कोरोना वायरस से फैली महामारी के कारण कपड़ा फैक्ट्री में काम करने वाले लाखों कर्मचारी तंग कमरों में फंसे हुए हैं. उनके लिए सामाजिक दूरी के नियम का पालन करना मुश्किल है.
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भारत में तीन हफ्तों का लॉकडाउन ऐसे लोगों के लिए मुसीबत बन कर आया है जो कपड़ा फैक्ट्रियों में काम करते हैं. देश की कई कपड़ा फैक्ट्रियों में काम करने वाले लाखों लोग परिसर में बने आवास में ही रहते हैं और उनके लिए सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन करना बहुत मुश्किल है. कर्मचारियों के हितों के लिए काम करने वाले संगठनों का ऐसा कहना है कि भारत में लॉकडाउन का एलान तो कर दिया गया है लेकिन करीब तीन लाख कर्मचारी ऐसे हैं जो कपड़ा फैक्ट्री और कताई मिलों में काम करते हैं और उसी परिसर में बने आवास या हॉस्टल में रहते हैं. फैक्ट्री या मिल परिसर में बने एक कमरे को करीब करीब एक दर्जन लोग साझा तौर पर इस्तेमाल करते हैं.
तमिलनाडु में अधिकतर कपड़ा उद्योग और कताई मिलें बंद हैं लेकिन जो अस्पतालों को सप्लाई कर रही हैं वे खुली हैं. हालांकि जो कर्मचारी इस काम में लगे हैं वे दूसरे कर्मचारियों के बेहद करीबी दायरे में रहकर ही काम कर रहे हैं. ऐसे में इस बात की चिंता बढ़ गई है कि वे लोग अनजाने में कहीं वायरस तो नहीं फैला रहे हैं.
कपड़ा मिल के कर्मचारियों के लिए काम करने वाले अधिकार संगठन 'शिक्षा और विकास केंद्र' के निदेशक आर करुप्पुसामी कहते हैं, "इन हालातों में हॉस्टल की स्थितियां आदर्श नहीं है.” उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से फोन पर बातचीत में कहा, "हम इन युवा कर्मचारियों को लेकर बहुत चिंतित हैं. हो सकता है कि लॉकडाउन की घोषणा होने से पहले वे फैक्ट्री के बाहर गए हों."
बिना टच किए दिल को छू लेने वाला तरीका
कोरोना वायरस इमरजेंसी के चलते दुनिया भर में लोगों से अपील की जा रही है कि वे एक दूसरे से शारीरिक दूरी बनाए रखें. ऐसे माहौल में एक नजर अभिवादन के शुद्ध हाइजीनिक तरीकों पर.
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नमस्ते या नमस्कार
भारत, नेपाल और भूटान की पारंपरिक संस्कृति में हाथ जोड़कर अभिवादन किया जाता है. इस दौरान नमस्ते या नमस्कार या कोई और शब्द कहना, यह स्थानीय संस्कृति पर निर्भर करता है.
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सलाम
यह भारतीय इस्लाम में अभिवादन का अंदाज है. आम तौर पर अरबी देशों में गले मिलकर या हाथ या गाल चूम कर एक दूसरे का अभिवादन किया जाता है. लेकिन भारतीय इस्लाम में हल्का सिर झुकाकर हाथ को माथे के करीब लाकर सलाम किया जाता है.
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वाई
थाइलैंड में बिना छुए यह अभिवादन का स्टैंडर्ड तरीका है. वाई में नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़े जाते हैं और फिर अपने माथे को झुकाकर जुड़े हाथों से टच किया जाता है. यह तरीका थाई संस्कृति में बौद्ध और हिंदू धर्म के असर को भी दिखाता है.
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सिर झुकाकर अभिवादन
जापान में कमर से मुड़ कर और सिर झुकाकर अभिवादन किया जाता है. इस दौरान मुंह से कोई शब्द नहीं निकाला जाता है. माना जाता है कि अभिवादन का यह तरीका सातवीं शताब्दी में चीन से जापान आया.
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तमिलनाडु में करीब 40,000 कपड़ा फैक्ट्रियां और कताई मिलें हैं. इनमें से कई ने अपने परिसर में ही हॉस्टल बनाए हुए हैं. इन हॉस्टलों में अधिकतर महिलाएं और प्रवासी मजदूर रहते हैं. तमिलनाडु की स्वास्थ्य सचिव बीला राजेश कहती हैं, "कोरोना वायरस को बढ़ने से रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को कारगार हथियार माना जा रहा है और यह इस सेक्टर के लिए भी अहम है. हमने सभी फैक्ट्रियों को इस बारे में बता दिया है. इसके अलावा उद्योग और श्रम विभाग ने कारखानों की निगरानी और निरीक्षण के लिए टीमों का गठन किया है." बीला राजेश के अनुसार टीमें यह सुनिश्चित करेंगी कि फैक्ट्रियां बंद रहें और परिसर में सैनेटाइजर के साथ साथ साफ-सफाई का भी ध्यान रखा जा रहा हो.
दक्षिण भारत में मिल के व्यापार संगठन ने भी अपने सदस्यों से कहा है कि फैक्ट्री परिसर में रहने वाले कर्मचारियों का खास ध्यान रखा जाए. इस व्यापार संगठन में 500 के करीब कपड़ा फैक्ट्रियां शामिल हैं. संगठन के महासचिव सेलवाराजू कांडास्वामी कहते हैं, "इसमें चुनौतियां हैं, सबसे कठिन काम तो सामाजिक दूरी को बनाना है." केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने तालाबंदी के दौरान फैक्ट्रियों से कर्मचारियों को वेतन देने को कहा है. साथ ही उसने कर्मचारियों के रहने की सुविधा और भोजन का इंतजाम करने को भी कहा है. लेकिन भारत, बांग्लादेश और कंबोडिया समेत एशिया के कई कपड़ा कारखाने अस्थायी रूप से बंद हो रहे हैं और उनमें छंटनी शुरू हो चुकी है, क्योंकि दुनिया के टॉप ब्रांड अपने ऑर्डर रद्द कर रहे हैं.
सन 2008 के विश्व आर्थिक संकट के दौरान बैंक और उनका काम केंद्र में था. जानिए कोविड-19 के साये में कौन से पेशे सबसे अहम बन कर उभरे हैं.
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सबसे अहम काम करने वाले
इनके लिए एक नाम है "सिस्टेमिकली इंपॉर्टेंट" - ऐसी वित्तीय कंपनियां जो व्यवस्था को चलाने के लिए जरूरी हैं. बड़े बैंक और वित्तीय संस्थाएं 2008 में सबसे महत्वपूर्ण बन कर उभरे. बैंकों से शुरु हुए वित्तीय संकट ने पूरे विश्व को प्रभावित किया. तब से बैंकों और बैंकरों को एक तरह के सुरक्षा कवच में रख लिया गया ताकि उन पर ऐसी नौबत फिर ना आए.
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हर हाल में जिम्मेदारी उठाने वाले
वित्तीय संकट की जड़ भी खुद बड़े बैंकर ही थे. लेकिन उनकी गैरजिम्मेदाराना कदमों के कारण आई मुसीबत का मुकाबला करने के काम में कैशियर, नर्स, लैब टेकनीशियन से लेकर बस ड्राइवर तक को जुटना पड़ा. अब कोविड-19 के संक्रमण काल में इन सब पेशों से जुड़े लोग "सिस्टेमिकली इंपॉर्टेंट" हो गए हैं. इन्हीं पर सारी जरूरी चीजें चलाने की जिम्मेदारी आ पड़ी है जबकि ये संकट इनका पैदा किया नहीं है.
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काम अहम मगर कमाई इतनी कम
दुकान चलाने वाले या नर्स का काम करने वाले हर दिन अपने काम के दौरान संक्रमित होने का भारी खतरा उठा रहे हैं. लेकिन उन्हें काम करते जाना है क्योंकि वे काम नहीं करेंगे तो किराया भरने के पैसे तक नहीं होंगे. जर्मनी में एक नर्स का औसत सालाना वेतन करीब 38,554 यूरो होता है.
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ऐसी होनी चाहिए कंपनी कार
कौन सा हाई फाई बैंकर कोई सस्ती कार चलाता होगा. 50,000 यूरो से कम की कार में तो वे बैठते भी नहीं. वहीं पेशे से ट्रक या बस चलाने वालों को देखें तो उनकी दुनिया के अलग ही नियम हैं. वे भले ही लाखों की गाड़ी चलाते हों लेकिन उनकी औसत सालाना कमाई केवल 29,616 यूरो होती है.
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इस पेशे की सही कदर नहीं
कुछ लोगों के ना होने पर ही उनकी कीमत का अंदाजा होता है. फिलहाल जर्मनी में किंडरगार्टेन बंद हैं और उनकी टीचरों को घर बैठना पड़ रहा है. वे बच्चों को मिस करती हैं और बच्चे अपना रूटीन. अब जब माता पिता को पूरे दिन बच्चों को घर पर ही संभालना और अपनी नौकरियां भी करनी पड़ रही हैं तो उन्हें इन टीचरों के काम की सही कीमत पता चल रही है. लेकिन फिर भी इनकी औसत सैलरी 36,325 यूरो ही है.
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पैसों से ऊपर है ये काम
बीमार और कमजोर इम्यूनिटी वाले बुजुर्गों की देखभाल का काम करने वाले खुद भी कोरोना के संक्रमण के भारी खतरे में हैं. लेकिन जर्मनी में इस पेशे से जुड़े कर्मचारियों की औसत सालाना आय केवल 32,932 है. तुलना के लिए देखिए कि एक ऑटो मेकैनिक भी इससे ज्यादा कमाता है. किसी इंवेस्टमेंट बैंकर से तुलना की तो सोची भी नहीं जा सकती.
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खतरे से बाहर निकालने वाले
कोरोना वायरस का खतरा तो तभी टला माना जा सकेगा जब इसका कोई टीका बन जाएगा. फार्मा कंपनियों में काम करने वाले लोग दिन रात इसमें जुटे हैं. जिनके काम पर दुनिया भर की सांसें टिकी हैं इनकी सालाना आय मात्र 28,698 है. वहीं कोई इंवेस्टमेंट बैंकर तो लाखों यूरो सालाना के नीचे बात ही नहीं करेगा.
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एक शर्मनाक तुलना
किसी बैंक के मुकाबले एक अस्पताल की इमारत या उसमें काम करने वालों को मिलने वाली सुविधाओं की तुलना भी नहीं की जा सकती. साफ पता चलता है कि हमारे सिस्टम में ऐसे लोगों के काम का कितना मूल्य है जो वाकई दूसरों के लिए काम करते हैं. सवाल यह है कि क्या कोरोना संकट बीतने के बाद हम इन बेहद अहम पेशों में लगे लोगों की बेहतरी के बारे में सोचेंगे? (डिर्क काउफमान/आरपी)