भारत में कोविड महामारी के कारण कराड़ों लोग बेरोजगार हुए हैं. इनमें सबसे ज्यादा महिलाएं हैं. और यह असर स्थायी हो सकता है.
विज्ञापन
44 साल की सावित्री देवी लगातार नौकरी खोज रही हैं. वह दिल्ली की एक फैक्ट्री में काम करती थीं लेकिन पिछले साल महामारी में उनकी और उनके कई सहकर्मियों की नौकरी जाती रही. तब से उन्हें कहीं काम नहीं मिला है.
ओखला में, जहां सावित्री देवी रहती हैं, वहां हजारों छोटी बड़ी फैक्ट्रियां, वर्कशॉप और काम धंधे कोविड की भेंट चढ़ चुके हैं. ये काम धंधे सावित्री देवी जैसे अकुशल मजदूरों के लिए बड़ी पनाहगाह थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दफ्तर से कुछ मील दूर एक झोंपड़पट्टी में अपने घर के बाहर बैठीं सावित्री देवी कहती हैं, "मैं कम पैसे पर भी काम करने को तैयार हूं लेकिन कोई काम ही नहीं है.”
लाखों हुए बेरोजगार
कोविड महामारी के कारण देश की आर्थिक रफ्तार धीमी होने का असर लाखों कामगारों पर पड़ा है. उद्योग जगत के विशेषज्ञों का एक अनुमान है कि लगभग डेढ़ करोड़ लोग इस दौरान बेरोजगार हुए हैं जिनमें बड़ी तादाद महिलाओं की है.
भारत में कामगार ज्यादातर महिलाएं अकुशल हैं और वे खेती, घरेलू नौकर या फैक्ट्री में मजदूरी जैसे कामों में लगी हैं जहां ज्यादा कौशल की जरूरत नहीं होती. इन क्षेत्रों पर महामारी की मार सबसे भयानक पड़ी है.
और उससे भी बुरी हालत यह है कि इन महिलाओं की काम पर लौटने की संभावनाएं कम-रफ्तार टीकाकरण और कम-रफ्तार आर्थिक बहाली के कारण क्षीण हो गई हैं. ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की महासचिव अमरजीत कौर कहती हैं, "भारतीय महिलाओं ने पिछले एक दशक में सामाजिक और आर्थिक हालात में जितनी भी प्रगति की थी, वह सब कोविड की बाढ़ में बह गई है.”
महिलाएं ज्यादा निकाली गईं
इस साल आई कोविड की दूसरी घातक लहर ने तो हालात को और भी बुरा बना दिया है क्योंकि इस कारण आर्थिक दबाव ऐतिहासिक रूप से बढ़ चुका है. चूंकि ज्यादातर भारतीय असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं, इसलिए यह अनुमान लगाना भी मुश्किल है कि असल में कितने लोग प्रभावित हुए हैं.
तस्वीरों मेंः उच्च शिक्षा में बढ़तीं लड़कियां
उच्च शिक्षा में आगे बढ़ रही हैं लड़कियां
ताजा सरकारी आंकड़े दिखा रहे हैं कि उच्च शिक्षा के जिन क्षेत्रों में लड़कियों लड़कों से पीछे थीं, अब वो उनमें आगे आ रही हैं. जानिए किन क्षेत्रों को पहले ही अपना चुकी हैं लड़कियां और किन क्षेत्रों को अब धीरे धीरे अपना रही हैं.
तस्वीर: IANS
कुल नामांकन बढ़ा
2019-20 में उच्च शिक्षा में कुल 3.85 करोड़ छात्रों ने दाखिला लिया. 2018-19 के मुकाबले इस संख्या में 11.36 लाख (3.04 प्रतिशत) की बढ़ोतरी हुई. 2014-15 में यह संख्या 3.42 करोड़ थी.
तस्वीर: DW/P. Samanta
लड़कियां आ रहीं आगे
2015-16 से 2019-20 के बीच उच्च शिक्षा हासिल करने वाली लड़कियों की संख्या (सकल नामांकन दर) 18.2 प्रतिशत बढ़ी है. यह सामान्य नामांकन दर में आई 11.4 प्रतिशत की वृद्धि से ज्यादा है. इस उछाल की वजह से देश में उच्च शिक्षा में लड़कियों की नामांकन दर अब 27.3 प्रतिशत पर पहुंच गई है, जबकि लड़कों की नामांकन दर 26.9 प्रतिशत पर ही है.
तस्वीर: Mana Vatsyayana/Getty Images/AFP
कॉमर्स अपना रही लड़कियां
कॉमर्स एक नया क्षेत्र बन कर उभरा है जिसमें लड़कियों का नामांकन बढ़ रहा है. 2019-20 में पूरे देश में कुल मिला कर 41.6 लाख छात्रों ने बी.कॉम के कोर्स में दाखिला लिया. इनमें 21.3 लाख लड़के थे तो 20.3 लाख लड़कियां. पांच साल पहले तक बी.कॉम में हर 100 लड़कों पर 90 लडकियां हुआ करती थीं, लेकिन अब यह अनुपात बराबर हो गया है.
तस्वीर: Naveen Sharma/ZUMAPRESS/picture-alliance
गिरा तीसरा बैरियर
बी.कॉम ऐसा तीसरा कोर्स बन गया है जिसमें पिछले पांच सालों में लड़कियों ने लड़कों की बराबरी कर ली है. 2017-18 में डॉक्टरी की पढ़ाई यानी एमबीबीएस और विज्ञान के स्नातक कोर्स यानी बी.एससी में यही हुआ था. बल्कि तब से डॉक्टरी और विज्ञान के स्नातक कार्यक्रमों में लड़कियों ने लड़कों को पीछे छोड़ दिया है.
तस्वीर: DW/S. Waheed
डॉक्टरी और विज्ञान की पढ़ाई
2017-18 में विज्ञान की पढ़ाई में हर 100 लड़कों पर 100 लड़कियां थीं और डॉक्टरी की पढ़ाई में हर 100 लड़कों पर 101 लड़कियां थीं. अब हर 100 लड़कों पर विज्ञान में 113 लड़कियां हैं और डॉक्टरी में 110.
तस्वीर: picture alliance/dpa/P. Adhikary
कुछ क्षेत्रों में पीछे
इंजीनियरिंग और कानून की पढ़ाई में लड़कियां अभी भी पीछे हैं. बी. टेक के कार्यक्रमों में हर 100 लड़कों पर सिर्फ 42 लड़कियां हैं, और कानून की पढ़ाई में हर 100 लड़कों पर सिर्फ 53 लड़कियां.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
इंजीनियरिंग की गिरती लोकप्रियता
लेकिन आंकड़े दिखा रहे हैं कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई की लोकप्रियता ही गिर रही है. एक तरफ जहां सभी मुख्य उच्च शिक्षा के कार्यक्रमों में नामांकन बढ़ा है, इंजीनियरिंग एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जिसमें छात्रों की संख्या गिरी है. स्नातक स्तर पर इंजीनियरिंग की पढ़ाई में 2018-19 में 38.5 लाख छात्रों के मुकाबले 2019-20 में 37.2 लाख छात्रों ने दाखिला लिया. स्नातकोत्तर स्तर पर भी नामांकन में गिरावट आई है.
तस्वीर: IANS
7 तस्वीरें1 | 7
दस लाख से ज्यादा छोटी कंपनियों के समूह कन्सोर्टियम ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआईए) के मुताबिक जिन लोगों की नौकरियां गई हैं, उनमें से 60 फीसदी महिलाएं हैं.
अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सस्टेनेबल इंपलॉयमेंट की एक रिपोर्ट कहती है कि मार्च और दिसंबर के बीच, यानी महामारी की दूसरी लहर के आने से पहले ही 47 प्रतिशत महिलाओं को नौकरी से निकाला जा चुका था. नौकरी से निकाले गए पुरुषों की संख्या सिर्फ सात प्रतिशत थी, जिनमें से ज्यादातर काम पर लौट आए या फिर सब्जी बेचने जैसे छोटे मोटे कामों में लग गए.
रॉयटर्स ने दिल्ली, गुजरात और तमिलनाडु में 50 से ज्यादा महिलाओं से बात की. ये भी महिलाएं कपड़ा मिलों, खाने की फैक्ट्रियों, स्कूलों या ट्रैवल एजेंसियों आदि से निकली गई थीं. उन्हीं में से एक देवी कहती हैं, "हमने दूध, सब्जी और कपड़ों वगैरह पर खर्च कम किया है.”
विज्ञापन
महिलाएं सबसे आखिर में
ओखला में, जहां बडी संख्या में कपड़ा और फूड प्रोसेसिंग फैक्ट्रियां हैं, काम देने वालों का कहना है कि उन्हें नुकसान कम करने के लिए लोगों को निकालना पड़ा है.
ओखला फैक्ट्री ऑनर्स असोसिएशन के चेतन सिंह कोहली कहते हैं कि महिलाओं के काम की भूमिका को देखते हुए उन्हें वापस लेना प्राथमिकता नहीं होता.
वह कहते हैं, "कम कौशल वाले काम करने वालीं ज्यादातर महिलाएं जैसे पैकेजिंग वगैरह के काम करती हैं. वे नौकरी पर सबसे आखिर में वापस बुलाई जाएंगी क्योंकि सबसे पहले हम ऑपरेशन दोबारा शुरू करना चाहते हैं.”
अमरजीत कौर चेतावनी देती हैं कि इन महिलाओं को वापस काम पर लौटने में दो से तीन साल तक लग सकते हैं. वह सरकार से अनुरोध करती हैं कि इस संबंध में जरूरी कदम उठाए जाएं. वह कहती हैं, "जो महिलाएं दूर-दराज के इलाकों से काम करने शहरों में आई थीं, वे अब वापस चली गई हैं. उनके लौटने की संभावना ना के बराबर है.”
रॉयटर्स से बात करने वालीं ज्यादातर महिलाएं काम खो जाने के कारण अवसाद में हैं. नजफगढ़ में एक प्ले स्कूल चलाने वालीं रितु गुप्ता कहती हैं, "घरों पर हमारे मर्द या सरकारी अधिकारी कभी नहीं समझ सकते कि नौकरी चले जाने का हम पर क्या असर होता है.” गुप्ता का स्कूल एक साल से भी ज्यादा समय से बंद पड़ा है.
वह कहती हैं कि घर पर बैठने से उन्हें बेकार होने का अहसास होता है और यह नुकसान सिर्फ आर्थिक नहीं है बल्कि मेरे जीवन के मायनों से जुड़ा है.
वीके/एए (रॉयटर्स)
तस्वीरेंः लॉकडाउन का कहर
महामारी में गरीब महिलाओं पर कैसे टूटा कहर
भारत में कोरोना वायरस महामारी ने सभी तबकों को प्रभावित किया है. लेकिन लॉकडाउन में नौकरी सहित सभी परेशानियों के मामले में सबसे ज्यादा अगर किसी ने झेला है तो वह देश के कम आय वाले परिवारों की महिलाएं हैं.
कंसल्टिंग फर्म डालबर्ग द्वारा किए गए शोध के मुताबिक भारत में कम आय वाले घरों में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक बार नौकरी से हाथ धोना पड़ा, उन्होंने अपने भोजन का सेवन और आराम कम कर दिया. कम आय वाले परिवार की महिलाओं ने घर की देखरेख और अपने बच्चों की देखभाल में ज्यादा समय बिताया. यह वो काम है जिसके लिए उन्हें वेतन नहीं मिलता है.
तस्वीर: IANS
दोबारा रोजगार के लिए लंबा इंतजार
शोध में 10 राज्यों में सर्वे में पहली लहर के असर की पड़ताल की गई है. इस शोध के मुताबिक महिलाओं ने बताया कि उन्हें दोबारा से काम या मजदूरी खोजने में भारी दिक्कत पेश आ रही है.
तस्वीर: Imago/BE&W
कम खाया, परिवार के लिए भोजन बचाया
सर्वे में शामिल होने वाली 10 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्होंने कम खाना खाया या घर पर राशन खत्म हो गया. जबकि 16 प्रतिशत महिलाओं के पास माहवारी के दौरान सैनिटरी पैड नहीं था.
तस्वीर: DW/P. Tewari
निजी सेहत पर भी असर
33 प्रतिशत से अधिक विवाहित महिलाएं गर्भनिरोधक का उपयोग नहीं कर सकीं क्योंकि महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य तक उनकी पहुंच को बाधित किया.
तस्वीर: Colourbox
वेतन नहीं, घर का काम बढ़ा
43 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में लगभग 47 प्रतिशत महिलाओं ने घर के काम में बढ़ोतरी की बात कही. 41 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि बिना वेतन वाला काम बढ़ा है जबकि 37 प्रतिशत पुरुषों ने भी यही बात कही.
तस्वीर: atmosfair
महामारी में मुसीबत
सर्वे में शामिल 27 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्हें कोरोना वायरस महामारी के दौरान बहुत कम आराम मिला. ऐसा कहने वाले 18 प्रतिशत पुरुष भी थे.
तस्वीर: Parth Sanyal/REUTERS
कार्यबल में महिलाएं
कोरोना वायरस महामारी से पहले 24 फीसदी महिलाएं कार्यबल का हिस्सा थीं, लेकिन नौकरी गंवाने वालों में इनकी संख्या 28 फीसदी थी. इनमें से 43 फीसदी की अब भी नौकरी नहीं लगी है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/M. Hasan
10 राज्यों में हुआ सर्वे
कोरोना महामारी के असर को जानने के लिए डालबर्ग ने भारत के दस राज्यों में कम आय वाले परिवारों की लगभग 15 हजार महिलाओं और 2,300 पुरुषों को सर्वे में शामिल किया.