कोरोना वायरस महामारी ने तमाम लोगों के कामकाज पर बुरा असर डाला है, घरों में सेंध मारने वाले चोर भी इसकी वजह से परेशान हैं.
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महामारी के पिछले एक साल में दुनिया भर के लोगों ने कई महीने लंबे लॉकडाउन झेले हैं. लाखों-करोड़ों नौकरीपेशा लोगों को उनकी कंपनियों ने 'वर्क फ्रॉम होम' यानि घर से काम करने का विकल्प भी दिया. नतीजतन इनमें से ज्यादातर लोगों ने घर में ही रहकर नौकरी की. इसका एक असर ये भी हुआ कि चोरों को लोगों के घर में सेंध मारने का मौका नहीं मिला. जर्मनी को देखें तो यहां ऐतिहासिक रूप से चोरी की घटनाओं में कमी आई.
जर्मनी के तमाम परिवार घरों में चोरी के समय होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए पहले से ही बीमा करवाते हैं. बीमा कंपनियों ने बताया है कि बीते एक साल में उनके पास घर में सेंध लगने के कारण बीमा के दावे सबसे कम दर्ज हुए हैं. जर्मन बीमा उद्योग संगठन जीडीवी ने बताया है कि जब से बीमा का रिकार्ड दर्ज किया जाना शुरु हुआ तबसे अब तक सबसे कम दावे पिछले साल ही आए थे.
इतिहास में कलाकृतियों की सबसे बड़ी डकैतियां
सुरक्षा कितनी भी चाक चौबंद हो जाए, लेकिन चोर फिर भी कामयाब हो जाते हैं और कई बार बेहद कीमती और शानदार कलाकृतियों को उड़ा ले जाते हैं. बर्लिन में 100 किलो का सोने का सिक्का चोरी हो जाना चोरों की महारथ को ही दिखाता है.
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जब गायब हो गई मोनालिसा की मुस्कान
दुनिया का सबसे नामी पोट्रेट 'मोनालिसा' 1911 में चुरा लिया गया था. विनसेंजो पेरुगिया नाम के एक इतावली युवक ने लियोनार्डो द विंची की बनाई ये महान कृति पेरिस के लूव्रे म्यूजियम से चुरा ली. दो साल बाद 1913 में पुलिस ने इसे बरामद किया.
रेमब्रांड्ट के बनाए इस पोट्रेट 'जाक III द गैन' को ब्रिटेन की दलिच पिक्चर गैलरी से एक बार नहीं बल्कि चार बार चुराया गया. पहले 1966 में और फिर 1973, 1981 और 1986 में. अच्छी बात यह है कि हर बार इसे बरामद कर लिया गया.
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बॉस्टन की रहस्यमयी चोरी
1990 में इसाबेला स्टुआर्ड गार्डनर म्यूजिमय से एक साथ 13 पेटिंग चोरी हो गईं. दो लोगों ने पुलिस का भेस बनाकर म्यूजियम में सेंधमारी की और वहां से पेंटिंग निकाल कर ले गए. चुराई गई पेटिंग्स में यहां दिख रही 'कॉन्सर्ट' नाम की पेंटिंग भी शामिल थी. म्यूजियम में पेटिंग्स के फ्रेम अब भी लटके हुए हैं.
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साठगांठ से चोरी
1991 में एम्सटरडैम के वान गॉग म्यूजियम के एक शौचालय में एक व्यक्ति ने खुद को बंद कर लिया और किसी को इस बात की खबर नहीं हुई. वार्डन की मदद से उसने वहां से 20 कलाकृतियां चुरा लीं. लेकिन चोरी के एक घंटे बाद ही पुलिस ने सारी कलाकृतियां बरामद कर लीं. कुछ महीनों बाद चोर भी पकड़ा गया.
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कई साल गायब रहे द विंची
लियोनार्दो द विंची की बनाई 'मैडोना ऑफ द यार्नविंडर' की अनुमानित कीमत 7.6 करोड़ डॉलर है. लेकिन 2003 में एक स्कॉटिश कासल से यह कलाकृति चुरा ली गई. पर्यटक बन कर दो चोर प्रदर्शनी में घुसे और उन्होंने सुरक्षाकर्मियों को धुन दिया और पेटिंग को ले उड़े. चार साल बाद ग्लासगो में एक छापे के दौरान यह पेटिंग बरामद हुई.
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मंच म्यूजियम पर हमला
एडवार्ड मंच की बनाई दो पेटिंग 'द स्क्रीम' और 'मडोना' 2004 में ओस्लो से चोरी हो गईं. दो हथियारबंद लुटेरों ने मंच म्यूजियम पर हमला किया और सरे आम इन पेटिंग्स को दीवार से उतार कर चलते बने. बाद में पुलिस ने ये पेटिंग बरामद कर लीं, लेकिन इस दौरान 'द स्क्रीम' को बहुत नुकसान को हो चुका था.
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यूरोप की सबसे बड़ी आर्ट डकैती
2008 में हथियारों से लैस चोरों ने ज्यूरिख के ब्यूर्ले कलेक्शन से चार पेंटिंग चुरा लीं जिनकी कुल कीमत 18.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर थी. इनमें पॉल सेजाने की 'द बॉय इन द रेड वेस्ट', एडगार डुगा की 'लुडोविक लेपिक एंड हिज डॉटर्स', विंसेट फान गॉग की 'ब्लॉसमिंग चेस्टनट ब्रांचेज' और क्लौद मोने की 'पॉपी फील्ड नियर वितई' शामिल थी. बाद में ये सभी बरामद हो गईं.
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100 किलो का सोने का सिक्का चोरी
मार्च 2017 में बर्लिन के बोड म्यूजियम से 100 किलो का विशाल सोने का सिक्का चोरी हो गया. इसमें लगे सोने की ही कीमत 40 लाख डॉलर है. माना जाता है कि चोर खिड़की से इमारत में घुसा. सिक्का कनाडा में बना था और 53 सेंटीमीटर ऊंचा और तीन सेंटीमीटर मोटा है. इसके एक तरफ ब्रिटेन की महारानी की आकृति अंकित है.
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साल 2020 में जर्मनी में सेंधमारी के 85,000 मामलों के लिए लोगों ने दावे किए. जीडीवी ने पिछले साल की रिपोर्ट पेश करते हुए बताया यह संख्या एक साल पहले के मुकाबले 10,000 कम थे. जर्मनी में इसके आंकड़े दर्ज किए जाने की शुरुआत सन 1998 में हुई थी. जीडीवी के प्रमुख यॉर्ग आसमुसेन के कहा, "सेंधमारी की घटनाओं में कमी का सबसे बड़ा कारण लोगों का घर में पहले से कहीं ज्यादा समय बिताना है. कोरोना वायरस की महामारी के कारण ही ऐसा हुआ है." उन्होंने कहा, "चोरों को अपने कारनामे के लिए ज्यादा मौका ही नहीं मिल पाया."
बीमा संगठन ने बताया कि 2020 में उन्हें 23 करोड़ यूरो (करीब 27 करोड़ डॉलर) के दावे पेश किए गए. यह राशि इसके पीछे के साल के मुकाबले 7 करोड़ यूरो कम थी. व्यक्तिगत बीमा के औसत दावे भी करीब 10 फीसदी कम किए गए.
हालांकि एक सच यह भी है कि जर्मनी के सभी 16 राज्यों में साल दर साल बीमा के दावों में कमी का ट्रेंड बीते कई सालों से देखा गया. कोरोना वायरस महामारी के आने से पहले ही सेंधमार चोरी में लगातार थोड़ी थोड़ी गिरावट आने लगी थी. सन 2015 से ही जर्मनी के हर इलाके में ऐसी चोरियां कम होने लगी थीं. कई घरों और अपार्टमेंटों को सुरक्षित बनाने में अब पहले से कहीं ज्यादा निवेश किया जाने लगा है. यॉर्ग आसमुसेन का मानना है कि "वह निवेश असर दिखा रहा है." उन्होंने बताया कि आधे की करीब सेंध की कोशिशें नाकाम रहीं क्योंकि चोर जल्दी से जल्दी घर के अंदर नहीं घुस सके.
इसके पहले सन 2008 से 2015 के बीच सेंध मार कर की जाने वाली चोरियों में लगातार बढ़ोत्तरी हुई थी और 2015 में एक साल में चोरी के बाद के बीमा दावे 167,136 पर पहुंच गए थे. यह पिछले साल के मुकाबले लगभग दोगुनी संख्या थी.
कोरोना काल में खाना बनाने में बढ़ी लोगों की रुचि
जर्मनी और यूरोप के कई देशों में लॉकडाउन है. कॉफीहाउस और रेस्तरां बंद हैं. हालांकि टेकअवे की सुविधा अब भी उपलब्ध है, लेकिन बाहर न जा पाने की सूरत में कुकिंग की हॉबी जोर पकड़ रही है.
लॉकडाउन में सारे रेस्तरां बंद हैं. शुक्रवार से लेकर रविवार तक लोगों की शामें और दोपहर रेस्तरांओं को कटती हैं. उनके बंद होने के कारण लोगों के पास घर में ही खाना बनाने के सिवा कोई चारा नहीं.
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दफ्तरों में कैंटीन भी बंद
जर्मनी में दफ्तरों में आम तौर पर कैंटीन होती हैं जहां लोग दोपहर का गरम खाना खाते हैं. कैंटीन खाने के अलावा दफ्तर के दूसरे कलीगों से मिलने का भी मौका होता है. लेकिन कोरोना के कारण कैंटीन बंद हैं.
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बाहर आइस खाने का मजा
आइसक्रीम घर में भी खाई जा सकती है. लेकिन बाहर आइस पार्लरों में अच्छी तरह सजे आइसक्रीम खाने का मजा ही कुछ और होता है. लॉकडाउन में बच्चों से ये खुशी भी छिन गई है.
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चुनौती है घर में खाना
लॉकडाउन ने लोगों की जिंदगी अस्तव्यस्त कर रखी है. वर्क फ्रॉम होम, होम स्कूलिंग और छोटे बच्चे हों तो उनकी घर में ही देखभाल. इन सबके बीच नाश्ते से लेकर दोपहर और रात का खाना बनाना हर परिवार के लिए चुनौती है.
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टेकअवे सर्विस
वैसे रेस्तरां बंद होने के बावजूद टेकअवे सर्विस की सुविधा दे रहे हैं. ऐसे में लोग होम डिलीवरी सर्विस का फायदा उठा सकते हैं. कई रेस्तरां तो सलाद और डिजर्ट के साथ अच्छी डिशें भी ऑफर कर रहे हैं.
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अपना किचन महान
रेस्तरां के मजे लेने की संभावना तो कोरोना काल में खत्म हो गई है, लेकिन बहुत से लोग घर में खुद खाना बनाने का लुत्फ उठा रहे हैं. खासकर ऐसे लोग जिनके पास कोरोना की वजह से ज्यादा समय है.
ऐसे में रेसेपी का बाजार खूब फलफूल रहा है. पहले विदेश जाने वाले भारतीय नौजवान अपने घर फोन कर मां दादी से पुरानी घरेलू रेसेपी पूछते थे. अब तो जर्मनी में भी ये हो रहा है और सोशल मीडिया पर भी रेसेपी का कारोबार चल रहा है.
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कुकिंग इंफ्लुएंसर
बहुत से सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर कुकिंग और रेसेपी पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. शुरुआती दिनों में केले वाला ब्रेड ट्रेंड कर रहा था तो अब टॉर्टिया सैंडविच इंस्टाग्राम और टिकटॉक पर छाया हुआ है.
तस्वीर: Privat
किताबों की बिक्री
इंटरनेट में भी कुकिंग की किताबों और रेसेपी पेजों की मांग बढ़ रही है. जर्मनी में किताब बेचने वाली सबसे बड़ी चेन थालिया के अनुसार स्वस्थ, जैविक और क्षेत्रीय खाने की लोकप्रियता बढ़ रही है.
तस्वीर: DW/K. Safronova
ऑनलाइन कुकिंग क्लासें
लोगों की बढ़ती दिलचस्पी का फायदा ऑनलाइन कुकिंग क्लासों को भी मिल रहा है. जर्मनी भर में कुकिंग क्लास करने वाला म्यूनिख का प्लेटफॉर्म मियोमेंटे अब ये कोर्स ऑनलाइन भी ऑफर कर रहा है.
तस्वीर: Colourbox/Marongiu
खाना बनाने की खुशी
सिनेमा, थिएटर और पार्टी करने का मौका ना हो तो समय काटने का सबसे अच्छा तरीका घर में खाना बनाना है. एक सर्वे में जर्मनी और ऑस्ट्रिया के 42 फीसदी लोगों ने कहा कि ये निराशा दूर करने में मददगार है.
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पास्ता और चटनी
जर्मनी में पास्ता बहुत लोकप्रिय है. बस थोड़ा उबालना है और साथ के साथ चटनी तैयार. बच्चे इसे पसंद भी करते हैं और इसे बनाना भी ज्यादा मुश्किल काम नहीं. लेकिन रोज पास्ता खाते खाते मन भर भी जाता है.
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हर दिन कुछ नया
घर पर खाना बनाने में कहीं बाहर जाने और दूसरे लोगों के साथ खाने वाला मजा तो नहीं है, इसलिए लोग बदल बदल कर खाने पर बहुत ध्यान दे रहे हैं. कुकिंग कोर्स में दिलचस्पी की यही वजह है.
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खाना ही नहीं मिठाई भी
जर्मनी में परिवारों में केक बनाने और शाम के नाश्ते के तौर पर खाने की परंपरा रही है. काम वाली तेज जिंदगी में ये परंपरा सिर्फ वीकएंड में निभाई जाती है. अब हर रोड इसका मौका मिलता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Klose
ठंडा लेकिन पौष्टिक आहार
हर रोज गर्म खाना जरूरी नहीं. जर्मन न्यूट्रीशन सोसायटी की प्रमुख किरण विरमाणी कहती हैं कि हर दिन एक बार गरम खाना अच्छा होता है, लेकिन अगर काम के कारण समय न मिले तो स्वस्थ आहार खाने की राह में बाधा भी नहीं.