अमेरिका ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी ने मानव तस्करी के लिए एक "आदर्श वातावरण" बनाया है. सरकारें संसाधनों का इस्तेमाल स्वास्थ्य संकट के लिए कर रही हैं. और तस्कर कमजोर लोगों का लाभ उठा रहे हैं.
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अमेरिकी विदेश विभाग की "2021 ट्रैफिकिंग इन पर्सन्स रिपोर्ट" ने कई देशों की रैंकिंग भी गिरा दी है जबकि कई देशों की मानव तस्करी रोकने के प्रयासों को देखते हुए उनकी रैंकिंग को बढ़ाया है.
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने सालाना रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि दुनिया भर में लगभग 2.5 करोड़ लोगों के मानव तस्करी के शिकार होने का अनुमान है. ब्लिंकेन के मुताबिक, "कई लोगों को व्यावसायिक यौन कर्म करने के लिए मजबूर किया जाता है. कई लोगों को फैक्ट्रियों और खेतों में काम करने या फिर हथियारबंद समूहों में भर्ती कर लिया जाता है."
उन्होंने कहा, "यह एक वैश्विक संकट है." ब्लिंकेन ने इसे "मानव पीड़ा का एक बहुत बड़ा स्रोत" बताया है.
कोरोना महामारी और मानव तस्करी
विदेश विभाग की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी ने "ऐसी स्थितियां पैदा कीं, जिन्होंने मानव तस्करी के लिए कमजोरियों का अनुभव करने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि की. महामारी ने तस्करी विरोधी हस्तक्षेपों को बाधित किया है."
रिपोर्ट कहती है, "दुनिया भर की सरकारों ने संसाधनों को महामारी से निपटने के लिए मोड़ दिया है. अक्सर इसकी कीमत तस्करी विरोधी प्रयासों के रूप में चुकाई जा रही है." रिपोर्ट में कहा गया है कि "उसी समय, मानव तस्करों ने महामारी द्वारा उजागर और जोखिम वाले लोगों की कमजोरियों को भुनाया गया."
उदाहरण के लिए रिपोर्ट में कहा गया, "भारत और नेपाल में गरीब और ग्रामीण इलाकों की युवा लड़कियों से अक्सर आर्थिक तंगी के दौरान अपने परिवार का समर्थन करने के लिए स्कूल छोड़ने की उम्मीद की जाती है."
इस रिपोर्ट में कहा गया, "कुछ को पैसे के बदले शादी के लिए मजबूर किया गया, जबकि अन्य को आय के नुकसान के बदले काम करने के लिए मजबूर किया गया."
देशों की रैंकिंग
रिपोर्ट 2000 के तस्करी पीड़ित संरक्षण अधिनियम (टीवीपीए) के अनुपालन के आधार पर दुनिया भर के देशों को रैंकिंग भी देती है. छह देशों को टियर 1 से हटाकर नीचे किया गया है. इन देशों में साइप्रस, इस्राएल, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल और स्विट्जरलैंड शामिल हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक टियर 2 देश टीवीपीए के न्यूनतम मानकों को "पूर्ण रूप से पूरा" नहीं करते हैं "लेकिन खुद को अनुपालन में लाने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास कर रहे हैं.
दो देश गिनी-बिसाऊ और मलयेशिया को सबसे खराब टियर 3 में जोड़ा गया है. इस सूची में पहले से ही अफगानिस्तान, अल्जीरिया, चीन, कोमोरोस, क्यूबा, इरिट्रिया, ईरान, म्यांमार, निकारागुआ, उत्तर कोरिया, रूस, दक्षिण सूडान, सीरिया, तुर्कमेनिस्तान और वेनेजुएला शामिल हैं.
रिपोर्ट पर ब्लिंकेन ने कहा, "सरकारों को अपने नागरिकों की रक्षा और सेवा करनी चाहिए. लाभ के लिए उन्हें आतंकित और गुलाम नहीं बनाना चाहिए."
एए/वीके (एएफपी)
दुनिया भर से खतरों से भाग रहे शरणार्थियों की लाचारी
युद्ध, उत्पीड़न, प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के खतरे के परिणामस्वरूप, दुनिया भर में अनुमानित आठ करोड़ लोग सुरक्षा की तलाश में अपने देश से भागने को मजबूर हुए हैं. इस दौरान सबसे ज्यादा दर्द बच्चों को झेलना पड़ा है.
तस्वीर: Guardia Civil/AP Photo/picture alliance
समुद्र में डूबने से बचाया
बच्चा सिर्फ कुछ महीने का था जब एक स्पेनिश पुलिस गोताखोर ने उसे डूबने से बचा लिया. मई के महीने में हजारों लोगों ने यूरोप पहुंचने के लिए मोरक्को से भूमध्य सागर पार करने की कोशिश की थी. ये लोग स्पेन के छोटे से एन्क्लेव सेउता पहुंच गए थे. इस तस्वीर से सेउता में प्रवासी संकट की असली झलक देखने को मिलती है.
तस्वीर: Guardia Civil/AP Photo/picture alliance
कोई उम्मीद नहीं
भूमध्य सागर दुनिया के सबसे खतरनाक प्रवास मार्गों में से एक है. कई अफ्रीकी शरणार्थी समुद्र के रास्ते यूरोप पहुंचने में विफल रहने के बाद लीबिया में फंसे हुए हैं. त्रिपोली में कई ऐसे युवा हैं जो पल-पल अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उन्हें अक्सर कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ता है.
तस्वीर: MAHMUD TURKIA/AFP via Getty Images
सूटकेस में बंद जिंदगी
बांग्लादेश में कॉक्स बाजार शरणार्थी शिविर दुनिया के सबसे बड़े आश्रयों में से एक है. यहां म्यांमार से भागकर आए रोहिंग्या मुसलमानों की एक बड़ी संख्या रहती है. वहां के एनजीओ बाल शोषण, ड्रग्स, मानव तस्करी, साथ ही बाल श्रम और बाल विवाह जैसे मुद्दों पर चिंता जताते हैं.
तस्वीर: DANISH SIDDIQUI/REUTERS
ताजा संकट
इथियोपिया के टिग्रे प्रांत में गृह युद्ध ने एक और शरणार्थी संकट पैदा कर दिया है. टिग्रे की 90 फीसदी आबादी विदेशी मानवीय सहायता पर निर्भर है. करीब 16 लाख लोग सूडान भाग गए हैं. इनमें 7,20,000 बच्चे शामिल हैं. ये शरणार्थी अस्थायी शिविरों में फंसे हुए हैं और वे अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहे हैं.
तस्वीर: BAZ RATNER/REUTERS
शरणार्थियों को कहां जाना चाहिए?
तुर्की में फंसे सीरियाई और अफगान शरणार्थी अक्सर ग्रीक द्वीपों तक पहुंचने की कोशिश करते हैं. कई शरणार्थी ग्रीक द्वीप लेसबोस के मोरिया शरणार्थी शिविर में रहते थे. पिछले साल सितंबर में कैंप में आग लग गई थी. आग के बाद यह परिवार अब एथेंस आ गया है लेकिन अपने अगले गंतव्य के बारे में कुछ नहीं जानता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Y. Karahalis
एक कठिन जीवन
पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में 'अफगान बस्ती रिफ्यूजी कैंप' में रहने वाले अफगान बच्चों के लिए कोई स्कूल नहीं है. 1979 में अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप के बाद से यह शिविर अस्तित्व में है. वहां रहने की व्यवस्था बेहद खराब है. शिविर में पीने का पानी और पर्याप्त आवास का अभाव है.
तस्वीर: Muhammed Semih Ugurlu/AA/picture alliance
सहायता संगठनों से महत्वपूर्ण समर्थन
वेनेजुएला के कई परिवार अपने देश में अपने भविष्य को धूमिल देखकर पड़ोसी देश कोलंबिया चले गए हैं. वहां वे एनजीओ रेड क्रॉस से चिकित्सा और खाद्य सहायता प्राप्त करते हैं. रेड क्रॉस ने सीमावर्ती शहर अरौक्विटा के एक स्कूल में एक अस्थायी शिविर बनाया है.
तस्वीर: Luisa Gonzalez/REUTERS
समाज में मिलने की कोशिश
कई शरणार्थी जर्मनी में अपने बच्चों के बेहतर भविष्य की उम्मीद करते हैं. कार्ल्सरूहे में लर्नफ्रुंडे हाउस में शरणार्थी बच्चों को जर्मन स्कूल प्रणाली में प्रवेश के लिए तैयार किया जाता है. हालांकि कोविड महामारी के दौरान वे नए समाज में एकीकृत होने में मिलनी वाली मदद के इस अहम तत्व से चूक गए.