देश की 60 फीसदी आबादी को कोविड-रोधी टीके की दोनों डोज लग जाने के बाद इस्राएल में जीवन पटरी पर लौट आया था. लेकिन इधर संक्रमण फिर से बढ़ने लगा है. ऐसा कैसे हुआ? क्या वैक्सीन की तीसरी खुराक से मदद मिलेगी?
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मार्च में इस्राएल को लगता था कि कोविड-19 से उसका पीछा छूटा. देश की 90 लाख से ज्यादा की आबादी का आधा से अधिक हिस्से को कोरोना के दोनों टीके लग चुके थे. ये आबादी का करीब 60 फीसदी हिस्सा है और संख्या बढ़ ही रही है.
इस लिहाज से जर्मनी बड़े पैमाने पर पीछे था. मध्य मार्च तक उसकी आठ करोड़ 30 लाख की आबादी के सिर्फ 3.7 प्रतिशत हिस्से को ही दोनों खुराक मिली थीं. पहली खुराक पाने वाले 50 प्रतिशत से अधिक और दूसरी भी ले चुके 50 प्रतिशत से कम लोग हैं.
इस्राएल आगे था. कुछ रिपोर्टों में दावा किया गया कि फेस मास्क सार्वजनिक स्थानों से पूरी तरह गायब हो चुके थे और जीवन "सामान्य रूप से” बहाल हो चुका था.
लेकिन लौट आया कोविड
चार महीने भी नहीं गुजरे कि हालात पलटी खा चुके हैं. कुछ देश आगाह कर रहे हैं कि इस्राएल, यात्रियों के लिए हाई-रिस्क ठिकाना है. मध्य जुलाई से वहां कोविड के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. सरकार का कहना है कि वे मामले ज्यादातर उन बच्चों में हैं जिन्हें टीके नहीं लगे हैं, लेकिन कुछ मामले ब्रेकथ्रू इंफेक्शन के भी हैं यानी टीके की दोनों डोज लग जाने के बाद भी लोग संक्रमित हुए हैं.
इस्राएल के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुछ अध्ययनों के हवाले से दावा किया है कि वैक्सीन से मिलने वाली हिफाजत कुछ समय बाद कम होने लगती है, खासकर कोरोना के डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ.
इसीलिए इस्राएल अब लोगों मे एंटीबॉडीज को मजबूत बनाने और बीमारी के खिलाफ लड़ पाने की क्षमता बढ़ाने के लिए, वैक्सीन की तीसरी डोज पर जोर दे रहा है. ये अभियान युद्ध स्तर पर चलाया जा रहा है. अगस्त की शुरुआत से दसियों हजार लोगों को बूस्टर डोज लगाई जा चुकी है.
हर रोज कोविड-19 के पुख्ता मामले (सात दिन की औसत के हिसाब से) 16 जुलाई के आसपास बढ़ने शुरू हुए थे. उस वक्त रोजाना इंफेक्शन की दर सिर्फ 19.29 थी. 16 अगस्त तक औसतन हर रोज 5950.43 संक्रमण होने लगा था. मई, जून और जुलाई के बीच देश में हर रोज औसतन शून्य मौत की दर थी. इसका मतलब ये नहीं है कि मौतें बिल्कुल भी नहीं हुईं, लेकिन औसत में उनका आंकड़ा कहीं ठहरता नहीं था.
तस्वीरेंः कोविड के खिलाफ कुछ कामयाबियां
कोविड के खिलाफ कुछ कामयाबियां
कोविड के खिलाफ वैज्ञानिकों का संघर्ष जारी है. दुनिया भर के वैज्ञानिक अलग-अलग दिशाओं में शोध कर रहे हैं ताकि वायरस को बेहतर समझा जा सके और उससे लड़ा जा सके. जानिए, हाल की कुछ सफलताओं के बारे में.
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स्मेल से कोविड टेस्ट
कोरोनावायरस से संक्रमित होने पर अक्सर मरीज की सूंघने की शक्ति चली जाती है. अब वैज्ञानिक इसे कोविड का पता लगाने की युक्ति बनाने पर काम कर रहे हैं. एक स्क्रैच-ऐंड-स्निफ कार्ड के जरिए कोविड का टेस्ट किया गया और शोध में सकारात्मक नतीजे मिले. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह नाक से स्वॉब लेकर टेस्ट करने से बेहतर तरीका हो सकता है.
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मां के दूध में वैक्सीन नहीं
कोविड वैक्सीन के अंश मां के दूध में नहीं पाए गए हैं. टीका लगवा चुकीं सात महिलाओं से लिए गए दूध के 13 नमूनों की जांच के बाद वैज्ञानिकों ने पाया है कि यह वैक्सीन किसी भी रूप में दूध के जरिए बच्चे तक नहीं पहुंचती.
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नाक से दी जाने वाली वैक्सीन
कोविड-19 की एक ऐसी वैक्सीन का परीक्षण हो रहा है, जिसे नाक से दिया जा सकता है. इसे बूंदों या स्प्रे के जरिए दिया जा सकता है. बंदरों पर इस वैक्सीन के सकारात्मक नतीजे मिले हैं.
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लक्षणों से पहले कोविड का पता चलेगा
वैज्ञानिकों ने एक ऐसे जीन का पता लगाया है जो कोविड के साथ ही मनुष्य के शरीर में सक्रिय हो जाता है. कोविड के लक्षण सामने आने से पहले ही यह जीन सक्रिय हो जाता है. यानी इसके जरिए गंभीर लक्षणों के उबरने से पहले भी कोविड का पता लगाया जा सकता है. छह महीने चले अध्ययन के बाद IF127 नामक इस जीन का पता चला है.
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कोविड के बाद की मुश्किलें
वैज्ञानिकों ने एक शोध में पाया है कि जिन लोगों को कोविड के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, उनमें से लगभग आधे ऐसे थे जिन्हें ठीक होने के बाद भी किसी न किसी तरह की सेहत संबंधी दिक्कत का सामना करना पड़ा. इनमें स्वस्थ और युवा लोग भी शामिल थे. 24 प्रतिशत को किडनी संबंधी समस्याएं हुईं जबकि 12 प्रतिशत को हृदय संबंधी.
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15 अगस्त तक, इस्राएल में कोविड से मौत के दो मामले रोजाना आने लगे थे. उसके बाद एक दिन में पांच मौतें भी हुईं. दूसरे देशों की संख्या से इस आंकड़े की तुलना भी आसानी से की जा सकी है और संक्रमण और मौत की ऊंची और निचली दरें भी हैं, लेकिन फिलहाल इस्राएल पर ध्यान केंद्रित करते हैं.
मामले क्यों बढ़ रहे हैं?
शायद इसकी एक वजह कोराना वायरस का डेल्टा वेरिएंट भी हो सकता है. इस्राएल में डेल्टा वायरस की प्रमुखता के बारे में डाटा सार्वजनिक करने में कुछ हिचक रही है. लेकिन 14 अगस्त की प्रेस ब्रीफिंग में इस्राएली प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट ने कहा था कि "पूरी दुनिया में और इस्राएल में डेल्टा स्ट्रेन का उभार दुनिया को अपनी चपेट में ले रहा है.”
इससे समझा जा सकता है कि इस्राएल में मामलों की बढ़ोत्तर में डेल्टा वेरिएंट का हाथ भी है. इसके अलावा स्वास्थ्य मंत्रालय ने सूचित किया है कि "छह जून से संक्रमण (64 प्रतिशत) और बीमारी के लक्षणों (64 प्रतिशत) की रोकथाम के लिए वैक्सीन के असर में गिरावट देखी गई है. ये गिरावट इस्राएल में डेल्टा वेरिएंट के फैलाव के साथ ही साथ आंकी गई है.”
तस्वीरेंः इलाज पर कितना खर्च
कितना खर्च हुआ कोविड के इलाज पर
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि भारत में कोविड के इलाज पर हुआ औसत खर्च आम आदमी की सालाना आय से परे है. आइए जानते हैं आखिर कितना खर्च सामने आया इस अध्ययन में.
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भारी खर्च
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया और ड्यूक ग्लोबल हेल्थ इंस्टिट्यूट के इस अध्ययन में सामने आया कि अप्रैल 2020 से जून 2021 के बीच एक औसत भारतीय परिवार ने जांच और अस्पताल के खर्च पर कम से कम 64,000 रुपए खर्च किए. अध्ययन के लिए दामों के सरकार द्वारा तय सीमा को आधार बनाया गया है.
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महीनों की कमाई
भारत में एक औसत वेतन-भोगी, स्वरोजगार वाले या अनियमित कामगार के लिए कोविड आईसीयू का खर्च कम से कम उसके सात महिने की कमाई के बराबर पाया गया. अनियमित कामगारों पर यह बोझ 15 महीनों की कमाई के बराबर है.
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आय के परे
आईसीयू में भर्ती कराने के खर्च को 86 प्रतिशत अनियमित कामगारों, 50 प्रतिशत वेतन भोगियों और स्वरोजगार करने वालों में से दो-तिहाई लोगों की सालाना आय से ज्यादा पाया गया. इसका मतलब एक बड़ी आबादी के लिए इस खर्च को उठाना मुमकिन ही नहीं है.
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सिर्फ आइसोलेशन भी महंगा
सिर्फ अस्पताल में आइसोलेशन की कीमत को 43 प्रतिशत अनियमित कामगार, 25 प्रतिशत स्वरोजगार वालों और 15 प्रतिशत वेतन भोगियों की सालाना कमाई से ज्यादा पाया गया. अध्ययन में कोविड की वजह से आईसीयू में रहने की औसत अवधि 10 दिन और घर पर आइसोलेट करने की अवधि को सात दिन माना गया.
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महज एक जांच की कीमत
निजी क्षेत्र में एक आरटीपीसीआर टेस्ट की अनुमानित कीमत, यानी 2,200 रुपए, एक अनियमित कामगार के एक हफ्ते की कमाई के बराबर पाई गई. अमूमन अगर कोई संक्रमित हो गया तो एक से ज्यादा बार टेस्ट की जरूरत पड़ती है. साथ ही परिवार में सबको जांच करवानी होगी, जिससे परिवार पर बोझ बढ़ेगा.
अध्ययन में कहा गया कि इन अनुमानित आंकड़ों को कम से कम खर्च मान कर चलना चाहिए, क्योंकि सरकार रेटों में कई अपवाद हैं और इनमें से अधिकतर का पालन भी नहीं किया जाता. इनमें यातायात, अंतिम संस्कार आदि पर होने वाले खर्च को भी नहीं जोड़ा गया है.
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस्राएल में शारीरिक दूरी बरतने की अनिवार्यता खत्म होने से भी नुकसान हुआ है. इस्राएल ने कोविड के खिलाफ दो वैक्सीनों को मंजूरी दी हैः फाइजर-बायोएनटेक और मॉडर्ना. दोनों नॉवल एमआरनएन वैक्सीनें हैं. दोनों को करीब 95 प्रतिशत असरदार बताया गया है.
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क्या सारे मामले ब्रेकथ्रू वाले हैं?
कोई भी टीका मुकम्मल नहीं होता है. हर समय कोई भी टीका 100 प्रतिशत बचाव नहीं देता और हर व्यक्ति में एंटीबॉडीज की संख्या भी अलग अलग होती है. इसीलिए वैज्ञानिक कथित "ब्रेकथ्रू संक्रमण” के कुछ निश्चित संख्या वाले मामलों की संभावना जताते हैं.
इस बात का उल्लेख भी जरूरी है कि "फुली” या "मुकम्मल” डोज की परिभाषा को लेकर भी कुछ बहस चल रही है. कुछ लोग कहते हैं कि फाइजर-बायोएनटेक या एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की दोनों खुराक लेने के बाद आप "फुली वैक्सीनेटड” हो जाते हैं यानी आपके टीके पूरे हो जाते हैं. और ब्रिटेन जैसे देश भी हैं जिनका जोर इस बात पर है कि आपको "फुली वैक्सीनेटड” तभी कहा जा सकता है कि जबकि दोनों डोज एक ही वैक्सीन निर्माता की हों.
जर्मनी और यूरोप के अन्य देश इस बीच मिली-जुली वैक्सीन की तरफ जा रहे हैं. यानी आपका पहला डोज एस्ट्राजेनेका का है तो दूसरा फाइजर-बायोनटेक का हो सकता है. एक प्रमुख राय ये बन रही है कि मिलीजुली वैक्सीनें खासकर जिसमें फाइजर-बायोनटेक शामिल है, वे डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ ज्यादा असरदार होती हैं. जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन भी है जिसकी सिर्फ एक ही खुराक से टीकाकरण पूरा हो जाता है.
क्या है लॉन्ग कोविड
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इस्राएल जैसे देश अपने नागरिकों को जल्दी से जल्दी तीसरी खुराक लेने की सलाह दे रहे हैं. कुछ जानकार, तीसरी खुराक वाले सिद्धांत को लेकर नैतिक और वैज्ञानिक मुद्दे भी उठाते हैं- जैसे कि वे देश भी हैं जो अपने यहां पहली खुराक के लिए ही पर्याप्त टीके नहीं जुटा पा रहे हैं.
और दूसरी बात ये उठी है कि वैज्ञानिक आधार पर भी ये साबित नहीं हो पाया है. यानी जो कुछ भी हम जानते हैं, वो सब देखते हुए ये नहीं कहा जा सकता कि तीसरी खुराक व्यक्ति को अनिवार्य रूप से सुरक्षित कर देगी.
लेकिन समय के साथ ये दलीलें बदल सकती हैं. एक-दो साल में वैज्ञानिक कह सकते हैं कि लोगों को चौथी खुराक भी चाहिए. या शायद नये वेरिएंटों के उभार से लोग कभी पूरी तरह से वैक्सीनेटड नहीं हो पाएंगे और दुनिया के उन वायरसों के साथ रहना सीखना होगा.
कुछ भी हो, जैसा कि डाटा से पता चलता है, अगर टीके की पूरी खुराक ले चुके इस्राएली लोगों में ब्रेकथ्रू मामले आते हैं, तो उनका संक्रमण उन लोगों के मुकाबले बहुत हल्का ही रहता है जिन्हें एक भी टीका नहीं लगा है.
इस्राएल में पिछले ही दिनों 16 अगस्त का सैंपल देखिएः
गंभीर रूप से बीमार 154. 7 मरीजों को एक भी टीका नहीं लगा था.
गंभीर रूप से बीमार 48. 4 मरीजों को आंशिक टीका लग चुका था.
और गंभीर रूप से बीमार 19. 8 मरीजों को सभी डोज लग चुकी थीं.
तो आगे का रास्ता क्या है?
इस्राएल कोई जोखिम नहीं मोल ले रहा है. वो और खुराकें दे रहा है. स्वास्थ्य मंत्रालय कहता है कि दुनिया भर में टीका निर्माताओं और दूसरी एजेंसियों के कराए अध्ययन ये बताते हैं कि "तीसरी डोज खून में एंटीबॉडी का लेवल बढ़ा देती है, उनकी गुणवत्ता बढ़ जाती है (यानी वायरस को खत्म करने की क्षमता में सुधार) और वे लंबे समय तक शरीर में रह पाती हैं. इसका नतीजा होता है, वायरस से शरीर को बचाने के लिए बढ़ी हुई एंटीबॉडी क्षमता.”
और इसीलिए वो भविष्य में और भी डोज की बात से इंकार नहीं कर रहा है. उसने 12-15 साल के बच्चों को भी टीका लगाने की सिफारिश की है.
कोविड-19 के मरीजों से कोरोना का संक्रमण उनके पालतू कुत्तों और बिल्लियों में भी फैल सकता है. उनमें भी लक्षण दिखते हैं लेकिन वे अक्सर मामूली होते हैं.
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जानवर भी बीमार पड़ सकते हैं
संक्रमित होने वाले एक चौथाई जानवर भी बीमार पड़े थे. अधिकांश जानवरों में बीमारी हल्की थी, तीन की हालत ज्यादा गंभीर थी. फिर भी चिकित्सा विशेषज्ञ ज्यादा चिंतित नहीं हैं. वे कहते हैं कि महामारी में पालतू जानवरों की खास भूमिका नहीं है. बड़ा खतरा तो मनुष्यों के बीच संक्रमण का है.
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जानवर पालें या नहीं?
ये तो मार्च 2020 में ही पता चल गया था कि बिल्लियों में भी कोरोना हो सकता है. ये बात पहली बार बताई थी, चीन के हार्बिन में वेटेरिनरी रिसर्च इन्स्टीट्यूट ने. उसी ने ये भी बताया था कि कोरोना एक बिल्ली से दूसरी बिल्लियों में भी जा सकता है. लेकिन पशु चिकित्सक हुआलान शेन कहते हैं, ये इतना आसान नहीं.
बिल्लियां पालने वाले लोग घबराएं नहीं. बिल्लियां वायरस के खिलाफ तुरंत एंटीबॉडी बना लेती हैं इसलिए लंबे समय तक संक्रमित नहीं रहतीं. कोविड-19 के गंभीर मरीज अपनी पालतू बिल्लियों को कुछ समय के लिए बाहर न जाने दें. और जो लोग स्वस्थ हैं वे अंजान जानवरों को थपथपाने के बाद करीने से हाथ धो लें.
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कौन किसे संक्रमित करता है?
रोम में घूमते निकले इस पालतू सुअर को क्या कुत्ते से एक सुरक्षित दूरी बनाकर चलना चाहिए? इस सवाल पर भी फिर से गौर करना होगा. सुअर कोरोना वायरस के कैरियर नहीं हैं, ये दावा 2020 में हार्बिन के शोधकर्ताओं ने किया था. लेकिन तब उन्होंने कुत्तों के मामले में भी यही कहा था. क्या आज भी वे ऐसा कह सकते हैं?
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जब इंसान ही बन जाएं खतरा
मलेशिया की चार साल की बाघिन नादिया, न्यू यार्क के एक चिड़ियाघर में रहती है. 2020 में उसमें कोरोना मिला था. चिड़ियाघर के प्रमुख पशु चिकित्सक ने नेशनल ज्योगॉफ्रिक पत्रिका को बताया कि ये मनुष्यों से जंगली जानवरों में होने वाला, कोविड-19 का पहला मामला था.
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चमगादड़ों पर बेकार का दोष?
माना जाता है कि वायरस जंगल से आया. चमगादड़ ही सार्स-कोवि-2 के सबसे पहले कैरियर मान लिए गए. लेकिन पशु चिकित्सक कहते हैं कि दिसंबर 2019 में वुहान में चमगादड़ों और इंसानों के बीच कोई और प्रजाति बतौर इंटरमीडियट होस्ट रही होगी. ये कौनसा जानवर होगा, अभी ठीक से पता नहीं चला है.
ये रकून, ज्ञात सार्स वायरसों का वाहक है. वायरोलॉजिस्ट क्रिस्टियान ड्रॉस्टन इसे एक गंभीर वायरस कैरियर मानते हैं. वो कहते हैं कि चीन में बड़े पैमाने पर फर के लिए रकून का शिकार होता है या फार्मों में उनकी ब्रीडिंग की जाती है. उनके मुताबिक रकून पर ही सबसे ज्यादा शक है.
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या ये नन्हा जानवर है जिम्मेदार?
पैंगोलिन पर भी वायरस फैलाने का शक है. हांगकांग, चीन और ऑस्ट्रेलिया के रिसर्चरों ने मलेशियाई पैंगोलिन में सार्स-कोवि-2 से हूबहू मिलतेजुलते वायरस की पहचान की है.
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गंधबिलावों का क्वारंटाइन
हुआलान शेन ने फैरेट यानी गंधबिलावों पर भी प्रयोग किए. नतीजा ये निकला कि इनमें भी कोरोना वायरस उसी तरीके से पनपता है जैसा आम बिल्लियों में.
विशेषज्ञों ने मुर्गीपालन से जुड़े लोगों को क्लीन चिट दी है. जैसे कि चीन के वुहान का ये व्यापारी. वैज्ञानिक मानते हैं कि, 2019 में वायरस का पहला मामला, वुहान में ही आया था. इंसानों को घबराने की जरूरत नहीं, क्योंकि मुर्गियों में सार्स-कोवि-2 के खिलाफ इम्युनिटी होती है. और बत्तखों और दूसरे परिंदों में भी.