रिपोर्ट: जीवन-यापन के खर्च की मार सबसे ज्यादा महिलाओं पर
१५ जुलाई २०२२
श्रम बाजार में लैंगिक भेदभाव तेजी से बढ़ रहा है और विश्व आर्थिक मंच ने एक रिपोर्ट में कहा है कि ईंधन और खाद्य सामग्री के बढ़ते दाम के कारण जीवन-यापन के खर्च का संकट महिलाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित करेगा.
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वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) की एक ताजा रिपोर्ट से पता चलता है कि महिलाओं को लागत संकट से कड़ी टक्कर मिलेगी क्योंकि यह वैश्विक श्रम शक्ति में बढ़ती लैंगिक असमानता को और बढ़ाता है. हर साल दावोस में आयोजित होने वाले वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मेजबान इस थिंक टैंक द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक आर्थिक संकट, महंगाई और जीवन की दैनिक जरूरतों की ऊंची कीमतों का नकारात्मक असर ज्यादातर महिलाओं पर होगा. इसके अलावा, इस स्थिति से पैदा हुए लैंगिक असमानता से बचने की कोई उम्मीद नहीं है. उसका कहना है कि श्रम बाजार में लैंगिक भेदभाव तेजी से बढ़ रहा है.
चीन के वुहान में पहली बार दिसंबर 2019 में फैले कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया. ढाई साल के भीतर दुनिया भर के देशों की आर्थिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति पूरी तरह से बदल गई. जन स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में आम लोगों को जिन कठिनाइयों से गुजरना पड़ा, उसका तथ्य सबके सामने है.
लेकिन लगभग हर समाज में कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए किए गए उपायों का प्रभाव भी सबसे ज्यादा सिर्फ महिलाओं पर है. लॉकडाउन, सोशल डिस्टेंसिंग और ऐसे ही अन्य नियमों के कारण महिलाओं के लिए अपनी सामाजिक, घरेलू और आर्थिक जिम्मेदारियों को निभाना सबसे कठिन हो गया. वर्क फ्रॉम होम, बच्चों की देखभाल आदि के प्रभावों ने महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य काफी हद तक प्रभावित किया.
कोरोना महामारी के दौर में जॉब मार्केट में महिलाओं को भी पुरुषों से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा. श्रम बाजार में लैंगिक असमानता इसका एक प्रमुख कारण था.
डब्ल्यूईएफ के अनुमान के मुताबिक अगर मौजूदा हालात को सामने रखा जाए तो दुनिया में लैंगिक समानता लाने में 132 साल लगेंगे. 2020 में किए गए अनुमानों के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया था कि इस लक्ष्य को हासिल करने में 100 साल लगेंगे. डब्ल्यूईएफ ने अपनी रिपोर्ट में लैंगिक समानता को प्रभावित करने वाले चार कारकों को परिभाषित किया है- वेतन और आर्थिक अवसर, शिक्षा, स्वास्थ्य और महिलाओं का सशक्तिकरण. इन कारकों पर कौन सा देश किस स्तर पर है, इसका अनुमान लगाने के लिए, विश्व आर्थिक मंच ने 146 देशों के डेटा वाली एक सूची तैयार की है. आइसलैंड के पास सबसे अधिक अंक हैं, इसके बाद कई उत्तरी यूरोपीय देश हैं, इसके बाद न्यूजीलैंड, रवांडा, निकारागुआ और नामीबिया का नंबर आता है. 146 देशों की इस सूची में यूरोप की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत जर्मनी दसवें स्थान पर है.
100 सालों तक में नहीं आ पाएगी लैंगिक बराबरी
दुनिया में पुरुषों और महिलाओं के बीच बराबरी नहीं आ पा रही है और ग्लोबल जेंडर गैप को अगले 100 सालों में भी भरा नहीं जा पाएगा. यह कहना है वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 का.
तस्वीर: Hindustan Times/imago images
68% सफलता
रिपोर्ट कहती है कि 2022 में ग्लोबल जेंडर गैप को 68.1 प्रतिशत बंद किया जा सका है. इस दर पर पूरी बराबरी हासिल करने में 132 साल लगेंगे. स्थिति में थोड़ा सा सुधार हुआ है. 2021 में यह अनुमान 136 सालों का था.
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राजनीतिक सशक्तिकरण में सबसे बुरा हाल
रिपोर्ट में शामिल किए गए 146 देशों में स्वास्थ्य जेंडर गैप को 95.8 प्रतिशत भरा जा सका है, शिक्षा में 94.4 प्रतिशत, आर्थिक हिस्सेदारी में 60.3 प्रतिशत और राजनीतिक सशक्तिकरण में सिर्फ 22 प्रतिशत गैप को भरा जा सका है.
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सबसे बढ़िया प्रदर्शन
पूरी बराबरी तो कोई भी देश हासिल नहीं कर सका है लेकिन सबसे ऊपर के 10 देशों ने कम से कम 80 प्रतिशत जेंडर गैप को भर लिया है. इनमें 90.8 प्रतिशत के साथ आइसलैंड सबसे ऊपर है. उसके बाद नंबर है फिनलैंड (86 प्रतिशत), नॉर्वे (84.5 प्रतिशत), न्यू जीलैंड (84.1 प्रतिशत) और स्वीडन (82.2 प्रतिशत) का.
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प्रांतों में उत्तरी अमेरिका आगे
76.9 प्रतिशत जेंडर गैप को भर कर उत्तरी अमेरिका सभी प्रांतों से आगे है. उसके बाद नंबर है यूरोप (76.6 प्रतिशत), लैटिन अमेरिका (72.6 प्रतिशत) का, मध्य एशिया (69.1 प्रतिशत), प्रशांत (69 प्रतिशत), उप-सहारा अफ्रीका (67.8 प्रतिशत), मध्य पूर्व एशिया और उत्तरी अफ्रीका (63.4 प्रतिशत) का. सिर्फ 62.4 प्रतिशत के साथ भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों का प्रदर्शन सबसे बुरा है.
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भारत काफी नीचे
2021 में भारत 140वें स्थान पर था और इस साल भारत ने 146 देशों में 135वां स्थान हासिल किया है. स्वास्थ्य जेंडर गैप में भारत सबसे नीचे यानी 146वें स्थान पर है, आर्थिक हिस्सेदारी में 143वें स्थान पर, शिक्षा में 107वें स्थान पर और राजनीतिक सशक्तिकरण में 48वें स्थान पर है.
तस्वीर: Sanjay Kanojia/AFP
स्वास्थ्य क्षेत्र में बुरा हाल
स्वास्थ्य जेंडर गैप में जन्म के समय लिंग अनुपात और स्वास्थ्य आयु संभाविता का आकलन किया गया. इन मोर्चों पर भारत का प्रदर्शन 146 देशों में सबसे खराब पाया गया.
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भारत में राजनीतिक सशक्तिकरण
राजनीतिक सशक्तिकरण में भारत का स्थान काफी ऊंचा है और वैश्विक औसत से ऊपर है, लेकिन कुल अंक (0.267) काफी कम हैं. यहां तक कि बांग्लादेश ने भी 0.546 अंक हासिल किए हैं.
तस्वीर: Hindustan Times/imago images
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डब्ल्यूईएफ की प्रबंध निदेशक सादिया जाहिदी का कहना है, "स्थिति में कमजोर सुधार को देखते हुए सरकार को दो महत्वपूर्ण श्रेणियों पर ध्यान केंद्रित करना होगा और सुधार के प्रयास करने होंगे."
उन्होंने कहा, "महिलाओं को कार्यबल में वापस लाने और प्रतिभा विकसित करने व महिलाओं को भविष्य के उद्योगों में काम करने के लिए और अधिक प्रशिक्षण देने के प्रयास किए जाने चाहिए. पिछले दशकों में हुई लैंगिक समानता पर प्रगति कम हो जाएगी, जबकि भविष्य की अर्थव्यवस्थाओं में विविधता लाने के प्रयासों को भी कम आंका जाएगा."
यह रिपोर्ट पिछले 16 साल से तैयार की जा रही है. इसका उद्देश्य उन कारकों की पहचान करना है जो श्रम बाजार में लैंगिक अंतर या लैंगिक असमानता में योगदान करते हैं.
एए/सीके (एपी)
जल सहेलियों का चमत्कार
बुंदेलखंड के सूखे इलाके में एक हजार महिलाओं ने जल क्रांति लाने की तैयारी कर ली है. जल सहेलियों का यह समूह तीन साल की मेहनत का फल है.
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चमत्कारी जल सहेली
बुंदेलखंड के कई गांवों में काम कर रहीं इन महिलाओं को जल सहेली कहते हैं. इन महिलाओं ने इलाके की तस्वीर बदलने का बीड़ा उठा रखा है.
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सूखे स्रोतों को जिंदा करने की कोशिश
जगह-जगह समूहों में काम करने वाली ये महिलाएं सूख चुके जल स्रोतों को फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रही हैं.
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अपने हाथों से काम
इन महिलाओं ने अपने हाथों से कई पक्के बांध और तालाब बनाए हैं ताकि मानसून के दौरान होने वाली बारिश के पानी को जमा किया जा सके.
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300 गांवों में सक्रिय
कम से कम 300 गांवों में इन जल सहेलियों ने मिलकर काम किया है जिसका असर नजर भी आया है. कई गांव ऐसे हैं जहां पानी पूरी तरह खत्म हो चुका था लेकिन अब वहां पानी उपलब्ध हो गया है.
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अगरोथा की सफल कहानी
अगरोथा एक ऐसा गांव है जहां छह सूखे तालाबों को पुनर्जीवित किया जा चुका है और गांव के लोग अब उस सूखे से पीड़ित नहीं हैं जिससे इलाके के हजारों लोग जूझ रहे हैं.
तस्वीर: Sanjay Kanojia/AFP
सरकार से बेहतर
इन महिलाओं को ट्रेनिंग देने का काम करने वाले समाजसेवी संजय सिंह कहते हैं कि इन महिलाओं ने वह काम किया है जो सरकार नहीं कर पाई है.