ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में पता चला है कि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की दूसरी और तीसरी खुराक में देर होने के बावजूद इसकी वायरस से बचाने की क्षमता बनी रहती है. शोध पर अभी अन्य वैज्ञानिकों की टिप्पणियां आनी बाकी हैं.
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सोमवार को जारी हुई ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी की शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि पहली और दूसरी खुराक के बीच 45 हफ्ते का अंतराल भी इम्यूनिटी बनाए रखने में कामयाब रहा. मुख्य शोधकर्ता ऐंड्रयू पोलार्ड कहते हैं, "जिन देशों में वैक्सीन की सप्लाई कम है, उनके लिए यह सूचना राहत देने वाली होनी चाहिए क्योंकि उन्हें शायद इस बात की फिक्र है कि वे अपनी जनता को दूसरी खुराक नहीं दे पा रहे हैं.”
शोधकर्ताओं ने यह भी कहा है कि तीसरी खुराक को बूस्टर डोज के तौर पर इस्तेमाल करने के नतीजे भी सकारात्मक मिले हैं. शोध से जुड़ीं टेरेसा लाम्बे बताती हैं, "अभी यह नहीं पता है कि इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए या वायरस के विभिन्न स्वरूपों के खिलाफ इम्यूनिटी के लिए तीसरी खुराक की जरूरत होगी या नहीं लेकिन जरूरत पड़ती है तो नतीजे सकारात्मक रहे हैं.”
फिलहाल 160 देश एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का ही इस्तेमाल कर रहे हैं. कम दाम और लाने-ले जाने में सुगमता के कारण इस वैक्सीन को प्राथमिकता दी गई है. हालांकि कुछ कारणों से इस वैक्सीन पर लोगों का भरोसा गिर गया था. बहुत कम संख्या में ही सही, लेकिन ऐसे मामले सामने आए थे जिनमें एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के बाद मरीजों में खून के थक्के बने.
मिला-जुलाकर वैक्सीन देना भी कारगर
ऑक्सफर्ड की ही एक अन्य रिसर्च में यह पाया गया है कि फाइजर-बायोएनटेक और एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को मिलाकर देना भी कारगर है. शोधकर्ताओं ने पाया कि दो खुराकों के मिश्रण ने वायरस के खिलाफ ज्यादा एंटीबॉडी बनाए.
वैज्ञानिकों ने मरीजों को फाइजर-बायोएनटेक और एस्ट्राजेनेका की दो खुराकों का अलग-अलग मिश्रण दिया. यानी कुछ मरीजों को दोनों खुराक एक ही वैक्सीन की दी गईं जबकि कुछ को पहली खुराक फाइजर और दूसरी एस्ट्राजेनेका की, जबकि कुछ को पहली खुराक एस्ट्राजेनेका और दूसरी फाइजर की दी गई.
शोधकर्ताओं ने एंटीबॉडी और टी-सेल की प्रतिक्रिया दोनों का ही अध्ययन किया. एंटीबॉडी वायरस को कोशिकाओं को संक्रमित करने से रोकते हैं जबकि टी-सेल पहले से ही संक्रमित हो चुकीं कोशिकाओं को खोजकर उन्हें नष्ट कर देते हैं.
जी-सात देशों में किसने कितने टीके दान करने का किया वादा
कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ विकासशील और गरीब देशों में टीकाकरण की रफ्तार बहुत धीमी है. जानिए जी-सात समूह के शक्तिशाली सदस्य देशों ने दुनिया को टीकों की कितने खुराक देने का वादा किया है.
तस्वीर: Bernd Riegert/DW
अमेरिका
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि वो अमेरिकी कंपनी फाइजर के टीके की 50 करोड़ खुराक खरीद कर 90 से भी ज्यादा देशों को दानस्वरूप देंगे. फाइजर और उसकी सहयोगी जर्मन कंपनी बायोएनटेक 2021 में 20 करोड़ खुराक उपलब्ध कराएंगी और 2022 के पहले छह महीनों में बाकी 30 करोड़ खुराक.
तस्वीर: Toby Melville/Reuters
ब्रिटेन
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने वादा किया है कि उनके देश के पास टीकों का जो अतिरिक्त भंडार है उसमें से वो कम से कम 10 करोड़ खुराक अगले एक साल में दुनिया के कई देशों को देंगे. इसमें से 50 लाख खुराक अगले कुछ हफ्तों में ही दी जा सकती हैं. जॉनसन ने यह भी कहा है कि वो उम्मीद कर रहे हैं कि जी-सात के सदस्य देश एक अरब खुराक तक उपलब्ध कराएंगे ताकि 2022 में महामारी को खत्म किया जा सके.
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ईयू, जर्मनी, फ्रांस, इटली
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला उर्सुला फॉन डेय लाएन ने कहा है कि यूरोपीय संघ ने इसी साल के अंत तक मध्य आय और कम आय वाले देशों को कम से कम 10 करोड़ खुराक देने का लक्ष्य बनाया है. इसमें फ्रांस और जर्मनी द्वारा तीन-तीन करोड़ खुराक और इटली द्वारा 1.5 करोड़ खुराक का योगदान शामिल है. फ्रांस ने कहा है कि वो कोवैक्स टीका-साझेदारी कार्यक्रम के तहत सेनेगल को ऐस्ट्राजेनेका टीके की 1,84,000 खुराक दे चुका है.
जापान ने कहा है कि वो देश के अंदर बनने वाले टीकों की करीब तीन करोड़ खुराक कोवैक्स के जरिए ही दानस्वरूप देगा. पिछले सप्ताह जापान ने ताइवान को ऐस्ट्राजेनेका के टीके की 12.4 लाख खुराक निशुल्क दीं.
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कनाडा
कनाडा ने अभी तक वैक्सीन की खुराक दूसरे देशों को देने के बारे में कोई घोषणा नहीं की है.
तस्वीर: picture-alliance/S. Kilpatrick
वैश्विक स्थिति
विश्व स्वास्थ्य संगठन और टीकों के लिए बने वैश्विक गठबंधन गावी के समर्थन से कोवैक्स कार्यक्रम ने इस साल के अंत तक कम आय वाले देशों के लिए दो अरब खुराक सुरक्षित करने का लक्ष्य रखा है. इस सप्ताह की घोषणाओं के पहले कोवैक्स को सिर्फ 15 करोड़ खुराक का वादा पाया था. यह कार्यक्रम के सितंबर तक 25 करोड़ खुराक और साल के अंत तक एक अरब खुराक के पुराने लक्ष्य से भी बहुत पीछे था.
तस्वीर: Akhtar Soomro/REUTERS
वैक्सीन अन्याय
अभी तक दुनिया में टीकों की 2.2 अरब खुराक दी जा चुकी हैं, जिनमें से अकेले जी-सात देशों में ही करीब 56 करोड़ खुराक दी गई हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के महासचिव तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस ने कहा है कि टीके के वितरण में हो रहा "लज्जाजनक अन्याय" महामारी को बनाए रख रहा है. - रॉयटर्स
तस्वीर: Sirachai Arunrugstichai/Getty Images
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रिसर्च में पाया गया कि फाइजर-बायोएनटेक की दो खुराकों ने एंटीबॉडी बनाने में सबसे जोरदार प्रतिक्रिया दी. लेकिन जब फाइजर और एस्ट्राजेनेका की एक-एक खुराक दी गई, तो एस्ट्रेजेनेका की ही दोनों खुराकों के मुकाबले यह ज्यादा असरदार साबित हुई. फाइजर की पहली और एस्ट्राजेनेका की दूसरी खुराक देने पर टी-सेल की प्रतिक्रिया सबसे अच्छी रही.
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नतीजे बहुत अहम नहीं
यह परीक्षण 830 लोगों पर किया गया, जिन्हें चार हफ्ते के अंतराल पर खुराक दी गई थीं. इस अध्ययन पर भी अन्य वैज्ञानिकों की टिप्पणियां आनी बाकी हैं.
एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एस्ट्राजेनेका फार्मा कंपनी के साथ मिलकर विकसित किया है. यूनिवर्सिटी का कहना है कि इस अध्ययन के नतीजे टीकाकरण में लचीलापन ला सकते हैं. हालांकि उन्होंने चेतावनी दी है कि ये नतीजे इतने अहम नहीं हैं कि इनके आधार पर टीकाकरण के बारे में पहले से दिए गए निर्देशों का पालन ही ना किया जाए.
वैक्सीन के परीक्षणों में शामिल रहे यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मैथ्यू स्नेप ने कहा, "यह उत्साहजनक है कि खुराकों को मिला-जुलाकर देने से एंटीबॉडी और टी-सेल की सकारात्मक प्रतिक्रिया रही है. लेकिन जब तक कि बहुत बड़ी वजह ना हो, वैसा ही करते रहना चाहिए जो साबित हो चुका है कि वाकई काम करता है.”
वीके/एए (एएफपी, रॉयटर्स)
जी-7 के अनोखे आलोचक
जी-7 के आलोचकों ने कई अनोखे तरीकों से लोगों का ध्यान खींचा. देखिए, तस्वीरों में यह अनोखा विरोध.
तस्वीर: Peter Nicholls/REUTERS
सात ताकतें
जी-7 की शिखर वार्ता 11 से 13 जून को इंग्लैंड में हुई, जहां कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका के नेता जमा हुए.
तस्वीर: Peter Nicholls/REUTERS
बड़े वादे
इस बैठक में दुनिया के सबसे धनी देशों में शुमार सात देशों ने कई फैसले किए, जैसे गरीब देशों को कोविड वैक्सीन की एक अरब खुराक का वादा.
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नाकाफी वादे
लेकिन जी-7 के आलोचक उसकी भूमिका और फैसलों से संतुष्ट नहीं हैं. कई तबकों ने इस समूह की आलोचना की है.
तस्वीर: REUTERS
यूएन भी असंतुष्ट
आलोचकों में संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अंटोनियो गुटेरेश भी शामिल हैं, जिन्होंने कहा कि जी-7 की योजना में महत्वाकांक्षा की कमी है और दुनिया को और अधिक की जरूरत है.
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'भीख नहीं चाहिए'
ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन ने कहा कि कोविड से लड़ाई पर जी-7 के संकल्प भीख के कटोरे को एक से दूसरे की ओर बढ़ाने जैसा है, ना कि समस्या का असली हल.
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'अभी चाहिए वैक्सीन'
लंदन स्थित एक सामाजिक संस्था वेलकम के ऐलेक्स हैरिस ने कहा कि दुनिया को वैक्सीन की जरूरत आज, अभी है, एक साल बाद नहीं.
तस्वीर: Peter Nicholls/REUTERS
11 अरब की जरूरत
एक अन्य सामाजिक संस्था ऑक्सफैम ने कहा कि दुनिया को 11 अरब खुराकों की जरूरत है और एक अरब खुराक काफी नहीं हैं.
तस्वीर: Toby Melville/REUTERS
पेटेंट का झगड़ा
कई देश और एनजीओ वैक्सीन से बौद्धिक संपदा अधिकार हटाने की मांग कर रहे हैं ताकि हर कोई अपनी जरूरत के हिसाब से वैक्सीन बना सके.
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ताकतवर असहमतियां
अमेरिका समेत बहुत से देश इससे सहमत हैं लेकिन कई देश अब भी इसका विरोध कर रहे हैं, जिनमें जर्मनी जैसे ताकतवर मुल्क भी हैं.
तस्वीर: Phil Noble/REUTERS
बस मदद करेंगे
दवा कंपनियां भी बौद्धिक संपदा अधिकार हटाने के खिलाफ हैं. अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा ने निजी तौर पर भी विभिन्न देशों की वैक्सीन से मदद करने का वादा किया है.