स्पेन के एक मंत्री ने जब लोगों को कम मांस खाने की सलाह दी, तो अपनी ही सरकार के लोग उनके पीछे पड़ गए. मांस कितना खाएं, स्पेन में इस बात पर बवाल हो गया है.
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कितना मांस खाया जाना चाहिए, इस बात को लेकर स्पेन में बहस इतनी बढ़ गई है कि सत्तारूढ़ गठबंधन में दरार आ गई है. प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज की कैबिनेट के मंत्री आपसे में इस सवाल को लेकर उलझे हुए हैं. एक पक्ष का कहना है कि देश के लोगों को गोमांस और अन्य तरह के पशुओं में मिलने वाले प्रोटीन कम खाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. यह पक्ष शाकाहारी भोजन को प्रोत्साहित करने को लेकर अभियान चलाने की बात कह रहा है.
मांस खाने को लेकर यह बहस इस कदर बढ़ गई है कि लिथुआनिया के दौरे पर गए प्रधानमंत्री सांचेज को वहीं से दखल देना पड़ा. अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा, "जहां तक मेरी बात है, तो अगर तुम मुझे एक रिब-आई स्टेक दोगे, तो उस जैसी कोई बात नहीं है."
2020 की शुरुआत में सत्ता में आने के बाद से सांचेज और उनकी वामपंथी रुझाने वाली सोशलिस्ट पार्टी व गठबंधन की जूनियर पार्टनर वामपंथी पार्टी युनाइटेड वी कैन का कई मामलों पर विवाद हो चुका है. इनमें ट्रांसजेंडरों के अधिकार, बढ़ते किराये का मुद्दा, करों में बढ़ोतरी और लोगों को मिलने वाली सरकारी मदद शामिल हैं
यूंछिड़ाविवाद
विवाद के मुद्दों में मांस पिछले हफ्ते तब शामिल हुआ जब 7 जुलाई को युनाइटेड वी कैन पार्टी के नेता और उपभोक्ता मंत्री अल्बर्टो गारजन ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी किया. इस वीडियो में उन्होंने लोगों से अपने खाने में कम से कम मांस का प्रयोग करने की अपील की थी. गारजन ने कहा, "मैं अपने नागरिकों की और अपने ग्रह की सेहत को लेकर फिक्रमंद हूं."
मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र की फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन के आंकड़ों के हवाले से कहा कि यूरोपीय संघ में स्पेन मांस का सबसे बड़ा उपभोक्ता है. यूरोप में प्रतिव्यक्ति सालाना औसत उपभोग 76 किलो है जबकि स्पेन में 98 किलो. गारजन ने कहा कि चार करोड़ 70 लाख लोगों के देश में हर साल सात करोड़ गाय, सूअर, भेड़, मुर्गे और अन्य जानवर खाने के लिए काटे जाते हैं.
देखिए, जर्मनी में बढ़ रही है सब्जियों की लोकप्रियता
जर्मनी में बढ़ रही है सब्जियों की लोकप्रियता
जर्मनी मांसाहारियों का देश है लेकिन इस दिनों यहां सब्जियों की लोकप्रियता बढ़ रही है. सब्जियां आम तौर पर मुख्य भोजन मांस के साथ खायी जाती हैं. कुछ लोकप्रिय सब्जियां जो विदेशों में आम नहीं है.
तस्वीर: SWR
फूलगोभी
फूलगोभी को 16वीं शताब्दी से यूरोप के देशों में उगाया जा रहा है. समुद्रयात्री इसका बीज लेकर इटली आये थे. बाद में यह पूरे यूरोप में फैल गया. अब यह यूरोप में खाया जाने वाला सबसे लोकप्रिय गोभी है.
तस्वीर: Fotolia/Ruslan Kudrin
बंद गोभी
जर्मनी में लोकप्रिय गोभी की किस्मों में बंद गोभी भी शामिल है. इसका इस्तेमाल सलाद और विभिन्न प्रकार के गरम खाने में किया जाता है. इसी से जावरक्राउट बनाया जाता है, जो दुनिया भर में मशहूर जर्मन खाना है.
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सेवॉय
ये भी एक प्रकार की गोभी है जो जर्मन खानों में साइड डिश के रूप में इस्तेमाल होती है. इसमें बहुत सारा विटामिन सी होता है और इसके करारे पत्ते खाने में विशेष स्वाद देते हैं. जर्मन में इसे विर्जिंग कहते हैं.
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शलजम
गोभी के ही परिवार का शलजम भी जर्मनी में अत्यंत लोकप्रिय है. यह कच्चे भी खाया जाता है सलाद के रूप में. साथ ही कुछ पकवान भी बनते हैं. जर्मन नाम है कोलराबी और करीब 44 किस्में पैदा होती हैं.
तस्वीर: Colourbox
टर्निप ग्रीन
ये खास प्रकार का गोभी का पत्ता है जो आम तौर पर वसंत में उपजाया जाता है. चूंकि इसके मुलायम पत्ते खाये जाते हैं इसलिए बुआई के समय बहुत ज्यादा बीज डाले जाते हैं ताकि जड़ें मजबूत न हों. जर्मन नाम रुइबश्टील.
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जंगली लहसुन
ये पौधा प्याज और लहसुन की प्रजाति का है और जंगल में होता है. इन पत्तों का स्वाद लहसुन जैसा है और सुगंध भी. इसकी चटनी भी स्वादिष्ट बनती है. इसका इस्तेमाल सलाद से लेकर सूप, डिप और चीज बनाने में होता है.जर्मन में इसे वेयरलाउख कहते हैं.
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काली जड़ें
श्वार्त्सवुर्त्सेल कही जाने वाली ये जडें आम तौर पर सर्दियों में खायी जाती है जब आम तौर पर ताजी सब्जियां नहीं उगतीं. इन्हें उबाल कर सब्जी की तरह खाया जाता है. यह बहुत ही स्वस्थ खाना है और इसे गरीबों का एसपैरागस कहा जाता है.
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सफेद एसपैरागस
जर्मनी में सफेद एसपैरागस को उबले आलू और क्रीम सॉस के साथ खाया जाता है. भारत में इसे शतावरी कहते हैं. यूं तो हरा एसपैरागस भी होता है लेकिन जर्मनों को वसंत में अपने सफेद एसपैरागस का इंतजार रहता है.
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गाजर, अजमोद
अजमोद का पत्ता धनिया के पत्ते जैसा होता है. भूमध्य सागर के इलाके का यह पौधा अब पूरे यूरोप में पाया जाता है और जर्मन खाने का लोकप्रिय हिस्सा है. गाजर के साथ इसकी जड़ का इस्तेमाल सूप बनाने में होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Brichta
मूली
बवेरिया में लोकप्रिय रही मूली अब सारे जर्मनी में मिलती है. सफेद और लाल मूली खाने का अभिन्न अंग है. मध्ययुग से जर्मनी में इसकी खेती हो रही है. पाचन में मदद के कारण भी यह एक लोकप्रिय आहार है.
तस्वीर: picture.alliance/Wildlife/D. Harms
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गारजन ने आगाह किया कि इतने मांस के उत्पादन के लिए इससे कहीं ज्यादा मात्रा में पानी का इस्तेमाल होता है और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी होता है, जो ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए जिम्मेदार है. गारजन ने हालांकि स्पष्ट किया कि वह मांसाहार के विरोधी नहीं हैं. उन्होंने कहा, "इसका मतलब यह नहीं है कि हम कभी-कभार परिवार के साथ बार्बेक्यू नहीं कर सकते. हमें बस थोड़ा सा परहेज बरतना होगा और जिन दिनों में हम मांस खाते हैं उसका संतुलन बनाने के लिए बाकी दिनों ज्यादा सलाद, चावल और दालें खानी चाहिए."
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उबलपड़ेआलोचक
स्पेन के कृषि मंत्री लुई प्लानास को गारजन का यह अभियान कतई नहीं भाया. कैबिनेट मंत्री प्लानास ने इस अभियान को दुर्भाग्यपूर्ण और देश के बीस फीसदी निर्यात के लिए जिम्मेदार उस उद्योग के प्रति अन्यायपूर्ण बताया, जो 10 अरब यूरो यानी लगभग 880 अरब रुपयों का है.
एक रेडियो को दिए इंटरव्यू में प्लानास ने कहा, "पशुपालक इसके हकदार नहीं हैं. उद्योग को बहुत ज्यादा अन्यायपूर्ण आलोचना झेलनी पड़ रही है. यह उद्योग अपने ईमानदार काम और अर्थव्यवस्था में अपने योगदान के लिए सम्मान का हकदार है."
स्पेन के छह मुख्य उद्योग संघों की एक संस्थान ने उपभोक्ता मंत्रालय के अभियान की आलोचना में एक पर्चा भी छापा है. गारजन पर चुनिंदा आंकड़ों के आधार पर ढाई अरब लोगों को रोजगार देने वाले उद्योगों की आलोचना का आरोप लगाते हुए इस पर्चे में उनके अभियान को निंदनीय बताया गया है.
तस्वीरों मेंः धरती की सेहत की खातिर बनें शाकाहारी
धरती की सेहत सुधारने के लिए बनें शाकाहारी
पर्यावरणविदों का कहना है कि मांसाहार दुनिया में ग्लोबल वॉर्मिंग की एक बड़ी वजह बन रहा है. तो क्या मांस खाना छोड़ कर धरती की सेहत सुधारी जा सकती है?
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मांसाहार की कीमत
दुनिया भर में व्यावसायिक तौर पर मवेशी और दूसरे जीवों को पाला जाता है, ताकि मांस, ऊन, दूध और दूध से बने उत्पादों की मांग पूरा की जा सके. लेकिन इसकी कीमत हमारे पर्यावरण को चुकानी पड़ रही है.
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मवेशी जिम्मेदार
विशेषज्ञ कहते हैं कि दुनिया में 14 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए मवेशी जिम्मेदार हैं, जो खास तौर से उनकी जुगाली, उनके मल और उन्हें खाने के लिए दी जाने वाली चीजों के उत्पादन से होता है.
कृषि क्षेत्र से होने वाले ग्रीन हाउस गैसों के दो तिहाई उत्सर्जन की वजह जानवरों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों का उत्पादन है. यह उत्पादन कृषि योग्य तीन चौथाई जमीन इस्तेमाल करता है.
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प्रोटीन की आपूर्ति
पोषण के लिहाज से देखें तो जानवरों से मिलने वाले मांस, अंडा और दूध जैसे खाद्य उत्पाद वैश्विक प्रोटीन की आपूर्ति में सिर्फ 37 प्रतिशत का योगदान देते हैं.
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मवेशियों का देश
अगर मवेशियों का एक देश बना दिया जाए तो ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वे चीन और अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर होंगे.
तस्वीर: AP
तेल कंपनियों को पछाड़ा
मवेशियों से जुड़ा उद्योग सबसे बड़ी तेल कंपनियों से भी ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कर रहा है. 20 बड़ी मीट और डेयरी कंपनियों का उत्सर्जन जर्मनी या ब्रिटेन जैसे देशों भी ज्यादा है.
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खतरनाक डकार
मवेशी मीथेन, नाइट्रोस ऑक्साइड और कार्बन डायऑक्साइड छोड़ते हैं. कार्बन डाय ऑक्साइड से कहीं ज्यादा गर्म मानी जाने वाली मीथेन आम तौर पर डकार के जरिए छोड़ी जाती है.
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नई प्रजातियां
वैज्ञानिक ब्रीडिंग से मवेशियों की ऐसी प्रजातियां तैयार करने में जुटे हैं जो कम डकार लें और उनसे कम उत्सर्जन हो. इसके लिए जानवरों के खाने के साथ भी प्रयोग किए जा रहे हैं.
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शाकाहार का फायदा
अगर दुनिया में सबसे ज्यादा मीट खाने वाले दो अरब लोग शाकाहार खाने की तरफ रुख कर लें तो इससे भारत से दोगुने आकार वाले इलाके को बचाया जा सकता है.
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धरती का उपयोग
इस इलाके का इस्तेमाल खेती के लिए हो सकता है ताकि दुनिया की तेजी से बढ़ती जनसंख्या का पेट भरा जा सके. अभी इससे मवेशियों का पेट भरा जाता है, जो बाद में इंसानों की प्लेटों में आते हैं.
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महंगा पड़ता बीफ
एक किलो बीफ को पैदा करने के लिए आम तौर पर 25 किलो अनाज और 15 हजार लीटर पानी लगता है. सोचिए धरती अरबों लोगों के मांसाहार की कितनी बड़ी कीमत चुका रही है.
तस्वीर: Imago/Imagebroker
बीन्स बनाम बीफ
बीन्स के मुकाबले बीफ से एक ग्राम प्रोटीन हासिल करने के लिए 20 गुना ज्यादा जमीन की जरूरत पड़ती है. इसमें ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी 20 गुना ज्यादा है.
तस्वीर: Reuters/Moving Mountains/M. Michaels
बीन्स बनाम चिकन
वहीं बीन्स के मुकाबले चिकन से एक ग्राम प्रोटीन हासिल करने के लिए तीन गुना ज्यादा जमीन के साथ साथ तीन गुना ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है.
तस्वीर: picture-alliance/CTK/digifoodstock
बीफ नहीं, मशरूम
अमेरिकी लोग हर साल 10 अरब बर्गर खाते हैं. अगर उनके बर्गर में बीफ की जगह मशरूम डाल दिया जाए तो इससे वैसा ही असर होगा जैसे 23 करोड़ कारें सड़कों से हटा दी जाएं.
तस्वीर: Colourbox
अगर सब शाकाहारी हों...
अगर 2050 तक हर कोई शाकाहारी बन जाए, तो खाने की चीजों से होने वाले उत्सर्जन में 60 फीसदी की कमी आएगी. अगर सभी लोग वेगन हो जाए तो कमी 70 फीसदी तक हो सकती है. (रिपोर्ट: रॉयटर्स)
तस्वीर: picture-alliance/Bildagentur-online/Yay
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एक संगठन अनाफरिक ने उपभोक्ता मंत्री पर आरोप लगाया कि जिस उद्योग ने यूरोपीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण मानकों को अपनाया है, उसे अपराधी की तरह पेश किया जा रहा है. छोटे किसानों और पशुपालकों के एक संघ यूपीए ने भी अपनी नाराजगी जाहिर की है.
संघ के एक प्रवक्ता ने कहा, "स्पेन में हम बढ़िया खाना खाते हैं. हमारे भूमध्यसागरीय खान-पान के कारण ही दुनिया में हमारे देश के लोग तीसरे सबसे ज्यादा जीने वाले लोग हैं."