मीथेन लीक होने की समस्या का क्यों नहीं हो रहा हल?
१७ जून २०२२उत्तरी इटली के एक औद्योगिक इलाके में गैस के भंडारण के लिए संरचना तैयार की गई है. इसके ऊपर एक पतली सी भूरे रंग की चिमनी बनी हुई है. यह चिमनी इस्तेमाल होती नहीं दिख रही थी. तभी जेम्स ट्यूरिटो ने अपना कैमरा निकाला. इस कैमरे में उन्होंने एक लाख डॉलर की कीमत का लेंस इस्तेमाल किया है, जिसकी मदद से इंफ्रारेड रेडिएशन का सटीक आकलन किया जा सकता है. इससे उन्होंने देखा कि इस चिमनी से धरती को गर्म करने वाला मीथेन गैस निकल रहा था. उन्होंने इसकी तस्वीर अपने कैमरे में कैद कर ली. दूसरे शब्दों में कहें, तो सामान्य तौर पर इस बात का पता लगाना काफी मुश्किल था कि साधारण सी दिख रही यह चिमनी हमारी धरती के लिए कितनी खतरनाक थी.
ट्यूरिटो पर्यावरण के लिए काम करने वाली गैर-लाभकारी संस्था क्लिन एयर टास्क फोर्स (सीएटीएफ) से जुड़े हुए हैं और वह उत्सर्जन के उन स्रोतों की खोज करते हैं जो तुरंत ही हवा में विलीन हो जाती हैं. उन्होंने पूरे यूरोप में तेल और गैस साइटों पर इसी तरह के सैकड़ों लीक देखे हैं जिन पर सामान्य लोगों का ध्यान नहीं जाता है. आठ महीने पहले जब ट्यूरिटो ने इटली वाली साइट का दौरा किया था, तब पाइप से मीथेन लीक हो रहा था.
विशेषज्ञों का कहना है कि जीवाश्म ईंधन के भंडारण वाली ऐसी जगहों से निकलने वाले मीथेन के अदृश्य बादल के उत्सर्जन पर आसानी से रोक लगाई जा सकती है. इन उत्सर्जन को रोकना, कार्बन डाइऑक्साइड प्रदूषण को कम करने के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. हालांकि, यह आने वाले दशकों में ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने के सबसे सस्ते उपायों में से एक है. ट्यूरिटो कहते हैं, "हम वाकई में, इस लीक को रोकने की बात कर रहे हैं.”
जलवायु के लिए मायने क्यों रखता है मीथेन?
मीथेन ऐसा गैस है जो औद्योगिक क्रांति के बाद से लगभग एक चौथाई ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार है. हालांकि, यह CO2 की तरह वातावरण में लंबे समय तक नहीं रहता है, लेकिन 20 साल की अवधि में यह CO2 की तुलना में 80 गुना अधिक प्रभावशाली है.
2015 में विश्व के नेताओं ने ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने और 1.5 डिग्री सेल्सियस पर बनाए रखने का संकल्प लिया है, ताकि सदी के अंत तक तूफान, लू, हवा के गर्म लहरों जैसे चरम मौसम को नियंत्रित किया जा सके. हालांकि, संयुक्त राष्ट्र की इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की पिछले साल अगस्त महीने में जारी रिपोर्ट के मुताबिक, अगले कुछ दशकों में तापमान अपने निचले स्तर (1.5 डिग्री सेल्सियस) की सीमा को पार कर सकता है.
वैज्ञानिकों ने इस साल फरवरी महीने में अपनी रिपोर्ट में पाया कि अगर सरकारें सदी के अंत तक तापमान को सामान्य स्तर पर ले भी आती हैं, तो तब तक कुछ पारिस्थितिक तंत्र जीवित नहीं रहेंगे. धरती से कुछ जीव विलुप्त हो चुके होंगे. विशेषज्ञों का कहना है कि मीथेन के उत्सर्जन में कटौती करने से बढ़ते तापमान को रोकने में काफी मदद मिल सकती है. इसकी वजह यह है कि छोटी अवधि में इसका काफी ज्यादा असर देखने को मिलता है.
पिछले साल संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की एक रिपोर्ट में पाया गया कि इस दशक में मीथेन उत्सर्जन को लगभग आधा करने से 2040 तक धरती 0.3 डिग्री सेल्सियस कम गर्म होगी. यूएनईपी की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने कहा, "मीथेन के उत्सर्जन में तुरंत और तेजी से कटौती करना, मौजूदा समय में उपलब्ध सबसे बेहतर रणनीतियों में से एक है.”
कहां से आता है मीथेन?
अमेरिकी सरकार के नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा अप्रैल में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर मीथेन से होने वाला प्रदूषण 2021 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. चीन में वेस्टलेक यूनिवर्सिटी के वायुमंडलीय वैज्ञानिक युज़ोंग झांग कहते हैं, "अगर यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने की हमारी क्षमता के लिए गंभीर चुनौती साबित होगी. यहां तक कि CO2 के उत्सर्जन में कमी होने का भी कोई फायदा नजर नहीं आएगा.”
मीथेन का कुछ हिस्सा प्राकृतिक स्रोतों से आता है, लेकिन इंसानों ने भी इसके उत्सर्जन के तीन मजबूत स्रोत तैयार किए हैं. मानवीय स्तर पर मीथेन उत्सर्जन का लगभग 40 फीसदी हिस्सा खेतों से आता है, जहां मवेशी और भेड़ जैसे जानवर भोजन को पचाते समय भारी मात्रा में गैस छोड़ते हैं. वहीं, 20 फीसदी हिस्सा कचरे के ढेर से निकलता है, क्योंकि यहां बैक्टीरिया बिना ऑक्सीजन के कार्बनिक पदार्थों को विघटित करते हैं. सिर्फ एक तिहाई से अधिक हिस्सा जीवाश्म ईंधन का भंडारण करने वाली जगहों से आता है.
मीथेन जीवाश्म गैस में मुख्य घटक है, जिसे प्राकृतिक गैस के रूप में भी जाना जाता है. यह तब निकलता है, जब जीवाश्म ईंधन को जमीन से निकाला जाता है, उसे इस्तेमाल के लायक बनाया जाता है, उसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता है या स्टोर किया जाता है. पूरे अमेरिका में मीथेन गैस के उत्सर्जन का दस्तावेज बनाने वाले समूह एनवायर्नमेंटल डिफेंस फंड से जुड़ी डागमार ड्रोग्समा कहती हैं, "यह पूरी तरह से हासिल किया जा सकने वाला लक्ष्य है. समाधान बेहद सस्ते हैं. यहां तक कि व्यावसायिक दृष्टिकोण से भी ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है.”
तेल और गैस भंडारण वाली जगहों से मीथेन लीक कैसे होता है?
तेल और गैस भंडारण वाली जगहों से मीथेन को वायुमंडल में तीन तरीकों से छोड़ा जाता है. सबसे पहला होता है सामान्य तौर पर होने वाला लीक. यह ढीले या जंग लगे उपकरण की वजह से हो सकता है. इसके बाद ‘बाहर निकालने (वेंटिंग)' जैसे काम. इसमें मीथेन को जानबूझकर वातावरण में छोड़ दिया जाता है. यह अक्सर किसी पाइप में दबाव को कम करने के लिए किया जाता है. जैसे, रखरखाव के दौरान. हालांकि, ऐसा काफी कम ही होता है.
तीसरा स्रोत है फ्लेयरिंग. इस दौरान कंपनियां वेंट से निकलने वाले मीथेन को जला देती हैं. जलती हुई जीवाश्म गैस मीथेन को CO2 में बदल देती है, जिसका धरती पर लंबे समय तक असर रहता है, लेकिन छोटी समयावधि के लिए यह कम हानिकारक है. हालांकि, यह अक्सर इतने खराब तरीके से जलाया जाता है कि कच्चा मीथेन वातावरण में बच जाता है.
2021 में सीएटीएफ ने पूरे यूरोप में तेल और गैस की 250 साइटों में से 180 में मीथेन उत्सर्जन का दस्तावेज बनाया है. फरवरी में उत्तरी इटली में मौजूद गैस भंडारण की दो साइटों पर विजिट के दौरान डीडब्ल्यू की टीम ट्यूरिटो के साथ गई थी, क्योंकि उन्होंने पाया था कि एक सुबह तीन साइटों से मीथेन लीक हो रहा था. यह लीक उपकरण के अलग-अलग हिस्सों से हो रहा था जो आकार में छोटे वाल्व से लेकर लंबे वेंट तक थे.
ट्यूरिटो ने कहा, "लीक वाली कुछ जगहों को बहुत ही आसानी से ठीक किया जा सकता था. हमें एक वाल्व दिखा था जिसे बेहद आसानी से टाइट किया जा सकता था. वहीं, कुछ अन्य जगहों को ठीक करना थोड़ा मेहनत का काम हो सकता था.” निजी गैस कंपनी स्नैम इस साइट का संचालन करती है. यह कंपनी इटली की ऊर्जा की दिग्गज कंपनी ईएनआई की सहायक कंपनी हुआ करती थी. जब हमने इस मामले पर स्नैम की प्रतिक्रिया जाननी चाही, तो हमें कोई जवाब नहीं मिला.
लीक को कैसे ढूंढा जा सकता है?
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईइए) का अनुमान है कि दुनिया भर में ऊर्जा क्षेत्र (कोयला, तेल, गैस और बायोमास) से मीथेन का जितना उत्सर्जन होता है वह देशों की ओर से दी जाने वाली आधिकारिक रिपोर्ट की तुलना में 70 फीसदी अधिक है. मीथेन खोजने वाले विशेष कैमरों से लैस लोग और उपग्रहों का इस्तेमाल करने वाले वैज्ञानिक मीथेन के उन बादलों की तलाश कर रहे हैं जिनके बारे में कंपनियां और सरकार जानकारी नहीं देती हैं.
फरवरी में साइंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने 2019 और 2020 के बीच, उपग्रह से मिली मीथेन के उत्सर्जन वाली सैकड़ों तस्वीरों का विश्लेषण किया. इस विश्लेषण के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि उद्योग से निकलने वाली 10 फीसदी मीथेन बड़ी मात्रा में उत्सर्जन के दौरान निकलती है. हालांकि, ऐसा काफी कम होता है. साथ ही, कभी-कभी साइट पर जाने के कारण इंफ्रारेड कैमरे की मदद से इनके बारे में पता लगाना मुश्किल होता है.
फ्रेंच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च के जलवायु वैज्ञानिक और अध्ययन के प्रमुख लेखक थॉमस लावॉक्स ने कहा, "हम साइट पर छोटे-छोटे खराब उपकरण देख सकते हैं, लेकिन उत्सर्जन की बड़ी वजहों को नहीं देख सकते. जानबूझकर छोड़ा गया मीथेन का बड़ा हिस्सा, एक हजार छोटे लीक के बराबर होता है.”
मीथेन उत्सर्जन में कैसे कटौती कर सकते हैं?
आईइए के अनुसार, जीवाश्म ईंधन कंपनियां पहले से मौजूद तकनीकों का इस्तेमाल करके मीथेन उत्सर्जन को 75 फीसदी तक कम कर सकती हैं. इसमें लीक का पता लगाने और उसे ठीक करने के लिए नियमित जांच के साथ-साथ नियमित फ़्लेयरिंग और वेंटिंग जैसे कामों पर पाबंदी शामिल है. कंपनियां कंप्रेशर मशीनों का इस्तेमाल करके गैस को कैप्चर कर सकती हैं और आपातकालीन समय में मरम्मत के काम के लिए उसे जला सकती हैं.
यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद गैस की कीमतों में वृद्धि होने की वजह से विशेषज्ञों को उम्मीद है कि कंपनियों के लिए मीथेन के उत्सर्जन में कटौती की लागत शून्य हो जाएगी. जो कंपनियां फिलहाल गैस को बर्बाद करती हैं, वे उद्योग में इस्तेमाल के लिए इसे बेच सकती हैं. ट्यूरिटो ने कहा, "जब आप गैस बाहर वायुमंडल में छोड़ते हैं, तो आप बहुत ज्यादा गैस का नुकसान कर रहे होते हैं. ये बहुत ही ज्यादा पैसे के बराबर है.”
कुछ सरकारें उद्योगों को नियंत्रित करने के लिए कदम उठा रही हैं. नवंबर 2021 में, कॉप26 जलवायु शिखर सम्मेलन में 100 से अधिक देशों ने 2030 तक उत्सर्जन में 2020 के स्तर से 30 फीसदी की कटौती करने का संकल्प लिया. यूरोपीय संघ ने मीथेन उत्सर्जन को मापने और रिपोर्ट करने के साथ-साथ लीक की पहचान करने और ठीक करने के लिए नए नियम बनाने की योजना बनाई है. इसमें वेंटिंग और फ्लेयरिंग पर प्रतिबंध लगाने का भी प्रस्ताव है.
हालांकि, दूसरे देशों से आयात किए जाने वाले ईंधन को लेकर कोई विचार नहीं करने की वजह से इन योजनाओं की आलोचना शुरू हो गई है. सीएटीएफ जैसे समूह आयात के लिए एक मानक लागू करने की मांग कर रहे हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि विदेशों में निकाला गया तेल और गैस उन जगहों और पाइपलाइनों से आता है जो मीथेन के लीक को रोक रहे हैं.