कोरोना से जूझ रहे पाकिस्तान में ब्लड प्लाज्मा का कारोबार
एस खान, इस्लामाबाद
३ जुलाई २०२०
पाकिस्तान में स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था ध्वस्त होने के कगार पर है. कोरोना संकट से स्वास्थ्य अधिकारी जूझ रहे हैं. ऐसे में, कोरोना के मरीजों के बीच ब्लड प्लाज्मा की बहुत मांग है.
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पाकिस्तान में एक जुलाई तक कोरोना वायरस के मामलों की संख्या 2.15 लाख तक पहुंच गई और अब तक लगभग साढ़े चार हजार लोग इस महामारी से मारे गए हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमण ने देश की पहले से ही खस्ताहाल सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था पर बहुत बोझ डाल दिया है.
यंग डॉक्टर्स एसोसिएशन के चेयरमैन खिजार हयात ने डीडब्ल्यू को बताया, "स्थिति बहुत गंभीर है. जब टेस्ट बढ़ाए जाएंगे तो कोरोना के मामलों की संख्या दसियों लाख में पहुंच जाएगी. मुझे डर है कि यह महामारी पाकिस्तान में दूसरी जगहों से कहीं घातक साबित हो सकती है."
अफरा तफरी के बीच पाकिस्तान में उन लोगों के ब्लड प्लाज्मा की कालाबाजारी हो रही है जो कोरोना संक्रमण के बाद ठीक हो गए हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस ब्लड प्लाज्मा में ठीक हुए इंसान के शरीर में बनी एंटीबॉडीज होती हैं जो कोविड-19 का संभावित इलाज हो सकती हैं.
गरीबी का जाल
पाकिस्तान में व्हाट्सएप पर चल रहे संदेशों में लोगों को खुले आम ब्लड प्लाज्मा का मोल भाव करते हुए देखा जा सकता है. लाहौर में रहने वाले काशिफ नसीर ने बताया कि कोरोना वायरस से संक्रमित उनके चाचा को ऐसा ब्लड प्लाज्मा मिला है. वह कहते हैं, "हमारे खानदान के एक व्यक्ति ने उन्हें ब्लड प्लाज्मा दिया. लेकिन जब मैं अपने चाचा की देखभाल करने के लिए अस्पताल में था, तब मुझे पता चला कि ब्लड प्लाज्मा को बाजार में बेचा जा रहा है."
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कोरोना के इलाज का दावा करने वाली दवाएं
कोविड-19 से फैली महामारी से छुटकारा दिलाने वाले टीके या सटीक दवा का इंतजार हर किसी को है. लेकिन इस बीच कुछ ऐसी नई और पुरानी दवाएं पेश की गई हैं जो कोरोना वायरस से लोगों की जान बचा सकती हैं.
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कोरोनील
पतंजलि योगपीठ के संस्थापक बाबा रामदेव कोविड-19 के लिए देश की पहली आयुर्वेदिक दवा 'दिव्य कोरोनील टैबलेट' ले आए हैं. इसे गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी, श्वसारि रस और अणु तेल का मिश्रण बताया जा रहा है. निर्माताओं का दावा है कि इससे 14 के अंदर कोरोना ठीक हो जाएगा. ट्रायल के दौरान करीब सत्तर फीसदी लोगों के केवल तीन दिन में ही ठीक होने का दावा किया गया है.
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फेबीफ्लू
ग्लेनमार्क फार्मा की दवा फेवीपीरावीर गोली के रूप में खाई जा सकने वाली एंटी-वायरल दवा है. इसे कोविड-19 के हल्के या मध्यम दर्जे के संक्रमण वाले मामलों में दिया जा सकता है. करीब सौ रूपये प्रति गोली के दाम पर यह गोली भारतीय बाजार में फेबीफ्लू के नाम से मिलेगी. विश्व भर में इसके टेस्ट से अच्छे नतीजे मिले हैं. मरीजों में वायरल लोड कम हुआ और वे जल्दी ठीक हो पाए.
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डेक्सामेथासोन
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 के लिए स्टीरॉयड ‘डेक्सामेथासोन’ का बड़े स्तर पर निर्माण करने की अपील की है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने इसका परीक्षण करीब 2,000 बेहद गंभीर रूप से बीमार मरीजों पर किया. इसके इस्तेमाल से सांस के लिए पूरी तरह वेंटिलेटर पर निर्भर मरीजों की मौत को 35 फीसदी तक कम किया जा सका. यह बाजार में 60 साल पहले आई थी.
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कोविफोर
भारत के हैदराबाद की हीटेरो लैब ‘कोविफोर’ दवा ला रही है. यह असल में एंटीवायरस दवा ‘रेमडेसिविर’ ही है जिसे नए नाम से पेश किया जा रहा है. कंपनी ने इसे बनाने और बेचने के लिए भारतीय ड्रग रेगुलेटर संस्था से अनुमति हासिल कर ली है.
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एविफाविर
इस दवा को रूस में इस्तेमाल करने की अनुमति मिल गई है. ट्रायल के दौरान इंफ्लुएंजा की इस दवा से कोविड-19 के मरीजों में हालत में जल्दी सुधार आता देखा गया है. यही कारण है कि रूस ने ट्रायल पूरा होने से पहले ही देश के सभी अस्पतालों में इसका इस्तेमाल करने को कहा है.
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सिप्ला की सिप्रेमी
सिप्ला कंपनी भी वही जेनेरिक एंटीवायरस दवा ‘रेमडेसिविर’ अपने ब्रांड सिप्रेमी के नाम पर लाई है. अमेरिका की ड्रग्स रेगुलेटर बॉडी, यूएस एफडीए ने कोविड के मरीजों में इमरजेंसी की हालत में इसके इस्तेमाल की अनुमति दी है.
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हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन
मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली यह दवा भारत में ही विकसित हुई थी. पहले उम्मीद की जा रही थी कि इससे कोविड-19 मरीजों को भी मदद मिल सकती है और अमेरिका ने भारत से इसकी बड़ी खेप भी मंगाई थी. लेकिन इससे खास फायदा नहीं होने के कारण फिलहाल कोरोना में इसे प्रभावी नहीं माना जा रहा है. ब्रिटेन और अमेरिका में इसका ट्रायल भी बंद हो गया है.
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वह कहते हैं कि पाकिस्तान में कई गरीब लोग कोरोना वायरस से ठीक हो गए हैं, वे अपनी आर्थिक तंगियों को दूर करने के लिए ब्लड प्लाज्मा बेच रहे हैं. विशेषज्ञ कहते हैं कि अब यह कारोबार बनता जा रहा है. नाम ना जाहिर करने की शर्त पर कराची के एक निवासी ने बताया, "मेरी वित्तीय स्थिति ने मुझे मेरा ब्लड प्लाज्मा बेचने के लिए मजबूर किया. मैं तीन महीने से बेरोजगार हूं और मेरी सारी जमा पूंजी कोरोना के इलाज में खर्च हो गई है. अब मैं अपना ब्लड प्लाज्मा कम से कम तीन लाख रुपये में बेचना चाहता हूं ताकि मैं किश्तों पर एक टैक्सी खरीद सकूं."
सरकार ने लोगों से ब्लड बैंकों और अस्पतालों से प्लाज्मा ना खरीदने को कहा है. पाकिस्तान मेडिकल एसोसिएशन के अब्दुल गफूर शोरो ब्लड प्लाज्मा की गैरकानूनी बिक्री से जुड़ी रिपोर्टों पर चिंता जताते हैं. उन्होंने डीडब्लयू से बातचीत में कहा, "पाकिस्तान में तो लोग 'सामान्य परिस्थितियों' में अपनी किडनी और दूसरे अंग बेच देते हैं." वह कहते हैं कि कोरोना संकट के कारण जिन लोगों का रोजगार चला गया है, सरकार को उनकी मदद करनी चाहिए. उनके मुताबिक, "ऐसे लोगों के लिए सरकार को वित्तीय पैकेज की घोषणा करनी चाहिए, वरना गरीबी के चलते ज्यादा से ज्यादा लोग अपना ब्लड प्लाज्मा बेचेंगे."
घर पर जुगाड़ से बनाया वेंटिलेटर
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कोरोना की स्थिति
सरकार का कहना है कि वह ऐसे हेल्थ सेंटर बना रही है जहां ब्लड प्लाज्मा पेशेवर और कानूनी तरह से डोनेट किया जा सकता है. पाकिस्तान में क्लीनिकल स्टडी कमेटी ऑफ द ड्रग्स रेग्युलेटरी अथॉरिटी के चेयरमैन अब्दुल रशीद कहते हैं, "सरकार ने इस मकसद से कराची, लाहौर, रावलपिंडी और पेशावर में पांच अस्पताल निर्धारित किए हैं. सिर्फ इन्हीं अस्पतालों को पेशेवर दिशानिर्देशों के अनुसार ब्लड प्लाज्मा जमा और उन्हें इस्तेमाल करने की अनुमति होगी."
उन्होंने कहा, "इन अस्पतालों में कम से कम 351 मरीजों को ब्लड प्लाज्मा मिला है. इनके ट्रायल के बारे में रिपोर्ट अभी स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंपी जानी है. इन अस्पतालों के अलावा दूसरी जगहों पर ब्लड प्लाज्मा देने या बेचने वाले गैरकानूनी काम कर रहे है."
पाकिस्तान में कोरोना वायरस का पहला मामला 26 फरवरी को सामने आया था. उसके बाद एक अप्रैल से देश भर में आंशिक लॉकडाउन लगाया गया जो 9 मई तक चला. फिलहाल सरकार संक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में "स्मार्ट" लॉकडाउन के जरिए वायरस के फैलाव को रोकने की कोशिश कर रही है. वहीं पाकिस्तान का विपक्ष और डॉक्टर पूरी तरह से लॉकडाउन की मांग कर रहे हैं.
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कौन से ब्लड ग्रुप को है कोरोना का ज्यादा खतरा
यह तो आप जानते ही हैं कि एक ही परिवार के सदस्यों का ब्लड ग्रुप अलग-अलग हो सकता है. लेकिन क्या आपको पता है कि किस ब्लड ग्रुप वालों को कोरोना वायरस से ज्यादा खतरा हो सकता है और किसे कम.
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कितने तरह के ब्लड ग्रुप
कुल चार तरह के ब्लड ग्रुप होते हैं. किसी व्यक्ति की लाल रक्त कोशिकाओं में पाए जाने वाले प्रोटीन कंपाउंड ’ए’ और ‘बी’ एंटीजेन के आधार पर इनका नामकरण किया जाता है. जिनमें केवल ए या बी पाया जाता है उनका ब्लड ग्रुप ‘ए’ या ‘बी’ कहलाता है. इसी तरह जिनमें दोनों पाए जाते हैं उन्हें ‘एबी’ और जिसमें दोनों नहीं पाए जाते हैं, उन्हें ‘ओ’ कहा जाता है.
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इम्युनिटी में होता है अंतर
इम्युनिटी यानि बीमारियों से लड़ने की क्षमता किसी ब्लड ग्रुप में दूसरों से कम या ज्यादा हो सकती है. रिसर्चर बताते हैं कि खून चढ़ाने पर कुछ ब्लड ग्रुप दूसरों के मुकाबले ज्यादा कड़ी प्रतिक्रिया भी दे सकते हैं. इसके अलावा एक और कारक होता है जिसे ‘रीसेस फैक्टर’ कहते हैं - जो कि कुछ लोगों में पाया जाता है जबकि कुछ में नहीं.
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कोविड-19 से कैसा संबंध
कुछ लोगों में कोरोना का संक्रमण होने पर बहुत गंभीर प्रतिक्रिया होती है तो वहीं कुछ लोगों को पता तक नहीं चलता, जिन्हें एसिम्टमैटिक कहा जा रहा है. नई रिसर्च दिखा रही है कि लोगों के ब्लड ग्रुप का इस तरह की प्रतिक्रिया से संबंध हो सकता है. इससे तय होता है कि किसी व्यक्ति की इम्यून प्रतिक्रिया कितनी कमजोर या मजबूत होगी.
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ब्लड ग्रुप और कोरोना पर शोध
जर्मनी और नॉर्वे के रिसर्चरों ने कोरोना के साथ अलग अलग रक्त समूहों के संबंध का अध्ययन किया. इनकी खोज को ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित किया गया. उन्होंने इटली और स्पेन के 1,610 मरीजों का अध्ययन किया, जिनमें कोविड-19 के कारण सांस लेने का तंत्र फेल हो गया था. ये गंभीर मामले से थे जिनमें से कई की जान चली गई.
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ब्लड ग्रुप ‘ए’ सबसे आगे
पता चला है कि ‘ए’ ब्लड ग्रुप वालों को कोरोना से गंभीर रूप से प्रभावित होने का खतरा सबसे ज्यादा है. कोविड-19 से संक्रमित होने पर इनको ऑक्सीजन देने या वेंटिलेटर पर रखने की जरूरत पड़ने की संभावना ‘ओ’ ग्रुप वाले से दोगुनी होती है. जर्मनी में 43 प्रतिशत लोगों का ब्लड ग्रुप ए है जबकि ‘ओ’ ग्रुप वाले 41 प्रतिशत लोग हैं.
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क्या ‘ओ’ वाले कोरोना से सुरक्षित हैं
अब तक सामने आए मामलों को देखकर कहा जा सकता है कि ओ वाले काफी खुशकिस्मत हैं. ऐसा नहीं है कि वे कोरोना पॉजिटिव नहीं होंगे लेकिन स्टडी से पता चलता है कि संक्रमण होने के बावजूद उनमें इसके गंभीर लक्षण नहीं दिखे. ओ ग्रुप वाले यूनिवर्सल डोनर भी होते हैं यानि जरूरत पड़ने पर उनका खून किसी को भी चढ़ाया जा सकता है.
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‘बी’ और ‘एबी’ को कितना खतरा
इन दोनों ब्लड ग्रुप के लोग अपेक्षाकृत कम ही होते हैं. इनमें कोरोना होने पर हालत गंभीर होने का खतरा भी मध्यम रेंज में ही होता है. मलेरिया जैसी बीमारी का भी ब्लड ग्रुप के साथ संबंध स्थापित किया जा चुका है. कोरोना की ही तरह ‘ओ’ वालों को मलेरिया से बहुत खतरा नहीं होता. ‘ए’ ग्रुप वालों को प्लेग का खतरा भी कम होता है.