भीड़ वाली जेलों में कोरोना का खौफ
१८ मई २०२०नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के प्रिजन स्टैटिस्क्स, 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में कुल 1,339 जेल हैं और इन जेलों की क्षमता 3,96,223 कैदियों की हैं. लेकिन इनमें 2018 के अंत तक 4,66,084 कैदी बंद थे, जो कि क्षमता से 117 फीसदी अधिक है. मतलब यह कि कोरोना वायरस महामारी के बीच जहां सामाजिक दूरी पर जोर दिया जा रहा है, हैंड सैनिटाइजर और मास्क लगाने को कहा जा रहा है उसके विपरीत जेलों में संक्रमण को लेकर हालात चिंताजनक हैं.
कोरोना वायरस फैलने के पहले से ही भारतीय जेलों में स्वच्छता, संक्रमण और हिंसा मुद्दे रहे हैं. अब चीन से फैले कोविड-19 से जेल की हालत पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. राजस्थान की जयपुर जिला जेल और केंद्रीय कारागार में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. सबसे पहले जिला जेल में कोविड-19 के मामले सामने आए थे और अब सेंट्रल जेल में भी संक्रमण के पॉजिटिव केस सामने आए हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सोमवार 18 मई तक जयपुर जिला जेल और सेंट्रल जेल में कोरोना संक्रमितों की संख्या 166 हो गई है.
इनमें जिला जेल के 131 कैदी, जेल अधीक्षक समेत दो जेल कर्मचारी और सेंट्रल जेल के 30 कैदी समेत दो जेलकर्मी शामिल हैं. राजस्थान के पाली के सांसद पीपी चौधरी डीडब्ल्यू से कहते हैं कि जेलों की क्षमता कई गुना अधिक है और उनमें भीड़ कम करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 23 मार्च को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश को उच्चाधिकार प्राप्त समितियों के गठन करने का निर्देश दिया था, समिति को कोविड-19 के दौरान कैदियों को अंतरिम जमानत या पेरोल पर रिहा करने को लेकर फैसले लेने हैं.
राजस्थान की जेलों में बढ़ते मामले को लेकर चौधरी कहते हैं, "जेलों में भीड़ कम करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए थे और इसके लिए कैदियों को ट्रांसफर कर सकते थे. इससे जेलों में भीड़ कम हो जाती. इसके अलावा जब सुप्रीम कोर्ट ने 23 मार्च को दिशा निर्देश जारी कर दिया था और कैदियों के वर्ग को निर्धारित करने की जिम्मेदारी समिति के पास थी, इस समिति के पास पेरोल देने और जमानत पर फैसले का अधिकार है. तमाम बिंदुओं को देखकर समिति अपना फैसला ले सकती है."
23 मार्च को मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि कोरोना वायरस के संक्रमण का अंदेशा कम करने के लिए जेलों में भीड़ कम करने की पहल के तहत ही इन कैदियों को पेरोल पर रिहा किया जा रहा है. जेलों में कैदियों की भीड़ को देखते हुए वहां सामाजिक दूरी बनाए रखना संभव नहीं होगा और अगर जेल प्रशासन ने तत्काल ठोस कदम नहीं उठाए तो हालात भयावह हो सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने वायरस की गंभीरता को देखते हुए राज्यों से उन कैदियों को पेरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा करने के लिए विचार करने को कहा था जो अधिकतम 7 साल की सजा काट रहे हैं या फिर विचाराधीन कैदियों की रिहाई करने पर विचार करने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट के वकील शादान फरासत कहते हैं सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को दिशा निर्देश दिया था, ऐसे कैंदियों की रिहाई पर विचार करे, जो ऐसे अपराध के सिलसिले में जेल में हैं जिसमें अधिकतम सजा सात साल है, हालांकि यह आदेश नहीं था. फरासत कहते हैं, "मेरे हिसाब से ऐसे विचाराधीन कैदी जिन्हें उम्र कैद या फांसी की सजा नहीं होने वाली है, राज्य को उन्हें जमानत पर रिहा करने के बारे में विचार करना चाहिए. दूसरा यह कि जो सजायाफ्ता कैदी हैं उनके लिए भी पेरोल की सुविधा है. पेरोल के जरिए सजा काट रहे कैदी के लिए समाज में लौटने का मौका खुला रहता है. अधिकारियों को खास तौर पर ऐसे बंदियों को पेरोल देना चाहिए जो 60 साल की उम्र के ऊपर हैं या जिन्हें कोई गंभीर बीमारी पहले से है."
फरासत कहते हैं, अगर राज्य सरकार थोड़ी उदारता दिखाए तो जेलों में कैदियों की भीड़ कम हो सकती है. वे कहते हैं, "भारतीय जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या बहुत अधिक होती है. आक्रामक तौर पर काम करते हुए जेलों की आबादी घटाई जा सकती है. जेल की भीड़ कम करना इतना भी खतरनाक काम नहीं है." राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नालसा) के मुताबिक 42,000 से अधिक विचाराधीन कैदियों को रिहा किया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान जेलों से भीड़ कम करने के लिए 16 हजार से अधिक कैदियों को पेरोल पर भी रिहा किया गया है.
फरासत सुझाव के तौर पर कहते हैं कि अगर किसी को उम्रकैद की सजा हुई है और उस कैदी ने 10 साल की सजा काट ली है उसको भी पेरोल या फिर अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है. वे कहते हैं कि सरकारों को थोड़ा उदार होकर सोचना होगा. सांसद चौधरी कहते हैं, "अगर कोई जेल में आरोपी जा रहा था तो उसकी भी कोविड-19 के लिए जांच होनी चाहिए और रिपोर्ट आने के बाद ही आरोपी को जेल में भेजना चाहिए."
भारत ही नहीं दुनिया भर में जेल संक्रमण के हॉटस्पॉट के तौर पर उभर कर सामने आई है. सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश के बाद राज्य सरकार भी हरकत में आई है और विचाराधीन कैदियों को रिहा करने के लिए कदम भी उठा रही है.
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