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मानवाधिकारनाइजीरिया

पैड न होने के चलते पीरियड्स में स्कूल नहीं जाती हैं लड़कियां

८ मार्च २०२२

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पढ़िए उन लड़कियों की कहानी, जो सैनेटरी पैड न होने के चलते स्कूल नहीं जा पाती हैं. महिलाएं मदद में बंटवाए गए रीयूजेबल पैड सालों से इस्तेमाल कर रही हैं क्योंकि सैनेटरी पैड खरीदने के पैसे नहीं .

Symbolbild Menstruationsprodukte
दुनिया में करोड़ों महिलाओं के लिए सैनेटरी उत्पाद आज भी एक लक्जरी है. साफ-सफाई की कमी के चलते संक्रमण का जोखिम रहता है. पीरियड्स से जुड़े टैबू के चलते कई महिलाओं के लिए यह तक नहीं मुमकिन होता कि वे जो कपड़ा पैड की तरह इस्तेमाल करती हैं, उन्हें धुलकर बाहर सुखा सकें. तस्वीर: Ernst Weingartner/Chromorange/picture alliance

जिस रोज जेरल्डीन ऐम्बिया इनु अपने तीन बच्चों को साथ लेकर घर से भागी थीं, उसी दिन उनकी माहवारी शुरू हो गई. यह 2018 की बात है. 33 साल की जेरल्डीन दक्षिणपश्चिमी कैमरून में रहती थीं. वहां हिंसक संघर्ष छिड़ा था. गोलीबारी की आवाजें जब जेरल्डीन के गांव के नजदीक बढ़ने लगीं, तो जल्दबाजी में उन्होंने सामान बांधा और बच्चों को साथ लेकर भाग गईं. उन्हें मेंसट्रुअल पैड रखना याद ही नहीं रहा. जान बचाने के लिए जेरल्डीन को पड़ोसी देश नाइजीरिया पहुंचना था. यह सात दिन की मुश्किल पैदल यात्रा थी. रास्ते में जब उन्हें माहवारी हुई, तो पैड ना होने के चलते उन्होंने वही किया जो आमतौर पर ऐसी स्थिति में बाकी महिलाएं करती हैं. वह बताती हैं, "हमने कपड़े के टुकड़े इस्तेमाल किए."

गुजारा चलाना मुश्किल, सैनेटरी पैड कैसे खरीदें?

कैमरून में सुरक्षाबलों और विद्रोही लड़ाकों के बीच हिंसा हो रही है. विद्रोही अपना अलग आजाद देश चाहते हैं. इस हिंसा के कारण लगभग 10 लाख लोगों को कैमरून से भागना पड़ा है. इनमें से 70,000 से ज्यादा लोग नाइजीरिया में रह रहे हैं. जेरल्डीन इनमें से ही एक हैं. उन्हें यहां सुरक्षा तो मिली, लेकिन जिंदगी अब भी बहुत मुश्किल है. अपना घर-बार छोड़कर शरणार्थी बनीं महिलाओं के पास रोजगार का जरिया नहीं है. ऐसे में माहवारी उनके लिए कई परेशानियां लाता है. 

पूर्वी नाइजीरिया में ओगोजा नाम का शहर है. मैगडलिन अजिली यहीं एक शरणार्थी शिविर में रहती हैं. उनकी 86 साल की दादी, दो बेटियां और उनके बच्चे भी साथ रहते हैं. मैगडलिन भी हिंसा से जान बचाने के लिए अपना गांव छोड़कर भाग आई थीं. अफरातफरी में वह अपने पति से बिछड़ गईं. उसके बाद से ही उनके पति की कोई खबर नहीं है. वह बताती हैं, "मैं परिवार की मुखिया हूं. परिवार के खाने का इंतजाम करना मेरी जिम्मेदारी है." मैगडलिन परिवार के लिए खाने की व्यवस्था तो कर लेती हैं, लेकिन सैनेटरी पैड का इंतजाम कर पाना संभव नहीं हो पाता है. वह बताती हैं, "पैड खरीदना मुमकिन नहीं है. वह बहुत महंगा होता है."

दक्षिणपूर्वी नाइजीरिया के एक शिविर में जलावन पर खाना बनाती कैमरून की एक शरणार्थी महिला. तस्वीर: Pius Utomi Ekpei/AFP/Getty Images

"पुराने पैड से छिल जाता है" 

 एक पैकेट सैनेटरी पैड की कीमत लगभग 600 नाइरा (1.2 यूरो) है. यह रकम संयुक्त राष्ट्र की रिफ्यूजी एजेंसी 'यूएनएचसीआर' की ओर से हर महीने मैगडलिन परिवार को मिलने वाली सहायता राशि का पांचवां हिस्सा है. ममोने मोलेत्सेन, ओगोजा में यूएनएचसीआर की लैंगिक हिंसा सुरक्षा अधिकारी हैं. वह बताती हैं, "ज्यादातर शरणार्थी हर महीने डिस्पोजेबल सैनेटरी पैड खरीदने का खर्च नहीं उठा सकते."

यूएनएचसीआर और उसके गैर-सरकारी पार्टनर यहां महिलाओं को धुलकर दोबारा इस्तेमाल किए जा सकने वाले पैड बंटवाते हैं. 16 साल की शरणार्थी क्रिस्टाबेल कहती हैं, "मुझे वे पैड सही लगते हैं, जो हम कैमरून में इस्तेमाल करते थे. उन्हें फेंका जा सकता है. इन्होंने जो पैड दिया है, वे भी ठीक हैं."

पिछले तीन सालों से मैगडलिन अजिली वही रीयूजेबल पैड इस्तेमाल कर रही हैं, जो उन्हें यूएन से मिला था. वह कहती हैं कि ये पैड अभी काम आ रहे हैं, लेकिन अब अगर उन्हें नए पैड मिल जाते तो अच्छा होता. वजह बताते हुए वह कहती हैं, "कई बार इस पैड से छिल जाता है. चकत्ते हो जाते हैं." लेकिन यूएनएचसीआर का कहना है कि नए पैड देने या हर एक शरणार्थी को पैड मुहैया कराने के लिए उसके पास फंड नहीं है.

पैड ना होने के कारण लड़कियां स्कूल नहीं जा पाती हैं  

कैमरून में हो रही हिंसा के कारण बेघर हुईं सारी महिलाएं शरणार्थी शिविरों में नहीं रहती हैं. कई ऐसी महिलाएं आधिकारिक शिविरों से बाहर भी रहती हैं. उन्हें आज तक कभी पैड नहीं बांटे जा सके हैं. वे माहवारी के दौरान जो भी बन पड़े, वही इस्तेमाल करती हैं. ऐसे में संक्रमण का खतरा बना रहता है. ममोने मोलेत्सेन बताती हैं, "सैनेटरी पैड की कमी के चलते कई बार माहवारी के दौरान लड़कियां स्कूल भी नहीं जा पाती हैं." बड़ी उम्र की महिलाओं को काम से छुट्टी लेनी पड़ती है.

इन व्यावहारिक चुनौतियों के अलावा एक बड़ी समस्या यह भी है कि दुनिया के बाकी कई देशों की तरह नाइजीरिया में भी माहवारी एक वर्जित विषय है. मसलन, धुलकर दोबारा इस्तेमाल किए जाने वाले पैड में बैक्टीरिया पनपने से संक्रमण ना हो, इसके लिए उन्हें धूप में सुखाना जरूरी है. लेकिन माहवारी से जुड़ी शर्म और झिझक के कारण महिलाओं के लिए ऐसा करना मुश्किल होता है. इसके अलावा जब लड़कियों और लड़कों का टॉयलेट एक ही होता है, तब भी काफी दिक्कत होती है.

कुछ शरणार्थियों को दोबारा इस्तेमाल होने वाले पैड बनाना सिखाया गया है. ताकि वे उन्हें बेचकर पैसा कमा सकें. कुछ गैर-सरकारी संगठन इसमें महिलाओं की मदद कर रहे हैं. ऐसे ही एक संगठन 'सेव द चिल्ड्रन' के दिए सामान की मदद से जेरल्डीन ऐम्बिया इनु ने लगभग 100 पैड बनाए हैं. इस संगठन ने जेरल्डीन से उनके बनाए पैड खरीदे भी और उन्हें जरूरतमंद महिलाओं में बांटा. अब जेरल्डीन शरणार्थियों में ही नए ग्राहक खोज रही हैं, ताकि उन्हें अपने बनाए पैड बेच पाएं. लेकिन यह तलाश आसान नहीं है.

पीरियड्स के दौरान भी मुमकिन है सेक्स

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महंगाई का एक नुकसान यह भी

जेरल्डीन जो पैड बनाती हैं, उसमें तीन अलग-अलग तरह के कपड़ों की तीन तहें बनाकर उन्हें सिला जाता है. एक तह वॉटरप्रूफ कपड़े की भी है. तीन पैड के एक पैकेट की कीमत 800 नाइरा है. नए ग्राहकों की तलाश में जेरल्डीन ने थोड़ी-बहुत जो बचत की थी, उसे इकोम जाने में खर्च कर दिया. इकोम में एक बाजार है. यह जेरल्डीन के शिविर से लगभग 90 किलोमीटर दूर पड़ता है. वहां जाकर जेरल्डीन ने एक दुकानदार को अपने बनाए पैड खरीदने के लिए राजी किया.

वह बड़ी उम्मीद से बताती हैं, "उस दुकानदार को लगता है कि शायद नाइजीरिया की महिलाएं मेरे बनाए पैड खरीद लेंगी." आर्थिक कारणों से माहवारी के लिए जरूरी चीजें तक ना खरीद पाने की लाचारी से केवल शरणार्थी नहीं, बल्कि नाइजीरिया की भी लाखों गरीब महिलाएं प्रभावित हैं. नाइजीरिया में इस साल महंगाई बहुत बढ़ गई है. सैनेटरी उत्पादों की कीमतों में भी काफी इजाफा हुआ है. सरकार के मुताबिक, नाइजीरिया में लगभग तीन करोड़ सत्तर लाख महिलाएं सैनेटरी पैड तक खरीदने का खर्च नहीं उठा सकती हैं.

एसएम/एनआर (एएफपी)

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