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लोगों के बजाए सरकार को मजबूत बनाएगा डाटा प्रोटेक्शन बिल

७ अगस्त २०२३

केंद्र सरकार ने विपक्ष के विरोध के बीच लोकसभा में डाटा प्रोटेक्शन बिल को ध्वनिमत से पास करा लिया. हालांकि इसे लेकर जानकारों के बीच काफी चिंताएं बनी हुई हैं.

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भारत में डाटा सुरक्षा बिल पारित हो गया है लेकिन जानकार कहते हैं कि इसमें पर्याप्त उपाय हैं ही नहीं.तस्वीर: Santarpan Roy/ZUMA/picture alliance

भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा ने डाटा प्रोटेक्शन बिल, 2023 को ध्वनिमत से पास कर दिया है. यह डाटा सुरक्षा कानून बनाने की दिशा में सरकार का दूसरा प्रयास है. हालांकि बिल के कानून बनने से पहले उसे राज्यसभा में भी पास कराना होगा.

बिल में केंद्र सरकार को कई तरह की छूट दी गई है. इसके तहत सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय संबंधों, व्यवस्था बनाए रखने जैसे मामलों में डाटा सुरक्षा के नियम पालन के लिए बाध्य नहीं होगी और लोगों की व्यक्तिगत जानकारियों का इस्तेमाल कर सकेगी.

कंपनियों के लिए कड़े नियम

बिल में कहा गया है कि अगर किसी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को डाटा सुरक्षा से जुड़े मामले में दो बार सजा सुनाई जाती है तो इसके बाद सरकार उसे भारत में बैन करने पर भी विचार कर सकती है. डाटा सुरक्षा के उल्लंघन के मामलों में अधिकतम 2.5 अरब रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया गया है.

सूचना के अधिकार को कमजोर करने के लिए भी इस बिल की आलोचना हो रही हैतस्वीर: K. Nie/Design Pics/IMAGO

हालांकि इससे पहले उसे सुनवाई का मौका दिया जाएगा. यह नियम बिल के 2022 के ड्राफ्ट में नहीं था. जानकार मान रहे हैं कि यह भारत में पहले से मौजूद ऑनलाइन सेंसरशिप को और बढ़ाने के काम करेगा.

तुलना यूरोपीय संघ के डाटा कानून से

इससे जुड़ी चिंताओं का जवाब देते हुए आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि केंद्र सरकार के लिए ये छूट जरूरी थीं. उन्होंने कहा, "अगर भूकंप जैसी कोई प्राकृतिक आपदा आती है, तो क्या सरकार लोगों से उनके डाटा के लिए सहमति मांगेगी या उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तेजी से कदम उठाएगी? अगर पुलिस किसी अपराधी को पकड़ने के लिए जांच कर रही है, तो क्या उनकी सहमति मांगी जाएगी?"

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अश्विनी वैष्णव ने तर्क दिया कि यूरोपीय संघ के जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेग्युलेशन में 16 तरह की छूट दी गई है, जबकि भारत के बिल में सिर्फ चार कैटेगरी में छूट दी गई है.

आरटीआई कमजोर होने का शक

आरटीआई को कमजोर करने के लिए भी बिल की आलोचना की जा रही है. क्योंकि प्रस्तावित कानून के तहत सरकारी पदाधिकारियों का डाटा सुरक्षित रहेगा और इसे आरटीआई के जवाब में उपलब्ध कराया जाना मुश्किल होगा.

बिल में सीमापार डाटा के आदान-प्रदान पर कोई अतिरिक्त पाबंदी नहीं लगाई गई हैतस्वीर: picture alliance/CFOTO

भारत के डिजिटल समाचार संस्थानों के संगठन डिजिपब ने बिल के बारे में कहा कि यह पब्लिक इंफॉर्मेशन अफसरों को निजी जानकारी का हवाला देते हुए आरटीआई एप्लीकेशन रद्द करने अनुमति देगा. जबकि पहले ही पत्रकारों की आरटीआई छोटे-छोटे आधारों पर रद्द की जा रही हैं.

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पत्रकारों के काम पर भी चिंता

भारत में संकुचित होती पत्रकारीय स्वतंत्रता के बीच डिजिपब वायर, न्यूजलॉन्ड्री, स्क्रॉल और अन्य स्वायत्त डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का संगठन है. इसने जनहित वाली पत्रकारिता को भी बिल में छूट न दिए जाने की बात भी कही.

संगठन का कहना है कि जनहित में कई बार पत्रकारों को लोगों की व्यक्तिगत जानकारियां देनी होती हैं. इस बिल के कानून बनने के बाद पत्रकारों और पत्रकारिता संस्थानों पर कानूनी कार्रवाई का खतरा बढ़ जाएगा.

बिल के मुताबिक 18 साल से कम के बच्चों माता-पिता की इजाजत से ही इंटरनेट इस्तेमाल करेंगेतस्वीर: Santarpan Roy/ZUMA/picture alliance

केंद्र सरकार को कई अधिकार

कई जानकारों ने कहा है कि बिल में लोगों की डाटा सुरक्षा को लेकर पर्याप्त प्रावधान नहीं किए गए हैं. डाटा अधिकारों की वकालत करने वाले नई दिल्ली स्थित ग्रुप इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने कहा कि प्रस्तावित कानून बहुत से कारगर सुझावों को शामिल करने में असफल रहा है. और इसमें देश के नागरिकों की डाटा सुरक्षा के लिए भी पर्याप्त प्रावधान नहीं हैं.

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी केंद्र सरकार को बिल में कई तरह की छूट और जरूरत से ज्यादा अधिकार दिए जाने पर आशंका जारी की है. डाटा प्रोटेक्शन बोर्ड का प्रमुख नियुक्त करने का अधिकार भी केंद्र सरकार को ही होगा. यह संस्था प्राइवेसी से जुड़ी शिकायतों और दो पक्षों के बीच डाटा संबंधी झगड़ों का निपटारा करेगी.

कंपनियों के लिए कई रियायतें भी

हालांकि बिल में सीमापार डाटा के आदान-प्रदान पर कोई अतिरिक्त पाबंदी नहीं लगाई गई है. इससे दूसरे देशों में व्यापार कर रही कंपनियों को आसानी होगी. भारत के अंदर लोगों के व्यक्तिगत डाटा की प्रॉसेसिंग और भारत से बाहर सामान या सेवा बेचने वाली कंपनियों के लिए लोगों के डेटा की प्रॉसेसिंग या उनकी प्रोफाइलिंग भी आसान होगी.

बिल के मुताबिक 18 साल से कम के बच्चों के लिए इंटरनेट इस्तेमाल के लिए माता-पिता की अनुमति अनिवार्य होगी. हालांकि अगर कंपनी बच्चों का डाटा सुरक्षित तरीके से वेरिफाई करती हो तो इस आयुवर्ग को कम भी किया जा सकता है. इसके जरिए एडटेक, मेडिसिन और कुछ अन्य क्षेत्रों से जुड़ी कंपनियों को छूट देने की कोशिश की गई है.

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