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वैज्ञानिकों ने खोजा शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने का नया रास्ता

२७ मई २०२१

कोरोना के दौरान भारत में बहुत से लोगों की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई क्योंकि वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं थे. कैसा हो अगर वेंटिलेटर की जरूरत ही ना पड़े? वैज्ञानिक ऐसा तरीका खोजने में लगे हैं जिससे गुदाद्वार से ऑक्सीजन दी जा सके.

तस्वीर: Nasir Kachroo/NurPhoto/picture alliance

जापानी शोधकर्ताओं का कहना है कि स्तनधारी जीव अपनी अंतड़ियों से भी सांस ले सकते हैं. शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने सूअर और चूहों को उनकी ऑक्सीजन का स्तर घटाकर उन्हें जानलेवा परिस्थितियों में डाला तो पाया कि श्वसन तंत्र को फेल होने से बचाने के लिए उन्होंने गुदा से सांस लेना शुरू कर दिया.पत्रिका मेड में छपी यह रिसर्च फेफड़ों के काम करना बंद करने की स्थिति में शरीर में ऑक्सीजन का स्तर बनाए रखने का हल खोजने के लिए किए जा रहे प्रयासों की दिशा में नए रास्ते खोल सकती है.

टोक्यो मेडिकल एंड डेंटल यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले मुख्य शोधकर्ता ताकानोरी ताकेबे सेल प्रेस में छपे एक लेख में लिखते हैं, "निमोनिया या श्वसन तंत्र की अन्य खतरनाक बीमारियों की सूरत में आर्टिफिशियल रेस्पिरेटरी सपोर्ट की भूमिका इलाज में अहम हो जाती है. लेकिन हमारा तरीका ऐसे खतरनाक रोगों से ग्रस्त मरीजों को मदद पहुंचाने की दिशा में नया रास्ता खोल सकता है. लेकिन इसका इन्सानों पर असर और सुरक्षा का गहन आकलन जरूरी है."

ताकेबे ने कहा कि उन्हें इस खोज की प्रेरणा कुछ जलीय जीवों से मिली जो सांस लेने के लिए उदर का प्रयोग करते हैं. शोधकर्ता पता लगाना चाहते थे कि क्या सूअर और चूहे भी ऐसा ही कर सकते हैं. आमतौर पर इंसानों के लिए किसी खोज का पहले इन्हीं जीवों पर प्रयोग किया जाता है.

इंजेक्शन से ऑक्सीजन

डॉ. ताकेबे कहते हैं कि हम यह भी जानते हैं कि गुदा के कुछ हिस्से दवा या पोषण का अवशोषण अच्छे से कर सकते हैं. गुदाद्वार से दवा या द्रव भी शरीर में पहुंचाए जा सकते हैं, जहां से ये रक्त में मिल जाते हैं और शरीर के बाकी हिस्सों तक पहुंच जाते हैं. शोधकर्ताओं ने ऑक्सीजन की कमी से बेहोश चूहों को गुदाद्वार से इंजेक्शन के जरिए ऑक्सीजन दी. अध्ययन के दौरान बहुत ही कम ऑक्सीजन स्तर के कारण 11 मिनट में ही चूहे की मौत हो गई. लेकिन जब उन्हें गुदा से ऑक्सीजन दी गई तो खतरनाक स्तर तक प्राणवायु कम किए जाने के बावजूद 75 प्रतिशत चूहे 50 मिनट तक जिंदा रहे.

भारत में बीते दिनों ऑक्सीजन का गंभीर संकट हो गया थातस्वीर: Tauseef Mustafa/AFP

शोधकर्ता स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि यह स्थायी हल नहीं है और इसे अंतरिम हल के तौर पर 20 से 60 मिनट की जरूरत के लिए ही प्रयोग किया जा सकता है. इस तरीके के सही इस्तेमाल के लिए उन्हें अंतड़ियों की परत भी खुरचनी पड़ी. यानी गंभीर रूप से बीमार मरीजों में इसका उपयोग बहुत संभव नहीं हो पाएगा. अन्य विशेषज्ञ भी ऐसा ही मानते हैं. नई दिल्ली में आकाश हेल्थकेयर सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के डॉ. अशोक बुद्धराजा कहते हैं, "अंतड़ियों को पतला करने के लिए उसे खुरचा गया ताकि पतली झिल्लियां ऑक्सीजन सोख सकें. तब ऑक्सीजन का स्तर बढ़ा. लेकिन मानव शरीर की जटिल संरचना को देखते हुए किसी बीमार की अंतड़ियों या अन्य किसी अंग की परत को खुरचने के लिहाज से तो इंसानों पर यह विचार अव्यवहारिक लगात है." हालांकि डॉ. बु्द्धराजा शोध का हिस्सा नहीं थे.

नया नहीं है विचार

गुदाद्वार से ऑक्सीजन देने का विचार नया नहीं है. पिछले साल स्पेन में छोटे स्तर पर एक अध्ययन हुआ था जिसमें ऐसा ही प्रयोग किया गया था. एसएन कॉम्प्रिहेंसिव क्लिनिकल मेडिसन में छपे उस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कोविड-19 के कारण गंभीर निमोनिया से पीड़ित चार मरीजों में गुदाद्वार से ओजोन शरीर में पहुंचाई थी. उस शोध में पाया गया कि इस तरीके से रक्त में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ा और जलन कम हुई. ओजोन गैस ऑक्सीजन के तीन एटम से बनी होती है. तब शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि गुदा से ओजोन दिया जाना एक प्रभावशाली, सस्ता, सुरक्षित और साधारण विकल्प हो सकता है.

जापानी वैज्ञानिक अपने प्रयोग की प्रि-क्लिनिकल ट्रायल शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं और अगले दो साल में इंसानों पर प्रोयग करना चाहेंगे. ताकेबे कहते हैं कि उनके खोजे तरीका अगर इतना विकसित हो जाता है कि इंसानों पर प्रयोग किया जा सके तो ऐसे मरीजों पर भी इस्तेमाल हो सकेगा जिनके श्वसन तंत्र कोविड-19 के कारण फेल हो गए हों. हालांकि डॉ. बुद्धाराजा कहते हैं कि उस जगह पहुंचने के लिए अभी लंबा सफर तय करना होगा. वह ध्यान दिलाते हैं कि अंतड़ियों में गैस इधर से उधर भेजने की क्षमता ज्यादा नहीं होती है.

रिपोर्ट: शकूर राथर

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