सीपीएम के इतिहास में पहली बार एक दलित नेता को पार्टी की सर्वोच्च संस्था का सदस्य बनाया गया है. राम चंद्र डोम पश्चिम बंगाल से पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और सात बार सांसद रह चुके हैं.
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10 अप्रैल को केरल के कन्नूर में सीपीम की 23वीं पार्टी कांग्रेस का समापन हुआ. सीताराम येचुरी को लगातार तीसरी बार पार्टी का महासचिव चुना गया. उनके अलावा 17 सदस्यीय पोलिटब्यूरो को भी चुना गया और डोम के रूप में पार्टी के 58 साल के इतिहास में पहली बार पोलिटब्यूरो में एक दलित नेता को शामिल किया गया.
पोलिटब्यूरो पार्टी की सर्वोच्च संस्था है. हर तीन साल पर होने वाली पार्टी कांग्रेस के बाद 85 सदस्यीय केंद्रीय समिति पोलिटब्यूरो के सदस्य चुनती है. माना जा रहा है कि इसमें पहली बार एक दलित नेता को शामिल कर पार्टी दलित मतदताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है.
63 साल के डोम पश्चिम बंगाल के रहने वाले हैं और सात बार सांसद रह चुके हैं. वो पेशे से एक डॉक्टर हैं. पोलिटब्यूरो के लिए चुने जाने के बाद उन्होंने पत्रकारों को बताया कि यह पार्टी का एक नया कदम जरूर है लेकिन दलित, आदिवासी और पिछड़े समुदायों के सैकड़ों कामरेड पार्टी के लिए काम करते ही रहे हैं.
सीपीएम पर लंबे समय से आरोप लगते रहे हैं कि वो राजनीति तो दलितों, आदिवासियों और सभी पिछड़ों के नाम की करती है लेकिन पार्टी के अंदर इन समुदायों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने पर काम नहीं करती. अब जा कर ऐसे समय में पार्टी ने पहली बार एक दलित नेता को पोलिटब्युरो में शामिल किया है जब वो अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है.
पार्टी इस समय सिर्फ केरल में सत्ता में है. लोक सभा में इसके सिर्फ तीन सदस्य हैं और राज्य सभा में पांच. पश्चिम बंगाल में पार्टी कभी लगातार 34 सालों तक सत्ता में रही लेकिन आज हाल ये है कि राज्य की विधान सभा में पार्टी का एक विधायक तक नहीं है.
दूसरे राज्यों में भी पार्टी का जनाधार सिमटता जा रहा है. खुद येचुरी ने माना है कि भारत की आजादी के बाद पार्टी इस समय सबसे चुनौतीपूर्ण हालात का सामान कर रही है. पार्टी के नेतृत्व के सामने सबसे बड़ा सवाल है कि कैसे एक बार फिर पार्टी को मतदाताओं के लिए एक आकर्षक विकल्प बनाए.
100 साल की चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की कहानी
चीन पर शासन करने वाली कम्युनिस्ट पार्टी सौ साल की हो गई है. 28 जून 2021 को पार्टी की सौवीं वर्षगांठ मनाई गई. देखिए, समारोह की तस्वीरें और जानिए सीसीपी के बारे में कुछ दिलचस्प बातें.
तस्वीर: Thomas Peter/REUTERS
आधुनिक चीन की संस्थापक
चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) आधुनिक चीन की संस्थापक है. 1949 में माओ त्से तुंग के नेतृत्व में पार्टी ने राष्ट्रवादियों को हराकर पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना की थी.
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सीसीपी की स्थापना
सीसीपी की स्थापना 1921 में रूसी क्रांति से प्रभावित होकर की गई थी. 1949 में पार्टी के सदस्यों की संख्या 45 लाख थी.
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सदस्यों की संख्या
पिछले साल के आखिर में सीसीपी के सदस्यों की संख्या नौ करोड़ 19 लाख से कुछ ज्यादा थी. 2019 के मुकाबले इसमें 1.46 प्रतिशत की बढ़त हुई थी. चीन की कुल आबादी का लगभग साढ़े छह फीसदी लोग ही पार्टी के सदस्य हैं. आंकड़े स्टैटिस्टा वेबसाइट ने प्रकाशित किए थे.
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सदस्यता
पार्टी की सदस्यता हासिल करना आसान नहीं है. इसकी एक सख्त चयन प्रक्रिया है और हर आठ आवेदकों में से एक को ही सफलता मिलती है. यह प्रक्रिया लगभग डेढ़ साल चलती है.
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कैसे हैं इसके सदस्य
सीसीपी के सदस्यों में साढ़े चार करोड़ से ज्यादा के पास जूनियर कॉलेज डिग्री है. करीब एक करोड़ 87 लाख सदस्य सेवानिवृत्त हो चुके नागरिक हैं. 2019 के आंकड़े देखें तो सदस्यों में 28 प्रतिशत किसान, मजदूर और मछुआरे थे.
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महिलाओं की संख्या
पिछले कुछ सालों में सीसीपी में महिलाओं की संख्या बढ़ी है. 2010 में पार्टी की 22.5 फीसदी सदस्य महिलाएं थीं जो 2019 में बढ़कर 28 फीसदी हो गईं. 2019 में सदस्यता लेने वालों में 42 फीसदी संख्या महिलाओं की थी.
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पार्टी पर दाग
पिछले साल के आंकड़ों के मुताबिक पार्टी में 18 प्रतिशत सदस्यों का सरकार पर भरोसा नहीं था. 2020 में छह लाख 19 हजार सीसीपी सदस्यों पर भ्रष्टाचार के मुकदमे दर्ज थे. 2010 में एक रिपोर्ट आई थी जिसके मुताबिक उस साल 32 हजार लोगों ने पार्टी छोड़ दी थी.
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सम्मेलन
हर पांच साल में सीसीपी का एक सम्मेलन होता है जिसमें नेतृत्व का चुनाव होता है. इसी दौरान सदस्य सेंट्रल कमेटी चुनते हैं, जिसमें लगभग 370 सदस्य होते हैं. इसके अलावा, मंत्री और अन्य वरिष्ठ पदों पर भी लोगों का चुनाव होता है.
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सात के हाथ में ताकत
सेंट्रल कमेटी के सदस्य पोलित ब्यूरो का चुनाव करते हैं, जिसमें 25 सदस्य होते हैं. ये 25 लोग मिलकर एक स्थायी समिति का चुनाव करते हैं. फिलहाल इस समिति में सात लोग हैं, जिन्हें सत्ता का केंद्र माना जाता है. इसमें पांच से नौ लोग तक रहे हैं.
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महासचिव
सबसे ऊपर महासचिव होता है जो राष्ट्रपति बनता है. 2012 में हू जिन ताओ से यह पद शी जिन पिंग ने लिया था. बाद में संविधान में बदलाव कर राष्ट्रपति पद की समयसीमा ही खत्म कर दी गई और अब शी जिन पिंग जब तक चाहें, इस पद पर रह सकते हैं.