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स्वास्थ्यस्विट्जरलैंड

दांतों की फिलिंग में पारे का उपयोग 2034 तक होगा खत्म

विवेक कुमार एएफपी, एपी
८ नवम्बर २०२५

ईरान, भारत और ब्रिटेन ने पुरानी समयसीमा का विरोध किया था. उनका कहना था कि यह कदम जल्दबाजी होगी. हालांकि लंबी चर्चाओं के बाद सभी देशों के बीच 2034 तक चरणबद्ध रूप से समाप्ति पर सहमति बनी.

दांत साफ करती एक महिला
दातों की फिलिंग के लिए पारे का इस्तेमाल कई देशों में होता हैतस्वीर: Andrey Popov/Pond5 Images/IMAGO

दुनियाभर में दांतों की फिलिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले पारा-आधारित डेंटल अमलगम को 2034 तक पूरी तरह खत्म करने का फैसला लिया गया है. शुक्रवार को जिनेवा में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में देशों ने इस दिशा में सहमति बनाते हुए इसे "पारे के प्रदूषण को कम करने की दिशा में मील का ऐतिहासिक पत्थर” बताया.

यह फैसला मिनामाटा कन्वेंशन ऑन मर्करी के सदस्य देशों ने लिया. यह संधि मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को पारे के खतरनाक प्रभावों से बचाने के लिए 2013 में अपनाई गई थी और 2017 से लागू है.

पारा: 10 सबसे खतरनाक रसायनों में

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पारे को उन दस प्रमुख रसायनों में शामिल किया है जो मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक हानिकारक हैं. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, पारा शरीर के लिए विषैला है और तंत्रिका तंत्र, गुर्दे तथा श्वसन प्रणाली को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है.

कई देश पहले ही पारे के उपयोग पर रोक लगा चुके हैं, लेकिन 175 से अधिक साल से दांतों की फिलिंग में उपयोग होने वाला डेंटल अमलगम अब भी दुनिया के कई हिस्सों में इस्तेमाल किया जाता है.

सम्मेलन के बाद जारी बयान में कहा गया, "यह वैज्ञानिक आधार पर तय की गई समयबद्ध सहमति है, जो दंतचिकित्सा में पारे के उपयोग को पूरी तरह समाप्त करने और सभी समुदायों के लिए सुरक्षित भविष्य की दिशा में निर्णायक कदम है.”

संधि के तहत पहले से ही सदस्य देशों को पारे के उपयोग को धीरे-धीरे समाप्त करने के उपाय करने थे. हालांकि इस बार अफ्रीकी देशों के समूह ने एक निश्चित समयसीमा की मांग की थी. इसके तहत 2030 से इसके उत्पादन, आयात और निर्यात पर रोक लगाने की मांग रखी गई.

सम्मेलन की शुरुआत में अमेरिका के स्वास्थ्य मंत्री रॉबर्ट एफ केनेडी जूनियर ने सवाल उठाया, *"जब बैटरियों, दवाओं और कॉस्मेटिक्स में पारा खतरनाक माना जाता है, तो दांतों की फिलिंग में यह स्वीकार्य कैसे हो सकता है?”* उन्होंने कहा, *"यह अस्वीकार्य है कि सरकारें अब भी स्वास्थ्य क्षेत्र में पारे के यौगिकों की अनुमति दे रही हैं, जबकि सुरक्षित विकल्प मौजूद हैं.”

ईरान, भारत और ब्रिटेन ने 2030 की समयसीमा का विरोध किया था. उनका कहना था कि यह कदम जल्दबाजी होगी. लेकिन लंबी चर्चाओं के बाद सभी देशों के बीच 2034 तक चरणबद्ध रूप से समाप्ति पर सहमति बनी.

मिनामाटा कन्वेंशन की कार्यकारी सचिव मोनिका स्टाकिविच ने कहा, *"हमने पारे के इतिहास में एक नया अध्याय खोल दिया है. पारा प्रदूषण मानवता के लिए अभिशाप रहा है, लेकिन आपसी समझ और सहयोग से हम वास्तविक परिवर्तन ला सकते हैं.”

यूरोपीय संघ के प्रतिनिधि ने इसे "पारे को इतिहास बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि” बताया. वहीं, मैक्सिको ने लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों की ओर से इसे "महत्वाकांक्षी लेकिन यथार्थवादी कदम” कहा जो एक "पारा-मुक्त भविष्य” की दिशा में जाएगा.

कॉस्मेटिक्स, माइनिंग और उद्योग पर भी असर

सम्मेलन के दौरान कुल 21 नए फैसले लिए गए, जिनका उद्देश्य मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को पारे के प्रदूषण से बचाना है. सदस्य देशों ने पारे वाले स्किन-लाइटनिंग कॉस्मेटिक्स को खत्म करने के प्रयास तेज करने पर सहमति जताई. यह भी तय हुआ कि इन उत्पादों की अवैध तस्करी पर रोक और निगरानी को मजबूत किया जाएगा.

पारे को कॉस्मेटिक्स में इसीलिए मिलाया जाता है ताकि यह मेलानिन हॉर्मोन को दबाकर त्वचा को हल्का बना दे, लेकिन यह प्रभाव अस्थायी और स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदायक होता है. सम्मेलन में बताया गया कि ऐसे उत्पादों की बिक्री, खासकर ऑनलाइन, तेजी से बढ़ी है.

इसके अलावा, इन देशों ने छोटे पैमाने पर होने वाली गोल्ड माइनिंग में पारे के उपयोग को घटाने और पीवीसी प्लास्टिक के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले विनाइल क्लोराइड मोनोमर उत्पादन के लिए पारा-मुक्त उत्प्रेरकों की जरूरत पर भी चर्चा की.

सम्मेलन के अध्यक्ष ओसवाल्डो अल्वारेज पेरेज ने कहा, *"हमने नए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए हैं और पारे को एक कदम और पीछे छोड़ दिया है.”

क्या है मिनामाटा कन्वेंशन

‘मिनामाटा कन्वेंशन ऑन मर्करी' का नाम जापान के उस शहर मिनामाटा से लिया गया है, जहां 1950 के दशक में पारे से हुई जहरीली प्रदूषण त्रासदी ने सैकड़ों लोगों की जान ली थी. इस घटना ने पूरी दुनिया को औद्योगिक रासायनिक प्रदूषण के खतरों से आगाह किया था.

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आज इस संधि के 150 से अधिक सदस्य देश हैं, जो पारे के उत्पादन, उपयोग और व्यापार को नियंत्रित करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं. 2034 तक डेंटल अमलगम में पारे के उपयोग को समाप्त करने का यह फैसला केवल दंतचिकित्सा की दिशा नहीं बदलेगा, बल्कि यह पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य संरक्षण की वैश्विक लड़ाई में एक निर्णायक मोड़ भी साबित हो सकता है.

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