1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
राजनीतिनीदरलैंड्स

सिंधु जल संधि पर द हेग में पाकिस्तान के पक्ष में फैसला

७ जुलाई २०२३

द हेग स्थित कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने सिंधु जल संधि पर पाकिस्तान के पक्ष में फैसला देते हुए भारत की आपत्तियों को खारिज कर दिया.

द हेग में भारत को सफलता नहीं मिली है
द हेग में भारत को सफलता नहीं मिली हैतस्वीर: Peter Dejong/AP Photo/picture alliance

नीदरलैंड्स के द हेग में स्थित पर्मानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (पीसीए) ने पाकिस्तान द्वारा सिंधु नदी के पानी के इस्तेमाल पर भारत की आपत्ति को खारिज कर दिया है. पाकिस्तान ने कई साल बाद सिंधु नदी बेसिन के पानी के इस्तेमाल की इस प्रक्रिया को दोबारा शुरू किया है.

भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु और उसकी सहयोगी नदियों पर पनबिजली परियोजनाओं को लेकर हमेशा विवाद रहा है. पाकिस्तान की शिकायत है कि भारत सिंधु नदी पर जो बांध बनाता है उससे उसके यहां तक पहुंचने वाले पानी में कमी आएगी. उसकी 80 फीसदी खेती की सिंचाई इसी नदी पर निर्भर है.

सिंधु जल संधि में संशोधन पर पाकिस्तान को भारत का नोटिस

इस विवाद को सुलझाने के लिए 2016 में पाकिस्तान ने पीसीए में अपील की थी. इस अपील के जवाब में भारत ने वर्ल्ड बैंक से अनुरोध किया कि संधि की शर्तों के तहत एक निष्पक्ष पर्यवेक्षक तैनात किया जाए. हालांकि पीसीए की कार्रवाई का भारत ने बहिष्कार कर दिया था और उसकी योग्यता पर ही सवाल उठा दिये थे.

भारत ने खारिज किया फैसला

गुरुवार को अपने फैसले में पीसीए ने कहा, "सर्वसम्मति से लिए गए फैसले में कोर्ट ने भारत की सारी आपत्तियों को खारिज कर दिया है. यह फैसला दोनों पक्षों के लिए बाध्य होगा और इसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती. कोर्ट ने पाया है कि वह पाकिस्तान के मध्यस्थता की अपील के तहत इस विवाद को सुलझाने के योग्य है.”

कोर्ट ने यह नहीं बताया है कि अब मामला कैसे आगे बढ़ेगा लेकिन कहा है कि उसके अधिकारी सिंधु जल समझौते की व्याख्या को ध्यान में रखते हुए उसके अमल पर काम करेंगे. इसके लिए कानूनी प्रावधानों के अलावा इस संधि पर अब तक हुए विवादों में दिये गये फैसलों को भी ध्यान में रखा जाएगा.

बिलावल भुट्टो के भारत दौरे का फायदा उठाने से चूक गये दोनों देश

भारत के विदेश मंत्रालय ने पीसीए के फैसले को खारिज करते हुए कहा है कि उसका रुख सिद्धांत पर आधारित है और "कथित कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन का संविधान सिंधु जल संधि के खिलाफ है.” विदेश मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, "भारत को ऐसी अवैध और समानांतर कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जिन्हें संधि में मान्यता प्राप्त नहीं है.”

विदेश मंत्रालय ने कहा कि सिंधु जल संधि की धारा 12(3) में बदलाव के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत चल रही है. उसने कहा, "ताजा घटनाक्रम यही रेखांकित करता है कि ये बदलाव कितने जरूरी हैं.”

क्या है सिंधु नदी जल विवाद

भारत और पाकिस्तान ने कई साल चली बातचीत के बाद सितंबर 1960 में वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में सिंधु-तास समझौता किया था. तब भारत के प्रधानमंत्री रहे जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन नेता जनरल अयूब खान ने कराची में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और यह उम्मीद जताई थी कि ये समझौता दोनों देशों के किसानों के लिए खुशहाली लाएगा और शांति स्थापना में मददगार होगा.

भारत से जुड़ी तापी गैस पाइपलाइन पर नियंत्रण चाहता है हक्कानी गुट

इस समझौते के तहत पश्चिमी नदियों यानी झेलम, सिंधु और चिनाब का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया और इन नदियों के 80 फीसदी पानी पर उसका हक है. भारत को इन नदियों के बहते हुए पानी से बिजली बनाने का अधिकार है, लेकिन पानी को रोकने या नदियों की धारा में बदलाव करने का अधिकार नहीं है. पूर्वी नदियों यानी रावी, सतलुज और ब्यास का नियंत्रण भारत के पास है और इन नदियों पर वह पनबिजली आदि परियोजनाएं बना सकता है.

ऋषि सुनक भारतीय मूल के या पाकिस्तान मूल के?

03:44

This browser does not support the video element.

विवाद तब शुरू हुआ जब भारत ने पश्चिमी नदियों पर पनबिजली परियोजनाएं बनाना शुरू कर दिया. पाकिस्तान ने इस पर आपत्ति जतायी. दोनों देशों के विशेषज्ञों ने 1978 में सलाल बांध विवाद को बातचीत से सुलझाया लेकिन उसके बाद बगलिहार बांध का मुद्दा खड़ा हो गया. उसे 2007 में विश्व बैंक के एक मध्यस्थ की मदद से सुलझाया गया. फिर किशन गंगा परियोजना विवाद शुरू हो गया जो पीसीए तक पहुंच गया.

विवेक कुमार (रॉयटर्स)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें