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जलवायु आपदा से निपटने के लिए ब्राजील के आदिवासियों का तरीका

हॉली यंग अनुवाद: सोनम मिश्रा
२० नवम्बर २०२५

दुनिया भर के आदिवासी जंगलों की रक्षा में एक अहम भूमिका निभाते हैं. लेकिन जब बात जलवायु नीति की आती है, तो वह अक्सर नजरअंदाज कर दिए जाते हैं. ऐसे में COP30 से उन्हें उम्मीद है कि दुनिया उनकी चिंताओं को भी गंभीरता से लेगी.

कॉप30 के मेजबान देश ब्राजील ने पारंपरिक आदिवासी ज्ञान को जलवायु नीतियों में शामिल करने की प्रतिबद्धता दोहराई है
कॉप30 के मेजबान देश ब्राजील ने पारंपरिक आदिवासी ज्ञान को जलवायु नीतियों में शामिल करने की प्रतिबद्धता दोहराई हैतस्वीर: Fernando Llano/AP Photo/dpa/picture alliance

अंतरराष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन के आयोजकों ने इस साल पुर्तगाली शब्द "मुचिराओ” को कॉप30 का आधिकारिक नारा चुना है. मुचिराओ यानी "सामूहिक प्रयास,” जो कि आदिवासी परंपरा में सबसे अहम माना जाता है. यह शब्द उतना ही खास है, जितनी खास यह जगह है, यह सम्मेलन आयोजित हुआ है.

इस साल जहां 10 से 21 नबंवर के बीच अमेजन के शहर बेलेम में कॉप30 जारी है. इसके जरिये आयोजक दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि इस क्षेत्र में रहने वाले 17 लाख आदिवासी कितनी शानदार तरीके से दुनिया के सबसे बड़े वर्षावन की देखभाल करते हैं.

यह सम्मेलन इसलिए भी अलग है क्योंकि इससे पहले हुई जलवायु बैठकों में आदिवासी समुदाय खुद को अकसर अनसुना महसूस करते आया था. हालांकि, यह समुदाय दुनिया की जैव विविधता के एक बड़े हिस्से को सुरक्षित रखने का काम करता है.

आदिवासी समुदाय की मांग

पूरी दुनिया के 90 देशों में कुल 5,000 से भी अधिक आदिवासी समुदाय रहते हैं. हालांकि, यह समुदाय दुनिया की कुल आबादी का केवल छह फीसदी ही है. लेकिन यह प्रकृति और जलवायु संरक्षण में सबसे अहम भूमिका निभाता है. अपनी जमीन का संरक्षक होने के नाते उनकी सबसे बड़ी मांग है कि उनकी जमीन के इस्तेमाल और प्रबंधन के लिए उनके पास अधिक अधिकार हो और उनकी आवाज सुनी जाए. चूंकि, उनका क्षेत्र लगातार तेल-गैस की खुदाई, खनन और जंगल की कटाई से जूझ रहा है.

कई हफ्तों तक अमेजन नदी में सफर करके ग्वातेमाला के किच आदिवासी समुदाय की लूसिआए स्चू दुनिया के नेताओं को यह संदेश देने पहुंची, "हम एक ऐसा समझौता चाहते हैं, जिसके तहत आदिवासी इलाकों को अब और कुर्बान न किया जाए.”

कई आदिवासी समुदायों के लिए जमीन का अधिकार अभी भी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. 2015 से 2020 के बीच दुनिया भर में लगभग 10 करोड़ हेक्टेयर जमीन को आदिवासी या अफ्रीकी मूल के और अन्य स्थानीय समुदायों के अधिकार के रूप में कानूनी मान्यता मिली है. लेकिन अभी भी 1.4 अरब हेक्टेयर जमीन पर फैसला होना बाकी है. ब्राजीलियाई अमेजन के इंडिजिनस संगठनों के समूह के प्रमुख सदस्य अल्सेबियास सापारा ने कहा, "हमें उम्मीद है कि कॉप30 आदिवासी क्षेत्रों के सीमांकन (डिमार्केशन) और सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता को मजबूत करेगा और उन्हें संरक्षण और जलवायु संतुलन के लिए बेहद जरूरी क्षेत्र के रूप में मान्यता देगा.”

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सापारा ने कहा कि वह यह भी मांग करेंगे कि आदिवासी समुदायों द्वारा चलाए जाने वाले प्रोजेक्टों को फंड मिले, ताकि वह स्वतंत्र और टिकाऊ तरीके से  अपनी जमीन का प्रबंधन कर सके. साथ ही, उनका मानना है कि पारंपरिक आदिवासी ज्ञान को जलवायु नीतियों में शामिल किया जाना चाहिए. रेनफॉरेस्ट फाउंडेशन यूएस की प्रोग्राम डायरेक्टर, क्रिस्टीन हेल्वॉरसन ने कहा कि आदिवासी समुदाय यह भी सुनिश्चित करना चाहता है कि कोई भी हरित ऊर्जा परियोजना, जो उनकी जमीन या आजीविका पर असर डाल सकता है, उसे केवल तभी शुरू किया जा सके, जब उनसे सलाह ली गई हो और उस परियोजना के लिए उनकी सहमति हो.

उन्होंने यह भी बताया कि आदिवासी लोग अधिक सुरक्षा की भी मांग कर रहे हैं. चूंकि, अपनी जमीन की रक्षा करने के लिए उन्हें कई लोगों की धमकियों और हिंसा का भी सामना करना पड़ता है. साल 2024 में, दुनिया भर में जितने भी पर्यावरण रक्षकों की हत्या हुई थी या जो लापता हुए थे, उनमें से लगभग एक-तिहाई आदिवासी ही थे.

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क्या जलवायु संरक्षण में कर सकते हैं वह मदद?

ब्राजील में आदिवासी मामलों की मंत्री, सोनेआ गवाजाजारा ने एएफपी को बताया, "आदिवासियों के बिना मानवता का भविष्य संभव ही नहीं है.” उन्होंने आगे बताया कि आदिवासी समुदाय अपने क्षेत्रों में स्वच्छ पानी और जैव विविधता की रक्षा में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. उनको दुनिया भर में जंगल संरक्षकों के रूप में देखा जाता है. चूंकि, वह दुनिया की लगभग एक-चौथाई जमीन और बचे हुए वनों के लगभग आधे हिस्से का संरक्षण करते हैं.

जंगल जैव विविधता से भरपूर होने के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण कार्बन सिंक भी हैं. जो कि लगभग 861 गीगाटन कार्बन संग्रहित रखते हैं. अनुमान लगाया जाए तो यह लगभग 100 साल के जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन के बराबर है. हालांकि, पहले जंगल दुनिया के कुल उत्सर्जन का लगभग पांचवां हिस्सा सोख लेते थे. लेकिन अब वह मानव गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर खतरे से जूझ रहे हैं. पिछले साल, जंगलों में लगी भयानक आग की वजह से उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) जंगलों का बहुत बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया.

साथ ही, कई विश्वसनीय शोध भी लगातार दावा कर रहे हैं कि आदिवासी समुदायों को उनकी जमीन का अधिकार देना, जलवायु परिवर्तन से निपटने में काफी मददगार साबित हो सकता है.

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गवाजाजारा ने कॉप सम्मेलन से पहले दिए एक लिखित बयान में कहा, "सबूत हमारे सामने है. जहां आदिवासियों के जमीनी अधिकारों का सम्मान किया जाता है, वहां जंगलों की कटाई कम होती है. जबकि जहां इन अधिकारों को नकारा जाता है, वहां विनाश अधिक होता है.”

साथ ही, इन समुदायों को तेल की खुदाई या खनन जैसे विकास प्रोजेक्ट रोकने का अधिकार देना एक किफायती तरीका भी साबित हुआ है. 2023 में हुए गए एक अध्ययन के मुताबिक, ब्राजील के अमेजन क्षेत्र में आदिवासी लोगों के क्षेत्रीय अधिकार को सुनिश्चित करने से जंगलों की कटाई लगभग 66 फीसदी तक कम हो सकती है. जबकि एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि यदि अमेजन में आदिवासी सुरक्षित क्षेत्र न होते, तो कार्बन उत्सर्जन 45 फीसदी अधिक बढ़ सकता था.

कॉप30 से आदिवासी समुदाय को क्या हासिल हो सकता है?

आधिकारिक रूप से इस सम्मेलन के शुरू होने से पहले ही कई महत्वपूर्ण कदम उठाये जा चुके हैं. जिसके तहत कई देशों ने वादा किया है कि वह 2030 तक लगभग आठ करोड़ हेक्टेयर जमीन पर रहने वाले आदिवासी, एफ्रो-वंशज और अन्य समुदायों के जमीन के अधिकार को आधिकारिक मान्यता देने की दिशा में कदम उठाएंगे. आदिवासी नेताओं ने इस कदम का स्वागत किया है, लेकिन उन्हें आशंका है कि जमीन पर इसे सही तरीके से लागू करना मुश्किल हो सकता है.

इसके अलावा, ट्रॉपिकल फॉरेस्ट्स फॉरएवर फैसिलिटी (टीएफएफएफ) नाम का एक वैश्विक संरक्षण फंड भी शुरू किया गया है. जिसके तहत 125 अरब डॉलर का फंड प्रस्तावित किया गया है. यह फंड देशों को इस आधार पर पैसा देगा कि वह अपने जंगलों की कितनी अच्छी तरह रक्षा करते हैं.

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इस फंड में यह भी वादा किया है कि उसकी कुल राशि का 20 फीसदी हिस्सा आदिवासी समुदायों के लिए दिया जाएगा. हालांकि यह एक काफी बड़ा और सकारात्मक कदम है. लेकिन हेल्वॉरसन का कहना है कि इसकी  सफलता के लिए टीएफएफएफ को यह सुनिश्चित करना होगा कि आदिवासी समुदायों को जरूरी संसाधनों तक सीधी पहुंच मिले. उन्होंने कहा कि अगर बेलेम में किए गए वादे जैसे जमीन की सीमांकन प्रक्रिया (डिमार्केशन), सीधे फंडिंग देना और जमीन के अधिकार को वैश्विक मान्यता देना पूरी तरह लागू हो जाते हैं, तो "कॉप30 जलवायु संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक पड़ाव साबित हो सकता है.”

क्या असल मायने में कॉप30 आदिवासी समुदाय पर ध्यान दे रहा है?

मंत्री गवाजाजारा ने डीडब्ल्यू को बताया कि इस साल कॉप में आदिवासियों की भागीदारी अब तक की सबसे ज्यादा रही है. साथ ही, निर्णय लेने वाली बैठकों में भी उनकी मौजूदगी बढ़ी है. हालांकि, उनमें से केवल कुछ ही लोगों को उस स्तर तक पहुंच मिली है, जहां मुख्य बातचीत होती है. इंडिजिनस क्लाइमेट एक्शन संगठन ने कहा, "केवल प्रवेश का पास मिल जाने से ही यह सुनिश्चित नहीं हो जाता है कि ब्राजील के आदिवासी प्रतिनिधियों की आवाज और विचार सुने ही जाएंगे.”

अल्सेबियास सापारा के अनुसार, हालांकि कॉप30 में आदिवासी मुद्दों की ओर दृश्यता बढ़ी है, लेकिन "हमारी उम्मीद के मुकाबले अब भी यह पर्याप्त नहीं है.”

इस हफ्ते बेलेम में जलवायु वार्ताओं के दौरान आदिवासी प्रदर्शनकारियों ने दो बार हस्तक्षेप किया, ताकि उनकी आवाज भी सुनी जाए. शुक्रवार को एक प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले मुंदुरुकू आदिवासी समूह के नेताओं ने ब्राजील सरकार के सामने कई मांगें रखीं, जिसमें वन कटाई से जुड़े कार्बन क्रेडिट्स को खारिज करने की मांग भी शामिल थी.

कार्बन क्रेडिट्स की आलोचना इसलिए हो रही है क्योंकि वह अक्सर उत्सर्जन में कटौती करने में विफल साबित हुए हैं. इंडिजिनस क्लाइमेट एक्शन ने एक बयान में कहा कि कुछ लोग महसूस कर रहे हैं, "ब्राजील सरकार उनकी मांगें नहीं सुन रही और न ही उनकी आवाज को शामिल नहीं कर रही. जबकि वह इस कॉप को ‘इंडिजिनस कॉप' कह रहे हैं.”

फ्रांस के आईईएसईजी स्कूल ऑफ मैनेजमेंट की अंतरराष्ट्रीय वार्ता विशेषज्ञ प्रोफेसर हेले वॉकर कहती हैं कि लगातार बढ़ रहे वैश्विक उत्सर्जन और तापमान के बीच मुचिराओ का विचार जमीन पर जलवायु कार्रवाई को लागू करने की दिशा में जरूरी बदलाव ला सकता है. यानी जब सब एक साथ परिवर्तन की दिशा में कदम उठाएंगे, तो जलवायु संकट से उभरा जा सकता है.

वॉकर ने कहा, "अगर मुचिराओ का यह विचार दुनिया भर में फैल जाता है, तो ब्राजील के आदिवासी समुदायों की ओर से यह दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण उपहार साबित हो सकती है. जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में यह हमें हमारी मंजिल के काफी करीब ले जा सकता है.”

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