अंग दान के लिए मौत की परिभाषा: ब्रेन डेड या दिल बंद होना?
१६ अक्टूबर २०२४ऑर्गन डोनेशन, या अंग दान के लिए कब माना जाए कि व्यक्ति की मौत हो गई है? क्या 'ब्रेन डेथ' की पुष्टि ही इसका आधार हो, या 'कार्डियोवैस्क्युलर डेथ' भी व्यक्ति में जीवन की संभावना खत्म होने का प्रमाण माना जा सकता है? जर्मनी में फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी (एफडीपी) देश में अंगदान बढ़ाने के लिए मौत की परिभाषा में विस्तार करना चाहती है.
क्या है ब्रेन डेथ और कार्डियोवैस्क्युलर डेथ?
ब्रेड डेथ, जिसे 'ब्रेन स्टेम डेथ' भी कहते हैं, से तात्पर्य है कि जब आर्टिफिशियल लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखे गए मरीज का मस्तिष्क पूरी तरह काम करना बंद कर दे. इसका मतलब है कि ना तो वह शख्स कभी होश में आएगा, ना ही लाइफ सपोर्ट के बिना वह सांस ले सकेगा.
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'कार्डियोवैस्क्युलर डेथ' या कार्डियक डेथ का मतलब है दिल या रक्त धमनियों की बीमारी से हुई मौत. जैसे कि, कार्डियक अरेस्ट जिसमें अचानक दिल धड़कना बंद कर दे. दिमाग और बाकी जरूरी अंगों में पहुंचने वाले खून का बहाव कम हो जाए. इस स्थिति में इंसान अचेत हो सकता है, या फिर मौत भी हो सकती है. स्ट्रोक और कोरोनरी हार्ट डिजीज (सीएचडी) से भी मौत हो सकती है. सीएचडी भी एक दिल की बीमारी है, जिसमें हृदय की धमनियां ऑक्सीजन से भरे खून की पर्याप्त आपूर्ति नहीं कर पातीं.
जीवनरक्षक अंगदान, डोनरों का लंबा इंतजार
जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेस्टाग में इसपर बहस चल रही है. मौजूदा गठबंधन सरकार में शामिल फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी (एफडीपी) का संसदीय समूह अंगदान के लिए जरूरी मौत की परिभाषा में विस्तार करने के पक्ष में है. अब तक ब्रेन डेड की पुष्टि होना जरूरी था. प्रस्ताव मंजूर होने पर भविष्य में 'कार्डियोवैस्क्युलर डेथ' में मृत्यु की पुष्टि होने पर भी अंगदान के लिए ऑर्गन निकाले जा सकेंगे.
समाचार एजेंसी केएनए ने जर्मन अखबार 'डी वेल्ट' के हवाले से यह जानकारी दी है. यह जानकारी एक प्रस्तावित मसौदे के हवाले से दी गई है, जिसे एफडीपी पार्लियामेंट्री ग्रुप मंजूर करने जा रहा है. इसका मकसद जर्मनी में अंगदान की संख्या बढ़ाना है.
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एफडीपी की सांसद कटरिन हेलिंग ने डी वेल्ट से बातचीत में कहा, "साल 2023 के अंत तक 8,716 लोग जान बचाने के लिए ऑर्गन डोनर का इंतजार कर रहे थे. ऑर्गन डोनर ना मिलने के कारण वेटिंग लिस्ट में कई लोगों की जान चली जाएगी. इसीलिए हम खुद से अंगदान करने का फैसला करने वालों के लिए अतिरिक्त विकल्प के तौर पर कार्डियोवैस्क्युलर डेथ को जोड़ना चाहते हैं. यह ब्रेन डेथ के बाद अंगदान करने के मौजूदा विकल्प के साथ होगा." पुरानी प्रक्रिया की खामी रेखांकित करते हुए हुए हेलिंग-प्लाअर ने अखबार से कहा, "इस फैसले के लागू होने से ऑर्गन डोनेट करने वालों की संख्या में बढ़ोतरी होगी."
ब्रेन डेड का निर्धारण मुश्किल
एफडीपी संसदीय समूह के स्वास्थ्य नीति प्रवक्ता और प्रोफेसर एंड्रयू उलमन ने अखबार को बताया, "लंबे समय तक दिल की धड़कन रुकने के बाद होने वाली मौत ब्रेन डेड होने के समान ही है. हालांकि, कार्डियक डेथ को ब्रेन डेथ की तुलना में पहचान पाना आसान है. ब्रेन डेड की पुष्टि की प्रक्रिया जटिल है, जिसकी वजह से डोनर्स की संख्या कम हो जाती है.
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किसी व्यक्ति का ब्रेन डेड तब होता है, जब उसके दिमाग को कोई गंभीर क्षति पहुंचती है. उदाहरण के लिए, दिमाग को पर्याप्त ऑक्सीजन न मिलने पर वह काम करना बंद कर देता है. ब्रेन डेड की पुष्टि न्यूरोलॉजिकल मानदंडों के आधार पर की जाती है. ब्रेन डेड होते ही दिल और बाकी सभी अंग काम करने बंद कर देते हैं.
कार्डियक अरेस्ट होने पर दिल धड़कना बंद कर देता है और खून का संचार रुक जाता है. ऐसी हालत में दिमाग सहित शरीर के दूसरे अंगों तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है. समय रहते अगर उचित सहायता न मिले तो कुछ ही मिनटों में मौत हो सकती है. हालांकि, कार्डियक डेथ को ऑर्गन डोनेशन की परिधि में शामिल करने का कई डॉक्टर और विशेषज्ञ विरोध भी करते हैं. उनके मुताबिक, इस तरह मृत्यु के निर्धारण में कई बार चूक की भी आशंका हो सकती है.
जर्मनी में ऑर्गन डोनेशन
जर्मनी में 16 साल से ऊपर की आयु के किसी भी व्यक्ति को अंगदान करने का अधिकार है. डोनेशन के लिए व्यक्ति को अंग दान के लिए अग्रिम सहमति देनी होती है. निर्णय न लेने की स्थिति में सबसे करीबी रिश्तेदार मृतक की इच्छा के आधार पर निर्णय लेते हैं.
जर्मनी में फिलहाल मृतक व्यक्ति के अंग प्राप्त करने के लिए यह अनिवार्य है कि ब्रेन डेथ की पुष्टि की जाए. दो विशेषज्ञ डॉक्टर जब तक व्यक्ति की मौत की पुष्टि न कर दें, तब तक उसके अंग नहीं लिए जा सकते हैं. डोनेशन के नियम जटिल होने की वजह से एफडीपी नियमों में बदलाव का समर्थन कर रही है. जर्मन ऑर्गन ट्रांसप्लांट फाउंडेशन के अनुसार, पिछले साल 965 लोगों ने मौत के बाद एक या एक से अधिक अंग दान किए.
देश में अंगदान बढ़ाने के लिए कुछ साल पहले स्वास्थ्य मंत्रालय भी एक प्रस्ताव लाया था. इसके तहत, सभी लोगों को एक आम सहमति प्रणाली के तहत ऑर्गन डोनर मान लिया जाता और बाद में उनके पास इससे इनकार करने का अधिकार होता. साल 2020 में जर्मन संसद ने मंत्रालय के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया. प्रस्ताव पर आम सहमति न बन पाने की वजह से पुराना नियम ही लागू है. इसमें लोगों के पास ही यह अधिकार है कि वो अंगदान के लिए अपनी मर्जी से खुद को रजिस्टर कर सकते हैं.
भारत में अंगदान के नियम क्या हैं?
भारत में 18 वर्ष से ऊपर की आयु का व्यक्ति स्वेच्छा से ऑर्गन डोनर बन सकता है. डोनर बनने के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से रजिस्टर किया जा सकता है. राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (नोट्टो) भारत में डोनेशन और ट्रांसप्लांट के लिए कार्यदायी संस्था है.
दुनिया भर में ऑर्गन डोनेशन के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाए जाते हैं, ताकि समय पड़ने पर जरूरतमंद लोगों की जान बचाई जा सके. 1990 के दशक में फिल्म कलाकार ऐश्वर्या राय एक टीवी विज्ञापन के अभियान से जुड़ी थीं, जिसके जरिए वह लोगों को नेत्रदान के लिए प्रेरित करती थीं. हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऐश्वर्या राय की इस विज्ञापन मुहिम के कारण मृत्यु के बाद नेत्रदान का संकल्प करने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि देखी गई थी.
भारतः अंगदान करने वालों की कमी क्यों?
अंगदान की अहमियत और इसके लिए जन जागरूकता बढ़ाने की मंशा से 13 अगस्त को 'अंतरराष्ट्रीय अंगदान दिवस' मनाया जाता है. विभिन्न अध्ययनों की मानें, तो एक ऑर्गन डोनर आठ लोगों की जान बचा सकता है और एक टिशू डोनर 75 लोगों की जिंदगी बदल सकता है.
एवाई/एसएम (केएनए, एएफपी)