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अपराधभारत

पुलिस मुठभेड़ के बढ़ते मामलों से कठघरे में असम सरकार

प्रभाकर मणि तिवारी
२ अगस्त २०२२

सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में होने वाली मौतों के मामले में असम राज्य पूर्वोत्तर में पहले और भारत में तीसरे स्थान पर आ चुका है.

Assam MLA Akhil Gogoi has been vocal against death in police encounters in the state
अप्रैल 2021 में असम के गुवाहाटी में पुलिस हिंसा के खिलाफ प्रदर्शन करते एमएलए अखिल गोगोईतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में होने वाली मौतों की तादाद असम में खासकर वर्ष 2016 के बाद तेजी से बढ़ी और इस मामले में पूरे देश में यह राज्य जम्मू-कश्मीर और छत्तीसगढ़ के बाद तीसरे स्थान पर पहुंच गया. पूर्वोत्तर में असम पहले स्थान पर है. केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में पेश आंकड़ों में बताया गया है कि अप्रैल, 2020 से इस साल मार्च तक राज्य में पुलिस हिरासत में 41 लोगों की मौत हुई है जबकि पुलिस के साथ मुठभेड़ में 22 लोग मारे गए हैं.

इस बीच, गौहाटी हाईकोर्ट ने इस संबंध में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद सरकार से बीते साल मई से राज्य पुलिस मुठभेड़ के मामलों की जांच का ब्योरा मांगा है. विपक्षी राजनीतिक दलों और मानवाधिकार संगठनों ने इस मुद्दे पर हिमंता बिस्वा सरमा सरकार के खिलाफ लगातार आक्रामक रुख अपना रखा है. उनका आरोप है कि इस मामले में असम ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को भी पीछे छोड़ दिया है.

केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, पुलिस मुठभेड़ में होने वाली मौतों के मामले में जम्मू-कश्मीर (45), छत्तीसगढ़ (30) और असम (18) के बाद उत्तर प्रदेश (11) का नंबर है. लेकिन विपक्षी दलों और संगठनों का आरोप है कि असली संख्या उससे कहीं ज्यादा है.

बढ़ते मामले

असम में खासकर बीते साल हिमंता बिस्वा सरकार के सत्ता में आने के बाद से पुलिस की हिरासत और मुठभेड़ में होने वाली मौतों की तादाद तेजी से बढ़ी है मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा सत्ता में आने के बाद से कई बार पुलिस मुठभेड़ पर भी विवादित बयान दे चुके हैं.

बीते साल उनके कारयबार संभालने के दो महीने के भीतर ही पुलिस कथित तौर पर हिरासत से भागने का प्रयास कर रहे क़रीब 12 संदिग्ध अपराधियों को मार गिराया गया था. विपक्ष की ओर से उठते सवालों के बाद इसे उचित ठहराते हुए मुख्यमंत्री ने कहा था कि आरोपी पहले गोली चलाए या भागने की कोशिश करे तो कानूनन पुलिस को गोली चलाने का अधिकार है.

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा सत्ता में आने के बाद से कई बार पुलिस मुठभेड़ पर भी विवादित बयान दे चुके हैंतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

हालांकि ऐसे ज्यादातर मामलों में पुलिस की ओर से वही पुरानी घिसी-पिटी दलील दी जाती रही है कि अभियुक्त हथियार छीन कर भागने का प्रयास कर था या फिर उसने पुलिस वालों पर हमले किए और जवाबी कार्रवाई में मारा गया.

असम मानवाधिकार आयोग ने इन मामलों का संज्ञान लेते हुए बीते साल जुलाई में सरकार से इन मौतों से संबंधित हालातों की जांच कराने का निर्देश दिया था. आयोग के सदस्य नब कमल बोरा ने तब कहा था कि मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक जिन लोगों की मौत हुई वह तमाम लोग हिरासत में थे और हथकड़ी पहने थे.ऐसे में इसका पता लगाना जरूरी है कि उनकी मौत किन हालात में हुई.

दूसरी ओर, विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने बीजेपी सरकार के दूसरे कार्यकाल में पुलिस पर खुलेआम हत्या करने का आरोप लगाया है. विधायक अखिल गोगोई आरोप लगाते हैं, "भाजपा सरकार फर्जी मुठभेड़ों के जरिए असम में खुली हत्याओं को अंजाम दे रही है. केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा सत्ता में होने के कारण राज्य भर में फर्जी मुठभेड़ों के माध्यम से खुली हत्या में लगी हुई है."

उनका दावा है कि इन कथित मुठभेड़ों या पुलिस कार्रवाई में अब तक कम से कम 43 लोग मारे गए हैं. इनमें से ज्यादातर मुठभेड़ फर्जी है. मुठभेड़ फर्जी है. विपक्षी दलों का आरोप है कि कहना था कि सरकार अपनी नाकामी छुपाने के लिए लोगों को असली मुद्दों से भटकाने का प्रयास कर रही है ताकि कोई उनसे सवाल पूछने की हिम्मत ना कर सके. कांग्रेस ने सरकार पर तानाशाही की तरह राज्य को चलाने और अपराध की बजाय अपराधी को खत्म करने की रणनीति पर चलने का आरोप लगाया है.

असम के मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. दिव्य ज्योति सैकिया का कहना है कि जब से हिमंत विश्व शर्मा के मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य में मानवाधिकारों के उल्लंघन के सैकड़ों मामले सामने आए हैं.

हाईकोर्ट का निर्देश

इस बीच, एक एडवोकेट आरिफ मोहम्मद यासीन जवादर की ओर से पुलिस मुठभेड़ की घटनाओं पर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए गौहाटी हाईकोर्ट ने सरकार से साठ दिनो के भीतर बीते साल मई यानी नई सरकार के सत्ता में आने के बाद से अब तक के ऐसे मामलों का ब्योरा मांगा है. अदालत ने सरकार से रिपोर्ट में यह बताने को भी कहा है कि क्या मुठभेड़ मामलों की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन किया गया है.

मानवाधिकार कार्यकर्ता कुणाल महंत कहते हैं, "शायद असम सरकार अपराध की जगह अपराधियों को खत्म करने की नीति पर आगे बढ़ रही है. ऐसे में फिलहाल ऐसे मामले कम होने की कोई उम्मीद नहीं नजर आती.” उनका कहना है कि मुठभेड़ की बढ़ती घटनाओं और शीर्ष स्तर पर इनके समर्थन से असम पुलिस राज्य में बदल गया है.

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