जर्मनी की सबसे बड़ी चिंता है घर चलाने का खर्च
१८ सितम्बर २०२५
हर साल होने वाली एक रिसर्च के नतीजों में यह बात सामने आई है. इस सर्वे का नाम है "जर्मनों की चिंताएं." करीब 52 फीसदी जर्मन लोगों को इस बात की चिंता है कि वे अपने खाने पीने और मकान के किराए जैसी जीवन के लिए जरूरी खर्चों का इंतजाम कैसे करेंगे. इन खर्चों की चिंता होने के पीछे वजह है बढ़ती महंगाई. यह रिसर्च 1992 में शुरू हुई थी. तब से लेकर यह 15वीं बार है जब जर्मन लोगों के दिमाग में घर का खर्च सबसे बड़ी चिंता है.
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इसके अलावा आप्रवसियों का लगातार आना भी लोगों के लिए चिंता की बात है. उन्हें लगता है कि नए आप्रवासियों के आने से देश की व्यवस्थाओं पर बोझ बढ़ेगा. यह उनकी दूसरी सबसे बड़ी चिंता है. उन्हें डर लग रहा है कि ज्यादा शरणार्थी और आप्रवासी देश के मूलभूत ढांचे और सेवाओं पर बड़ा असर डालेंगे.
आप्रवासियों ने बढ़ाई चिंता
जर्मनी ने पिछले एक दशक में बड़ी संख्या में आप्रवासियों और शरणार्थियों का आना देखा है. 2014 में सीरिया के गृहयुद्ध और 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद खासतौर से इसमें काफी तेजी आई. बीते महीनों में यह सिलसिला थोड़ा कमजोर जरूर हुआ है लेकिन रुका नहीं है. जर्मनी के लोगों को यह भी चिंता है कि उनके टैक्स में बढ़ोतरी होगी और सामाजिक लाभ में कटौती की जाएगी. वास्तव में यह उनकी तीसरी सबसे बड़ी चिंता है.
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रिसर्च रिपोर्ट के लेखक ने देखा कि सभी मामलों में लोगों की चिंता पिछले साल के मुकाबले मामूली रूप से कम हुई है. बल्कि 2021 के बाद से तो यह सबसे निचले स्तर पर है. यह और बात है कि मौजूदा परिदृश्य में भी उनकी सबसे बड़ी चिंता घर चलाना ही है.
वर्तमान की चिंता
रिसर्च से जुड़ी सलाहकार और राजनीति विज्ञानी इसाबेले बोरुकी का कहना है, "लोग लगातार कई तरह के संकटों का सामना कर रहे हैं." बोरुकी ने एक बयान में कहा है, "जर्मन लोग मौजूदा हालात के आदी होते जा रहे हैं." हालांकि उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि इसका मतलब यह नहीं है कि लोगों को अब चिंता नहीं होती. वास्तव में वे अब वर्तमान परिस्थितियों पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं. पहले लोगों को लगता था कि लंबे दौर में चीजें ठीक हो जाएंगी लेकिन अब उन्हें इसके और बिगड़ने का डर सता रहा है.
इस रिसर्च को आर प्लस वी इंश्योरेंस ने कमीशन किया था. इस साल के सर्वेक्षण के लिए 14 साल से ऊपर के करीब 2,400 लोगों से मई से लेकर जुलाई तक के बीच सवाल पूछे गए.
सर्वे में भाग लेने वालों को दिए गए मुद्दों पर एक से सात के स्केल पर नंबर देना था. सबसे कम नंबर का मतलब था कि उन्हें इसकी बिल्कुल चिंता नहीं जबकि ज्यादा नंबर का मतलब है कि उन्हें इसे लेकर बहुत चिंता रहती है.
आबादी और आप्रवासन
यूरोप के ज्यादातर देशों में आबादी के बढ़ने की दर ना के बराबर है. ऐसे में बड़े यूरोपीय देशों की चिंता कामकाजी लोगों की कमी दूर करना भी है. इस कमी को दूर करने के लिए जब आप्रवासन का सहारा लिया गया तो दूसरी समस्याएं खड़ी हो गईं. स्थानीय लोग इसे संसाधनों में हिस्सेदारी की तरह देख रहे हैं. इसके साथ उन्हें सांस्कृतिक मूल्यों में बदलाव का भी डर सता रहा है.
इसके नतीजे में कई देशों में दक्षिणपंथी उभार और आप्रवासियों का विरोध बढ़ने लगा है. इसी सप्ताहांत में लंदन में लाखों लोगों ने आप्रवासन के खिलाफ प्रदर्शन किया. ज्यादातर यूरोपीय देश इस तरह की स्थिति का सामना किसी ना किसी रूप में कर रहे हैं.