हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई के बारे में ऐसे बात करते हैं मानो ये भविष्य की कोई चीज होगी. लेकिन एआई तो हमारे इर्दगिर्द पहले से ही मौजूद है- कोविड 19 की महामारी ने ये दिखा भी दिया है.
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अगर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भविष्य है तो वो भविष्य फिर आज है. महामारी ने दिखाया है कि कितनी तेजी से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई काम करती है और कितने अलग अलग तरीकों से ये क्या कुछ कर सकती है. शुरू से ही देखें तो एआई ने हमें सार्स-कोवि-2 के बारे में जानकारी मुहैया करायी है.
कोविड-19 का संक्रमण इसी वायरस से फैलाता है. एआई की मदद से वैज्ञानिकों ने वायरस की जेनेटिक सूचना यानी उसके डीएनए की तेजी से छानबीन की है. डीएनए ही वो व्यवस्था है जो वायरस को वायरस जैसा बनाती है बल्कि हर जीवित चीज़ को. और अगर आप खुद का बचाना चाहते हैं तो आपको अपने दुश्मन का भी पता होना चाहिए.
एआई ने वैज्ञानिकों को ये समझने में मदद की है कि वायरस कितनी तेजी से म्युटेट होते हैं, एआई की मदद से ही टीके तैयार हो पाए हैं और उनका टेस्ट हो पाया है. ऐसी न जाने कितनी सारी चीजें होंगी जिनके बारे में यहां बताना मुमकिन नहीं – एक जायजा ही लिया जा सकता है. लेकिन एआई के बारे में कुछ बुनियादी बातों को समझने की कोशिश करते हैं.
एआई पर एक स्पीड रिफ्रेशर कोर्स
एआई निर्देशों का एक समुच्चय है जो कम्प्यूटर को ये बताता है कि उसे क्या करना है- हमारे फोन में पड़े फोटो एल्बम में चेहरों की शिनाख्त करने से लेकर डाटा के विशाल ढेर को खंगालने तक. यानी भूसे के बहुत बड़े ढेर से सुई खोज निकालने जैसा काम है एआई का. लोग एआई को अल्गोरिदम भी कह लेते हैं. सुनने में जंचता है लेकिन अल्गोरिदम तो नियमों की एक स्थिर सी सूची भर है जो कम्प्यूटर को इतना ही बताती हैः "If this, then that” यानी "अगर ये, तो वो.”
इसी बीच, मशीन लर्निंग (एमएल) अल्गोरिदम एक ऐसी किस्म की एआई है जिससे हममें से बहुतों को डर लगेगा. ये वो एआई है जो किसी चीज़ को पढ़कर या उसका आकलन कर उसे याद कर लेती है और खुद को नयी नयी चीजें करना सिखा लेती है.
तस्वीरों मेंः कोरोना संकट और मशीन का साथ
कोरोना संकट और मशीन का साथ
कोरोना वायरस महामारी संकट के समय में इंसानों की मदद के लिए रोबोट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल किया जा रहा है. कहीं डॉक्टरों की सेना इस महामारी से निपट रही है तो कहीं रोबोट और ड्रोन साथ निभा रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/Sivaram V
मास्क वाले रोबोट
एक भारतीय स्टार्टअप कंपनी ने एक ऐसा रोबोट तैयार किया है जो कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर जागरुकता फैलाता है. केरल के कोच्चि में स्टार्टअप कंपनी असिमोव रोबोटिक्स ने ऐसे दो रोबोट तैयार किए हैं जो हैंड सैनेटाइजर और मास्क बांट रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/Sivaram V
रोबोट पुलिस
वायरस के संक्रमण से पुलिस और सेना भी नहीं बच पा रही है. ऐसे में पुलिस रोबोट का सहारा ले रही है. ट्यूनीशिया में लॉकडाउन का पालन कराने के लिए पुलिस ने सड़कों पर रोबोट को ही उतार दिया. इस रोबोट में इंफ्रारेड कैमरे लगे हैं और यह रिमोट की मदद से काम करता है. जरूरत पड़ने पर लाल बत्ती जलती है और अलार्म भी बजता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/F. Belaid
कोरोना पर सलाह
5जी तकनीक आधारित रोबोट बीजिंग की तकनीक कंपनी के कर्मचारियों को चिकित्सा सलाह देता हुआ. कंपनी के कर्मचारी चेहरे पर मास्क लगाए हुए हैं और रोबोट उन्हें इशारे कर रहा है. कोरोना वायरस जैसे घातक संक्रमण में ऐसे रोबोट काफी हद तक मददगार साबित हो रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/China Daily
इलाज में भी मदद
तकनीक की मदद से इंसान इस महामारी से निपटने की कोशिश कर रहा है. कहीं रोबोट हैंड सैनेटाइजर बांट रहे हैं तो कहीं इलाज में मदद करते दिख रहे हैं. इस तरह से स्वास्थ्यकर्मी संक्रमण से कुछ हद तक बच सकते हैं.
तस्वीर: Reuters/C. Garcia Rawlins
ड्रोन से निगरानी
कोरोना वायरस के दौरान कई शहरों में ड्रोन के जरिए लॉकडाउन के पालन की निगरानी की जा रही है. पुलिस ड्रोन कैमरों की मदद से नियमों का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई भी कर रही है. ड्रोन की मदद से प्रभावित इलाकों में सैनेटाइजेशन भी किया जा रहा है.
तस्वीर: Reuters/J. Luis Saavedra
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हम इंसानों को अक्सर लगता है कि हम इस एमएल अल्गोरिदम को काबू में नहीं कर सकते हैं और ना ही ये बता सकते हैं कि वो क्या जान लेता है. लेकिन वास्तव में हम ऐसा कर सकते हैं क्योंकि मौलिक कोड लिखने वाले तो हम ही हैं. इसलिए आप चैन की सांस ले सकते हैं. थोड़ी सी.
संक्षेप में एआई और एमएल वे प्रोग्राम हैं जो हमें, बहुत तेजी के साथ बहुत सारी सूचनाओं को बहुत सारे रॉ यानी कच्चे डाटा को प्रोसेस करने देते हैं. वे सारे के सारे दुष्ट दैत्य नहीं हैं जो हमें मार देंगे या हमारी नौकरियां चुरा लेंगे. ये कतई जरूरी नहीं है कि वे ऐसा करेंगे.
कोविड के खिलाफ लड़ाई में मददगार एआई
कोविड-19 के मामले में देखें तो एआई और एमएल ने कुछ जानें बचाने में मदद ही की है. डायगनॉस्टिक उपकरणों में उनका इस्तेमाल हो रहा है. वे बड़ी संख्या में छाती के एक्सरे रिपोर्टों को किसी रेडियोलॉजिस्ट की तुलना में काफी तेजी से पढ़ लेते हैं. एआई से डॉक्टरों को कोविड मरीजों की पहचान और निगरानी में मदद मिली है.
नाईजीरिया में संक्रमण के जोखिमों के आकलन के लिए टेक्नोलजी का बहुत बुनियादी लेकिन व्यवहारिक स्तर पर इस्तेमाल हो रहा है. लोग बहुत सारे सवालों का ऑनलाइन जवाब देते हैं और उनके जवाबों के आधार पर उन्हें ऑनलाइन ही मेडिकल सलाह दी जाती है या उन्हें अस्पताल भेज दिया जाता है.
एआई बनाने वाली एक कंपनी वैलविस कहती है कि उसकी वजह से रोग नियंत्रण के लिए गठित आपात सेवा पर खामाखां आने वाली कॉलें कम होने लगी हैं.
दक्षिण कोरियाः कोविड की टेस्टिंग
सबसे अहम चीजों में से एक जो हमें हैंडल करनी पड़ती है, वो है संक्रमित लोगों की तेजी से पहचान. और दक्षिण कोरिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने डॉक्टरों का काम आसान किया है.
जब बाकी दुनिया पहले-पहल लॉकडाउन लगाने के बारे में सोच ही रही थी, तब सोल में एक कंपनी ने एआई की मदद से कुछ ही सप्ताहों में, कोविड-19 का टेस्ट तैयार कर लिया था. एआई के बिना उन्हें महीनों लग जाते. सीजीन कंपनी में डाटा साइंस और एआई डेवलेपमेंट की प्रमुख यंगशांह्ग "जेरी” सुह ने डीडब्लू को दिए इंटरव्यू में बताया कि इस बारे में "कभी सुना ही नहीं” गया था. सीजीन के वैज्ञानिकों ने 24 जनवरी को किट्स के लिए कच्चा माल मंगाया था और पांच फरवरी तक टेस्ट का पहला संस्करण तैयार हो चुका था.
टेस्ट को डिजाइन करने के लिए, ये तीसरा ही मौका था जब कंपनी ने अपने सुपर कम्प्यूटर और बिग डाटा एनालिसिस का इस्तेमाल किया था. लेकिन उन्होंने कुछ सही काम ही किया होगा क्योंकि पिछले साल मध्य मार्च में, अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में बताया गया था कि दक्षिण कोरिया ने दो लाख तीस हजार लोगों का टेस्ट कर लिया है. और आखिरकार कुछ देर के लिए ही सही, देश में हर दिन नये संक्रमणों की संख्या को स्थिर रखा जा सका. सुह कहती हैं, "जैसे जैसे नये वेरिएंट और म्यूटेशन का पता चल रहा है, हम लगातार अपडेट भी कर रहे हैं. इससे हमारे एमएल को नये वेरिएंट की शिनाख्त का मौका भी मिल जाता है.”
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दक्षिण अफ्रीकाः तीसरी लहर की पहचान
एक और प्रमुख मुद्दा हमारे सामने ये ट्रैक करने का था कि बीमारी, खासतौर पर नये वेरिएंट और उनके म्युटेशन किस तरह समुदायों में और एक देश से दूसरे देश में फैल रहे हैं. दक्षिण अफ्रीका में शोधकर्ताओं ने, भविष्य में रोजाना के कोविड-19 के कन्फर्म मामलों का आकलन करने के लिए एआई आधारित अल्गोरिदम का इस्तेमाल किया था. ये दक्षिण अफ्रीका में पूर्व संक्रमण के इतिहास के डाटा और लोगों की एक समुदाय से दूसरे समुदाय में आवाजाही जैसी दूसरी सूचनाओं पर आधारित था.
मई में शोधकर्ताओं के मुताबिक देश में महामारी की तीसरी लहर का खतरा कम दिखता था. अफ्रीका-कनाडा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डाटा इनोवेशन कंजोर्टियम के प्रमुख जूड कॉंग कहते हैं, "लोग सोचते थे कि बीटा वेरिएंट पूरे महाद्वीप में फैलेगा और हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था को तोड़ कर रख देगा, लेकिन एआई की बदौलत हम उसे काबू में रख पाए.”
देखिएः ऐसा है दिमाग पर सोशल मीडिया का असर
ऐसा है दिमाग पर सोशल मीडिया का असर
क्या आपने भी कई बार सोचा है कि हर वक्त मोबाइल या कंप्यूटर पर फेसबुक, ट्विटर वगैरह नहीं देखा करेंगे, लेकिन ऐसा कर नहीं सके हैं? सोशल मीडिया एक क्रांति है लेकिन ये भी तो जानें कि वो आपके दिमाग के साथ क्या कर रहा है. देखिए.
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खुद पर काबू नहीं?
विश्व की लगभग आधी से ज्यादा आबादी तक इंटरनेट पहुंच चुका है और इनमें से कम से कम दो-तिहाई लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. 5 से 10 फीसदी इंटरनेट यूजर्स ने माना है कि वे चाहकर भी सोशल मीडिया पर बिताया जाने वाला अपना समय कम नहीं कर पाते. इनके दिमाग के स्कैन से मस्तिष्क के उस हिस्से में गड़बड़ दिखती है, जहां ड्रग्स लेने वालों के दिमाग में दिखती है.
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लत लग गई?
हमारी भावनाओं, एकाग्रता और निर्णय को नियंत्रित करने वाले दिमाग के हिस्से पर काफी बुरा असर पड़ता है. सोशल मीडिया इस्तेमाल करते समय लोगों को एक छद्म खुशी का भी एहसास होता है क्योंकि उस समय दिमाग को बिना ज्यादा मेहनत किए "इनाम" जैसे सिग्नल मिल रहे होते हैं. यही कारण है कि दिमाग बार बार और ज्यादा ऐसे सिग्नल चाहता है जिसके चलते आप बार बार सोशल मीडिया पर पहुंचते हैं. यही लत है.
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मल्टी टास्किंग जैसा?
क्या आपको भी ऐसा लगता है कि दफ्तर में काम के साथ साथ जब आप किसी दोस्त से चैटिंग कर लेते हैं या कोई वीडियो देख कर खुश हो लेते हैं, तो आप कोई जबर्दस्त काम करते हैं. शायद आप इसे मल्टीटास्किंग समझते हों लेकिन असल में ऐसा करते रहने से दिमाग "ध्यान भटकाने वाली" चीजों को अलग से पहचानने की क्षमता खोने लगता है और लगातार मिल रही सूचना को दिमाग की स्मृति में ठीक से बैठा नहीं पाता.
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क्या फोन वाइब्रेट हुआ?
मोबाइल फोन बैग में या जेब में रखा हो और आपको बार बार लग रहा हो कि शायद फोन बजा या वाइब्रेट हुआ. अगर आपके साथ भी अक्सर ऐसा होता है तो जान लें कि इसे "फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम" कहते हैं और यह वाकई एक समस्या है. जब दिमाग में एक तरह खुजली होती है तो वह उसे शरीर को महसूस होने वाली वाइब्रेशन समझता है. ऐसा लगता है कि तकनीक हमारे तंत्रिका तंत्र से खेलने लगी है.
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मैं ही हूं सृष्टि का केंद्र?
सोशल मीडिया पर अपनी सबसे शानदार, घूमने की या मशहूर लोगों के साथ ली गई तस्वीरें लगाना. जो मन में आया उसे शेयर कर देना और एक दिन में कई कई बार स्टेटस अपडेट करना इस बात का सबूत है कि आपको अपने जीवन को सार्थक समझने के लिए सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया की दरकार है. इसका मतलब है कि आपके दिमाग में खुशी वाले हॉर्मोन डोपामीन का स्राव दूसरों पर निर्भर है वरना आपको अवसाद हो जाए.
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सारे जहान की खुशी?
दिमाग के वे हिस्से जो प्रेरित होने, प्यार महसूस करने या चरम सुख पाने पर उद्दीपित होते हैं, उनके लिए अकेला सोशल मीडिया ही काफी है. अगर आपको लगे कि आपके पोस्ट को देखने और पढ़ने वाले कई लोग हैं तो यह अनुभूति और बढ़ जाती है. इसका पता दिमाग फेसबुक पोस्ट को मिलने वाली "लाइक्स" और ट्विटर पर "फॉलोअर्स" की बड़ी संख्या से लगाता है.
तस्वीर: Fotolia/bonninturina
डेटिंग में ज्यादा सफल?
इसका एक हैरान करने वाला फायदा भी है. डेटिंग पर की गई कुछ स्टडीज दिखाती है कि पहले सोशल मी़डिया पर मिलने वाले युगल जोड़ों का रोमांस ज्यादा सफल रहता है. वे एक दूसरे को कहीं अधिक खास समझते हैं और ज्यादा पसंद करते हैं. इसका कारण शायद ये हो कि सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में अपने पार्टनर के बारे में कल्पना की असीम संभावनाएं होती हैं.
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ये प्रोजेक्ट दक्षिण अफ्रीका की विट्स यूनिवर्सिटी और गाउटेंग की प्रांतीय सरकार और कनाडा की यॉर्क यूनिवर्सिटी के गठजोड़ से चल रहा है. कैमरून के कॉंग यॉर्क यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. वह कहते हैं, "अफ्रीका में डाटा बहुत बिखरा हुआ सा है” और एक बड़ी समस्या है बीमारियों को लेकर समाज में शर्म और संकोच, चाहे वो कोविड हो या एचआईवी, इबोला या मलेरिया.
उनके मुताबिक वैसे एआई की बदौलत हर इलाके की कुछ "खास छिपी हुई सच्चाइयां” बाहर आ सकी हैं, और स्थानीय स्वास्थ्य नीतियों को भी सचेत किया गया है. उन्होंने अपनी एआई मॉडलिंग को बोत्सवाना, कैमरून, इस्वातिनी, मोजाम्बिक, नामीबिया, नाईजीरिया, रवांडा, दक्षिण अफ्रीका और जिम्बाव्वे जैसे देशों में भी लागू किया है.
कॉंग कहते हैं, "बहुत सारी सूचनाएं एकआयामी हैं. आप जानते हैं कि कितने लोग अस्पताल में दाखिल हुए और कितने वहां से निकले. लेकिन इसके नीचे जो बात छिपी रह जाती है वो है उनकी उम्र, उनकी और बीमारियां और वो समुदाय जहां से वे आते हैं. हम एआई की मदद से वो सब पता लगा लेते हैं कि उन्हें मदद की कितनी जरूरत है और नीतियां बनाने वालों को भी सूचित कर देते हैं.”
एआई की खूबियों के दावे अतिरंजित तो नहीं?
चेहरे की पहचान वाले अल्गोरिदम से मिलते-जुलते दूसरी तरह के एआई का इस्तेमाल भीड़-भाड़ में संक्रमित लोगों की पहचान करने या जिनके शरीर का तामपान बढ़ा हुआ हो, उनकी पहचान करने में हो सकता है. एआई से संचालित रोबोट, अस्पतालों और दूसरी सार्वजनिक जगहों की सफाई कर सकते हैं.
लेकिन उससे आगे क्या? क्योंकि कुछ जानकार ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि एआई की क्षमताएं बढ़ा-चढ़ाकर बतायी गयी हैं. इनमें कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में मशीन लर्निंग के प्रोफेसर नील लॉरेंस भी शामिल हैं जिन्होंने अप्रैल 2020 में एआई को "हाइप्ड” करार दिया था. उनके मुताबिक इसमें कोई हैरानी नहीं कि महामारी में शोधकर्ताओं ने गणितीय मॉडलिंग जैसी आजमाई हुई तकनीकों पर ही भरोसा किया. लेकिन एक दिन एआई उपयोगी होगी.
ये महज 15 महीने पुरानी बात है. और देखिए हम कितना दूर चले आए हैं.
रिपोर्टः जुल्फिकार अब्बानी
जानेंः हैकरों से बचने के टिप्स
हैकरों से बचने के लिए दें इन 5 बातों पर ध्यान
हैकर्स को अक्सर हमारे कंप्यूटर या अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को हैक करने के लिए कुछ जानकारी की आवश्यकता होती है. अधिक जानकारी मिलने से वो आसानी से हमारे कंप्यूटरों को हैक कर सकते हैं. तो हम अपनी रक्षा कैसे करें?
तस्वीर: Frank Rumpenhorst/dpa/picture alliance
एक पासवर्ड, अनेक अकाउंट
कई लोग एक ही पासवर्ड से कई अकाउन्ट चलाते है. इससे अलग अलग पासवर्ड याद नहीं रखना पड़ता. अगर आप ऐसा करते है तो सतर्क हो जाएं. मान लीजिए कि आपने अपने दफ्तर के ईमेल आईडी का पासवर्ड और अपने ट्विटर अकाउंट का पासवर्ड एक ही रखा है तो आपके दफ्तर के ईमेल आईडी और ट्विटर अकाउंट को हैक करना मुश्किल बात नहीं होगी.
तस्वीर: Reuters/P. Kopczynksi
असुरक्षित और सार्वजनिक रूप से रखे हुए पासवर्ड
आमतौर पर लोग पासवर्ड कुछ ऐसा बनाते है जिसका बहुत आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है. जैसे कि उनके पालतू जानवर का नाम या उनके घर की सड़क का नाम. अगर आपको पासवर्ड बनाना है तो उसमे एल्फाबेट, नम्बर और स्पेशल कैरेक्टर का सही मेल होना चाहिए. आपको अपना पासवर्ड लगातार बदलते रहना चाहिए. बहुत से लोग सबसे बड़ी गलती यह करते हैं कि वे अपना पासवर्ड कहीं लिख कर रख देते.
तस्वीर: SuperOfficeNetwork
कमजोर कड़ी पकड़ने हुई देर
कई बार ऐसा होता है कि कंपनी के आईटी एडमिनिस्ट्रेटर को कोई कमजोर कड़ी मिल जाती है मगर उस कड़ी को ठीक करने में वक्त लगता है. अगर यह कमजोर कड़ी हैकर को मिल गई तो उसके लिए काम बहुत आसान हो जाएगा. इसलिए किसी भी कमजोर कड़ी के बारे में बात करने से पहले आईटी एडमिनिस्ट्रेटर के पास पर्याप्त समय होना चाहिए ताकि वह हैकर से पहले उस कड़ी को मजबूत बना सके.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Kästle
कमजोर सर्वर सेटअप
आईटी एडमिनिस्ट्रेटर के ऊपर पूरे सर्वर के सेटअप की जिम्मेदारी होती है जिसकी वजह से हो सकता है कि वह कोई आसान सा पासवर्ड बनाकर भूल जाए. हालांकि दूसरे एडमिनिस्ट्रेटर को यह पासवर्ड बदलना चाहिए मगर ऐसा होता नहीं है और इसी गलती का फायदा हैकर उठा लेते हैं. कई बार आईटी एडमिनिस्ट्रेटर की जिम्मेदारियों को बहुत जल्दी जल्दी बदला भी जाता है. इससे आपका सेटअप हैक करना बहुत आसान हो जाता है.
तस्वीर: Colourbox
फिशिंग और स्पीयरफिशिंग-सीधा निशाना
फिशिंग में आम तौर पर कोई ऐसा ईमेल भेजा जाता है जिसमे कोई अटैचमेंट होता है. जैसी कि कोई तस्वीर, फाइल या लिंक. आपके वो अटैचमेंट खोलते ही आपका कंप्यूटर हैक हो जाता है. हालांकि स्पीयरफिशिंग में ऐसा नहीं होता है. स्पीयरफिशिंग में हैकर खुद फोन करता है और आपसे ईमेल खोलने को कहता है. चूंकि वो आपसे बात कर रहा है इसलिए आप बिना संदेह के उसका ईमेल खोलते है.