पहाड़ों में बसा भूटान दशकों तक दुनिया से अलग थलग जीता रहा है. वहां ना टेलीविजन था और ना ट्रैफिक लाइट. जैसे लोग सदियों पहले रहते थे, वैसे ही रह थे. लेकिन अब भूटान में भी बदलाव की तेज हवा चल रही है.
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भूटान की राजधानी थिंपू में अब बार भी खुल गए हैं. इंटरनेट कैफे में किशोर आपको हिंसक वीडियो गेम खेलते मिल जाएंगे. धूम्रपान करने वाले भी भूटान में बढ़ रहे हैं तो स्नूकर हॉलों में लोग जुए पर रकम लगाते भी दिख जाएंगे.
मद्धम रोशनी में एक महिला डांस बार में आए लोगों की फरमाइश पर नाच रही है. यहां आने वाले लोगों को आमतौर पर भूटानी लोक संगीत ही पसंद आता है, लेकिन कई बार वे बॉलीवुड गानों की फरमाइश भी कर देते हैं. 38 साल की डांसर ल्हाडेन तलाकशुदा हैं और उनके दो बच्चे हैं. उन्हें ऐसे नाचना पसंद नहीं है लेकिन गुजारा चलाने के लिए यह सब करना पड़ता है. उन्हें रात 12 बजे तक डांस बार में काम करना पड़ता है.
भूटान अपनी राष्ट्रीय संपदा को ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस इंडेक्स से मापता है जिसका मकसद ऐसा समाज बनाना है जहां सब खुश और संतुष्ट हों. लेकिन हर महीने लगभग आठ हजार रुपये कमाने वाली ल्हाडेन गुजारा मुश्किल ही चल पाता है. वह कहती हैं, "मैं बहुत ही छोटे कमरे में रहती हूं ताकि खाना और कपड़े खरीद सकूं."
24 घंटे में रोज बदलती है दुनिया
कल और आज में बहुत अंतर होता है. जानिये हर दिन 24 घंटे के भीतर दुनिया कितनी बदल चुकी होती है.
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घटती हरियाली
24 घंटे के भीतर दुनिया भर में 24 लाख पेड़ काटे जाते हैं. एक दिन में पृथ्वी पर मौजूद 88,000 एकड़ जंगल साफ हो जाता है.
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पानी की खपत
एक दिन में दुनिया भर में टॉयलेट को ही 22 अरब बार फ्लश किया जाता है. इतने पानी से दुनिया की आधी आबादी नहा सकती है.
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नई आबादी
24 घंटे के भीतर दुनिया भर में करीब 3,60,000 बच्चे पैदा होते हैं. अकेले भारत में ही 57,685 बच्चे पैदा होते हैं.
इन्हीं 24 घंटों में औसतन 1,51,600 जिंदगी की आखिरी सांस लेते हैं. हर दिन इतनी मौतें होती हैं.
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बालों का विकास
हर दिन इंसान के बाल करीब .35 मिलीमीटर बढ़ते हैं. 24 घंटे के भीतर 40 से 100 बाल झड़ते भी हैं.
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व्यस्त आसमान
24 घंटे के भीतर दुनिया भर में 1,00,000 से ज्यादा फ्लाइटें उड़ान भरती हैं.
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सड़कों पर बढ़ती भीड़
24 घंटे के भीतर दुनिया भर की कार फैक्ट्रियों से 1,52,000 कारें बाजार में उतरती हैं.
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नए ड्राइवर
दुनिया भर में हर दिन औसतन 3,560 लोग ड्राइविंग टेस्ट देते हैं और इनमें से 1,389 पास होते हैं.
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बंदूकों की बिक्री
अमेरिका में हर दिन औसतन 50,000 से ज्यादा बंदूकें खरीदी जाती हैं.
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बर्फ से ढके और घने जंगलों वाले पहाड़ों, नदियों और साफ हवा के लिए मशहूर भूटान में भी धूल धुआं दिखने लगा है. थिंपू घाटी के प्रवेश द्वार पर बनी सोने और कांस्य की विशाव बुद्ध प्रतिमा के पास अब टेलीकॉम टावर भी दिखाई देते हैं. भूटान की 2.2 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था मुख्य तौर पर कृषि पर ही आधारित है.
शहरों में ही नहीं, बल्कि भूटान के देहाती इलाकों में अब जीन्स अब उतनी ही आम है जितना पुरूषों के लिए पारंपरिक घो पोशाकें और महिलाओं के लिए कीरा पोशाकें. बाकी चीजों के साथ रोजमर्रा की आदतों में भी बदलाव आ रहा है. मोबाइल फोन और टीवी अब हर जगह दिखते हैं. यहां तक कि पोबजिखा घाटी में भी टीवी पहुंच गया है, जहां थिंपू से पहुंचने में कार से सात घंटे लगते हैं.
पेशे से किसान 43 साल के एप डा कुछ बदलावों से खुश नहीं है. वह कहते हैं कि अब सड़कों के आसपास कचरा बढ़ रहा है. बच्चों को लग रही मोबाइल फोन की आदत पर वह कहते हैं कि वे पढ़ने से ज्यादा समय मोबाइल फोन को दे रहे हैं.
भूटान में ट्रैफिक लाइटें अब भी नहीं हैं. लोगों के विरोध के कारण ट्रैफिक लाइटें नहीं लगाई जा सकीं. लेकिन भारत और चीन के बीच बसा भूटान बदलावों से गुजर रहा है. साथ ही वे समस्याएं भी वहां पहुंच रही हैं जिनसे दुनिया जूझ रही है.
एके/ओएसजे (रॉयटर्स)
मोबाइल की आंधी में उड़ गई चीजें
तकनीक, लोगों का व्यवहार बड़ी तेजी से बदलती है. एक दौर में बहुत अहम मानी जाने वाली कई मशीनों की छुट्टी आज मोबाइल फोन ने कर दी है. एक नजर तकनीक की मार झेलने वाली इन चीजों पर.
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तुम्हारे खत
"आदरणीय/प्यारे...., यहां सब कुशल है." इन शब्दों के साथ शुरू होने वाली चिट्ठियां भी तकनीक की आंधी में उड़ गई. टेलीफोन और उसके बाद आई मोबाइल क्रांति ने खतों को सिर्फ आधिकारिक दस्तावेज में बदल दिया. चिट्ठियां खत्म होने के साथ उनका इंतजार करने की आदत भी गुम हो गई.
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पॉकेट कैमरा
आज बाजार में अच्छे कैमरे से लैस कई मोबाइल फोन हैं. फोटो और वीडियो रिकॉर्ड करना अब पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा आसान हो चुका है. इनके चलते पॉकेट साइज कैमरे गायब होते जा रहे हैं.
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फोटो एल्बम
किसी आत्मीय परिवार से बहुत समय बाद मिलने पर फोटो एल्बम देखना बहुत सामान्य बात होती थी. आज तस्वीरें इंटरनेट और कंप्यूटर पर होती हैं. उन्हें देखने के लिए यात्रा करने की भी जरूरत नहीं पड़ती. फोटो एल्बम अब शादियों तक सिमट चुकी हैं.
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टेप और वॉक मैन
1990 के दशक तक घरों में टेप रिकॉर्डर गूंजता था तो स्टाइलिश युवा वॉक मैन की धुन पर थिरकते हुए कदम बढ़ाते थे. MP3 के आविष्कार ने कैसेट वाले युग को भी इतिहास के गर्त में डाल दिया. आज म्यूजिक लाइब्रेरी मोबाइल फोन में समा चुकी है.
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वीडियो कैसेट प्लेयर
एक जमाना था जब किराये पर वीसीआर या वीसीपी लेकर परिवार व पड़ोसियों के साथ फिल्म देखना सामान्य बात होती थी. कैसेट बीच बीच में अटकती भी थी. फिर वीसीडी प्लेयर आया. अब तो कंप्यूटर, यूएसबी और वीडियो फाइलों ने वीसीआर, वीसीपी और वीसीडी को भुला सा दिया है.
टॉर्च की जरूरत अक्सर पड़ा करती है, लेकिन हर वक्त इसे लेकर घूमना, बैटरी बदलना या चार्ज करना झमेले से कम नहीं. मोबाइल फोन के साथ आई फ्लैश लाइट ने परंपरागत टॉर्च के कारोबार को समेट दिया है. हालांकि स्पेशल टॉर्चों की मांग आज भी है.
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कलाई की घड़ी
समय के साथ चलने के लिए कभी कलाई पर घड़ी बांधना जरूरी समझा जाता था. लेकिन मोबाइल फोन ने घड़ी को भी सिर्फ आभूषण सा बना दिया. आज कलाई पर घड़ी न हो, लेकिन जेब में मोबाइल फोन हो तो बड़े आराम से काम चलता है.
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अलार्म घड़ी
कभी छात्र जीवन और नौकरी पेशा लोगों को इसकी बड़ी जरूरत हुआ करती थी. यही सुबह जगाती थी, लेकिन अब यह काम मोबाइल फोन बड़ी आसानी से करता है, वो भी स्नूज के ऑप्शन के साथ. स्टॉप वॉच भी तकनीकी विकास की भेंट चढ़ी है.
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कैलकुलेटर
सन 2000 तक हिसाब किताब या पढ़ाई लिखाई से जुड़े हर शख्स के पास कैलकुलेटर आसानी से देखा जा सकता था, लेकिन मोबाइल फोन ने कैलकुलेटर को भी बहुत ही छोटे दायरे में समेट दिया. आज कैलकुलेटर का इस्तेमाल करते बहुत कम लोग दिखते हैं.
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नोट पैड
किसी के साथ हुई बातचीत में प्वाइंट बनाना, फटाफट लिखना और बाद में दूसरों से पूछना कि कुछ मिस तो नहीं हुआ, मोबाइल फोन के रिकॉर्डर ने इस परेशानी को भी हल किया है. किसी के भाषण या लेक्चर को रिकॉर्ड किया और बाद में आराम से पूरा जस का तस सुना.
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कैलेंडर
कागज का कैलेंडर आज शो के काम ज्यादा आता है. असली काम मोबाइल के कैलेंडर में हो जाता है. इसमें पेज पलटने की भी जरूरत नहीं पड़ती. रिमाइंडर भी सेट हो जाता है. और यह वक्त साथ भी रहता है.
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कंपास
कभी दिशाज्ञान के लिए चुंबक वाले कंपास का सहारा लिया जाता था, फिर नेवीगेशन सिस्टम आए. आज स्मार्टफोन ही दिशाओं की सटीक जानकारी देता है. स्मार्टफोन ने नेवीगशन सिस्टम और ट्रैवल मैप की भी हालत खस्ता कर दी है.
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पीसीओ
1990 के दशक में भारत में दूरसंचार के क्षेत्र में क्रांति सी हुई. छोटे कस्बों और गांवों तक सार्वजनिक टेलीफोन बूथ पहुंच गए. एसटीडी और आईएसडी कॉल करना जोरदार अनुभव से कम नहीं था. फिर घर घर टेलीफोन लगे. आज मोबाइल फोनों ने इन पर धूल जमा दी है.