तेजी से दुनिया में फैल रही है 14 साल पहले आई एक बीमारी
२९ जुलाई २०२३
2009 से पहले कैंडिडा ऑरिस को इंसानों में देखा भी नहीं गया था और अब हर साल इसके हजारों मामले सामने आ रहे हैं, जिससे वैज्ञानिक चिंतित हैं.
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2016 में न्यूयॉर्क के अस्पतालों में एक ऐसी बीमारी के मरीज एकाएक सामने आने लगे जो अमेरिका में पहले कभी नहीं देखी गयी थी. यह एक फंगल इंफेक्शन था, जिसे लेकर शोधकर्ताओं में खलबली फैल गयी. वे तुरत-फुरत में उसकी जड़ खोजने में जुट गये और तब पता चला कि वह इंफेक्शन 2013 से ही अमेरिका में मौजूद था. 2009 से पहले तो यह इंसानों में देखा तक नहीं गया था.
तब से न्यूयॉर्क को कैंडिडा ऑरिस नाम की इस बीमारी के लिए ग्राउंड जीरो के रूप में जाना जाता है. अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन के मुताबिक 2021 तक देश में सबसे ज्यादा रोगी न्यूयॉर्क में ही पाये गये, जबकि अन्य इलाकों में भी संक्रमण फैल रहा था.
बेहद खतरनाक
कैंडिडा ऑरिस एक खतरनाक बीमारी है जो दुनिया के कई हिस्सों में पायी जाती है. यह रोगी को बेहद बीमार कर सकती है. इसके कारण रक्त संचार और सांस के इंफेक्शन हो सकते हैं या घाव भी संक्रमित हो सकते हैं. इस बीमारी से ग्रस्त लोगों में 30 से 60 फीसदी तक की मौत हो सकती है. जिन लोगों में पहले से कोई गंभीर बीमारी है, उनके संक्रमित होने की आशंका सबसे ज्यादा होती है.
डिमेंशिया से बचने के सात उपाय
अल्जाइमर्स जैसी कई तंत्रिका तंत्र की बीमारियों के होने का कारण हम आज भी नहीं जानते. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि व्यायाम, संतुलित भोजन और मानसिक रूप से चुस्त रहने से इससे बचा जा सकता है.
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वजन घटाना
मोटापा डिमेंशिया विकसित होने का एक बड़ा कारण है. इसलिए वजन कम करने और नियमित व्यायाम से रक्त संचार सुधारने से मेटाबोलिज्म बेहतर होगा और डिमेंशिया से भी बचाव होगा.
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हेल्दी खाना
ऐसा खाना जिनमें सब्जियों, सलाद और सब्जियों से मिलने वाले फैट की प्रचुरता हो - खून की नलियों पर अच्छा असर डालता है. इससे दिल के दौरे और स्ट्रोक का खतरा कम हो जाता है और बाद में डिमेंशिया होने की संभावना भी हाई कोलेस्ट्रॉल वाले लोगों से कम होता है.
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चहल कदमी जरूरी
शारीरिक गतिविधियां खून की नलियों को सक्रिय रखती हैं इसलिए डिमेंशिया के खिलाफ काम करती हैं. सक्रिय रहना सीधे तौर पर तंत्रिका तंत्र पर अच्छा असर डालता है. यही तंत्र पूरे शरीर पर नियंत्रण रखता है और याददाश्त को भी सुरक्षित रखता है.
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बुराइयों से दूरी
सिगरेट पीने वालों को पता होगा कि इसे छोड़ना कितना कठिन है. लेकिन यह सच है कि निकोटीन तंत्रिका तंत्र के लिए जहर के समान है. इससे रक्त संचार प्रभावित होता है क्योंकि खून कम से कम ऑक्सीजन दिमाग तक पहुंचाने लगता है. जाहिर है इससे डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है.
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शराब को ना
अल्कोहल तो है ही नर्व एजेंट यानि इसकी ज्यादा मात्रा सीधे दिमाग पर ही बुरा असर डालती है. कम मात्रा में लेने पर भी ये डिमेंशिया का खतरा बढ़ाती ही है. इससे शरीर के आवश्यक अंगों को भी नुकसान पहुंचता है.
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ब्लड प्रेशर पर नजर
डिमेंशिया से बचने का एक तरीका ब्लड प्रेशर को सीमा में रखना है. खेल कूद करने से ब्लड प्रेशर कम रहता है. इससे बात ना बने तो दवा लेकर भी बीपी को स्वस्थ रेंज में रखा जा सकता है. डॉक्टर से संपर्क करें.
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मानसिक कसरत
किसी भी तरह से अपने दिमाग को सक्रिय रखना जरूरी है. इसके लिए हमेशा पहेलियां बुझाते या नई चीजें रटना ही जरूरी नहीं. समाज में लोगों से संपर्क बनाए रखना, मिलना जुलना और बातें करना कहीं ज्यादा जरूरी है. इससे याददाश्त दुरुस्त रहती है और रिश्ते भी बने रहते हैं. (फाबियान श्मिट/आरपी)
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पिछले साल कैंडिडा ऑरिस के सबसे ज्यादा मरीज अमेरिका के नेवादा और कैलिफॉर्निया में पाये गये लेकिन फंगस की मौजूदगी 29 राज्यों में थी. न्यूयॉर्क में अब भी काफी ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं. अब वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस संक्रमण के बढ़ते मामलों की वजह जलवायु परिवर्तन हो सकता है.
इंसान और अन्य स्तनधारी जीवों के शरीर का तापमान इतना होता है कि ज्यादातर फंगस उसे सहन नहीं कर सकते. इसलिए ऐतिहासिक रूप से स्तनधारी जीव फंगस संबंधी अधिकतर संक्रमणों से सुरक्षित माने जाते रहे हैं. लेकिन अब वैज्ञानिकों को लगता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान का असर फंगस पर हो रहा है और उनकी अधिक तापमान में भी सक्रिय रहने की संभावना बढ़ रही है. इस कारण इंसानों की प्रतिरोध क्षमता भी प्रभावित हो रही है. कुछ शोधकर्ताओं को आशंका है कि कैंडिडा ऑरिस के मामले में ऐसा ही हो रहा है.
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सिर्फ 14 साल पहले आया
यह फंगल इंफेक्शन इंसानों में 14 साल पहले एकाएक उभरा और तीन महाद्वीपों में एक साथ पाया गया है. वेनेजुएला, भारत और दक्षिण अफ्रीका में इसके मामले मिले थे. जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और फंगस संक्रमण के जाने-माने विशेषज्ञ डॉ. आर्तुरो कासाडेवाल कहते हैं कि तीन अलग-अलग महाद्वीपों में इस संक्रमण का होना परेशान करने वाली बात है क्योंकि तीनों जगहों की जलवायु एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न है.
कोलकाता के मरीजों के बीच रोबोट नर्स
पश्चिम बंगाल के एक अस्पताल में एक रोबोट नर्स को तैनात किया गया है. देखिए मरीजों का किस तरह से ख्याल रख रही है यह नर्स.
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क्या कर सकती है रोबोट नर्स
यह रोबोट नर्स मरीज के शरीर का तापमान मापने से लेकर, दवा देने और यहां तक कि मुंह से लार के नमूने लेने जैसे कामों में सक्षम है.
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आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का कमाल
पांच फीट लंबा यह रोबोट आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के आधार पर मरीज के विभिन्न सवालों के जवाब दे सकता है. जरूरत पड़ने पर अस्पताल के अधिकारी रोबोट नर्स के जरिए अस्पताल में भर्ती मरीज से संवाद कर सकते हैं.
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रक्त परीक्षण में मददगार
यह रोबोटिक नर्स मरीज के शरीर से रक्त एकत्र कर खुद प्रयोगशाला में भेज सकती है.
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पहली बार पू्र्वी भारत में
पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना के एक निजी अस्पताल में ऐसी ही एक रोबोट नर्स को लाया गया है. अस्पताल के अधिकारियों का दावा है कि पूर्वी भारत के किसी अस्पताल में इस तरह के रोबोट नर्स का यह पहला प्रयोग है.
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कोरोना के बाद आया विचार
कोरोना के दौरान नर्स और डॉक्टर मरीजों के पास जाने से हिचक रहे थे. तभी अस्पताल के अधिकारियों के दिमाग में रोबोट नर्स नियुक्त करने का विचार आया.
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रोबोट का इस्तेमाल बढ़ाने पर विचार
पश्चिम बंगाल सरकार का कहना है कि अभी इस रोबोट का इस्तेमाल कुछ सेवाओं में किया जा रहा है. निकट भविष्य में रोबोटिक सर्जरी शुरू करने की भी योजना है.
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कैसे तैयार हुआ यह रोबोट
एक निजी कॉलेज के छात्रों ने करीब डेढ़ साल की मेहनत के बाद इस रोबोट को बनाया है. एक रोबोट नर्स को बनाने में करीब ढाई लाख रुपये का खर्च आया. (रिपोर्ट: सुब्रता गोस्वामी)
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डॉ. कासाडेवाल कहते हैं, "अपने शरीर के तापमान के कारण हमें पर्यावरण में मौजूद फंगस से मजबूत सुरक्षा मिली हुई है. लेकिन दुनिया अगर गर्म हो रही है और फंगस उसके हिसाब से बदल रहा है तो उनमें से कुछ तो तापमान की उस बाधा को पार करने में भी कामयाब हो सकते हैं.”
सीडीसी में जीव विज्ञानी मेगन मैरी लाइमन कहती हैं कि जब कैंडिडा ऑरिस फैलना शुरू हुआ तो अमेरिका के शुरुआती मामलों में यह समझा गया था कि विदेशों से मरीजों को यह संक्रमण मिला होगा. लेकिन अब तो यह संक्रमण स्थानीय स्तर पर फैल रहा है और स्वस्थ लोगों को भी हो रहा है. अमेरिका में पिछले साल इस बीमारी के 2,377 मामले मिले थे, जो 2017 से 1,200 फीसदी ज्यादा हैं.
अब वैश्विक समस्या
हालांकि कैंडिडा ऑरिस अब एक वैश्विक समस्या बन रहा है. पिछले साल यूरोप में हुए एक सर्वे में पाया गया कि 2020 से 2021 के बीच ऐसे मामलों की संख्या दोगुनी हो गयी थी.
क्या चूहे और इंसान रह सकते हैं साथ, पेरिस देगा जवाब
चूहों को गंदगी और बीमारी से जोड़ा जाता है. उन्हें हटाने की कितनी भी कोशिश करो, चूहे लौट आते हैं. तो क्या हमें चूहों के प्रति नजरिया बदलना चाहिए? पेरिस में गहन मंथन चल रहा है कि क्या इंसान और चूहे साथ-साथ नहीं रह सकते!
तस्वीर: J. Eaton/blickwinkel/AGAMI/picture alliance
चूहों से त्रस्त पेरिस
पेरिस में इंसानों से ज्यादा चूहे रहते हैं. 2022 में एक फ्रेंच टीवी शो में बताया गया कि दुनिया में चूहों की भरमार वाले टॉप 5 शहरों में पेरिस चौथे नंबर पर है. अनुमान था कि पेरिस में करीब 60 लाख चूहे हैं. जबकि इंसानों की आबादी लगभग 21 लाख है. जुलाई 2022 में फ्रेंच नेशनल मेडिसिन अकेडमी ने एक चेतावनी भी जारी की थी, जिसमें चूहों के कारण सेहत से जुड़े खतरे और बीमारियां फैलने की आशंका जताई गई थी.
तस्वीर: Wayne Lawler/Australian Wildlife Conservancy
हड़ताल में और बढ़ गए चूहे
दुनिया के ज्यादातर महानगरों की तरह पेरिस भी चूहों की बड़ी आबादी से जूझ रहा है. मार्च-अप्रैल में जब नई पेंशन योजना के विरोध में पेरिस में हड़ताल हुई, तब कूड़ा उठाने वाले भी काम पर नहीं आए. शहर में कचरे का ढेर जमा हो गया. एक वक्त तो करीब 10 हजार टन तक कचरा जमा था. हफ्तों तक कचरा साफ नहीं होने के कारण चूहों की मौज आ गई और उनकी आबादी में भी इजाफा हुआ.
तस्वीर: Thomas Padilla/AP/picture alliance
मांग उठी कि चूहों का कुछ करो
स्वास्थ्य से जुड़े जोखिमों के मद्देनजर बड़ी चिंता थी. पेरिस के कई जिलों के मेयरों ने पेरिस की मेयर आन इदेलगो से कुछ कदम उठाने को कहा. अब इसी क्रम में पिछले हफ्ते पेरिस की उप-मेयर ने काउंसिल ऑफ पेरिस की बैठक में बताया कि मेयर इदेलगो की सलाह पर अब प्रशासन ने एक समिति बनाने का फैसला किया है, जो इस संभावना को खंगालेगी कि क्या इंसान और चूहे साथ-साथ नहीं रह सकते.
तस्वीर: Thomas Padilla/AP Photo/picture alliance
प्रॉजेक्ट आर्मागेडन
इसका लक्ष्य है, चूहों की जनसंख्या काबू करना. साथ ही, चूहों से जुड़े पूर्वाग्रहों को खत्म करने की कोशिश करना ताकि लोग चूहों के साथ बेहतर तरीके से रह पाएं. इसकी फंडिंग फ्रांस की सरकार करेगी. पेरिस इस योजना में पार्टनर की भूमिका में है. शोध किया जाएगा कि इंसान और चूहे किस हद तक साथ रह सकते हैं. सबसे कारगर तरीके तलाशने के साथ यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि उपाय पेरिस के लोगों के लिए असहनीय ना हों.
तस्वीर: J. Eaton/blickwinkel/AGAMI/picture alliance
राजनैतिक मुद्दा बने चूहे
उप-मेयर के इस ऐलान की आलोचना भी हुई. पेरिस के 17वें प्राशासनिक जिले के मेयर ने चूहों से निपटने के इस नरम रुख की आलोचना की. इससे पहले 2017 में पेरिस करीब 17 लाख यूरो की लागत वाली चूहा योजना लाया था. इसमें बड़े स्तर पर जहर देकर चूहों को मारने का अभियान चलाना शामिल था.
तस्वीर: Saeed Khan/AFP
पशु अधिकार संगठनों ने किया स्वागत
जानवरों के अधिकारों पर काम करने वाले संगठनों ने प्रशासन के रुख में बदलाव का स्वागत किया है. पैरिस एनिमल्स जूपोलिस नाम का एक संगठन, जो कि जानवरों के साथ होने वाली क्रूरता का विरोधी और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का समर्थक है, ने कहा कि चूहों की समस्या से निपटने के मौजूदा तरीके अप्रभावी और क्रूर हैं. ऐसे में नए तरीकों को आजमाना जरूरी है.
तस्वीर: Jeff Roberson/AP/picture alliance
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लाइमन कहती हैं, "मामले तो बढ़े ही हैं, इसका भोगौलिक विस्तार भी हुआ है. हालांकि निगरानी और सावधानी भी बढ़ी है लेकिन फिर भी तेजी से मामले बढ़ रहे हैं.”
मार्च में सीडीसी ने एक बयान जारी कर इस संक्रमण की गंभीरता के बारे में आगाह भी किया था. सीडीसी ने कहा था कि यह संक्रमण सामान्य फंगल इंफेक्शन के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले इलाज से ठीक नहीं होता और इसका प्रसार चिंताजनक स्तर पर हो रहा है. इसलिए सीडीसी ने अस्पतालों को अतिरिक्त सावधानी बरतने की सलाह दी थी.