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समाजभारत

दार्जिलिंग चाय के लिए खतरा बनती नेपाल की चाय

प्रभाकर मणि तिवारी
१५ अक्टूबर २०२१

दार्जिलिंग चाय अपने खास स्वाद और सुगंध के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. इन खासियत की वजहों से ही इस चाय को जीआई टैग भी मिला है. लेकिन अब पड़ोसी नेपाल से आने वाली ‘घटिया’ क्वॉलिटी की चाय इसकी पहचान के लिए खतरा बन रही है.

तस्वीर: Getty Images

नेपाल से मुक्त व्यापार समझौते के तहत आने वाली चाय भारतीय बाजारों में दार्जिलिंग चाय के नाम पर बेची जा रही है. दार्जिलिंग के चाय उत्पादकों ने इस समस्या पर अंकुश लगाने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अलावा टी बोर्ड को भी पत्र भेजा है. कुछ उत्पादकों का आरोप है कि नेपाल चीन से आयातित घटिया किस्म की चाय भारतीय बाजारों में भेज रहा है.

नेपाल से चाय की बढ़ती आवक और उपलब्धता ने प्रतिष्ठित दार्जिलिंग चाय की कीमतों पर सीधा असर डाला है. एक साल के दौरान इसकी कीमतों में 20 से 25 प्रतिशत तक की गिरावट आई है.

घटिया चाय भेजने का आरोप

चाय उद्योग से जुड़े लोगों का आरोप है कि खास तौर पर व्यापारियों का एक तबका नेपाल की चाय को दार्जिलिंग चाय के रूप में बेच रहा है. कानूनी तौर पर मुक्त व्यापार समझौते के तहत भारत में कोई भी नेपाल से स्वतंत्र रूप से चाय का आयात कर सकता है. हालांकि थोक बिक्री में दार्जिलिंग चाय की कीमत प्रति किलोग्राम औसतन 320 से 360 रुपये के बीच रहती है. लेकिन नेपाल की परंपरागत किस्म वाली चाय की कीमत इसकी आधी से भी कम होती है.

दार्जिलिंग में बागान चलाने वाली एक चाय कंपनी के एक अधिकारी बताते हैं, "उपभोक्ता के लिए यह समझना संभव नहीं होता कि वह नेपाल की चाय पी रहा है या दार्जिलिंग की. इन दोनों का स्वाद और सुगंध काफी हद तक समान होता है." 

उद्योग के सूत्रों का कहना है कि हर साल करीब 1.6 करोड़ किलोग्राम नेपाली चाय भारत में आती है जिसमें से लगभग 30 से 40 लाख किलोग्राम चाय परंपरागत किस्म वाली होती है. चाय की यह किस्म दार्जिलिंग चाय की बिक्री को प्रभावित करती है. स्वाद, सुगंध और दिखने के लिहाज से नेपाल की खास तौर पर इलाम किस्म वाली चाय दार्जिलिंग चाय की नजदीकी विकल्प होती है.

रोक लगाना मुश्किल

दार्जिलिंग के 87 चाय बागान सालाना 80-85 लाख किलो चाय का उत्पादन करते हैं. इस उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि वर्ष 2017 में दार्जिलिंग में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के आंदोलन के चलते चाय बागान चार महीने बंद रहे थे. उसी दौरान भारत में नेपाली चाय की बिक्री बढ़ गई थी.

तस्वीर: DW/Prabhakar Tiwari

डीटीए के अध्यक्ष बी. के. सरिया कहते हैं, "नेपाली चाय पर रोक लगाना मुश्किल है, क्योंकि नेपाल के साथ भारत का फ्री-ट्रेड एग्रीमेंट है. हमने टी बोर्ड से नेपाली चाय पर निगरानी बढ़ाने को कहा है ताकि घरेलू बाजार में उसे दार्जिलिंग चाय के नाम पर बेचा न जा सके." 

वह बताते हैं कि वर्ष 2017 में अनियमित सप्लाई के बाद जापानी खरीददारों ने भी हाथ खींच लिए. वे पहले 10 लाख किलो दार्जिलिंग टी खरीदते थे.

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टी एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय से नेपाली चाय के बढ़ते दबदबे की वजह से दार्जिलिंग चाय की बिक्री और उसकी साख को होने वाले नुकसान का मुद्दा उठाते हुए इस समस्या पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस पहल करने की अपील की है.

नेशनल टी ऐंड कॉफी डेवलपमेंट बोर्ड, नेपाल के आंकड़ों के मुताबिक, देश (नेपाल) के 157 चाय बागानों में सालाना पैदा होने वाली 2.52 करोड़ किलोग्राम चाय का आधे से ज्यादा हिस्सा भारत को निर्यात कर दिया जाता है.

ममता को पत्र

दार्जिलिंग इलाके के 87 चाय बागान मालिकों के संगठन दार्जिलिंग टी एसोसिएशन (डीटीए) ने हाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पत्र भेज कर उद्योग को बचाने के लिए नेपाल से आयात होने वाली सस्ती और घटिया किस्म की चाय के आयात पर पूरी तरह पाबंदी लगाने की मांग की है.

संगठन के अध्यक्ष बी. के. सरिया ने पत्र में कहा है, "वर्ष 2017 में पर्वतीय क्षेत्र में आंदोलन की वजह से दार्जिलिंग चाय का उत्पादन 9.5 मिलियन किलो से घटकर 2020 में छह मिलियन किलो रह गया. इस दौरान कर्मचारियों का वेतन करीब 50 फीसदी बढ़ गया."

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उसके बाद कोरोना के कारण लॉकडाउन के दौरान घरेलू और विदेशी बाजारों पर असर पड़ा. अब रही-सही कसर नेपाल से आने वाली सस्ती चाय ने पूरी कर दी है. उसे दार्जिलिंग चाय के नाम से बेचा जा रहा है."

मानक तय करने की मांग

डीटीए का अनुमान है कि वर्ष 2020 के दौरान नेपाल से आयातित लगभग 90 लाख किलो चाय दार्जिलिंग चाय के नाम पर बेची गई थी. डीटीए के प्रमुख सलाहकार संदीप मुखर्जी कहते हैं, "परिस्थिति सचमुच गंभीर है. दार्जिलिंग के चाय उद्योग पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है. नेपाल से चाय की आवक इसी तरह जारी रही तो यह उद्योग और बदहाल हो जाएगा और कई बागान बंद हो जाएंगे. इससे हजारों लोगों की रोज-रोटी प्रभावित होगी."

डीटीए के आंकड़ों के मुताबिक, दार्जिलिंग के चाय उद्योग से 67 हजार लोगों को प्रत्यक्ष और करीब चार लाख लोगों को परोक्ष तौर पर रोजगार मिला है.

इस बीच, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए मुख्य सचिव से पूरे मामले पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है. उसके बाद केंद्र के समक्ष इस मुद्दे को उठाया जाएगा. टी बोर्ड ने भी केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय से नेपाली चाय के आयात के लिए मानक तैयार करने की जरूरत पर जोर दिया है. उसने इस गोरखधंधे पर अंकुश लगाने के लिए आयातित चाय पर उसके निर्माता देश का नाम लिखा होना अनिवार्य करने की मांग की है ताकि नेपाली चाय को दार्जिलिंग चाय बता कर बेचने पर रोक लगाई जा सके.

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