अफ्रीका: भ्रष्टाचार का डंक, 60 फीसदी युवा पलायन की सोच रहे
६ सितम्बर २०२४
16 देशों के 5,600 से अधिक युवाओं के एक ताजा सर्वे के मुताबिक 60 फीसदी अफ्रीकी युवा देश छोड़ने की सोच रहे हैं, क्योंकि अनियंत्रित भ्रष्टाचार उनके भविष्य के लिए खतरा है. इस सर्वे में कोई अहम बातें सामने आई हैं.
एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक अफ्रीका के युवा अपने देश में भ्रष्टाचार से परेशान हैं और वे देश छोड़ने की सोच रहे हैंतस्वीर: Julia Jaki/DW
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अफ्रीकी महाद्वीप के 16 देशों में किए गए एक हालिया सर्वे के नतीजों के मुताबिक, व्यापक भ्रष्टाचार के कारण 60 प्रतिशत युवा अफ्रीकी अपने देश छोड़ना चाहते हैं.
दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सिबर्ग में मौजूद एशिकोविट्स फैमिली फाउंडेशन ने 18 से 24 साल की उम्र के 5,604 युवाओं की राय जानी और नतीजों के मुताबिक सर्वे में शामिल युवा भ्रष्टाचार को "एकमात्र सबसे बड़ी बाधा" के रूप में देखते हैं, जिसका सामना वे अपनी क्षमता और बेहतर जीवन को प्राप्त करने में करते हैं.
सर्वे रिपोर्ट में कहा गया, "सबसे बड़ी बात यह है कि उन्हें भरोसा नहीं है कि उनकी सरकारें इस समस्या से निपटने के लिए पर्याप्त कदम उठा रही हैं और इसी वजह से लगभग 60 फीसदी लोग अगले पांच सालों में देश छोड़ने की सोच रहे हैं."
अफ्रीकी यूथ सर्वे 2024 के बारे में एशिकोविट्स फैमिली फाउंडेशन का कहना है कि इसका दायरा और पैमाना दोनों ही अभूतपूर्व हैं. सर्वेक्षण में जनवरी और फरवरी में दक्षिण अफ्रीका से लेकर इथियोपिया तक के देशों में युवाओं के साथ आमने-सामने बैठकर इंटरव्यू किए गए. इस आयु वर्ग के लोगों में विदेश जाने के लिए पसंदीदा देशों में उत्तरी अमेरिका, इसके बाद ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और स्पेन जैसे पश्चिमी यूरोपीय देश थे.
सर्वे में शामिल आधे से अधिक (55 प्रतिशत) युवाओं ने कहा कि अफ्रीका "गलत दिशा" में जा रहा है. हालांकि वर्तमान सर्वेक्षण में 2022 की तुलना में "अफ्रीकी आशावाद" में 37 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
फाउंडेशन ने कहा, "वे (सर्वे में शामिल युवा) भ्रष्ट राजनेताओं के खिलाफ सख्त प्रतिबंध चाहते हैं, जिसमें उनके चुनाव लड़ने पर रोक भी शामिल है. वे सरकार का एक अलग स्वरूप भी चाहते हैं."
अफ्रीका विकास बैंक के मुताबिक अफ्रीकी महाद्वीप में 15 से 35 वर्ष की आयु के बीच लगभग 42 करोड़ युवा आबादी है, जिनमें से एक तिहाई बेरोजगार हैंतस्वीर: picture-alliance/dpa
हालांकि इंटरव्यू में शामिल लगभग दो-तिहाई लोग लोकतंत्र में विश्वास करते हैं, लगभग 60 प्रतिशत ने लोकतंत्र के "अफ्रीकी-प्रेरित" स्वरूप का समर्थन किया. सर्वे में भाग लेने वाले हर तीन में से लगभग एक का मानना था कि कुछ हालात में गैर-लोकतांत्रिक व्यवस्था, जैसे कि सैन्य या एक-दलीय शासन बेहतर हो सकता है.
क्यों घर छोड़ने पर मजबूर हैं अफ्रीका के लोग
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अफ्रीकी देशों में विदेशी प्रभाव
सर्वे में शामिल अधिकांश लोगों (72 प्रतिशत) ने कहा कि अफ्रीकी देशों में विदेशी प्रभाव एक समस्या है. फाउंडेशन के अनुसार, "वे अपने देशों में विदेशी कंपनियों द्वारा शोषण को लेकर चिंतित हैं, खासकर उन देशों में जो प्राकृतिक खनिज संपदा का खनन कर रहे हैं और लोगों को लाभ पहुंचाए बिना इन खनिजों को निकाल रहे हैं."
जिंबाब्वे में महंगे इंटरनेट की मार
दुनिया में इंटरनेट के जरिए बिजनेस फल-फूल रहा है लेकिन जिंबाब्वे में महंगा इंटरनेट कारोबार पर गहर असर डाल रहा है. अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि बढ़ती लागत ने डिजिटल विभाजन को गहरा कर दिया है.
तस्वीर: Alfredo Zuniga/AFP/Getty Images
महंगा डाटा
जब जिंबाब्वे में इंटरनेट डाटा महंगा हुआ तो जॉयस कपवुमफुटी को निराशा हुई. उनका कैटरिंग का बिजनेस एक हफ्ते के लिए ऑफलाइन रहा जिससे उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ा. इंटरनेट तक पहुंच नहीं होने के कारण उन्हें शादी के केक, बिजनेस लंच और फ्रॉस्टेड कप केक के ऑर्डर नहीं मिल पाए.
तस्वीर: Alfredo Zuniga/AFP/Getty Images
और भी खर्च
जॉयस को इंटरनेट डाटा के अलावा घर के खर्च और दो बच्चों को लिए भोजन का इंतजाम करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. वो कहती हैं, "ऑनलाइन विज्ञापन और मार्केटिंग करते समय मुझे सप्ताह में कम से कम पांच ग्राहक मिलते थे, लेकिन जब मेरे पास इंटरनेट डाटा नहीं है, तो मैं भाग्यशाली हो जाऊंगी अगर मुझे दो ग्राहक मिल जाएं."
तस्वीर: DW/Nyani Quarmyne
आसमान छूती कीमत
जिंबाब्वे में इंटरनेट की कीमत आसमान छू रही है. इस वजह से लोगों को बुनियादी सेवाओं या पढ़ाई करने में काफी दिक्कत पेश आ रही है. कई लोगों के लिए बिना इंटरनेट रिमोट काम करना भी मुश्किल हो रहा है.
तस्वीर: DW/Nyani Quarmyne
इतना महंगा इंटरनेट
इकोनेट वायरलेस जिंबाब्वे, जोकि देश का प्रमुख मोबाइल ऑपरेटर है, उसने अक्टूबर 2023 में डाटा की कीमतों में 100 फीसदी की बढ़ोतरी की. अब एक जीबी डाटा की कीमत औसतन 3.54 डॉलर यानी 300 रुपये के करीब है.
तस्वीर: Charlie Shoemaker/Getty Images
"खास लोगों तक ही पहुंच"
एक गैर-सरकारी संगठन मीडिया इंस्टीट्यूट ऑफ सदर्न अफ्रीका (एमआईएसए) के जिंबाब्वे चैप्टर के साथ पहले काम कर चुके डिजिटल अधिकार कार्यकर्ता नोम्पिलो सिमंजे ने कहा, "इंटरनेट का इस्तेमाल एक विलासिता तक सीमित कर दिया गया है जिसे केवल कुछ खास लोग ही वहन कर सकते हैं."
तस्वीर: Donwilson Odhiambo/Getty Images
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82 प्रतिशत लोगों ने चीन के प्रभाव को सकारात्मक रूप से देखा, जबकि 79 प्रतिशत ने अमेरिका के प्रभाव को सकारात्मक रूप में देखा. रूसी प्रभाव की धारणाएं बढ़ी हैं, विशेष रूप से मलावी और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में जहां रूस के बारे में सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले आधे से अधिक लोग मॉस्को की अनाज और खाद आपूर्ति का हवाला देते हैं.
सर्वे में भाग लेने वाले अधिकतर लोगों ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डॉनल्ड ट्रंप की जीत का अफ्रीका के लिए डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस की जीत से भी बुरा परिणाम होगा.
अफ्रीकी युवा सर्वे पहली बार 2020 में हुआ था. इसका मकसद "वैज्ञानिक रूप से अफ्रीका के युवाओं को आवाज देना" है. फाउंडेशन के संचार निदेशक निको डी क्लार्क ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि इस डेटा का इस्तेमाल सरकारें, गैर सरकारी संगठन और निवेशकों के लिए अहम है.
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अफ्रीकी देशों में बरोजगारी
अफ्रीका में दुनिया की सबसे युवा और सबसे तेजी से बढ़ती हुई आबादी है. मो. इब्राहिम फाउंडेशन के मुताबिक 2020 में इस महाद्वीप के निवासियों की औसत आयु 19.7 वर्ष थी, जबकि लैटिन अमेरिका में यही औसत 31 वर्ष, उत्तरी अमेरिका में 38.6 वर्ष और यूरोप में 42.5 वर्ष थी.
अफ्रीका विकास बैंक के मुताबिक इस महाद्वीप में 15 से 35 वर्ष की आयु के बीच लगभग 42 करोड़ युवा आबादी है, जिनमें से एक तिहाई बेरोजगार हैं. बैंक का कहना है कि 2050 तक अफ्रीका की कुल युवा आबादी दोगुनी होकर 83 करोड़ हो जाएगी.
एए/वीके (एएफपी)
सबसे भ्रष्ट देशः भारत की रैंकिंग गिरी
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने 2023 का करप्शन परसेप्शन इंडेक्स जारी किया है, जिसमें भ्रष्टाचार के बारे में राय पर 180 देशों की सूची बनाई गई है. देखिए, कौन सा देश है सबसे भ्रष्टः
तस्वीर: Adam Schultz/White House/Planet Pix/ZUMA Press/picture alliance
2023 करप्शन इंडेक्शन
भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की 2023 की सूची में जीरो से 100 के बीच नंबर दिए गए हैं. दो तिहाई देशों के अंक 50 से कम रहे और औसत स्कोर मात्र 43 रहा.
तस्वीर: Rafael Henrique/ZUMA Wire/IMAGO
सबसे ईमानदार देश
यूरोपीय देशों को सबसे ज्यादा अंक मिले हैं. डेनमार्क (90) के अंक सबसे ज्यादा हैं. उसके बाद फिनलैंड (87) और फिर न्यूजीलैंड (85) का नंबर है.
तस्वीर: Jonathan NACKSTRAND/AFP/Getty Images
यूरोपीय देश सबसे ऊपर
पहले दस में आठ यूरोपीय देश हैं. डेनमार्क और फिनलैंड के अलावा नॉर्वे, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड्स, जर्मनी और लग्जमबर्ग का नंबर है.
तस्वीर: Yves Herman/REUTERS
सबसे भ्रष्ट देश
इस सूची में सबसे नीचे सोमालिया को रखा गया है जिसे सिर्फ 11 अंक मिले हैं. उसके बाद 13 अंकों के साथ वेनेजुएला, सीरिया और सूडान का स्थान है.
तस्वीर: Hassan Ali ELMI/AFP
एशियाई देश
सूची में पहले दस देशों में सिंगापुर एकमात्र एशियाई देश है, जो पांचवें नंबर पर है. हांग कांग को 14वां और जापान को 16वां नंबर मिला है.
तस्वीर: Dasril Roszandi/NurPhoto/picture alliance
भारत की रैंकिंग गिरी
2022 के मुकाबले भारत की रैंकिंग एक स्थान गिर गई है और वह 93वें नंबर पर आ गया है. उसे 100 में से मात्र 39 अंक मिले हैं. चीन की रैंकिंग भी तीन स्थान गिरी है और अब वह 76वें नंबर पर है. पाकिस्तान की रैंकिंग में दो स्थान का सुधार हुआ है और वह 133वें नंबर पर है.
तस्वीर: India's Press Information Bureau/REUTERS
अमेरिका
अमेरिका की स्थिति पिछले साल जैसी ही है और वह 24वें नंबर पर है. सूची में 28 देश ऐसे हैं जिनकी रैंकिंग में सुधार हुआ है जबकि 34 देशों की रैंकिंग नीचे गिरी है. दुनिया की 80 फीसदी आबादी ऐसे देशों में रह रही है जिनके अंक 43 के औसत से नीचे हैं.
तस्वीर: Adam Schultz/White House/Planet Pix/ZUMA Press/picture alliance