टीका लगवाने में भारत की औरतें मर्दों से पीछे क्यों हैं
२९ जनवरी २०२२भारत में स्वास्थ्य अधिकारी कोविड-19 टीकाकरण अभियान को तेज कर रहे हैं जिसने देश भर के शहरों और गांवों में टीकों की पहुंच को काफी बढ़ा दिया है. हालांकि, टीका लगाने के आंकड़ों से संकेत मिलता है कि महिलाओं की तुलना में अब तक पुरुषों को टीका ज्यादा लगा है. भारत में टीका लगाने की आधिकारिक वेबसाइट COWIN के आंकड़ों के अनुसार, भारत में कुल 1.63 अरब वैक्सीन की खुराक दी जा चुकी है.
इनमें से 83 करोड़ टीके की डोज पुरुषों को दी गई है जबकि महिलाओं को 79.2 करोड़ डोज. यानी दोनों के बीच 3.8 करोड़ से ज्यादा खुराक का अंतर है. उदाहरण के लिए, दिल्ली में दी गई कुल 2.93 करोड़ खुराक में से 1.66 करोड़ खुराक पुरुषों को दी गई, जबकि महिलाओं को 1.24 करोड़ खुराक ही दी गई. व्यापारिक महानगर मुंबई में पुरुषों को मिली 1.12 करोड़ खुराक के विपरीत महिलाओं को सिर्फ 0.78 करोड़ खुराक ही दी गई.
ऐसा तब हो रहा है जबकि भारत के राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण यानी एनएफएचएस द्वारा जारी नवीनतम लिंगानुपात के मुताबिक, पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या ज्यादा है. प्रत्येक 1,000 पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या 1,020 है. महिलाओं को कम संख्या में टीका क्यों लग रहा है?
अंतर की वजह असमानता
सामाजिक कार्यकर्ता टीका लगाने में इस स्पष्ट लैंगिक भेद के पीछे कई कारणों का हवाला देते हैं. ये कारण मोटे तौर पर भारत में मौजूद भौगोलिक, सामाजिक और लैंगिक असमानताओं की ओर इशारा करते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में राजनीतिक-आर्थिक थिंक टैंक अर्थ ग्लोबल से जुड़े रूबेन अब्राहम कहते हैं, "हमारे शोध के मुताबिक, इसके पीछे एक साथ कई कारण हैं. सूचना और प्रौद्योगिकी तक कम पहुंच के कारण महिलाओं को यह जानकारी ठीक से नहीं मिल पाती कि कब और कहां पंजीकरण कराना है और कहां टीका लगाना है. इसके अलावा परिवहन जैसे मुद्दे भी इस कमी के पीछे महत्वपूर्ण कारण हैं.”
इंस्टीट्यूट ऑफ हेस्थ डिपार्टमेंट से जुड़ी अदिति मदान कहती हैं, "स्वास्थ्य देखभाल में लंबे समय से चली आ रही संरचनात्मक समस्याओं और स्वास्थ्य देखभाल की लैंगिक प्रकृति के परिणामस्वरूप परिवारों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के स्वास्थ्य और कल्याण के मुद्दों को प्राथमिकता देने की संभावना कम रहती है.” मदान ने वैक्सीन इक्विटी पर बारीकी से काम किया है. वो कहती हैं कि शहरी, गैर-आदिवासी बहुल क्षेत्रों में टीकाकरण कवरेज की तुलना में उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में कवरेज में बड़ी असमानताएं देखी जा सकती हैं.
वैक्सीन को लेकर और जागरूकता की जरूरत
अदिति मदान के मुताबिक, सरकार को टीका कैसे लगवाया जाए, इस बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए और अधिक प्रयास करने की जरूरत है. वैक्सीन कवरेज में सुधार के लिए स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करने, संसाधनों में बढ़ोत्तरी करने, बिखरी हुई आबादी और कठिन इलाकों में जागरूकता अभियान शुरू करने जैसे प्रयास शामिल हैं.
मदान कहती हैं, "भारत की समग्र प्रतिक्रिया धमकी देने से ज्यादा प्रेरक होनी चाहिए, खासकर सामुदायिक स्तर पर.” भारत की पूर्व स्वास्थ्य सचिव के सुजाता राव ने डीडब्ल्यू को बताया कि सुदूर क्षेत्रों की महिलाएं टीके को लेकर तब तक अनजान थीं जब तक कि स्थानीय अधिकारियों ने उन तक पहुंचने की अतिरिक्त कोशिश नहीं की. राव कहती हैं, "महिलाएं तमाम वजहों से कमजोर होती हैं, मसलन, सूचना की कमी और परिवहन या एस्कॉर्ट की कमी के कारण टीकाकरण सुविधाओं तक पहुंचने में वो असमर्थ होती हैं.”
टीकाकरण के प्रति अविश्वास भी
प्रौद्योगिकी और डिजिटल साक्षरता तक पहुंच में लैंगिक विभेद ने भारतीय महिलाओं को कोरोना वायरस के टीकों के बारे में जानकारी प्राप्त करने में असमर्थ बना दिया है. एनएफएचएस के अनुसार, भारत के 12 राज्यों में 60 फीसद से ज्यादा महिलाओं ने कभी इंटरनेट का उपयोग नहीं किया है. भूगोल, सामाजिक-आर्थिक वर्ग और धर्म भी वैक्सीन कवरेज में पिछड़ने में भूमिका निभाते हैं.
मुंबई स्थित थिंक टैंक आईडीएफसी इंस्टीट्यूट की सोफिया इमाद डीडब्ल्यू से बातचीत में कहती हैं, "कुछ पैटर्न समान हैं. उदाहरण के लिए, हमने मुंबई में सरकार के प्रति अविश्वास के कारण मुस्लिम समुदायों में टीकाकरण अभियान के प्रति अत्यधिक अविश्वास देखा है. पश्चिम बंगाल में हमने महिलाओं में टीके लगवाने की इच्छा में कमी देखी. इसे महिला-विशिष्ट अफवाहों द्वारा समझाया जा सकता है जैसे मासिक धर्म पर टीकाकरण का प्रभाव या सूचना या परिवहन तक पहुंच में बाधा.”