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भ्रष्ट राजनीति और अफसरशाही के किस्से सुनाती किताब

मनीष कुमार
७ दिसम्बर २०२१

पूर्व आईपीएस अफसर किशोर कुणाल ने अपनी किताब 'दमन तक्षकों का' में कई राजनेताओं, मुख्यमंत्रियों और वरिष्ठ अफसरों के किस्से बेबाकी से लिखे हैं.

तस्वीर: Manish Kumar/DW

बात 1988 की है. उस समय किशोर कुणाल गुजरात लौटे थे. मन मोहन सिंह वहां डीजीपी थे. कुणाल की ईमानदारी के कायल डीजीपी ने उनसे भ्रष्टाचार के कई प्रकारों की व्याख्या करते हुए कहा था, "जहां-जहां शराबबंदी है, वहां-वहां अधिकारियों की चांदी है. उन पर धन की जो बारिश होती है, वह सावन-भादों को भी पीछे छोड़ दे. इस बरसात की खूबसूरती है कि यह मौसम पर आश्रित नहीं है. कभी आद्रा नक्षत्र की बौछार तो कभी हथिया की मूसलाधार." बरसों बाद भी मन मोहन सिंह की उक्ति बिहार में सौ फीसद कारगर साबित हो रही है.

यह पंक्तियां 1972 बैच के चर्चित आईपीएस (भारतीय पुलिस सेवा) अधिकारी किशोर कुणाल की पुस्तक (जीवनी) से ली गई हैं. भ्रष्ट राजनेताओं, अधिकारियों व अपराधियों पर प्रबल प्रहार करती उनकी पुस्तक ‘दमन तक्षकों का' केवल उनकी जीवनी नहीं है, बल्कि देश की तत्कालीन भ्रष्ट व्यवस्था को उजागर करती वह सच्चाई है जिसे उन्होंने गुजरात, झारखंड, बिहार व भारत सरकार में विभिन्न पदों पर रहते हुए महसूस किया, झेला और उससे लड़े.

तस्वीर: Manish Kumar/DW

अपनी पुस्तक में उन्होंने तक्षक को अपराध का प्रतीक मानते हुए बतलाया है कि समाज में तीन प्रकार के तक्षक मौजूद हैं, जब तक इन तक्षकों का कानून सम्मत दमन नहीं होगा, तब तक व्यवस्था में सुधार संभव नहीं है. तक्षक वह नागराज (जहरीला सांप) था, जिसके डंसने से राजा परीक्षित की मौत हुई थी. पौराणिक कथाओं व धार्मिक ग्रंथों के आख्यानों के अनुसार राजा परीक्षित की मौत को कलियुग की शुरुआत माना जाता है.

पूर्व आइपीएस अधिकारी ने अपनी पुस्तक में तक्षकों के तीन प्रकार बताए हैं- खूंखार अपराधी, घूसखोर नेता व बिके हुए अधिकारी. इस पुस्तक से एक से बढ़कर एक तक्षकों के बारे में जानकर पता चलता है कि आठवें व नौंवे दशक में बिहार समेत कुछ अन्य राज्यों के कुछ सत्ताधारी राजनेताओं, अफसरों ने कैसे कानून का शासन ध्वस्त करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. इनकी करतूतों से यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि ये अपने ही देश के हैं या फिर कोई बाहरी हमलावर.

आईएएस मतलब ‘ऑलमाइटी सर्विस'

यूं तो इस पुस्तक में कई चौंकाने वाले प्रसंग हैं, किंतु इनमें सबसे हैरतअंगेज राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी के बारे में है.1978 में कुणाल जब मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी में चार महीने के एक कोर्स के लिए गए तो जिस कमरे में रहने के लिए उन्हें ले जाया गया, उसमें पहले से एक आईएएस प्रोबेशनर रहते थे.

कुणाल लिखते हैं कि जब उन्होंने कमरे में प्रवेश किया वे महाशय केवल अंडरवियर और बनियान में थे और बगल में शराब की बोतलें व जाम थे. कुणाल ने उनसे पूछा, क्या यहां शराब पीने की इजाजत है. इस पर उन्होंने कहा, "अफसर शराब नहीं पियेगा तो ऊर्जा कहां से आएगी!"

फिर बातचीत के क्रम में उन्होंने शबाब का अर्थ और आईएएस का पूरा नाम भी समझाया. कहा, "आईएएस का पूरा नाम इंडियन ऑलमाइटी सर्विस है. ईश्वर को ऑलमाइटी कहते हैं. वहीं कहीं स्वर्ग में रहता होगा. धरती के ईश्वर तो हम हैं. सेवा भाव रहता तो आईएएस में क्यों आता. साहिबी और सेवा, दोनों दो ध्रुव हैं."

वेतन तो सूखा साग है, ऊपरी कमाई है मलाई

गुजरात के आणंद में भारतीय पुलिस सेवा में सहायक पुलिस अधीक्षक के पद पर स्वतंत्र प्रभार वाली पहली पदस्थापना में कुणाल को जो पहला केस मिला उसके संदर्भ में नाडियाद अनुमंडल के पुलिस उपाधीक्षक देसाई साहब के 'दिव्य ज्ञान' की चर्चा उन्होंने पुस्तक के पहले पन्ने में विस्तार से की है.

हत्या के चार फरार गुनहगारों की पैरवी के क्रम में देसाई साहब ने कुणाल से कहा, "पगार तो सरकार को दिखाने के लिए है. परिवार का दारोमदार तो थानेदार बंधुओं पर रहता है. सारे व्यय-व्यापार का जुगाड़ तो वही करते हैं. वेतन तो सूखा साग है, ऊपरी कमाई है मलाई."

तस्वीर: Manish Kumar/DW

कुणाल लिखते हैं कि इसी केस के संबंध में कुछ अधिकारियों ने कुणाल की शिकायत गृह विभाग के उप मंत्री रहे माधवलाल शाह से की गई. उनके मुताबिक शाह ने उन्हें फोन पर केस को खत्म करने की हिदायत देते हुए कहा कि तुम्हारा हाथ जल जाएगा, ये (आरोपी) करोड़पति, अरबपति लोग हैं.

प्रत्युत्तर में कुणाल ने कहा, "कहां लिखा हुआ है कि करोड़पतियों को मर्डर करने की छूट है." कुणाल दावा करते हैं कि इस पर माधवलाल शाह ने उन्हें बोरिया-बिस्तर बांध लेने की धमकी दी और दो-तीन बाद उनका तबादला भी हो गया. हालांकि, पी.के पंत ने जब कुणाल से बात की तो उन्होंने तबादले को रोक कर उन्हें अपना काम करते रहने को कहा.

कुत्सित राजनीति, वीभत्स अपराध

कभी पटना से दिल्ली तक की राजनीति को हिला देने वाली लोमहर्षक श्वेतनिशा उर्फ बॉबी हत्याकांड का प्रमाणिक तौर पर जिक्र करते हुए कुणाल ने अपनी पुस्तक में बताया है कि आखिर क्यों कहा जाता है कि ‘समरथ को नहिं दोष गुसाईं.' यह एक महिला की ऐसी हत्या थी जिसमें सेक्स, अपराध और राजनीति का सम्मिश्रण था.

अखबार की खबर पर यूडी केस दर्ज कर कुणाल ने कब्रिस्तान से लाश को निकालकर पोस्टमॉर्टम करवाया. अनुसंधान की इतनी तीव्र गति किसी ने देखी या सोची नहीं थी. इस घटना में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष के पुत्र रघुवर झा समेत कई छोटे-बड़े कांग्रेसी नेताओं का नाम आ रहा था.

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कुणाल लिखते हैं कि वरीय अधिकारियों का बर्ताव ऐसा था जैसे सच का पता लगा कर उन्होंने कोई गुनाह कर दिया हो. वह लिखते हैं कि तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र ने उन्हें फोन कर पूछा कि बॉबी कांड का मामला क्या है. कुणाल ने उन्हें जवाब दिया कि सर कुछ मामलों में आपकी छवि अच्छी नहीं है, किंतु चरित्र के मामले में आप बेदाग हैं, इसमें पड़िएगा तो यह ऐसी तीव्र अग्नि है कि हाथ जल जाएगा. अत: कृपया इससे अलग रहें. जवाब सुनकर मुख्यमंत्री ने फोन रख दिया था.

जांच के क्रम में बॉबी की कथित मां व बिहार विधान परिषद की सदस्य राजेश्वरी सरोज दास ने कुणाल को बताया कि कैसे स्पीकर के पुत्र रघुवर झा की दी दवाई से उसकी तबीयत बिगड़ी, कैसे नकली डॉक्टर ने उसका इलाज किया और कैसे झूठी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट तक बनी.

अदालत को दिए बयान में भी उन्होंने कहा कि बॉबी को कब और किसने जहर दिया था. कुणाल के अनुसंधान से यह साबित हो गया था कि श्वेतनिशा की हत्या षड्यंत्र रचकर की गई थी. इसके लिए मुख्य सचिव ने उन्हें बधाई भी दी थी. किंतु इसी बीच दो मंत्री और 40 विधायक मुख्यमंत्री डॉ. मिश्र के पास पहुंचे और उन्हें धमकी दी कि अगर केस तत्काल सीबीआई को ट्रांसफर नहीं किया गया तो वे उनकी सरकार गिरा देंगे. मुख्यमंत्री बाध्य हो गए और केस सीबीआई को चला गया.

सीबीआई ने आरोपियों को अभयदान दे दिया. सीबीआई की जांच में भले ही आरोपी मुक्त हो गए, किंतु जनता ने कुणाल के अनुसंधान पर ही विश्वास किया और श्वेतनिशा उर्फ बॉबी हत्याकांड सेक्स-राजनीति से जुड़े अपराधों के इतिहास में एक रोचक दास्तां बनकर जुड़ गया.

कुणाल ने आणंद व मुंगेर की कुछ उन घटनाओं का जिक्र किया है जिसमें पुलिसकर्मी निर्धनों को पकड़कर किसी भी मामले में जेल भिजवा देते थे और त्वरित गति से मामले के उद्भेदन के इसी शैली से वरिष्ठ अधिकारियों से पुरस्कार व प्रशस्ति पत्र पाते थे.

अपने सरकारी आवास की साज-सज्जा पर डेढ़-दो करोड़ रुपये खर्च करने वाले राज्यसभा के एक सांसद से जब कुणाल ने इतने पैसे खर्च करने का प्रयोजन पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि 'मनीपुर' यानी पैसे के दम पर वह राज्यसभा सांसद बने रहेंगे और इसी बंगले में रहते रहेंगे. वह कभी इस पार्टी से तो कभी उस पार्टी से वे राज्यसभा के सदस्य बने रहे.

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