शांति के मौके देता है नदियों के पानी का बंटवारा
९ अप्रैल २०२२![BG Staudämme und Folgen | Wasserkraftwerk Jinghong China](https://static.dw.com/image/61133679_800.webp)
यूक्रेन पर रूसी हमले की शुरुआत में रूस ने घोषणा की थी कि उसने उत्तरी क्रीमिया नहर पर बने एक बांध पर बमबारी की है. 2014 में रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया था. इसके बाद यूक्रेन ने यह बांध बनाकर रूसी कब्जे वाले क्षेत्र में पानी की आपूर्ति को बाधित कर दिया था. इसका नतीजा यह हुआ कि क्रीमिया में पानी की विकट समस्या खड़ी हो गई.
हालांकि, क्रीमिया में पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए यूक्रेन पर रूस ने हमला नहीं किया है. पानी के लिए होने वाले विवाद पर पैसिफिक इंस्टिट्यूट की सूची दिखाती है कि किस तरह पानी को सदियों से हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है. स्वीडन में उप्साला विश्वविद्यालय में शांति और संघर्ष विभाग के प्रोफेसर अशोक स्वैन कहते हैं कि क्रीमिया की जल आपूर्ति इसका एक उदाहरण है.
अशोक स्वैन यूनेस्को में इंटरनेशनल वाटर कोऑपरेशन के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके हैं. वह कहते हैं कि जल संसाधन को साझा करना सहयोग का एक अवसर भी हो सकता है, क्रीमिया में भी, अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय रूस और यूक्रेन को पानी से जुड़े इस मानवीय मुद्दे को हल करने के लिए प्रेरित करता, तो "दोनों देशों को बातचीत करने के लिए, समस्या के समाधान के लिए और दूसरे मुद्दे सुलझाने के लिए एक मंच मिल सकता था.”
जल की वजह से तनाव
दुनिया की 40 फीसदी आबादी उन नदियों पर निर्भर है जो दो देशों से होकर गुजरती है. जलवायु परिवर्तन की वजह से पहले की तुलना में ज्यादा क्षेत्र सूखे की चपेट में आने लगे हैं. ऐसे में इस आवश्यक संसाधन को किस तरह समान रूप से साझा किया जाए, इसे लेकर दुनिया भर में तनाव बढ़ गया है.
मिस्र और सूडान की आपत्ति के बावजूद, फरवरी में ग्रैंड इथोपियन रेनेसां डैम को चालू कर दिया गया. यह बांध इथोपिया में नील नदी पर बना है. चीन में मेकांग नदी पर बनने वाले बांधों को थाईलैंड और कंबोडिया में सूखे के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है. भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी के पानी को लेकर तनाव बढ़ रहा है.
वाटर रिसोर्स इंस्टीट्यूट और आईएचई डेल्फ्ट जैसे दूसरे संस्थानों ने वाटर पीस और सिक्योरिटी ऑनलाइन टूल बनाया है. इस टूल में धरती के नक्शे में उन जगहों को दिखाया गया है जहां पानी की वजह से तनाव है और जहां कभी भी हिंसक घटनाएं हो सकती हैं. "सबनेशनल हाइड्रोपोलिटिक्स: कंफ्लिक्ट, कोऑपरेशन एंड इंस्टीट्यूशन-बिल्डिंग इन शेयर्ड रिवर बेसिन्स" के लेखक स्कॉट मूर कहते हैं कि इस तरह की अशांति मुख्य रूप से देशों के भीतर होती है, दो देशों के बीच नहीं.
स्कॉट मूर कहते हैं कि पानी को लेकर अंतरराष्ट्रीय तनाव शायद ही कभी पूरी तरह संघर्ष में बदलता है. जब संघर्ष होता भी है, पानी अक्सर दूसरे मुद्दों के लिए एक प्रॉक्सी होता है. मूर कहते हैं, "सामान्य तौर पर पानी को तनाव और संघर्ष का कारण बताया जाता है, लेकिन मैं कहूंगा कि यह ठीक इसके विपरीत है. भू-राजनीतिक तनाव या आर्थिक विवाद पानी से जुड़े विवाद में बदल जाते हैं.”
उदाहरण के लिए, मेकांग नदी पर बन रहे बांध की वजह से निचले इलाकते के पड़ोसी देशों में पानी का स्तर कम हो रहा है. मूर कहते हैं, "चीन की बढ़ती शक्ति को लेकर पड़ोसी देशों में चिंता बढ़ गई है. हम यह देखते हैं कि ये चिंताएं पानी से जुड़ी समस्याओं के बहाने सामने आती हैं.”
मध्य पूर्व में सूखा और राजनीति
पिछले साल गर्मी के मौसम में ईरान को पानी की समस्या से जूझना पड़ा था. इसकी वजह से देश में काफी ज्यादा विरोध-प्रदर्शन हुए. इसे "प्यासे का विद्रोह” कहा गया. वहीं इसी समय, हेलमंद नदी पर कमाल खान बांध को लेकर ईरान का पड़ोसी देश अफगानिस्तान के साथ लंबे समय से चल रहे विवादों में तनाव बढ़ गया.
नीदरलैंड में आईएचई डेल्फ्ट में जल कानून और कूटनीति की एसोसिएट प्रोफेसर सुजैन श्मायर का कहना है कि पड़ोसी देशों पर पानी की जमाखोरी का दोष मढ़ना पानी की कीमत और जल संरचना के अभाव जैसे घरेलू मुद्दों से ध्यान हटाने का आसान उपाय हो सकता है.
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सुजैन श्मायर बताती हैं, "जब भी ईरान जल संकट का सामना करता है, और किसान प्रदर्शन करते हैं या शहरी नागरिकों और किसानों का विवाद बढ़ जाता है, तो आप देखेंगे कि ठीक उसी समय ईरान के नीति-निर्माता अफगानिस्तान के खिलाफ कड़ा बयान जारी करते हैं कि हमें नदी से अपने हिस्से का पर्याप्त पानी चाहिए.”
एक तरफ ईरान अपने पड़ोसी देश पर पानी की जमाखोरी का आरोप लगाता है, वहीं वह खुद भी अपने देश में हेलमंद और अन्य नदियों पर बांध बना रहा है. इनमें टिगरिस की एक सहायक नदी भी शामिल है जो ईरान से बहते हुए इराक जाती है. इराक भी पानी की कमी से जूझ रहा है.
सूखाग्रस्त इराक अपने जल संकट के लिए ईरान और तुर्की दोनों को जिम्मेदार ठहराता है. तुर्की ने टिगरिस और यूफ्रेट्स दोनों नदियों पर बांध बना रखा है. ये नदियां आगे बहते हुए इराक और सीरिया जाती हैं. इन दोनों देशों का कहना है कि तुर्की में बनाए गए बांध की वजह से उन्हें सूखे का सामना करना पड़ रहा है.
तनाव बढ़ाता जलवायु परिवर्तन
यूफ्रेट्स नदी पर 1980 के दशक में अतातुर्क हाइड्रोपावर बांध बनाया गया था. उस समय तुर्की इस बांध के जरिए पड़ोसी देश सीरिया के लिए हर सेकंड 500 क्यूबिक मीटर पानी यूफ्रेट्स नदी में छोड़ने पर सहमत हुआ था. अब नदी में काफी कम पानी छोड़ा जा रहा है. तुर्की पानी की आपूर्ति में कमी के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा रहा है. हालांकि, सीमा पार सीरियाई कुर्दों का मानना है कि तुर्की उन्हें राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के तौर पर सजा दे रहा है.
अशोक स्वैन कहते हैं कि इथियोपिया के जीईआरडी हाइड्रोपावर को लेकर जारी तनाव की वजह भी भू-राजनीतिक और जलवायु परिवर्तन है. सैद्धांतिक तौर पर, बांध पारस्परिक रूप से लाभकारी हो सकता है. मिस्र और सूडान इससे पैदा होने वाली सस्ती बिजली का इस्तेमाल कर सकते हैं. साथ ही, बांध का इस्तेमाल नील नदी के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है, ताकि हाल के वर्षों में आयी बाढ़ ने सूडान के कई इलाकों को जिस तरह तबाह किया है उससे बचा जा सके.
हालांकि सवाल ये है कि यदि कुछ सूखे वर्षों के बाद इथियोपिया अगर अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पानी को रोक ले, ताकि उसका जल भंडार भरा रहे. स्वैन कहते हैं, "यह जो डर है वह जलवायु परिवर्तन की वजह से है.”
जल के रूप में राजनीतिक मुद्दा
अगर नील नदी के किनारों पर बसे देश भू-राजनीतिक तौर पर अलग अलग खेमों में बंटे नहीं होते तो नील नदी के जल बंटवारे पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग में आसानी हो सकती है. स्वैन कहते हैं, "दुनिया दो खेमों में बंट गई है... इथियोपिया को चीन और रूस से समर्थन मिल रहा है. मिस्र और सूडान पश्चिम देशों के करीबी हैं.”
पांच अरब लोगों को झेलना पड़ सकता है जल संकट
अमेरिका की डेलावेयर यूनिवर्सिटी में ट्रांसबाउंड्री मैनेजमेंट पर शोध करने वाले मेहमत अल्टिंगोज का मानना है कि क्रीमिया की जल आपूर्ति के मानवीय मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने से तनाव को कम करने में मदद मिल सकती थी. उनका तर्क है, "नाटो और पश्चिमी देश यूक्रेन से यह आग्रह कर सकते थे कि क्रीमिया तक पानी पहुंचाने में वह सहयोग करे. इससे वे इस क्षेत्र में तनाव कम कर सकते थे, लेकिन उन्होंने यह अवसर गंवा दिया.”
अल्टिंगोज ने डीडब्ल्यू को बताया, "पर्यावरणीय संपत्तियों पर सहयोग करना आसान है.” उन्होंने अपने शोध में तुर्की और आर्मेनिया को शामिल किया है, जिनके बीच कोई राजनयिक संबंध नहीं है, लेकिन दोनों के पास उनकी सीमा पर बने सोवियत युग के बांध का मालिकाना हक है.
अल्टिंगोज बताते हैं कि हर महीने दोनों देशों के तकनीशियन यह तय करने के लिए मिलते हैं कि पानी का बंटवारा कैसे किया जाए. मुझे लगता है कि यह सहयोग का बेहतर उदाहरण है. इससे स्थानीय स्तर पर भी संबंधों में सुधार किया जा सकता है.
पानी से सहयोग को बढ़ावा
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 1948 से अब तक लगभग 300 अंतरराष्ट्रीय जल संधियों पर हस्ताक्षर किए गए हैं. हालांकि, ऐसी खबर शायद ही कभी सुर्खियों में शामिल होती है. स्कॉट मूर कहते हैं, "पानी को लेकर संघर्ष से ज्यादा सहयोग से जुड़े मामले सामने आए हैं. खासकर अगर हम इसे साझा जल संसाधनों के प्रबंधन से जुड़े अंतरराष्ट्रीय समझौतों के संदर्भ में परिभाषित करें."
भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के तनाव नियमित रूप से बढ़ गए हैं. हालांकि, दोनों देशों ने अत्याधिक तनाव वाले दौर में 1960 के दशक में सिंधु जल समझौता किया था. श्मायर कहती हैं, "ऐसे समय में भी जब दोनों देश परमाणु युद्ध की कगार पर पहुंच गए थे, इसके बावजूद सिंधु नदी जल समझौते को लेकर वे मिलते रहे."
वह शांति समझौते की ओर भी इशारा करती हैं जिसने 1990 के दशक में युद्ध के बाद बाल्कन में शांति स्थापित करने का काम किया. इस समझौते की शुरुआत भी डेन्यूब नदी के जल के बंटवारे को लेकर हुई थी. श्मायर कहती हैं, "उन्होंने एक समझौता किया, रिवर बेसिन संस्था बनाई, वह उन देशों को साथ लाया और फिर व्यापार, युद्ध के मलबों की सफाई और दूसरे मुद्दे जुड़ते गए."