कांवड़ यात्रा: यात्रा से पहले ही विवादों की शुरुआत
८ जुलाई २०२५
यूपी के मुजफ्फरनगर में कुछ संगठनों के लोग जबरन दुकानदानों की पहचान कर रहे हैं और आरोप हैं कि इसके लिए उनके कपड़े तक उतारे जा रहे हैं. लेकिन सवाल है कि इस जांच का अधिकार इन संगठनों को किसने दिया है?
आगामी 11 जुलाई से देश के तमाम हिस्सों में कांवड़ यात्रा शुरू होने वाली है लेकिन यात्रा शुरू होने से पहले विवाद शुरू हो गए हैं. यह यात्रा सावन के महीने में होती है जब दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम हिंदू तीर्थयात्री गंगाजल लेने के लिए पैदल चलकर उत्तराखंड जाते हैं और फिर वहां से गंगाजल लाकर शिव मंदिरों में चढ़ाते हैं. देश के अन्य हिस्सों में भी पवित्र नदियों के जल इसी तरह कांवड़ में भरकर लाए जाते हैं और शिवालयों में चढ़ाए जाते हैं.
सरकार ने क्या निर्देश दिए हैं
यूपी और उत्तराखंड सरकारों ने निर्देश जारी किए हैं कि कांवड़ मार्गों पर खुले में मांसाहारी भोजन की बिक्री पर सख्त रोक रहेगी. इसके अलावा सभी विक्रेता अपने नाम, पते और मोबाइल नंबर स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करेंगे. निर्देश के मुताबिक, जुलूस के मार्गों पर प्रतिबंधित जानवरों का प्रवेश रोका जाएगा और खाद्य वस्तुओं की कीमतें तय की जाएंगी ताकि श्रद्धालुओं से मनमानी वसूली न हो.
दुकानों के सामने नेम प्लेट लगाने को लेकर पिछले साल भी आदेश जारी हुआ था और सरकार के इस फैसले की सख्त आलोचना हुई थी. यहां तक कि मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था और सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए उस फैसले पर तत्काल रोक लगा दी थी और ऐसे निर्देश जारी करने वाली राज्य सरकारों को नोटिस जारी किए थे. लेकिन इस बार फिर यात्रा शुरू होने से पहले ये निर्देश जारी कर दिए गए हैं.
तो क्या कला, साहित्य और संगीत भी हिन्दू-मुस्लिम में बंट गए हैं?
कांवड़ यात्रा को सुचारू संपन्न कराने के लिए सरकार और प्रशासन पूरी तैयारी कर रहे हैं लेकिन दुकानदारों की पहचान कुछ संगठनों के लोग भी कर रहे हैं जिनकी वजह से विवाद हो रहा है. ताजा घटनाक्रम के तहत यूपी के मुजफ्फरनगर जिले में कांवड़ मार्ग पर कुछ दुकानदारों की पहचान के सिलसिले में एक संगठन के लोगों ने कुछ दुकानदारों के कपड़े तक उतरवा लिए जिसे लेकर काफी हंगामा हुआ.
कौन लोग कर रहे हैं अतिरिक्त जांच
कांवड़ मार्ग पर मुजफ्फरनगर जिले का भी बड़ा हिस्सा पड़ता है. यहां स्वामी यशवीर नाम के एक महंत के समर्थकों ने पिछले दिनों एक अभियान चलाया जिसमें दुकानदारों की पहचान की जा रही थी. इसी के तहत दिल्ली-देहरादून नेशनल हाईवे पर स्थित एक ढाबे पर उनकी टीम ने कर्मचारियों से आधार कार्ड मांगे. आरोप हैं कि ढाबे के मालिक के मुस्लिम समुदाय से होने की वजह से वहां के एक कर्मचारी को जबरन कमरे में ले जाकर उसका पैंट उतारने की कोशिश की गई.
स्वामी यशवीर की टीम जब दुकानदारों और वहां काम करने वालों की तलाशी का अभियान चला रही थी उस वक्त कुछ स्थानीय पत्रकार भी वहां मौजूद थे. योगेश त्यागी भी उन पत्रकारों में से एक हैं. योगेश त्यागी घटना के बारे में बताते हैं, "जिस ढाबे पर यह घटना हुई है, वह तो एक शर्मा जी का है लेकिन उन्होंने उसे चलाने के लिए मैनेजर नियुक्त कर रखा है. पहले मैनेजर कोई मुस्लिम थे लेकिन इस वक्त हिन्दू ही मैनेजर हैं. स्वामी यशवीर के लोग जब काम करने वालों के पहचान पत्र मांग रहे थे तो एक व्यक्ति के पास पहचान पत्र नहीं था. ये लोग उसे मारते हुए कमरे की ओर ले गए और पैंट उतारने की कोशिश करने लगे. लेकिन तब तक वहां मौजूद पत्रकारों ने इसका विरोध किया और फिर वो व्यक्ति वहां से भाग निकला.”
जिस व्यक्ति के साथ ये घटना हुई उसने यशवीर के लोगों से अपना नाम गोपाल बताया था लेकिन उसका वास्तविक नाम तजम्मुल है. बाद में तजम्मुल ने पत्रकारों को बताया कि उसने डर के मारे अपना नाम गोपाल बता दिया था.
दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई
इस घटना के बाद काफी हंगामा हुआ और मामला बढ़ने पर पुलिस ने कुछ लोगों को नोटिस भी जारी किए, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. कार्रवाई के बारे में मुजफ्फरनगर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से बात करने की कोशिश की गई, लेकिन बात हो नहीं पाई.
उधर, स्वामी यशवीर ने कुछ टीवी चैनलों के साथ बातचीत में किसी के कपड़े उतारने की बात से तो इनकार किया है लेकिन अपने साथियों द्वारा दुकानदारों की पहचान करने और इसके लिए अभियान चलाने की बात न सिर्फ स्वीकार की है बल्कि उसका समर्थन भी किया है. उन्होंने कहा, "ढाबे पर काम कर रहे व्यक्ति ने अपना नाम गोपाल बताया लेकिन हमारे लोगों ने जब इसकी पड़ताल की तो पता चला कि उसका नाम तजम्मुल है और वो पास के ही गांव का रहना वाला है.”
नोटिस जारी करने के मामले में स्वामी यशवीर ने पुलिस को चेतावनी भी दी है कि यदि उनके समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई होगी तो वो इसके खिलाफ आंदोलन करेंगे.
पुलिस और प्रशासन पर सवाल
लेकिन सवाल ये उठ रहे हैं कि आखिर सरकार के किसी नियम या आदेश को लागू कराने की जिम्मेदारी किसी निजी संगठन के लोग या फिर उनके कार्यकर्ता कैसे ले रहे हैं और पुलिस खामोश क्यों है?
डीडब्ल्यू से बातचीत में समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व सांसद एसटी हसन कहते हैं, "शासन ने दुकानदारों को नेम प्लेट लगाने के आदेश दिए हैं. इस मामले में किसी को कोई आपत्ति नहीं है लेकिन इसका पालन तो प्रशासनिक अधिकारी कराएंगे. इन लोगों को ये अधिकार किसने दिया है कि वो ढाबों पर काम करने वालों की चेकिंग करें. जिस तरह से लोगों का धर्म जानने के लिए ढाबे के कर्मचारियों के कपड़े उतरवाकर चेकिंग की गई, वो तो आतंकियों जैसा सलूक है. पहलगाम में भी आतंकियों ने ऐसा ही कृत्य किया था. चेकिंग का काम सिर्फ प्रशासन का है, किसी और को नहीं.”
उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा के दौरान खानपान और दुकानदारों की पहचान को लेकर यूपी में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने पिछले साल कई कड़े फैसले लिए थे ताकि कांवड़ यात्रा मार्गों पर साफ-सफाई, श्रद्धालुओं की आस्था की सुरक्षा और खाद्य मिलावट पर रोक लग सके. इस साल भी कांवड़ यात्रा से पहले ये फैसले लिए गए हैं.
पिछले साल मुख्यमंत्री कार्यालय से जारी आदेश में कहा गया था कि पूरे उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा मार्गों पर खाने-पीने की चीजें बेचने वाली सभी दुकानों पर नेम प्लेट लगाना अनिवार्य होगा. हर दुकानदार को अपने नाम, पते और मोबाइल नंबर बताने होंगे. बाद में उत्तराखंड और मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकारों ने भी ऐसे निर्देश जारी किए.
लेकिन सरकार के इस आदेश की काफी आलोचना हुई और इसे सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई. 22 जुलाई 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दुकानदार केवल अपने भोजनालयों में परोसे जा रहे भोजन की किस्म का ही प्रदर्शन कर सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश की सरकारों को नोटिस जारी किया और पूछा कि आखिर दुकानदारों की व्यक्तिगत जानकारियां सार्वजनिक करना क्यों जरूरी है. कोर्ट ने इसे निजता के अधिकार से जोड़ते हुए गंभीर चिंता भी जताई.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम रोक के दो महीने बाद ही, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 24 सितंबर 2024 को एक और आदेश जारी कर दिया. इस बार राज्य भर के सभी रेस्तरां और भोजनालयों के लिए मालिकों, प्रबंधकों और कर्मचारियों के नाम-पते अनिवार्य रूप से प्रदर्शित करना जरूरी कर दिया गया. साथ ही सीसीटीवी अनिवार्य कर दिए गए. इसके अलावा सभी कर्मचारियों का पुलिस वेरिफिकेशन अभियान चलाया गया. अब 2025 में कावंड़ यात्रा से पहले फिर निर्देश जारी किए गए हैं.
कांवड़ यात्रा 'नेम प्लेट' विवाद पर कांग्रेस सांसद इमरान मसूद कहते हैं कि यह सब राजनीतिक मकसद से किया जा रहा है और देश की साझा संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश की जा रही है. उनका कहना है, "यह लोग साझा संस्कृति और साझी विरासत को नष्ट करना चाहते हैं. कांवड़ मार्ग पर कांवड़ यात्रियों की सेवा में मुस्लिम समाज के लोग भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं लेकिन कुछ लोग इस सौहार्द को नष्ट करने पर तुले हैं.”
कांवड़ यात्रा के दौरान सांप्रदायिक सौहार्द की बात स्थानीय लोग भी करते हैं लेकिन इस बात पर उन्हें भी आपत्ति है कि आखिर नाम छिपाने की क्या जरूरत है. मेरठ के रहने वाले सुशील कुमार इसका जवाब देते हैं, "इस पूरी कवायद का मकसद ही यही है कि कांवड़ मार्ग से मुसलमानों की दुकानों और मुसलमानों को हटाया जाए. लेकिन कुछ लोग रोजी-रोटी खत्म होने के डर से और कुछ कांवड़ियों के डर से दुकानों के नाम हिन्दू नामों पर रख लेते हैं. यह सब कुछ पिछले कुछ साल से हो रहा है. इसके पहले न तो कांवड़ियों को कोई दिक्कत थी और न ही किसी संगठन को. जहां तक नॉनवेज की दुकानों की बात है तो नॉनवेज की दुकानें वैसे भी यहां सावन में बंद रहती हैं और जिन्हें नहीं खाना है, वो वहां वैसे भी नहीं जाएंगे.”