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गर्भवती कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया पर विवाद

२१ जून २०२२

इंडियन बैंक के उस कथित दिशा-निर्देशों की आलोचना हो रही है जिसमें बैंक ने कहा था कि तीन महीने से अधिक गर्भवती महिलाओं को नौकरी में शामिल होने के लिए 'अस्थायी रूप से अयोग्य' माना जाना चाहिए. अब बैंक ने अपनी सफाई पेश की है.

तस्वीर: Rajesh Kumar Singh/AP Photo/picture alliance

दिल्ली महिला आयोग ने सोमवार को इंडियन बैंक को उन मीडिया रिपोर्टों पर एक नोटिस जारी किया, जिसमें कहा गया था कि उसने तीन महीने या उससे अधिक गर्भवती महिलाओं को उचित प्रक्रिया के माध्यम से चुने जाने के बाद सेवा में शामिल होने से रोकने के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं.

सरकारी बैंक के इस कदम की हर ओर आलोचना हो रही है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक नई भर्ती नीति इंडियन बैंक द्वारा हाल ही में एक सर्कुलर में जारी की गई थी.

दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने इंडियन बैंक को एक नोटिस जारी किया है. मालीवाल ने बैंक से भर्ती प्रक्रिया के लिए दिए गए दिशा-निर्देश को वापस लेने की मांग की है.

मालीवाल ने एक बयान में कहा, "हमने इंडियन बैंक को उसके नियम के लिए नोटिस जारी किया है, जिसमें उसने गर्भवती महिलाओं को 'चिकित्सकीय रूप से अनफिट' बताते हुए उनके साथ जुड़ने से इनकार किया है. इससे पहले एसबीआई को भी डीसीडब्ल्यू नोटिस के बाद इसी तरह का नियम वापस लेना पड़ा था. साथ ही भारतीय रिजर्व बैंक को लिखा है कि अब बैंकों द्वारा गलत नियमों के खिलाफ जवाबदेही तय करने का अनुरोध किया जाए."

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष ने कहा है कि आयोग ने इंडियन बैंक द्वारा कर्मचारियों की भर्ती के लिए नए दिशा-निर्देश तैयार करने पर मीडिया रिपोर्टों का स्वत: संज्ञान लिया है. नोटिस में कहा गया है कि इस तरह के दिशा-निर्देश से गर्भवती महिलाओं की सेवा में बहाली में देरी होगी और इसके बाद वे अपनी वरीयता खो देंगी.

नोटिस में डीसीडब्ल्यू ने कहा कि इंडियन बैंक की कथित कार्रवाई "भेदभावपूर्ण और अवैध" है क्योंकि यह 'सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020' के तहत प्रदान किए गए मातृत्व लाभों के विपरीत है. आयोग ने कहा है कि यह लिंग के आधार पर भी भेदभाव करता है जो भारत के संविधान के तहत मौलिक अधिकारों के खिलाफ है.

नीति की तीखी आलोचना

तमिलनाडु से सीपीएम के सांसद एस वेंकटेसन ने भी इस नीति के विरोध में 12 जून को इंडियन बैंक के एमडी और सीईओ शांतिलाल भूषण को पत्र लिखा था और कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत यह समानता के अधिकार का हनन है. उन्होंने इस दिशा-निर्देश को वापस लेने को कहा था.

इस नीति की ऑल इंडिया डेमोक्रैटिक वुमंस एसोसिएशन ने भी निंदा की थी, उसने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को भी पत्र लिखा था.

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बैंक की सफाई

बैंक के सर्कुलर में कहा गया था, "एक महिला उम्मीदवार जो परीक्षणों के परिणामस्वरूप 12 सप्ताह या उससे अधिक की गर्भवती पाई जाती है, को तब तक अस्थायी रूप से अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए जब तक कि वह फिट नहीं हो जाती. महिला उम्मीदवार को प्रसव की तारीख के छह सप्ताह बाद फिटनेस प्रमाण पत्र के लिए फिर से जांच की जानी चाहिए और रजिस्टर्ड डॉक्टर द्वारा फिटनेस सर्टिफिकेट प्राप्त किया जाना चाहिए."

सेवा में शामिल होने में गर्भवती महिलाओं के साथ भेदभाव पर विवाद के बीच इंडियन बैंक ने सोमवार को कहा कि उसने मौजूदा दिशा-निर्देशों में कोई बदलाव नहीं किया है और किसी भी महिला उम्मीदवार को रोजगार से वंचित नहीं किया गया है. 17 जून को इंडियन बैंक ने कहा कि वह महिला कर्मचारियों की देखभाल और सशक्तिकरण को सर्वोपरि महत्व देता है. बैंक के मुताबिक उसके कार्यबल में 29 फीसदी महिलाएं हैं.

इसके अलावा बैंक ने कहा कि गर्भावस्था के आधार पर इंडियन बैंक द्वारा किसी भी महिला उम्मीदवार को रोजगार से वंचित नहीं किया गया है. बयान में कहा गया है कि बैंक किसी भी लैंगिक भेदभाव व्यवहार में शामिल नहीं है.

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