सांस लेने के लिए संघर्ष कर रहे कोविड-19 मरीजों की मांग को पूरा करने के लिए इंडोनेशिया ने अपने लगभग पूरे ऑक्सीजन उत्पादन को चिकित्सा उपयोग की तरफ मोड़ दिया है.
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मलेशिया के अस्पतालों में कोरोना मरीजों के लिए खाली बिस्तर नहीं बचे हैं. उनका इलाज फर्श पर हो रहा है. और म्यांमार के सबसे बड़े शहर में कब्रिस्तान के कर्मचारी दाह संस्कार और दफनाने की गंभीर मांग को पूरा करने के लिए दिन और रात मेहनत कर रहे हैं.
मई में भारत में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान खुले में जलती चिताओं ने पूरी दुनिया को सकते में डाल दिया था. लेकिन पिछले दो सप्ताह में तीन दक्षिण पूर्व एशियाई देश भारत की प्रति व्यक्ति मृत्यु दर की चरम सीमा को पार कर चुके हैं. इन देशों में कोरोना का डेल्टा वेरिएंट भारी तबाही के लिए जिम्मेदार है और क्षेत्र पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है.
गंभीर संकट से जूझते देश
क्षेत्र में कोरोना के रिकॉर्ड मामलों के बाद मौतों की संख्या तेजी से बढ़ी है. इन देशों में स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है. सरकारें संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए नए-नए प्रतिबंध लगा रही हैं.
मलेशिया के सेलांगर में जब एरिक लैम 17 जून को कोविड-19 के लिए पॉजिटिव पाए गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया तो अस्पताल में पहले से ही मरीजों की भीड़ थी. अस्पताल के गलियारे भी मरीजों से पटे पड़े थे. सेलांगर कोरोना के प्रकोप का केंद्र था.
कुछ अन्य अस्पतालों की तुलना में सेलांगर के इस अस्पताल की स्थिति अभी भी बेहतर थी. सेलांगोर, मलेशिया का सबसे अमीर और सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है. वहां के अस्पतालों में निशुल्क बिस्तर नहीं थे और मरीजों का इलाज फर्श या फिर स्ट्रेचर पर किया जा रहा था.
38 साल के लैम तीन हफ्ते तक अस्पताल में बिताए एक घटना का जिक्र करते हुए बताते है कि एक मशीन दो घंटे तक लगातार आवाज करती रही, जब नर्स उसे बंद करने आई तो उन्हें को मालूम चला कि मरीज मर चुका है.
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कोरोना के मामलों में तेजी के कारण
मलेशिया में स्थित रेड क्रॉस के लिए एशिया-प्रशांत आपातकालीन स्वास्थ्य समन्वयक अभिषेक रिमल कहते हैं क्षेत्र में हाल के उछाल में कई कारकों ने योगदान दिया है, जिसमें महामारी से थके हुए लोग शामिल हैं और वे सावधानियों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. क्षेत्र में कम टीकाकरण दर और डेल्टा वेरिएंट भी उछाल का मुख्य कारण बना है.
रिमल के मुताबिक, "जिस तरह से देश उपाय अपना रहा है. अगर लोग उसका पालन करते हैं, हाथ धोने, मास्क पहनने, दूरी बनाए रखने की मूल बातों को ध्यान में रखते हैं और टीका लगवाते हैं तो हम मामलों में गिरावट देखेंगे"
हालांकि अब तक मलेशिया के राष्ट्रीय लॉकडाउन ने रोजाना के संक्रमण दर को कम नहीं किया है. करीब 3.2 करोड़ की आबादी वाले देश में पहली बार 13 जुलाई को दैनिक मामले 10 हजार से अधिक पहुंच गए थे.
कोविड के खिलाफ कुछ कामयाबियां
कोविड के खिलाफ वैज्ञानिकों का संघर्ष जारी है. दुनिया भर के वैज्ञानिक अलग-अलग दिशाओं में शोध कर रहे हैं ताकि वायरस को बेहतर समझा जा सके और उससे लड़ा जा सके. जानिए, हाल की कुछ सफलताओं के बारे में.
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स्मेल से कोविड टेस्ट
कोरोनावायरस से संक्रमित होने पर अक्सर मरीज की सूंघने की शक्ति चली जाती है. अब वैज्ञानिक इसे कोविड का पता लगाने की युक्ति बनाने पर काम कर रहे हैं. एक स्क्रैच-ऐंड-स्निफ कार्ड के जरिए कोविड का टेस्ट किया गया और शोध में सकारात्मक नतीजे मिले. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह नाक से स्वॉब लेकर टेस्ट करने से बेहतर तरीका हो सकता है.
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मां के दूध में वैक्सीन नहीं
कोविड वैक्सीन के अंश मां के दूध में नहीं पाए गए हैं. टीका लगवा चुकीं सात महिलाओं से लिए गए दूध के 13 नमूनों की जांच के बाद वैज्ञानिकों ने पाया है कि यह वैक्सीन किसी भी रूप में दूध के जरिए बच्चे तक नहीं पहुंचती.
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नाक से दी जाने वाली वैक्सीन
कोविड-19 की एक ऐसी वैक्सीन का परीक्षण हो रहा है, जिसे नाक से दिया जा सकता है. इसे बूंदों या स्प्रे के जरिए दिया जा सकता है. बंदरों पर इस वैक्सीन के सकारात्मक नतीजे मिले हैं.
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लक्षणों से पहले कोविड का पता चलेगा
वैज्ञानिकों ने एक ऐसे जीन का पता लगाया है जो कोविड के साथ ही मनुष्य के शरीर में सक्रिय हो जाता है. कोविड के लक्षण सामने आने से पहले ही यह जीन सक्रिय हो जाता है. यानी इसके जरिए गंभीर लक्षणों के उबरने से पहले भी कोविड का पता लगाया जा सकता है. छह महीने चले अध्ययन के बाद IF127 नामक इस जीन का पता चला है.
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कैंसर मरीजों पर वैक्सीन का असर
एक शोध में पता चला है कि कैंसर का इलाज करवा रहे मरीजों पर वैक्सीन का अच्छा असर हो रहा है. हालांकि एंटिबॉडी के बनने में वक्त ज्यादा लग रहा था लेकिन दूसरी खुराक मिलने के बाद ज्यादातर कैंसर मरीजों में एंटिबॉडी वैसे ही बनने लगीं, जैसे सामान्य लोगों में.
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कोविड के बाद की मुश्किलें
वैज्ञानिकों ने एक शोध में पाया है कि जिन लोगों को कोविड के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, उनमें से लगभग आधे ऐसे थे जिन्हें ठीक होने के बाद भी किसी न किसी तरह की सेहत संबंधी दिक्कत का सामना करना पड़ा. इनमें स्वस्थ और युवा लोग भी शामिल थे. 24 प्रतिशत को किडनी संबंधी समस्याएं हुईं जबकि 12 प्रतिशत को हृदय संबंधी.
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इंडोनेशिया और म्यांमार में क्या हाल
इंडोनेशिया, म्यांमार और मलेशिया में कोरोना के मामलों में तेज वृद्धि हुई है. जून के अंत से उनका सात दिन का औसत 4.37, 4.29 और 4.14 प्रति दस लाख पर पहुंच गया है. कंबोडिया और थाईलैंड में भी मामलों के साथ इससे होने वाली मौतों में भी इजाफा हुआ है.
रिमल कहते हैं देशों ने भारतीय अनुभव को एक सबक के रूप में लिया है और तेजी के साथ काम किया. अधिकांश देशों ने वायरस को धीमा करने के लिए नए प्रतिबंधों के साथ अपेक्षाकृत जल्दी प्रतिक्रिया दी और गंभीर रूप से बीमार लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया. इंडोनेशिया में लगभग 14 फीसदी आबादी को कम से कम वैक्सीन की एक खुराक लग चुकी है.
इंडोनेशिया में मुख्य रूप से चीन की सिनोवैक वैक्सीन लगी है. सैन्य शासन वाले म्यांमार में कोरोना जांच के बाद हाल के सप्ताहों में मामले तेजी से बढ़े हैं. अब यह स्पष्ट हो गया है कि मई के मध्य में एक नई लहर शुरू होने से मामले और मौत तेजी से बढ़ी हैं.
एए/सीके (एएफपी)
कितना खर्च हुआ कोविड के इलाज पर
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि भारत में कोविड के इलाज पर हुआ औसत खर्च आम आदमी की सालाना आय से परे है. आइए जानते हैं आखिर कितना खर्च सामने आया इस अध्ययन में.
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भारी खर्च
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया और ड्यूक ग्लोबल हेल्थ इंस्टिट्यूट के इस अध्ययन में सामने आया कि अप्रैल 2020 से जून 2021 के बीच एक औसत भारतीय परिवार ने जांच और अस्पताल के खर्च पर कम से कम 64,000 रुपए खर्च किए. अध्ययन के लिए दामों के सरकार द्वारा तय सीमा को आधार बनाया गया है.
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महीनों की कमाई
भारत में एक औसत वेतन-भोगी, स्वरोजगार वाले या अनियमित कामगार के लिए कोविड आईसीयू का खर्च कम से कम उसके सात महिने की कमाई के बराबर पाया गया. अनियमित कामगारों पर यह बोझ 15 महीनों की कमाई के बराबर है.
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आय के परे
आईसीयू में भर्ती कराने के खर्च को 86 प्रतिशत अनियमित कामगारों, 50 प्रतिशत वेतन भोगियों और स्वरोजगार करने वालों में से दो-तिहाई लोगों की सालाना आय से ज्यादा पाया गया. इसका मतलब एक बड़ी आबादी के लिए इस खर्च को उठाना मुमकिन ही नहीं है.
तस्वीर: Pradeep Gaur/Zumapress/picture alliance
सिर्फ आइसोलेशन भी महंगा
सिर्फ अस्पताल में आइसोलेशन की कीमत को 43 प्रतिशत अनियमित कामगार, 25 प्रतिशत स्वरोजगार वालों और 15 प्रतिशत वेतन भोगियों की सालाना कमाई से ज्यादा पाया गया. अध्ययन में कोविड की वजह से आईसीयू में रहने की औसत अवधि 10 दिन और घर पर आइसोलेट करने की अवधि को सात दिन माना गया.
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महज एक जांच की कीमत
निजी क्षेत्र में एक आरटीपीसीआर टेस्ट की अनुमानित कीमत, यानी 2,200 रुपए, एक अनियमित कामगार के एक हफ्ते की कमाई के बराबर पाई गई. अमूमन अगर कोई संक्रमित हो गया तो एक से ज्यादा बार टेस्ट की जरूरत पड़ती है. साथ ही परिवार में सबको जांच करवानी होगी, जिससे परिवार पर बोझ बढ़ेगा.
अध्ययन में कहा गया कि इन अनुमानित आंकड़ों को कम से कम खर्च मान कर चलना चाहिए, क्योंकि सरकार रेटों में कई अपवाद हैं और इनमें से अधिकतर का पालन भी नहीं किया जाता. इनमें यातायात, अंतिम संस्कार आदि पर होने वाले खर्च को भी नहीं जोड़ा गया है.