कोविड-19 महामारी के कारण हुए आर्थिक नुकसान ने एशिया और अफ्रीका में 2.5 करोड़ लोगों को बिजली खरीदने में असमर्थ बना दिया है. 2030 तक सभी को बिजली देने का वैश्विक लक्ष्य खतरे में पड़ता दिख रहा है.
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स्थायी ऊर्जा पर नजर निगरानी रखने वाली संस्था ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि प्रभावित लोगों में से दो-तिहाई उप-सहारा अफ्रीका में हैं, जिससे क्षेत्र में बिजली तक की पहुंच में असमानता बढ़ रही है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 में कोविड-19 संकट ने नौकरियों और आय को प्रभावित किया है जिससे पंखे चलाने, बत्ती जलाने, टीवी और मोबाइल फोन को चार्ज करने के लिए आवश्यक बिजली सेवाओं के भुगतान के लिए लाखों लोगों ने संघर्ष किया. इससे पिछले दशक में हुई प्रगति को संकट पैदा हुआ है, जिस दौरान 2010 से करीब एक अरब लोगों ने बिजली तक पहुंच हासिल की थी. इसी प्रगति में 2019 में दुनिया की 90 फीसदी आबादी को जोड़ा गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र समर्थित लक्ष्य को महामारी ने प्रभावित किया है, उस लक्ष्य के तहत सभी के पास 2030 तक बिजली पहुंचनी थी. रिपोर्ट कहती है कि अफ्रीका में जहां पिछले छह सालों में बिना बिजली वाले घरों की संख्या कम हो रही थी वहीं 2020 में इनकी संख्या में बढ़ोतरी हुई. विश्व बैंक में ऊर्जा के लिए वैश्विक निदेशक दिमित्रियोस पापथानासियौ के मुताबिक, "बिजली तक पहुंच विकास के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर कोविड-19 के प्रभावों को कम करने और आर्थिक बढ़त हासिल करने के संदर्भ में." उन्होंने ध्यान दिलाया कि दुनिया में करीब 75.9 करोड़ लोग अब भी बिना बिजली के रहते हैं, उनमें से आधे कमजोर और संघर्षग्रस्त देशों में हैं.
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, अंतरराष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी, संयुक्त राष्ट्र संघ आर्थिक और सामाजिक विभाग, विश्व बैंक और विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान और नियोजित नीतियों के तहत अनुमानित 66 करोड़ लोगों के पास 2030 तक बिजली की पहुंच नहीं होगी.
दुनिया की आबादी का लगभग एक तिहाई या 2.6 अरब लोगों के पास 2019 में खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा तक पहुंच नहीं थी. रिपोर्ट में कहा गया कि एशिया के बड़े हिस्से में बढ़त के बावजूद ऐसे ही देखा गया. उप-सहारा अफ्रीका में समस्या सबसे गंभीर है, जहां अब भी लोग खाना पकाने के लिए मिट्टी का तेल, कोयला और लकड़ी जैसी चीजों का इस्तेमाल करते हैं जो प्रदूषण फैलाने के साथ-साथ सेहत के लिए भी खतरनाक हैं.
एए/वीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
बिजली उत्पादन के विभिन्न तरीके
रोटी, कपड़ा और मकान की तरह ही बिजली भी लोगों की मूलभूत आवश्यकता बन चुकी है. घर रोशन करने से लेकर ट्रेन चलाने तक हर जगह बिजली की जरूरत होती है. एक नजर बिजली उत्पादन के तरीकों पर.
तस्वीर: picture-alliance/imageBROKER/W. Diederich
कोल पावर प्लांट
कोल पावर प्लांट बिजली उत्पादन का परंपरागत तरीका है. इसमें कोयले की मदद से पानी गर्म किया जाता है. इससे बनी भाप के उच्च दाब से टरबाइन तेजी से घूमता है और बिजली का उत्पादन होता है.
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हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट
हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट ऐसी जगहों पर बनाए जाते हैं जहां तेजी से पानी का प्रवाह होता है. सबसे पहले बांध बना कर नदी के पानी को रोका जाता है. यह पानी तेजी से नीचे गिरता है. इसकी मदद से टरबाइन को घुमाया जाता है और बिजली उत्पादन होता है.
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सौर ऊर्जा
सौर ऊर्जा प्लांट की स्थापना उन क्षेत्रों में की जाती है जहां पूरे साल सूरज की रोशनी पहुंचती है. सूर्य की किरणों को बिजली में बदलने के लिए फोटोवोल्टिक सेलों का उपयोग होता है. इससे एक बैटरी जुड़ी होती है जिसमें बिजली जमा होती है. सोलर फोटोवोल्टिक सेल से पैदा होने वाली बिजली दिष्ट धारा (डायरेक्ट करंट) के रूप में होती है.
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पवन चक्की
पवन चक्की का इस्तेमाल उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां हवा की गति तेज होती है. पवन चक्की लगाने के लिए एक टावर के ऊपर पंखे लगाए जाता है. यह पंखा हवा की वजह से घूमता है. पंखे के साथ शाफ्ट की मदद से एक जेनेरेटर जुड़ा होता है. जेनरेटर के घूमने से बिजली उत्पादन होता है.
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न्यूक्लियर पावर प्लांट
इस प्लांट में यूरेनियम-235 को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. यूरेनियम के परमाणुओं को विखंडित करने के लिए एटॉमिक रिएक्टर का इस्तेमाल होता है. इससे पैदा होने वाली उष्मा से भाप बनाई जाती है. इसी भाप से टरबाईन को घुमाया जाता है जिससे बिजली का उत्पादन होता है. एक किलो यूरेनियम 235 से उत्पन्न ऊर्जा 2700 क्विंटल कोयले जलाने से पैदा हुई ऊर्जा के बराबर होती है.
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डीजल पावर प्लांट
डीजल पावर प्लांट की स्थापना उन जगहों पर की जाती है जहां कोयले और पानी की उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में नहीं होती है. डीजल मोटर की मदद से जेनरेटर चलाया जाता है जो बिजली का उत्पादन करता है. यह एक तरह का वैकल्पिक साधन है. सिनेमा हॉल, घर, शादी-विवाह या किसी कार्यालय में आपात स्थिति में बिजली की आपूर्ति के लिए इसका इस्तेमाल होता है.
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नैचुरल गैस पावर प्लांट
नैचुरल गैस पावर प्लांट कोल थर्मल पावर प्लांट की तरह ही होता है. फर्क बस इतना है कि इसमें पानी को गर्म करने के लिए कोयले की जगह नैचुरल गैस का इस्तेमाल होता है. पानी गर्म होने के बाद भाप बनता है. उच्च दाब वाले भाप से टरबाइन घूमता है. और इससे बिजली उत्पादन होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
समुद्री लहर
समुद्र की लहरों से बिजली पैदा की जाती है. समुद्र किनारे दीवार या चट्टान में जेनरेटर और टरबाइन लगाया जाता है. (एक हौज बनाया जाता है जहां टरबाइन और जेनरेटर लगे होते हैं. लहरें जब हौज के भीतर आती है उसमें मौजूद पानी ऊपर उठता-गिरता है. इससे हौज के ऊपरी हिस्से में बनी जगह पर हवा तेजी से ऊपर-नीचे आती है.) लहरों के आने जाने पर टरबाइन दबाव से घूमता है और जेनरेटर चलने लगता है. बिजली पैदा होती है.
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समुद्री तरंग
इस तरीके में लोहे के बड़े-बड़े पाइपों को स्प्रिंग के माध्यम से एक साथ जोड़ा जाता है. ये समुद्र की सतह पर तैरते रहते हैं. इनका आकार रेलगाड़ी के पांच डिब्बों के बराबर होता है. इनके अंदर मोटर तथा जेनरेटर लगे होते हैं. तरंगों की वजह से पाइप जब ऊपर नीचे होते हैं तो अंदर मौजूद मोटर चलने लगती है. मोटर से जेनेरेटर चलता है और बिजली उतपन्न होती है.
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बायोमास से बिजली निर्माण
खेती, पशुपालन, उद्योग या वन क्षेत्र के उपयोग में काफी मात्रा में बायोमास सामग्री इकट्ठा होती है. कोल थर्मल पावर प्लांट की तरह ही इसका भी प्लांट होता है. फर्क ये है कि यहां कोयले की जगह बायोमास को जलाया जाता है और पानी को गर्म किया जाता है. पानी गर्म से होने से जो भाप बनती है उससे टरबाइन घूमता है और बिजली उत्पादन होता है.
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जियो थर्मल पावर प्लांट
जैसे-जैसे पृथ्वी की गहराई में जाते हैं, धरती गर्म होती जाती है. एक स्थान वह भी आता है जहां गर्मी की वजह से सारे पदार्थ पिघल जाते हैं जिसे लावा कहते हैं. धरती के अंदर मौजूद इसी ताप के इस्तेमाल से बिजली बनाई जाती है. इसके लिए जमीन में कुएं खोदे जाते हैं. अंदर के गर्म पानी और उसकी भाप का अलग-अलग तरह से इस्तेमाल कर टरबाइन घुमाया जाता है और बिजली बनाई जाती है.