काबुल में आत्मघाती हमला
१६ अगस्त २०१८तथाकथित इस्लामिक स्टेट अफगानिस्तान में आम लोगों पर हमले करने की बजाय तालिबान से भी टकरा रहा है.
अफगानिस्तान में आईएस ने ऐसे पैर जमाए
इराक और सीरिया में अपना वजूद मिटता देख तथाकथित इस्लामिक स्टेट ने अफगानिस्तान में अपने पैर पसार लिए हैं. वहां आईएस आम लोगों पर हमले करने की बजाय तालिबान से भी टकरा रहा है.
आईएस की शुरुआत
2014 में अमेरिका और नाटो जब अफगानिस्तान में अपने युद्ध मिशन को समेट रहे थे तो आईएस ने वहां पहली बार अपने पैर जमाने की कोशिश की. हाल के सालों में कई बड़े हमले कर आईएस ने अफगानिस्तान में अपनी ताकत को लगातार बढ़ाया है.
पाकिस्तानी लड़ाके
अफगानिस्तान में आईएस की शाखा को मुख्य रूप से पाकिस्तानी तालिबान के उन लड़ाकों ने शुरू किया जिन्हें पाकिस्तान में सैन्य अभियान के बाद भागना पड़ा था. हिंसा कम करने और शांति प्रकिया जैसे मुद्दों पर अफगान तालिबान के नेतृत्व से नाराज कई लड़ाके भी इस गुट में शामिल हो गए.
बढ़ी ताकत
शुरू में आईएस पाकिस्तान से लगने वाले पूर्वी अफगान प्रांत नंगरहार तक ही सीमित था. लेकिन अब उसने उत्तरी अफगानिस्तान तक अपना विस्तार कर लिया है. पाकिस्तान के दक्षिणी वजीरिस्तान से निकाले गए इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान के लड़ाकों को साथ लेने से उसकी ताकत बढ़ी है.
खोरासान प्रांत
इराक और सीरिया में जहां इस्लामिक स्टेट अपने नियंत्रण वाले इलाके को खिलाफत का नाम देता था, वहीं अफगानिस्तान में उसकी शाखा अपने इलाके को खोरासान प्रांत कहती है. खोरासान मध्य एशिया का प्राचीन नाम है जिसमें आज का अफगानिस्तान भी आता है.
निशाने पर शिया
तालिबान की तरह ही आईएस की अफगान शाखा भी देश से अमेरिका के समर्थन वाली सरकार को बेदखल कर कट्टर इस्लामी शासन लागू करना चाहती है. लेकिन तालिबान जहां सरकारी इमारतों को निशाना बनाते हैं, वहीं आईएस के निशाने पर शिया समुदाय के हजारा लोग हैं.
समाज में फूट
आईएस शिया लोगों को धर्म से पथभ्रष्ट मानता है. काबुल में रहने वाले सुरक्षा विश्लेषक वाहिद मुजदा कहते हैं कि जिहादी समूह आईएस अफगान समाज में सांप्रदायिक मतभेद पैदा करना चाहता है. आईएस खुद की तालिबान से अलग पहचान बनाने के लिए शिया लोगों को निशाना बना रहा है.
बगदादी के वफादार
इस बारे में सटीक जानकारी नहीं है कि अफगानिस्तान में आईएस कितना बड़ा है. लेकिन अनुमान है कि उसके लड़ाकों की संख्या तीन से पांच हजार के बीच है. अफगानिस्तान में सक्रिय आईएस लड़ाके भी अबु बकर अल बगदादी के वफादार हैं और उसकी तरह दुनिया में मुस्लिम खिलाफत का सपना देखते हैं.
खून से रंगे हाथ
सीरिया और इराक में आईएस को शुरू करने वाले बगदादी की तरह अफगान आईएस लड़ाकों को शियाओं से नफरत है. अफगानिस्तान की 3.5 करोड़ की आबादी में अल्पसंख्यक शिया 15 प्रतिशत है. वहीं आईएस एक सुन्नी गुट है, जिसे शियाओं के खून से हाथ रंगने में कोई हिचकिचाहट नहीं है.
बेहाल सुरक्षा
अफगानिस्तान में आईएस की बढ़ती ताकत को देखते हुए शियाओं ने अपने धार्मिक स्थलों पर सुरक्षा व्यवस्था को बढ़ा दिया है. लेकिन देश में समूची सुरक्षा व्यवस्था डांवाडोल है. लगातार हो रहे हमलों को रोकना सुरक्षा बलों की क्षमता से बाहर दिख रहा है.
लोगों का कितना समर्थन
अफगानिस्तान एक सुन्नी बहुल रुढ़िवादी समाज है. लेकिन वहां आईएस को ज्यादा लोगों का समर्थन प्राप्त नहीं है. हालांकि तालिबान ने कई बड़े हमले किए हैं, लेकिन कई इलाकों में वे प्रशासन भी चला रहे हैं. कुछ अफगान लोग काबुल की 'भ्रष्ट सरकार' से ज्यादा तालिबान को पसंद करते हैं.
देसी बनाम विदेशी
दूसरी तरफ इस्लामिक स्टेट को सिर्फ बर्बर हिंसा के लिए जाना जाता है जिसकी दुनिया भर में निंदा होती है. अफगानिस्तान में आईएस को एक विदेशी संगठन के तौर पर देखा जाता है जबकि तालिबान खुद अफगान धरती पर पैदा हुए.
शांति प्रक्रिया
तालिबान और आईएस में कई अंतर हैं. मसलन तालिबान ने कभी बगदादी के इस दावे को स्वीकार नहीं किया कि वह पूरे मुस्लिम जगत में फैली खिलाफत का नेतृत्व करता है. साथ ही तालिबान ने कई बार शांति प्रक्रिया में शामिल होने की इच्छा जताई है, जबकि आईएस पूरी तरह से इसके खिलाफ है.
जंग का मैदान
नंगरहार प्रांत में आईएस और तालिबान एक दूसरे से लड़ते रहे हैं. रूस और कई अन्य देश आईएस के बढ़ते असर को रोकने के लिए तालिबान के साथ सहयोग के हक में हैं. लेकिन शांति वार्ता के मोर्चे पर कोई प्रगति न होने की वजह अफगानिस्तान बदस्तूर जंग का मैदान बना हुआ है.