कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन ने लोगों की इंटरनेट के ऊपर निर्भरता बहुत बढ़ा दी है. इस दौरान बच्चों का भी ऑनलाइन रहने का वक्त पहले के मुकाबले काफी बढ़ गया है.
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आम जीवन में बच्चों को सावधान रहने के लिए कई सारी चीजें सिखाई जाती हैं. उन्हें अनजान लोगों से बात ना करने को कहा जाता है या फिर किसी की बातों में ना आने को. पर फेसबुक पर अकाउंट बनाने से पहले या ऑनलाइन गेम्स खेलना सिखाते वक्त बच्चों को नहीं बताया जाता कि इंटरनेट पर क्या करना चाहिए और क्या नहीं. लॉकडाउन ने सभी बच्चों को इंटरनेट के इस्तेमाल पर मजबूर कर दिया है. इसके साथ ही उन्हें अनजान खतरों के सामने भी ला दिया है. जापान में पिछले दिनों साइबर बुलिंग के कारण हन्ना किमुरा की आत्महत्या चर्चा में रही है लेकिन सरकारें अब तक इसे पूरी तरह रोक पाने में विफल रही हैं.
पहले जो काम रोजमर्रा में किया जा सकता था उसके लिए इंटरनेट आज सबसे बड़ी जरूरत है. स्कूल बंद हैं और क्लास ऑनलाइन हो रहे हैं. बच्चों का पढ़ाई से लेकर दोस्तों से बातचीत तक सबका एक ही जरिया है, इंटरनेट. इंटरनेट पर जहां बड़े भी अकसर फ्रॉड और गलत जानकारी का शिकार हो जाते हैं, वहीं बच्चों पर कई खतरे मंडरा रहे होते हैं, जिनमें से एक बड़ा खतरा है ऑनलाइन बुलिंग यानी इंटरनेट के जरिए धमकी या उत्पीड़न का सामना. बच्चे जानकारी और बचाव के तरीकों के अभाव में ऐसे खतरों में आसानी से पड़ सकते हैं.
क्याहैसाइबरबुलिंग?
बेहद आम होती जा रही साइबर बुलिंग को सरल भाषा में समझाया जाए तो कहा जा सकता है कि अभद्र-अश्लील भाषा, चित्रों और धमकियों से इंटरनेट पर किसी को परेशान करना साइबर बुलिंग की श्रेणी में आता है. इसकी कई किस्म हो सकते हैं, जैसे कि किसी को ट्रोल करना, किसी दूसरे की पहचान का इस्तेमाल करना, किसी की निजी फोटो या बात को सार्वजनिक करना या फिर अश्लील फोटो या वीडियो भेजना. यानी किसी भी तरह से ऑनलाइन परेशान किए जाने को साइबर बुलिंग कहा जाता है.
जिस तरह ज्यादा से ज्यादा बच्चे सोशल मीडिया पर समय बिता रहे हैं,उससे साफ है कि फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर हो रही बातों का उनपर काफी असर पड़ रहा है. बच्चे दोस्तों से होने वाली बातचीत यूं भी अपने माता-पिता को नहीं बताते, फिर ऑनलाइन माध्यमों पर हो रही बातों को वे माता-पिता को बताएं, ऐसी उम्मीद कैसे की जाए?हाल ही में इंस्टाग्राम पर ‘बॉयज लॉकर रूम' नाम के एक ग्रुप में हुई आपत्तिजनक चैट के कुछ मैसेज वायरल हुए थे, जिसके बाद बच्चों के ऑनलाइन व्यवहार को लेकर काफी बहस हुई थी.
क्या हैं भारत में इंटरनेट पर पांच सबसे बड़े जोखिम
माइक्रोसॉफ्ट के एक नए शोध में सामने आया है कि अवांछित संपर्क, अवांछित सेक्सटिंग, नफरत की भाषा, ट्रोल करना और कठोर व्यवहार भारत में इंटरनेट के इस्तेमाल से जुड़े पांच सबसे बड़े जोखिम हैं. आइए इन्हें समझते हैं.
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कैसे कैसे जोखिम
अवांछित संपर्क, अवांछित सेक्सटिंग, नफरत की भाषा, ट्रोल करना और कठोर व्यवहार - इन्हें भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल करने से जुड़े पांच सबसे बड़े जोखिम बताया है माइक्रोसॉफ्ट द्वारा किए गए एक नए शोध में. इस शोध के लिए कंपनी के शोधकर्ताओं ने 13 साल से ले कर 74 साल तक के इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों से बातचीत की.
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कितनी आम हैं ऐसी घटनाएं
शोध में पता चला कि करीब 79 प्रतिशत लोगों को इंटरनेट पर इनमें से किसी एक जोखिम का सामना दो या उससे भी ज्यादा बार करना पड़ा है. लगभग 98 प्रतिशत लोगों को इन जोखिमों की वजह से किसी न किसी तरह की तकलीफ भी हुई. शायद यही कारण है कि 80 प्रतिशत लोगों ने यह चिंता जताई कि ये जोखिम फिर से उनके सामने आएंगे.
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क्या परिचित करते हैं तंग
रिसर्चरों को पता चला कि दोषी व्यक्ति से परिचय होने और उससे जोखिम के बढ़ने में पक्का संबंध है. शोध में भाग लेने वालों में से 45 प्रतिशत लोग ऐसे थे जो दोषी व्यक्ति से वास्तविक जीवन में मिले हैं. इसके विपरीत 55 प्रतिशत लोग दोषी व्यक्ति से कभी नहीं मिले थे.
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किसे है सबसे ज्यादा खतरा
युवा लड़कियों को लड़कों के मुकाबले ज्यादा जोखिम महसूस होता है. व्यस्क समूहों में मिलेनियल कहे जाने वाले लोग यानि वे युवा जिनका जन्म 1981 से ले कर 1996 के बीच हुआ था, सबसे ज्यादा जोखिम का सामना करते पाए गए हैं. कम से कम 80 प्रतिशत महिलाओं को लगता है कि ऐसे जोखिम एक बड़ी समस्या बन गए हैं. वहीं पुरुषों में ये आंकड़ा 77 प्रतिशत है.
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भारत में कितनी सभ्यता
इस मौके पर माइक्रोसॉफ्ट ने अपने डिजिटल सिविलिटी इंडेक्स का ताजा संस्करण भी जारी किया, जो कि इंटरनेट पर सभ्य व्यवहार का आंकलन करता है. भारत में इस सूचकांक में एक साल में 12 अंकों की वृद्धि दर्ज की गई है और अब ये 71 प्रतिशत पर है. सूचकांक पर जिस देश का स्कोर जितना ऊंचा होता है वहां इंटरनेट पर सभ्य व्यवहार में उतनी ही गिरावट हुई है.
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कौन से विषय सबसे ज्यादा जोखिम भरे
भारत में जिन विषयों पर असभ्य व्यवहार सबसे ज्यादा होता है, उनमे 40 प्रतिशत के स्कोर के साथ सबसे आगे है लैंगिक रूझान. इसके बाद आते हैं धर्म (39 प्रतिशत), राजनीति (37 प्रतिशत), शारीरिक दिखावट (31 प्रतिशत) और लैंगिक पहचान (29 प्रतिशत). इंटरनेट पर भी सबसे ज्यादा जोखिम सोशल मीडिया साइटों पर है.
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10 फीसदीबच्चेसाइबरबुलिंगकाशिकार
हाल ही में बाल सहायता संगठन चाइल्ड राइट्स एंड यू के दिल्ली में किए गए सर्वे में सामने आया कि 630 बच्चों में से 9.2 फीसदी ने अपने जीवन में कभी ना कभी साइबर बुलिंगा का अनुभव किया है. लेकिन उनमें से आधे बच्चों ने कभी इसके बारे में पेरेंट्स या किसी बड़े को नहीं बताया. इसी सर्वे में ये भी सामने आया कि बच्चे जितना ज्यादा वक्त ऑनलाइन बिताते हैं, उतना ही ज्यादा उनपर साइबर बुलिंग जैसी चीजों का खतरा होता है.
सर्वे में पाया गया कि 13 से 18 साल की उम्र के जो बच्चे दिन में तीन घंटे से ज्यादा इंटरनेट का इस्तेमाल करते थे, उनमें बुलिंग जैसी घटनाओं का सामना करने वालों की संख्या 22 फीसदी थी. वहीं चार घंटे इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों में यह संख्या 6 फीसदी से बढ़कर 28 फीसदी तक थी. इस स्टडी से एक और डराने वाला आंकड़ा निकल कर आया. सर्वे में शामिल बच्चों में 10 में से 4 लड़कों ने अपनी मॉर्फ्ड यानी बदली तस्वीर या वीडियो देखी. इनमें से आधे बच्चों ने कभी पुलिस में इस बात की शिकायत नहीं की.
खतरोंकेबारेबतानेकीजिम्मेदारीपैरेंट्सकी
बच्चों की साइबर बुलिंग जैसे मामलों पर काम करने वाली मनोवैज्ञानिक पलक उप्पल का कहना है कि आज बच्चे जिस तरह टेकेनोलॉजी से भरे माहौल में बड़े हो रहे हैं, वैसा माहौल उनके माता-पिता ने अपने बचपन में नहीं देखा. इसलिए ऑनलाइन सही आदतें क्या हैं, क्या शेयर करना चाहिए क्या नहीं, लोगों से क्या और कैसे बात करनी चाहिए, किन वेबसाइट्स पर जाना चाहिए और किन पर नहीं, पोस्ट करते वक्त सही भाषा का इस्तेमाल जैसे कई टॉपिक्स पर माता-पिता से बच्चों की बात नहीं होती.
पलक उप्पल का कहना है कि साईबर बुलिंग जैसे खतरों से बचाने के लिए माता-पिता का इंटरनेट की दुनिया को समझना बेहद जरूरी है क्योंकि ज्यादातर माता-पिता खुद सोशल मीडिया का उतना ज्यादा या उस तरह इस्तेमाल नहीं करते जैसे बच्चे करते हैं. इसलिए वे कई खतरों से वाकिफ भी नहीं होते. पलक का मानना है कि माता-पिता को इंटरनेट के इस्तेमाल पर कुछ नियम बनाने की जरूरत है, जैसे कि कितनी देर इंटरनेट पर रहें, कौनसी वेबसाइट इस्तेमाल करें, कौन सी नहीं, या किससे क्या बात करें. लेकिन ये जरूर ध्यान रखें कि बच्चों को उन नियमों के पीछे का कारण समझाएं. अगर आप उनके सोशल मीडिया अकाउंट पर नजर रखते हैं, तो ध्यान रखें कि इसके बारे में बच्चों को पता हो.
कोरोना का बच्चों पर हो रहा है ऐसा असर
कोरोना वायरस ने दुनिया भर को अपनी चपेट में ले लिया है. इसका असर बच्चों पर भी पड़ रहा है. कहीं वे मां बाप के साथ सड़कों पर हैं, वायरस के खतरे को झेल रहे हैं तो कहीं लॉकडाउन में स्कूल नहीं चलने की वजह से घरों में बंद हैं.
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स्कूल बंद
जर्मनी में पूरे देश के लिए लॉकडाउन नहीं है, लेकिन स्कूल, कॉलेज और किंडर गार्टन बंद हैं.
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खाली क्लास
स्कूल बंद हैं और क्लास खाली पड़े हैं. जर्मनी और बहुत से दूसरे देशों में ये नजारा आम है.
तस्वीर: picture-alliance/SvenSimon/F. Hoermann
घर पर पढ़ाई
स्कूल बंद है, बच्चे स्कूल नहीं जा सकते. लेकिन बच्चों को बहुत सा होमवर्क मिला है.
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कंप्यूटर पर पढ़ाई
जिन बच्चों के पास कंप्यूटर और इंटरनेट की सुविधा है वे अपना मन पढ़ाई कर या खेलकर लगा सकते हैं.
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मैट्रिक की परीक्षा
लॉकडाउन के बावजूद सेकंडरी की परीक्षाएं होंगी. स्कूली बच्चों को परीक्षा की तैयारी भी करनी पड़ रही है.
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व्यस्त रखने का टास्क
लॉकडाउन में माता पिता पर बच्चों को व्यस्त रखने की जिम्मेदारी भी है. आखिर बोरियत में वे तंग भी करने लगेंगे.
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वायरस से सुरक्षा
जहां बच्चे अपने मां बाप के साथ कुछ समय बाहर निकल सकते हैं, वहां वे भी मास्क पहने हैं.
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चीन में बच्चे
चीन में बच्चे खुली हवा में सांस लेने बाहर तो निकल रहे हैं, लेकिन वायरस से सुरक्षा का बंदोबस्त करके.
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कुछ के लिए बोरियत
घर में सारा समय बंद रहना बच्चों के लिए आसान नहीं. माता पिता उनके साथ बहुत तरह के घरेलू खेल खेल रहे हैं.
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प्लेग्राउंड भी बंद
कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए रिहायशी इलाकों के प्लेग्राउंड भी बंद हैं. बच्चे वहां भी नहीं जा सकते.
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कोरोना की परेशानी
जर्मनी में बच्चे घर के बाहर कोरोना के खिलाफ लिखकर अपने जज्बात बाहर निकाल रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Fassbender
होम ऑफिस
जिन मांओं को होम ऑफिस करना पड़ रहा है, उन्हें छोटे शिशुओं का भी ख्याल रखना होता है.
दक्षिण अफ्रीका में भी बच्चे लॉकडाउन के कारण घरों में बंद हैं. वहां कम से कम 17 अप्रैल तक कर्फ्यू है.
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टेबल फुटबॉल
इराक में भी बच्चे घर में ही कोई ना कोई खेल खेलकर अपनी बोरियत कम करने की कोशिश कर रहे हैं.
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रिफ्यूजी बच्चे
युद्ध से भागते बहुत से लोग रिप्यूजी कैंपों में रह रहे हैं. यहां ग्रीस के मोरिया कैंप में इस परिवार से हाथ से बनाए मास्क पहन रखे हैं.
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बुलीहोनेऔरकरनेदोनोंसेबचाएं
सोशल मीडिया के माहौल में बच्चे अकसर दूसरों से देखकर सीखते हैं. बहस और ट्रोलिंग आज हमारी जिंदगी का हिस्सा हैं. ऑनलाइन पर कई बिना पहचान के अकाउंट्स होने के कारण अभद्र और अश्लील भाषा का इस्तेमाल भी अकसर देखने को मिलता है. क्योंकि ज्यादातर मामलों में माता-पिता के पास इसपर नजर रखने का कोई साधन नहीं होता. इसलिए बच्चों को बुलिंग से बचाने के साथ-साथ दूसरों को बुली करने जैसी गलत आदतों से बचाना भी जरूरी है.
पलक उप्पल का मानना है कि ये पहचानने के लिए कि बच्चा बुली हो रहा है या किसी को बुली कर रहा है, पेरेंट्स को व्यवहार में बदलाव के लक्षण पहचानने होंगे. साथ ही ये भी जरूरी है कि माता-पिता बच्चों से साइबर बुलिंग के कानून के बारे में बात करें और उन्हें बताएं की इसके क्या परिणाम को सकते हैं. इंटरनेट जिंदगी का अहम हिस्सा बनता जा रहा है और इसका इस्तेमाल हर काम के लिए जरूरी होता जा रहा है. इंटरनेट की दुनिया भले ही वर्चुअल दुनिया हो, लेकिन नियम वही होते हैं, जो सामान्य जिंदगी के हैं. जरूरी है कि बच्चों को शुरुआत से ही सही शिक्षा मिले ताकि वे जिम्मेदार इंटरनेट यूजर बन सकें.
सोडा पीने में बच्चों का मजा तो आता है. पर आपको सख्ती बरतनी ही होगी. ये लजीज, मीठे और तरोताजा कर देने वाले ड्रिंक्स बच्चों को क्या नुकसान पहुंचा सकते हैं, माता-पिता के लिए उन्हें जानना फायदेमंद होगा.
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लत लग जाती है
सोडा ड्रिंक्स की फितरत अफीम या गांजे जैसी ही होती है. इसकी लत लग जाती है. इसका असर मस्तिष्क पर वैसा ही होता है, जैसा नशीली दवाओं का.
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कोई पोषक तत्व नहीं
सोडा ड्रिंक्स में एक भी ऐसी चीज नहीं होती जो सेहत को जरा सा भी फायदा पहुंचाती हो. हां, नुकसानदायक चीजों की भरमार है. जैसे इसे पीने से भूख मरती है.
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मस्तिष्क को सीधा नुकसान
किशोरावस्था तक मस्तिष्क का विकास जारी रहता है. लेकिन सोडा पीने से ब्रेन में ऐसे केमिकल्स बनते हैं जो उसकी वृद्धि को रोकते हैं.
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हड्डियों को नुकसान
सोडा पीने से हड्डियां भुरती हैं. उनका कैल्शियम खत्म होता है. सोडा पीने वाले बच्चे चूंकि दूध कम पीते हैं इसलिए कैल्शियम सप्लाई भी नहीं हो पाती.
मानसिक नुकसान
सोडा ड्रिंक्स बच्चों के व्यवहार को नुकसान पहुंचाते हैं. कैफीन, चीनी या कृत्रिम रंग ब्लड शुगर को बढ़ावा देते हैं. ऐसे बच्चे ज्यादा आक्रामक होते हैं.
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दांतों को नुकसान
सोडा ड्रिंक्स बच्चों के दांतों के लिए बेहद खतरनाक होते हैं. उनमें साइट्रिक एसिड और फॉसफोरस होता है जो दांतों पर चढ़े इनेमल को खुरच देता है.
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डायबिटीज
एक प्रयोग हुआ. चूहों को वे स्वीटनर दिए गए जो डाइट सोडा में होते हैं. चूहों में टाइप 2 डायबिटीज के लक्षण पाए गए. 12 आउंस सोडा रोज पीने से डायबिटीज होने का खतरा 22 फीसदी बढ़ता है.
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मोटापा
3 से 5 साल के बच्चों पर एक स्टडी की गई तो पता चला कि सोडा ड्रिंक्स पीने से मोटापे का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. डाइट सोडा भी उतना ही खतरनाक है.
तस्वीर: AP/S. Aivazov
हृदय रोग
एक बोतल सोडा रोज पीने से हृदय रोगों का खतरा 61 फीसदी बढ़ जाता है. बचपन में ही सोडे की शुरुआत हो जाए तो बुढ़ापे से पहले ही कई बीमारियां घेर लेंगी.
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पाचन को नुकसान
सोडा पीने से बहुत पेशाब आता है. इससे डिहाइड्रेशन होती है. खासकर तब जब आप पानी के बदले ही सोडा पीने लगें. बच्चों को पानी पिलाएं, दूध पिलाएं. सोडे से बचाएं.