोखेबाजों के इलाज का एक उचित तरीका हो भी सकता है और नहीं भी, लेकिन यदि उन्होंने कभी जानबूझकर प्रतिबंधित पदार्थों का इस्तेमाल नहीं किया है और फिर भी परीक्षण पॉजिटिव आता है, तब क्या होगा?
मेडल जीतने पर यहां मिलता है सबसे ज्यादा इनाम
मेडल जीतने पर सबसे ज्यादा इनाम देते हैं ये देश
भारत के लिए दूसरी बार ओलंपिक पदक जीतने वाली पीवी सिंधू को आंध्र प्रदेश सरकार ने 30 लाख रुपये देने का वादा किया है. लेकिन कुछ देश अपने विजेताओं को और भी भारी-भरकम राशि देते हैं. ये हैं सबसे बड़ा इनाम देने वाले देश...
तस्वीर: Jack Guez/AFP/Getty Images
सिंगापुर
सिंगापुर अपने विजयी खिलाड़ियों को सबसे ज्यादा धनराशि इनाम में देता है. गोल्ड जीतने वाले को 10 लाख सिंगापुर डॉलर (लगभग 5.4 करोड़ रुपये) मिलते हैं. सिल्वर पर पांच लाख और ब्रॉन्ज जीतने पर ढाई लाख डॉलर दिए जाते हैं.
तस्वीर: Jung Yeon-je/AFP/Getty Images
चीनी ताईपेई
ताईवान, जो ओलंपिक्स में चीनी ताईपेई के नाम से हिस्सा लेता है, अपने गोल्ड जीतने वाले खिलाड़ियों को दो करोड़ न्यू ताईवान डॉलर (लगभग 5.3 करोड़ रुपये) का इनाम देता है.
तस्वीर: Phil Noble/REUTERS
इंडोनेशिया
2016 ओलंपिक में गोल्ड जीतने पर इंडोनेशिया ने खिलाड़ियों को वहां के पांच अरब रुपये (करीब 2.5 करोड़ भारतीय रुपये) पुरस्कार में दिए थे.
तस्वीर: Privat
बांग्लादेश
बांग्लादेश ने कभी ओलंपिक में गोल्ड नहीं जीता है. लेकिन सरकार ने कहा है कि कोई गोल्ड जीतकर लाया तो उसे तीन लाख अमेरिकी डॉलर (लगभग दो करोड़ रुपये) का इनाम दिया जाएगा.
तस्वीर: Adek Berry/AFP/Getty Images
कजाखस्तान
कजाखस्तान के गोल्ड मेडल विजेता खिलाड़ियों को ढाई लाख डॉलर (लगभग 1.8 करोड़ रुपये), सिल्वर पर डेढ़ लाख डॉलर और ब्रॉन्ज पर 75 हजार डॉलर का इनाम मिलेगा.
तस्वीर: Reuters/M. Blake
मलयेशिया
मलयेशिया में मेडल जीतने पर चेक मिलना तय है. गोल्ड के लिए 2 लाख 37 हजार डॉलर (लगभग डेढ़ करोड़ रुपये) , सिल्वर के लिए 71 हजार डॉलर और ब्रॉन्ज पर 24 हजार डॉलर के चेक खिलाड़ियों का इंतजार कर रहे हैं. इतना ही नहीं, खिलाड़ियों को क्रमशः लगभग 12,00 डॉलर, 7,00 डॉलर और 470 डॉलर मासिक भी मिलेंगे.
तस्वीर: Alexander Nemenov/AFP/Getty Images
फिलीपीन्स
फिलीपीन्स की वेटलिफ्टर हिडीलिन डियाज को गोल्ड जीतने पर खेल आयोग ने करीब दो लाख डॉलर (लगभग डेढ़ करोड़ रुपये) देने का ऐलान किया है.
तस्वीर: Vincenzo Pinto/AFP/Getty Images
हंगरी
हंगरी में गोल्ड जीतने वालों को 166,000 डॉलर (करीब 1.2 करोड़ रुपये) मिलते हैं. सिल्वर पर 118,000 डॉलर (लगभग 90 लाख रुपये) और ब्रॉन्ज पर 94 हजार डॉलर (लगभग 70 लाख रुपये) दिए जाते हैं.
तस्वीर: Dean Mouhtaropoulos/Getty Images
कोसोवो
कोसोवो में सरकार गोल्ड जीतने वाले अपने खिलाड़ियों को एक लाख यूरो (लगभग 88 लाख रुपये) का इनाम देती है. सिल्वर मेडल पर 60 हजार यूरो और ब्रॉन्ज पर 40 हजार यूरो मिलते हैं.
तस्वीर: Jack Guez/AFP/Getty Images
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हाथ मिलाने से डोपिंग?
जर्मनी के एक सार्वजनिक प्रसारक एआरडी में डोपिंग रिपोर्टर्स की ओर से की गई एक जांच से पता चला है कि कुछ डोपिंग पदार्ध त्वचा से त्वचा के संपर्क में आने यानी स्पर्श से भी स्थानांतरित हो सकते हैं.
और उनके मुताबिक, इसमें ज्यादा समय नहीं लगता है- बस हाथ मिलाना या पीठ पर हाथ थपथपाना भी संक्रमण के लिए पर्याप्त हो सकता है. एआरडी डॉक्यूमेंटरी में इस संबंध में जो निष्कर्ष छपे थे, उनका शीर्षक था- "डोपिंग टॉप सीक्रेट-गिल्टी".
हाजो सेपेल्ट के नेतृत्व में रिपोर्टिंग टीम ने पहली बार साल 2016 में त्वचा के संपर्क के माध्यम से डोपिंग की संभावना के बारे में जानकारी जुटाई थी. उनकी टीम ने जांच शुरू की और आखिरकार कोलोन में जर्मन स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में फोरेंसिक मेडिसिन संस्थान के सहयोग से एक प्रयोग करने में सफल रहे.
18 से 40 साल की आयु के बीच के बारह पुरुषों के हाथों, गर्दन और बाहों पर अलग-अलग एनाबॉलिक स्टेरॉयड की एक छोटी मात्रा दी गई. इसके बाद के हफ्तों में, परीक्षण में शामिल लोगों के मूत्र नमूने लेकर प्रयोगशाला में भेजे गए.
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‘मैंने ऐसी उम्मीद नहीं की थी'
सभी 12 लोगों के परिणाम पॉजिटिव आए. उनके नमूनों से पता चला कि उन्होंने गैरकानूनी पदार्थों का सेवन किया था- हालांकि उन्होंने इन पदार्थों को सीधे तौर पर नहीं लिया था.
सेप्लेट इस समय टोक्यो में हैं और ओलंपिक खेलों को कवर कर रहे हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहते हैं, "जब हमसे इस बारे में पहली बार संपर्क किया गया, तो मैंने सोचा 'ज़रूर, शायद यह यहां और वहां काम कर सकता है. लेकिन जब वे सभी पॉजिटिव मिले तो यह हमारे लिए आश्चर्य की बात थी. इन सबने मुझे वास्तव में सोचने पर मजबूर कर दिया.”
डोपिंग एजेंटों यानी उन प्रतिबंधित पदार्थों को उनकी त्वचा पर लगाने के दो सप्ताह बाद तक मूत्र के नमूने से उन पदार्थों के बारे में पता लगाया जा सकता है. यहां तक कि विशेषज्ञ भी प्रयोग के परिणामों से हैरान थे.
कोलोन के यूनिवर्सिटी ऑफ फोरेंसिक मेडिसिन में फोरेंसिक टॉक्सिकोलॉजिस्ट डॉक्टर मार्टिन जुबनेर डीडब्ल्यू को दिए एक इंटरव्यू में कहते हैं, "मैंने इस तरह की उम्मीद नहीं की थी, खासतौर से प्रतिबंधित पदार्थों के निशान इतने लंबे समय तक दिखा रहे थे.”
तस्वीरों मेंः ओलंपिक मैस्कॉट
कैसे कैसे रहे हैं ओलंपिक के मैस्कॉट
टोक्यो ओलंपिक खेलों के मैस्कॉट हैं मिराइतोवा. ओलंपिक खेलों में मैस्कॉट लाने की परंपरा करीब 50 साल पुरानी है, जो शुरू हुई थी जर्मन डैशन्ड कुत्ते वाल्डी से.
तस्वीर: kyodo/dpa/picture alliance
टोक्यो 2021: मिराइतोवा और सोमैटी
मिराइतोवा (बाईं तरफ) और पैरालंपिक खेलों के मैस्कॉट सोमैटी (दाईं तरफ) टोक्यो ओलंपिक खेलों के दौरान हर जगह दिखाई देंगे. इन्हें बनाने वाले कलाकार का नाम है रियो तानिगूची.
तस्वीर: picture-alliance/Kyodo/Maxppp
म्युनिक 1972: वाल्डी
जर्मन डैशन्ड कुत्ता वाल्डी सबसे पहला ओलंपिक मैस्कॉट था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Weigel
मोंट्रियल 1976: अमीक
लाल सैश वाल काला बीवर अमीक 1976 में कनाडा के मोंट्रियल में हुए ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था.
तस्वीर: Sven Simon/imago
मॉस्को 1980: मीशा
रूस की राजधानी मॉस्को में हुए 1980 के ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था मुस्कुराता हुआ भूरा भालू मीशा.
तस्वीर: Sven Simon/imago
लॉस एंजेलिस 1984: सैम
1984 में अमेरिका के लॉस एंजेलिस में हुए ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था सैम नाम का बॉल्ड ईगल.
तस्वीर: Tony Duffy/Getty Images
सीओल 1988: होदोरी
दक्षिण कोरिया के पहले ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था होदोरी नाम का अमूर बाघ.
तस्वीर: Sven Simon/imago
बार्सिलोना 1992: कोबी
1992 में स्पाई के बार्सिलोना में हुए खेलों का मैस्कॉट था पाइरीनियन पहाड़ी कुत्ता कोबी.
तस्वीर: Pressefoto Baumann/imago
एटलांटा 1996: इज्जी
एटलांटा में 1996 में हुए खेलों का मैस्कॉट था इज्जी नाम का एक काल्पनिक किरदार.
तस्वीर: Michel Gangne/AFP/Getty Images
सिडनी 2000: औली, सिड और मिली
ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में 2000 में हुए ओलंपिक खेलों के तीन मैस्कॉट थे - औली नाम का कूकाबुरा, सिड नाम का प्लैटिपस और मिली नाम का एकिडना.
तस्वीर: Arne Dedert/dpa/picture-alliance
एथेंस 2004: एथेना और फिबोस
2004 के खेलों के लिए ग्रीस ने मैस्कॉट के रूप में चुना दो प्राचीन नामों को. एथेना और फिबोस यूनानी देवताओं के नाम है. इन्हें रोशनी और संगीत का प्रतीक माना गया.
तस्वीर: Alexander Hassenstein/Bongarts/Getty Image
बीजिंग 2008: बीबी, जिंगजिंग, हुआंहुआं, यिंगयिंग और निनी
2008 के खेलों के लिए भी चीन ने एक से ज्यादा मैस्कॉट का इस्तेमाल किया. ये मैस्कॉट थे बीबी मछली, जिंगजिंग पांडा, हुआंहुआं नामक ओलंपिक की अग्नि का रूप, यिंगयिंग तिब्बती ऐंटिलोप और निनी स्वालो पक्षी.
तस्वीर: Kazuhiro Nogi/AFP/Getty Images
लंदन 2012: वेनलॉक और मैंडेविल
चार सालों बाद लंदन ने खेलों के मैस्कॉट के रूप में दो आकारहीन किरदारों को प्रस्तुत किया. वेनलॉक (बाईं तरफ) ओलंपिक का मैस्कॉट था और मैंडेविल (दाईं तरफ) पैरालंपिक खेलों का. दोनों को इस्पात उद्योग के प्रतिनिधि के रूप में देखा गया.
तस्वीर: Julian Finney/Getty Images
रियो 2016: विनिचियस और टॉम
ब्राजील के ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था विनिचियस (दाईं तरफ) जो एक बंदर और जंगली बिल्ली का मिश्रण जैसा था और ब्राजील में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं का प्रतिनिधि था. टॉम (बाईं तरफ) कई पौधों का मिश्रण था और ब्राजील के पेड़ पौधों का प्रतिनिधि था. (बेट्टीना बाउमैन)
तस्वीर: Yasuyoshi Chiba/AFP/Getty Images
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गलत तरह की प्रेरणा से बचना
फिलहाल, इस प्रयोग में शामिल कोई भी व्यक्ति बहुत कुछ बताना नहीं चाहता. जुबनेर कहते हैं कि यह शोध अभी भी एक लंबी, वैज्ञानिक समीक्षा प्रक्रिया से गुजर रहा है और परिणाम प्रकाशित होने में अभी महीनों लग सकते हैं.
लेकिन विशेषज्ञ भी इस बारे में कुछ ज्यादा नहीं कहना चाहते. वे अपने काम का दुरुपयोग होते नहीं देखना चाहते कि कैसे पहले से ही एक असंदिग्ध एथलीट को परीक्षण के दायरे में लाया जाए.
यही कारण है कि परीक्षण में शामिल प्रतिभागियों की त्वचा पर किस प्रकार के डोपिंग एजेंटों को लागू किया गया था, इस बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है. उन्होंने केवल इतना कहा है कि यह एनाबॉलिक स्टेरॉयड था.
उनकी सावधानी बरती जा सकती है. ऐसे एथलीटों के कई मामले सामने आए हैं जिनके पदक रद्द कर दिए गए थे या सकारात्मक डोपिंग परिणामों के कारण उनका करियर बर्बाद हो गया था. उन एथलीटों का कहना था कि किसी ने उनकी जानकारी के बिना उन्हें प्रतिबंधित पदार्थों का सेवन करा दिया है.
और वह तब था जब लोगों ने सोचा कि डोपिंग एजेंटों को किसी के भोजन, पानी या टूथपेस्ट में मिलाया जाना चाहिए. अब ऐसा लग रहा है कि किसी अजनबी से हाथ मिलाने से ही सब कुछ हो गया.
दायित्व का एक सख्त सिद्धांत
विशेषज्ञों का सुझाव है कि इन निष्कर्षों से खेल अदालतों में डोपिंग के आरोपों से निपटने के तरीके में बदलाव हो सकता है. चूंकि इन मामलों में सामान्य रूप में आपराधिक मामलों वाली यह स्थिति नहीं होती कि "जब तक सिद्ध न हो जाए तब तक निर्दोष है”. बल्कि इसका बिल्कुल उल्टा ही होता है.
खेल में, एक सख्त दायित्व सिद्धांत है जो कहता है कि जब एक एथलीट प्रतिबंधित पदार्थों के परीक्षण में सकारात्मक पाया जाता है तो पहले यह माना जाता है कि उन्होंने वास्तव में लाभ के लिए इसका सेवन किया था. और अगर एथलीट का दावा है कि उन्होंने एसे किसी पदार्थ का सेवन नहीं किया, तो यह साबित करने की जिम्मेदारी उन पर है कि वे निर्दोष हैं.
वाडा ने अपनी वेबसाइट पर इस बारे में बहुत ही स्पष्ट तरीके से लिखा है, "प्रत्येक एथलीट अपने शरीर में पाए गए किसी भी पदार्थ के लिए पूरी तरीके से खुद ही जिम्मेदार है. और यदि ऐसा कोई पदार्थ पाया जाता है तो डोपिंग रोधी नियमों के उल्लंघन का जिम्मेदार माना जाएगा. भले ही यह पदार्थ उसने जानबूझकर लिया हो या फिर अनजाने में.”
इसका मतलब यह हुआ कि डोप एथलीट को डोप एथलीट ही माना जाएगा, भले ही उसने प्रतिबंधित पदार्थ अपनी मर्जी से लिया हो, अनजाने में लिया हो या फिर जानबूझकर लिया हो. यह साबित करते हुए कि उन्होंने जानबूझकर डोपिंग नहीं की, बाद में उन्हें केवल उनके खेल से प्रतिबंधित होने की सार्वजनिक शर्म से बख्शा जा सकता है. लेकिन वाडा की नजर में इसे गलत ही माना जाता है.
क्या पूरा सिस्टम ही बदलने की जरूरत है?
यदि किसी एथलीट में सकारात्मक परीक्षण करना इतना आसान है, तो फिर उन्हें अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए कैसे कहा जा सकता है? यह इंगित करना कि एक महत्वपूर्ण शारीरिक संपर्क जो आपके शरीर में डोपिंग एजेंट के लिए जिम्मेदार हो सकता है, असंभव होगा.
जुबनेर कहते हैं कि इसे साबित करने के और भी तरीके हो सकते हैं. लोगों ने यह देखने की कोशिश की है कि एथलीट के उपाच्चय यानी मेटाबोलिज्म द्वारा डोपिंग एजेंटों को कैसे धोखे में रखा जाता है. वह कहते हैं, "यह निर्धारित करने के लिए कि किसी पदार्थ ने इसे शरीर में कैसे बनाया. यह एक ऐसी चीज है जिसे हमें वास्तव में देखना है."
एआरडी की टीवी डॉक्यूमेंट्री अधिक सार्वजनिक जांच का कारण बन सकती है और WADA और अंतर्राष्ट्रीय खेल अदालतों पर अपने सिस्टम की फिर से जांच करने का दबाव डाल सकती है. लेकिन तब यह भी कुछ नहीं कर सकता है.
साल 2020 में, जब इटली के वैज्ञानिकों की एक टीम ने एक शोध प्रकाशित किया जिसमें यह भी पता चला कि डोपिंग एजेंट का त्वचा-अनुप्रयोग एक सकारात्मक परीक्षण को प्रेरित कर सकता है, लेकिन इसके बावजूद परिणाम कुछ खास नहीं रहा.
मिलिए, खेल की सुपर-विमिन ने
कैसे कैसे रहे हैं ओलंपिक के मैस्कॉट
टोक्यो ओलंपिक खेलों के मैस्कॉट हैं मिराइतोवा. ओलंपिक खेलों में मैस्कॉट लाने की परंपरा करीब 50 साल पुरानी है, जो शुरू हुई थी जर्मन डैशन्ड कुत्ते वाल्डी से.
तस्वीर: kyodo/dpa/picture alliance
टोक्यो 2021: मिराइतोवा और सोमैटी
मिराइतोवा (बाईं तरफ) और पैरालंपिक खेलों के मैस्कॉट सोमैटी (दाईं तरफ) टोक्यो ओलंपिक खेलों के दौरान हर जगह दिखाई देंगे. इन्हें बनाने वाले कलाकार का नाम है रियो तानिगूची.
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म्युनिक 1972: वाल्डी
जर्मन डैशन्ड कुत्ता वाल्डी सबसे पहला ओलंपिक मैस्कॉट था.
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मोंट्रियल 1976: अमीक
लाल सैश वाल काला बीवर अमीक 1976 में कनाडा के मोंट्रियल में हुए ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था.
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मॉस्को 1980: मीशा
रूस की राजधानी मॉस्को में हुए 1980 के ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था मुस्कुराता हुआ भूरा भालू मीशा.
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लॉस एंजेलिस 1984: सैम
1984 में अमेरिका के लॉस एंजेलिस में हुए ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था सैम नाम का बॉल्ड ईगल.
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सीओल 1988: होदोरी
दक्षिण कोरिया के पहले ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था होदोरी नाम का अमूर बाघ.
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बार्सिलोना 1992: कोबी
1992 में स्पाई के बार्सिलोना में हुए खेलों का मैस्कॉट था पाइरीनियन पहाड़ी कुत्ता कोबी.
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एटलांटा 1996: इज्जी
एटलांटा में 1996 में हुए खेलों का मैस्कॉट था इज्जी नाम का एक काल्पनिक किरदार.
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सिडनी 2000: औली, सिड और मिली
ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में 2000 में हुए ओलंपिक खेलों के तीन मैस्कॉट थे - औली नाम का कूकाबुरा, सिड नाम का प्लैटिपस और मिली नाम का एकिडना.
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एथेंस 2004: एथेना और फिबोस
2004 के खेलों के लिए ग्रीस ने मैस्कॉट के रूप में चुना दो प्राचीन नामों को. एथेना और फिबोस यूनानी देवताओं के नाम है. इन्हें रोशनी और संगीत का प्रतीक माना गया.
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बीजिंग 2008: बीबी, जिंगजिंग, हुआंहुआं, यिंगयिंग और निनी
2008 के खेलों के लिए भी चीन ने एक से ज्यादा मैस्कॉट का इस्तेमाल किया. ये मैस्कॉट थे बीबी मछली, जिंगजिंग पांडा, हुआंहुआं नामक ओलंपिक की अग्नि का रूप, यिंगयिंग तिब्बती ऐंटिलोप और निनी स्वालो पक्षी.
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लंदन 2012: वेनलॉक और मैंडेविल
चार सालों बाद लंदन ने खेलों के मैस्कॉट के रूप में दो आकारहीन किरदारों को प्रस्तुत किया. वेनलॉक (बाईं तरफ) ओलंपिक का मैस्कॉट था और मैंडेविल (दाईं तरफ) पैरालंपिक खेलों का. दोनों को इस्पात उद्योग के प्रतिनिधि के रूप में देखा गया.
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रियो 2016: विनिचियस और टॉम
ब्राजील के ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था विनिचियस (दाईं तरफ) जो एक बंदर और जंगली बिल्ली का मिश्रण जैसा था और ब्राजील में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं का प्रतिनिधि था. टॉम (बाईं तरफ) कई पौधों का मिश्रण था और ब्राजील के पेड़ पौधों का प्रतिनिधि था. (बेट्टीना बाउमैन)