1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

पुलिस की पहरेदारी में निकली सीआरपीएफ के जवान की बारात

समीरात्मज मिश्र
२५ अप्रैल २०२२

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के रहने वाले गौरव गौतम सीआरपीएफ में जवान हैं. 24 अप्रैल को उनकी शादी थी लेकिन बारात ले जाने से पहले उन्हें पुलिस से सुरक्षा की गुहार लगानी पड़ी.

Indien | Die Prozession in Bulandshahr
तस्वीर: Sourabh Sharma

बुलंदशहर के ककोड़ कोतवाली के अंतर्गत आने वाले गड़ाना गांव में करीब नौ महीने पहले हुए जातीय संघर्ष की वजह से गौरव गौतम को बारात निकालने से पहले पुलिस से सुरक्षा की गुहार लगानी पड़ी थी. पिछले साल जुलाई में इसी गांव में दलित समुदाय के एक व्यक्ति की शादी में घुड़चढ़ी रस्म के दौरान सवर्ण जाति के कुछ लोगों के विरोध के कारण जातीय संघर्ष हो गया था. सवर्ण जाति के लोगों ने अपने घर के आगे से दलितों के बारात निकालने पर ऐतराज जताया था जिसके बाद दोनों पक्षों में विवाद हो गया था. इस विवाद में एक व्यक्ति की मौत भी हो गई थी. इस घटना के बाद दलित समुदाय के लोग यहां से बारात निकालने में डर रहे थे.

उत्तराखंड: सवर्णों ने दलित और दलितों ने सवर्ण भोजनमाता के हाथ का खाना क्यों नहीं खाया?

गौरव गौतम भी दलित समुदाय से आते हैं और वो नहीं चाहते थे कि शादी के दौरान किसी तरह का कोई विवाद हो इसलिए उन्होंने शादी से ठीक पहले बुलंदशहर के पुलिस अधीक्षक को एक प्रार्थना पत्र देकर सुरक्षा की मांग की थी. शुक्रवार को हाथ में मेंहदी रचाए गौरव गौतम बुलंदशहर के एसपी सिटी से मिले और रविवार को अपनी बारात के लिए सुरक्षा देने की मांग की. गौरव ने आशंका जताई थी कि घुड़चढ़ी के दौरान गांव में बवाल हो सकता है क्योंकि गांव में दलित और ठाकुर पक्ष में पहले से ही विवाद चल रहा है. मामले की गंभीरता को देखते हुए एसपी सिटी ने घुड़चढ़ी के दौरान गांव में फोर्स तैनात करने के आदेश दे दिए.

पुलिस की सुरक्षा में घोड़ी चढ़े गौरव गौतमतस्वीर: Sourabh Sharma

डीडब्ल्यू से बातचीत में गौरव गौतम कहते हैं, "मैंने अपनी सुरक्षा के लिए सुरक्षा की मांग की थी, ताकि किसी भी प्रकार को कोई विवाद न हो. पहले यहां विवाद हो चुका है इसलिए मैं नहीं चाहता था कि किसी तरह का कोई विवाद फिर से हो. पुलिस वालों ने हमारी मांग मान ली, सुरक्षा दी और विवाह कार्यक्रम सकुशल संपन्न हो गया. हमारा पूरा परिवार बेहद खुश है.”

चप्पे चप्पे पर पुलिस

वहीं, ककोड़ के थानाध्यक्ष विनोद कुमार सिंह ने मीडिया को बताया, "एसएसपी के पास एक प्रार्थना पत्र आया था, जिसमें आशंका जताई गई थी कि उनकी घुड़चढ़ी के दौरान गांव में विवाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिसके बाद गांव में फोर्स लगाई गई है. गांव में इससे पहले एक मामला हो चुका है, जिसके चलते यह प्रार्थना पत्र प्राप्त हुआ था. पुलिस की निगरानी में घुड़चढ़ी ठीक ढंग से संपन्न हुई, कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं हुआ.”

दलित महिला पत्रकारों की कहानी पहुंची ऑस्कर

10:22

This browser does not support the video element.

रविवार को पूरी सुरक्षा व्यवस्था में गौरव गौतम की बारात निकाली गई. स्थानीय पत्रकार सौरभ शर्मा ने बताया कि घुड़चढ़ी की रस्म के दौरान गांव में चप्पे-चप्पे पर सशस्त्र पुलिस बल के जवान तैनात रहे ताकि किसी तरह की कोई अप्रिय स्थिति न पैदा होने पाए. सौरभ शर्मा ने बताया कि न सिर्फ गौरव गौतम के घर पर सशस्त्र पुलिस बल के जवानों को तैनात किया गया था बल्कि घुड़चढ़ी के रास्ते पर भी सशस्त्र पुलिस बल के जवान तैनात थे. यही नहीं, घोड़ी के आगे पीछे के बीच में भी पुलिसकर्मी तैनात रहे और कुछ पुलिसकर्मी पूरी बारात का वीडियो भी बनाते रहे.

शादी संपन्न होने के बाद बुलंदशहर के एसपी सिटी सुरेंद्र नाथ तिवारी ने मीडिया को बताया कि शादी के सभी कार्यक्रम संपन्न होने के बाद पुलिस बल को वापस भेज दिया गया.

शादी संपन्न होने के बाद लौटी पुलिस पार्टीतस्वीर: Sourabh Sharma

खुशी के मौके पर भी भेदभाव का डर

यह पहला मौका नहीं है जबकि किसी दलित व्यक्ति को घोड़े पर बैठकर बारात निकालने से रोका गया हो. नौ महीने पहले न सिर्फ बुलंदशहर के इसी गांव में ऐसी घटना हो चुकी है बल्कि पास ही कासगंज जिले में भी चार साल पहले एक दलित व्यक्ति को घोड़े पर बैठकर बारात निकालने के लिए कोर्ट का सहारा लेना पड़ा था.

हाथरस के रहने वाले संजय जाटव की शादी कासगंज के निजामपुर में होने वाली थी लेकिन ठाकुर बहुल इस गांव में अस्सी साल से किसी दलित व्यक्ति के यहां बारात में दूल्हा घोड़े पर बैठकर नहीं आया था. संजय जाटव को घोड़ी पर चढ़ने और कुछ किलोमीटर तक बारात निकालने के लिए करीब सात महीने तक संघर्ष करना पड़ा. पंचायत से लेकर कोर्ट, थाना और सरकार तक दौड़ लगाई और आखिरकार उन्हें अपने मिशन में सफलता मिली.

संजय की जिद के आगे प्रशासन को झुकना जरूर पड़ा और संगीनों के साए में बारात निकलवानी पड़ी लेकिन शादी की रस्म के दौरान गांव के उन ठाकुर परिवारों के लोग घरों से बाहर चले गए, जिनके घरों के सामने से बारात को गुजरना था. शादी के दौरान बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी और जिले के आला अधिकारी भी मौजूद थे.

अक्सर आते रहते हैं दलितों के साथ दुर्व्यवहार के मामले तस्वीर: Sourabh Sharma

तमाम राज्यों में सामने आते हैं ऐसे मामले

न सिर्फ उत्तर प्रदेश में बल्कि देश के दूसरे हिस्सों से भी इस तरह की घटनाओं के उदाहरण आए दिन मिलते रहते हैं जब दलितों के साथ भेदभाव की सोच आज भी जीवंत दिखाई देती हैं. इसी साल फरवरी में राजस्थान के जयपुर में एक दलित आईपीएस अधिकारी को दबंगों के डर के कारण पुलिस सुरक्षा में अपनी बारात निकालनी पड़ी थी. इस इलाके में भी ऊंची जाति के लोग ऐसे आयोजनों का विरोध करते रहे हैं.

मणिपुर कैडर के साल 2020 बैच के आईपीएस अधिकारी सुनील कुमार धनवंत को पुलिस सुरक्षा के बीच शादी की रस्म के तहत घोड़े पर सवार होना पड़ा और फिर पुलिस सुरक्षा में ही बारात हरियाणा के लिए रवाना हुई थी. सुनील कुमार धनवंत ने भी शादी के दौरान किसी तरह की अव्यस्था और असुरक्षा से बचने के लिए प्रशासन को सूचना दी थी और सुरक्षा की मांग की थी.

भारत में 58,000 मैला ढोने वाले, 97 प्रतिशत दलित

संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत अस्पृश्यता को भले ही गैरकानूनी और दंडनीय अपराध बना दिया गया हो, छुआछूत और सामाजिक भेदभाव रोकने के लिए कितने ही कानून बने हों लेकिन सच्चाई यह है कि अभी भी देश के तमाम इलाकों में ऐसी घटनाएं आए दिन होती ही रहती हैं.

यूपी में डीजीपी रह चुके वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वीएन राय कहते हैं, "आमतौर पर सार्वजनिक रूप से ऐसी घटनाएं कम ही होती हैं लेकिन पूरी तरह से रुक गई हों, ऐसा भी नहीं है. दूसरी बात यह कि ये घटनाएं वहीं होती हैं जहां कुछ जाति विशेष के लोग दबंग हैं और इलाके में उनकी संख्या ज्यादा है. कई बार तो दलित समुदाय के लोग भी डर के मारे या फिर अन्य कारणों से प्रतिरोध नहीं कर पाते लेकिन जहां दलित समुदाय में जागरूक लोग हैं, वो इन कुप्रथाओं और दबंगई का प्रतिरोध करते हैं. उन्हें पता है कि संविधान में उन्हें क्या अधिकार मिले हुए हैं और वो इस अधिकार को हासिल कर लेते हैं.”

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें