बिहार में भ्रष्टाचारियों को 'सीएम-पीएम का भी डर नहीं'
मनीष कुमार, पटना
१ सितम्बर २०२१
बिहार में सरकारी अफसरों के घरों पर छापों में बेहिसाब धन-दौलत निकल रही है. लोगों का कहना है कि भ्रष्टाचार सरेआम हो चुका है और सीएम-पीएम तक का डर नहीं है.
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क्राइम, करप्शन व कम्युनलिज्म से किसी भी सूरत में समझौता नहीं करने का ऐलान करने वाले जदयू-बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बिहार में भ्रष्टाचार पर लगाम लगती नहीं दिख रही है. एक मामले की चर्चा थमती नहीं है कि दूसरा भ्रष्टाचारी सामने आ जाता है.
इंडियन करप्शन सर्वे-2019 की रिपोर्ट में बिहार का स्थान दूसरा था. यहां 75 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया था कि उन्हें अपना काम करवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ी थी. इनमें भी 50 फीसद लोगों ने तो यहां तक कहा कि उन्हें काम करवाने के एवज में अधिकारियों को कई बार रिश्वत देनी पड़ी.
तस्वीरेंः रिश्वेत लेने-देने में एशिया अव्वल
रिश्वत के लेनदेन में भारत एशिया में सबसे आगे
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने पाया है कि सभी एशियाई देशों में भारत में सबसे ज्यादा रिश्वत ली और दी जाती है. आखिर पिछले 12 महीनों में भारत में भ्रष्टाचार बढ़ा है या घटा?
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सबसे ऊंची रिश्वत की दर
इसी साल जुलाई से सितंबर के बीच एशिया के 17 देशों में 20,000 लोगों के बीच यह सर्वेक्षण किया गया. भारत में 39 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें सरकारी सुविधाओं का इस्तेमाल करने के लिए रिश्वत देनी पड़ी. ये एशिया में सबसे ऊंची रिश्वत की दर है. नेपाल में यह दर 12 प्रतिशत, बांग्लादेश में 24, चीन में 28 और जापान में दो प्रतिशत पाई गई.
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सबसे ज्यादा रिश्वत पुलिस को
सर्वेक्षण के लिए लोगों से छह सरकारी सुविधाओं से संबंधित उनके तजुर्बे के बारे में पूछा गया - पुलिस, अदालत, सरकारी अस्पताल, पहचान पत्र लेने की प्रक्रिया और बिजली, पानी जैसी सेवाएं. सबसे ज्यादा (42 प्रतिशत) लोगों ने माना कि उन्हें पुलिस को रिश्वत देनी पड़ी. पहचान पत्र और अन्य सरकारी कागजात लेने के लिए 41 प्रतिशत लोगों को रिश्वत देनी पड़ी.
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निजी संपर्कों का इस्तेमाल
पुलिस, अदालतें और कागजात हासिल करने जैसे कामों में निजी ताल्लुकात का इस्तेमाल करने की बात भी भारत में बड़ी संख्या (46 प्रतिशत) में लोगों ने मानी. यह दिखाता है कि प्रक्रियाएं ठीक से काम नहीं कर रही हैं जिसकी वजह से जान पहचान का सहारा लेना पड़ता है. चीन में यह दर 32 प्रतिशत है और जापान में चार प्रतिशत.
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चुनावी भ्रष्टाचार
एशिया में बड़ी मात्रा में रिश्वत ले कर वोट देने की बात भी लोगों ने मानी है. 18 प्रतिशत की दर के साथ भारत इसमें चौथे नंबर पर है. सबसे ऊपर हैं थाईलैंड और फिलीपींस, 28 प्रतिशत दर के साथ. 26 प्रतिशत की दर के साथ इंडोनेशिया तीसरे नंबर पर है.
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सेवा के बदले सेक्स
पहली बार सर्वेक्षण में सरकारी अधिकारियों द्वारा सेवा के बदले सेक्स मांगने को भी शामिल किया है. भारत में इसकी दर 11 प्रतिशत है. 18 प्रतिशत की दर के साथ इंडोनेशिया सबसे ऊपर है. श्रीलंका में यह दर 17 प्रतिशत है पाई गई और थाईलैंड में 15 प्रतिशत.
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बढ़ा है भ्रष्टाचार
भारत में 47 प्रतिशत लोगों को लगता है कि पिछले 12 महीनों में भ्रष्टाचार बढ़ा है. नेपाल में ऐसा 58 प्रतिशत लोगों को लगता है, जबकि चीन में 64 प्रतिशत लोगों को लगता है कि उनके देश में भ्रष्टाचार कम हुआ है.
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सरकार की छवि
भारत में भ्रष्टाचार बढ़ने के बावजूद 63 प्रतिशत लोगों को लगता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में भारत का प्रदर्शन अच्छा है. म्यांमार में यह दर 93 प्रतिशत है और बांग्लादेश में 87.
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सरकार में विश्वास
भ्रष्टाचार की वजह से सरकार की विश्वसनीयता पर भी असर पड़ता है. भारत में 51 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें सरकार पर या तो कम विश्वास है या बिल्कुल विश्वास नहीं है. जापान में ऐसा 56 प्रतिशत लोगों ने कहा.
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बोलने से डर
भारत में 63 प्रतिशत लोगों को लगता है कि अगर उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुंह खोला तो उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. बांग्लादेश में भी 63 प्रतिशत लोग ऐसा ही महसूस करते हैं.
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पुल निर्माण निगम लिमिटेड के एक इंजीनियर रवींद्र कुमार के ठिकानों से एक करोड़ 43 लाख की नकदी व अन्य संपत्तियों की बरामदगी की चर्चा अभी चल ही रही थी कि दरभंगा में तैनात ग्रामीण विकास विभाग के इंजीनियर से 67 लाख रुपये नकद बरामद किए गए. विजिलेंस की कार्रवाई की जद में आए रवींद्र कुमार बिहार के एक पूर्व मंत्री के रिश्ते में दामाद लगते हैं.
बताया जाता है कि नकदी के संबंध में पूछताछ के दौरान अभियंता ने कहा, "वर्तमान में जो माहौल है, उसमें मजबूरन रुपये लेने पड़ते हैं. प्रखंड स्तर पर तैनात इंजीनियर से लेकर पटना तक कौन है जो रुपया नहीं ले रहा. और जो रुपया नहीं ले रहा, क्या वह चैन से नौकरी कर पा रहा है. मुंह अगर खोल दिया तो पटना तक विस्फोट हो जाएगा."
इसके पहले मुजफ्फरपुर के जिला परिवहन पदाधिकारी (डीटीओ) रजनीश लाल के यहां से नकदी व आभूषणों की बरामदगी काफी चर्चा में रही थी. विजिलेंस ने लाल के यहां बीते 23-24 जून को छापेमारी की थी. डीटीओ की एक करोड़ 24 लाख की संपत्ति अवैध घोषित की गई थी. उनकी सास सरस्वती देवी के लॉकर की तलाशी लेने पर भी 20 लाख के गहने मिले थे. भागलपुर जिला पुलिस में तैनात एक सिपाही शशि भूषण कुमार और उनकी पत्नी नुनू देवी डेढ़ करोड़ रुपये की संपत्ति की मालिक बताई गई.
निगरानी अन्वेषण ब्यूरो (विजिलेंस) की वेबसाइट देखें तो उस पर लगभग सभी विभागों के आला अधिकारियों से लेकर निचले स्तर तक के अधिकारियों-कर्मचारियों पर चल रही कार्रवाई का ब्योरा मिल जाएगा. इनमें कार्यपालक अभियंता, मेडिकल ऑफिसर, बाल विकास परियोजना पदाधिकारी, भू अर्जन पदाधिकारी, शिक्षा पदाधिकारी, प्रखंड व अंचल स्तर के पदाधिकारी, दारोगा-सिपाही, लिपिक, नाजिर व राजस्व कर्मचारी से लेकर कम्प्यूटर डाटा ऑपरेटर तक शामिल हैं. ये सभी ऐसे अधिकारी या कर्मचारी हैं जो सरकार के निर्णयों को जमीनी स्तर पर अमली जामा पहनाते हैं.
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'खुली धमकी देते हैं अफसर'
मुख्यमंत्री के जनता दरबार में भी सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार की पोल खुलती रही है. मुख्यमंत्री को मुख्य सचिव को बुलाकर कहना पड़ा, "देखिए, क्या हो रहा है. प्रखंड-अंचल स्तर के अधिकारियों की लापरवाही के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. लोग शिकायत कर रहे हैं."
मुजफ्फरपुर के एक युवक ने तो सीएम से शिकायत की थी कि रजिस्ट्रार कार्यालय में भू-अभिलेखों की सर्टिफाइड कॉपी उपलब्ध कराने के लिए दस हजार रुपये की मांग की जाती है. युवक ने कहा, "जब मैंने कर्मचारियों से मुख्यमंत्री से शिकायत करने की बात कही तो उन्होंने कहा कि सीएम-पीएम, जिसके पास जाना चाहो, जाओ. हमारा कुछ नहीं बिगड़ने वाला."
देखेंः भारत के महाघोटाले
भारत के महाघोटाले
भारत में भ्रष्टाचार का मुद्दा राजनीति के केंद्र में है. यूपीए सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी रही. फिर भ्रष्टाचार मुक्त शासन के वादे के साथ मोदी सरकार सत्ता में आयी. एक नजर भारत के अब तक के महाघोटालों पर.
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कोलगेट स्कैम
यूपीए टू के समय सामने आया कोलगेट घोटाला 1993 से 2008 के बीच सार्वजनिक और निजी कंपनियों को कम दामों में कोयले की खदानों के आवंटन का था. कैग (सीएजी) की ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा गया था कि गलत आवंटन कर इन कंपनियों को 10,673 अरब का फायदा पहुंचाया गया था. इस घोटाले ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि पर नकारात्मक असर डाला. हालांकि अदालत में यह घोटाला साबित नहीं हुआ.
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टूजी स्कैम
कंपनियों को गलत तरह से टूजी स्पैक्ट्रम आवंटित करने का यह महाघोटाला भी यूपीए सरकार के समय का है. कैग के एक अनुमान के मुताबिक जिस कीमत में इन स्पैक्ट्रमों को बेचा गया और जिसमें इसे बेचा जा सकता था उसमें 17.6 खरब रूपये का अंतर था. यानि देश को लगा कई खरब का चूना लगा. लेकिन अदालत में सीबीआई इसको साबित नहीं कर सकी. अदालत ने कहा कि कोई घोटाला ही नहीं हुआ.
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व्यापमं घोटाला
भाजपा शासित मध्यप्रदेश में व्यावसायिक परीक्षा मंडल की ओर से मेडिकल समेत अन्य सरकारी क्षेत्रों की भर्ती परीक्षा में धांधली से जुड़ा 'व्यापमं घोटाला' अब तक का सबसे जानलेवा घोटाला है. अब तक इससे जुड़े, इसकी जांच कर रहे या इस की खबर लिख रहे पत्रकारों समेत दर्जनों लोगों की रहस्यमयी तरीके से मौत हो चुकी है.
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बोफोर्स घोटाला
स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी बोफोर्स के साथ राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के तोपों की खरीद के सौदे में घूसखोरी का ये घोटाला भारतीय राजनीति का सबसे चर्चित घोटाला है. 410 तोपों के लिए कंपनी के साथ 1.4 अरब डॉलर का सौदा किया गया जो कि इसकी असल कीमतों का दोगुना था. अदालत ने राजीव गांधी को इस मामले से बरी कर दिया था.
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कफन घोटाला
2002 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के दौर में सामने आया यह घोटाला कारगिल युद्ध के शहीदों के ताबूतों से जुड़ा था. शहीदों के लिए अमेरीकी कंपनी ब्यूट्रॉन और बैजा से तकरीबन 13 गुना अधिक दामों में ताबूत खरीदे गए थे. हर एक ताबूत के लिए 2,500 डॉलर दिए गए.
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हवाला कांड
एलके आडवानी, शरद यादव, मदन लाल खुराना, बलराम जाखड़ और वीसी शुक्ला समेत भारत के अधिकतर राजनीतिक दलों के नेताओं का नाम इस घोटाले में सामने आया. इस घोटाले में हवाला दलाल जैन बंधुओं के जरिए इन राजनेताओं को घूस दिए जाने का मामला था. इसकी जांच में सीबीआई पर कोताही बरतने के आरोप लगे और धीरे-धीरे तकरीबन सभी आरोपी बरी होते गए.
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शारदा चिट फंड
200 निजी कंपनियों की ओर से साझे तौर पर निवेश करने के लिए बनाए गए शारदा ग्रुप में हुआ वित्तीय घोटाला भी महाघोटालों में शामिल है. चिट फंड के बतौर जमा राशि को लौटाने के समय में कंपनी को बंद कर दिया गया. इस घोटाले में त्रिणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद कुणाल घोष जेल भजे गए. साथ ही बीजू जनता दल, बीजेपी और त्रिणमूल कांग्रेस के कई अन्य नेताओं की भी गिरफ्तारियां हुई हैं.
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ऑगस्टा वेस्टलैंड डील
इटली की हेलीकॉप्टर निर्माता फर्म ऑगस्टा वेस्टलैंड से 12, एडब्लू101 हेलीकॉप्टर्स की खरीददारी के इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत कुछ भारतीय राजनीतिज्ञों और सेना के अधिकारियों पर घूस लेने के आरोप हैं. ऑगस्टा वेस्टलैंड के साथ इन 12 हेलीकॉप्टर्स के लिए ये सौदा 36 अरब रूपये में हुआ था.
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चारा घोटाला
करीब 9.4 अरब के गबन का चारा घोटाला भारत के मशहूर घोटालों में से एक है. यह घोटाला राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक अवसान की वजह बना. वहीं इस घोटाले से पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा और शिवानंद तिवारी का भी नाम जुड़ा था.
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कॉमनवेल्थ
2010 में आयोजित हुए कॉमनवेल्थ खेल, भारत में खेल जगत का सबसे बड़ा घोटाला साबित हुए. इस खेल में अनुमानित तौर पर 70 हजार करोड़ रूपये खर्च किए गए. गलत तरीके से ठेके देकर, जानबूझ कर निर्माण में देरी, गैर वाजिब कीमतों में चीजें खरीद कर इस पैसे का दुरूपयोग किया गया था. इन अनियमितताओं के केंद्र में मुख्य आयोजनकर्ता सुरेश कल्माड़ी का नाम था.
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पत्रकार राजेश रौशन कहते हैं, "वाकई, यह बिहार के हर दफ्तर की स्थिति है. अधिकारी-कर्मचारी डंके की चोट पर पैसे लेते हैं. हो सकता है, पैसा दिए बिना आपका कुछ काम हो भी जाए लेकिन, वह कब होगा यह कहना मुश्किल है. पैसे दे दीजिए, फिर चाल देखिए."
बिहार सरकार के भूमि व राजस्व विभाग के मंत्री रामसूरत राय तो पहले ही कह चुके हैं कि उन्हें यह कहने में गुरेज नहीं है कि राज्य में भ्रष्टाचार व्याप्त है और उसकी नींव बहुत गहरी है. जिन लोगों की वास्तव में समस्या होती है, उनका काम नहीं हो पाता है.
आखिर क्या कर रही है सरकार
ऐसा नहीं है कि सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है. सरकार ने आइएएस व आइपीएस अधिकारियों तक के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच के लिए स्पेशल विजिलेंस यूनिट (एसवीयू) का गठन किया हुआ है.
इसी यूनिट ने 2007 में पहला मामला राज्य के पुलिस महानिदेशक रहे नारायण मिश्रा के खिलाफ दर्ज किया था. 2012 में इनके पटना स्थित आलीशान मकान को जब्त कर दिव्यांग बच्चों के स्कूल में तब्दील कर दिया गया था.
2011 में नीतीश सरकार ने आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) का गठन किया. यह इकाई आय से अधिक संपत्ति के मामलों के अलावा नॉन-बैंकिंग कंपनियों के मामले, नारकोटिक्स, साइबर क्राइम तथा शराब माफिया के खिलाफ दर्ज केस को देखती है.
तस्वीरेंः किन विभागों में चलती है सबसे ज्यादा घूस
भारत में इन विभागों में चलती है सबसे ज्यादा घूस
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया और लोकल सर्किल ने 'इंडिया करप्शन सर्वे 2019' की रिपोर्ट में बताया है कि भारत में 2018 के मुकाबले 2019 में भ्रष्टाचार में 10 प्रतिशत की कमी आई है. यह सर्वे 20 राज्यों में किया गया है.
तस्वीर: Reuters/J. Dey
संपत्ति निबंधन और भूमि मामला
भारत में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार संपत्ति निबंधन और भूमि से जुड़े मामलों है. सबसे अधिक 26 प्रतिशत घूस के मामले इस विभाग से जुड़े हैं. जानकारों का मानना है कि भारत के कई राज्यों में चकबंदी नहीं होने और जमीन के कागजात पुरखों के नाम पर होना इसकी बड़ी वजह है. दूसरी वजह तेजी से संपत्ति की कीमतों में इजाफा होना है. बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों तक में जमीन की धोखाधड़ी से जुड़े मामलों सामने आते रहते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Hussain
पुलिस
भ्रष्टाचार और घूसखोरी के मामले में पुलिस दूसरे स्थान पर है. 19 प्रतिशत घूस के मामले इस विभाग से जुड़े हैं. कुछ ही दिनों पहले बिहार की राजधानी पटना में घूसखोरी का बड़ा मामला सामने आया था. महात्मा गांधी सेतु पुल पर ओवरलोडेड वाहनों को पार कराने के लिए घूस लेने के आरोप में एक साथ 45 पुलिस वालों को निलंबित किया गया था.
तस्वीर: Getty Images/AFP
नगर निगम
घूस लेने के मामले में नगर निगम भी पीछे नहीं है. 13 प्रतिशत घूस के मामले इसी विभाग से जुड़े हैं. बिहार की राजधानी पटना के रहने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि वे अपने घर का नक्शा पास कराने के लिए महीनों से कोशिश कर रहे थे लेकिन आज-कल की बात कर महीनों तक उन्हें कार्यालय का चक्कर लगवाया गया. आखिरकार कर्मचारी को पैसे देने के बाद उनका काम हुआ.
तस्वीर: Reuters/F. Mascarenhas
बिजली विभाग
सर्वे शामिल 3 प्रतिशत लोगों ने बिजली विभाग में घूस देने की बात कही है. प्रीपेड मीटर आने के बाद से इस विभाग में भ्रष्टाचार के मामलों में कमी आई है लेकिन पैसे लेकर कनेक्शन जोड़ने और काटने का मामला चलता रहता है. कुछ महीने पहले झारखंड झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड के सहायक अभियंता को एंटी करप्शन ब्यूरो ने 20 हजार रुपये घूस लेते हुए गिरफ्तार किया था.
तस्वीर: Murali Krishnan.
ट्रांसपोर्ट ऑफिस
सर्वे में शामिल 13 प्रतिशत लोगों ने ट्रांसपोर्ट ऑफिस में घूस देने की बात कही है. जानकार बताते हैं कि ट्रांसपोर्ट विभाग के कर्मचारी हाइवे पर वाहनों को पास देने से लेकर कार्यालय में ड्राइविंग लाइसेंस बनावने तक के काम के लिए घूस लेते हैं. कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश में प्रदूषण के नाम पर उगाही करने वाला वीडियो वायरल हुआ था, जिसने ट्रांसपोर्ट विभाग में खलबली मचा दी थी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Dutta
टैक्स डिपार्टमेंट
सर्वे में शामिल 8 प्रतिशत लोगों ने टैक्स विभाग में घूस देने के बात कही. टैक्स विभाग में घूसखोरी की बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि केंद्र की मोदी सरकार भ्रष्टाचार के आरोपित टैक्स अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें जबरन रिटायर कर रही है.
तस्वीर: AP
जल विभाग
5 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उन्होंने जल विभाग में घूस दी है. वहीं 13 प्रतिशत लोगों ने अन्य विभागों में घूस देने की बात कही है.
तस्वीर: Reuters/F. Mascarenhas
सर्वेक्षण में शामिल लोग
'इंडिया करप्शन सर्वे 2019' में 20 राज्यों के 248 जिलों के 1,90,000 लोग शामिल हुए. सर्वे के अनुसार 51 प्रतिशत भारतीयों ने पिछले 12 महीनों में एक बार घूस जरूर दी है.
तस्वीर: DW/A. Ansari
इन राज्यों में ज्यादा भ्रष्टाचार
भारत के राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, झारखंड और पंजाब में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है.
तस्वीर: IANS
इन राज्यों में कम भ्रष्टाचार
दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, पश्चिम बंगाल, केरल, गोवा और ओडिशा में कम भ्रष्टाचार है. भारत भर में 2018 के मुकाबले 2019 में भ्रष्टाचार के कुल स्तर में 10 प्रतिशत की कमी आई है.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
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हाल में ही यह आदेश जारी किया गया है कि जो अपनी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक नहीं कर रहे हैं, उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने के साथ-साथ एफआईआर दर्ज की जाएगी. भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की त्वरित सुनवाई एवं निगरानी अन्वेषण ब्यूरो तक आम लोगों की पहुंच आसान बनाने के लिए एक हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया गया है. कोई भी व्यक्ति उस नंबर शिकायत दर्ज करा सकता है और उसकी पहचान गुप्त रखी जाएगी.
केस दर्ज करने की रफ्तार में कमी
निगरानी अन्वेषण ब्यूरो में मामले दर्ज करने में उत्तरोत्तर कमी आई है. आंकड़ों के अनुसार 2017 में 83, साल 2018 में 45 व साल 2019 में 36 शिकायतें विजिलेंस में दर्ज की गईं. 2020 में कोरोना काल में शिकायतों में काफी कमी आई.
निगरानी ब्यूरो के एक अधिकारी नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर कहते हैं, "शिकायतों में कमी की वजह से भ्रष्टाचार से लड़ाई अवश्य ही कमजोर हुई है. हमें सब पता है, किंतु हम काम से लदे हैं. यहां मानव बल की घोर कमी है." यही हाल एसवीयू का भी है. यही वजह है कि भ्रष्टाचार से लड़ाई में यह विंग कोई उल्लेखनीय मुकाम हासिल नहीं कर पाया है.
'सीना तान पैसे ले रहे अफसर'
विपक्ष भी इस मुद्दे पर लगातार हमलावर रहा है. बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर आरोप लगाया कि बिहार में अधिकारी बेलगाम हो गए हैं, सीना तान सरकारी काम में लापरवाही कर भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी को बढ़ावा दे रहे हैं. उन्होंने लिखा, "पर सरकार और मंत्रियों को इससे क्या! उन्हें तो बंदरबांट में अपने हिस्से से मतलब है."
हालांकि जदयू नेता व विधान पार्षद संजय सिंह हमेशा की तरह कहते हैं, "हमारी सरकार न तो किसी को फंसाती है और न ही किसी को बचाती है. कानून अपना काम करता है, कोई उसके लंबे हाथों से बच नहीं सकता है."
लोजपा नेता व सांसद चिराग पासवान भी विधानसभा चुनाव के समय से ही नीतीश सरकार पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाते रहे हैं. उनका कहना है, "भ्रष्टाचार को लेकर बिहार पहले पायदान पर पहुंच चुका है, तभी तो विकास रुक गया है."