बेनिश अली बट पिछले 10 दिन से घर से बाहर नहीं निकली हैं, कर्फ्यू की वजह से. बंद कमरों से ये सवाल आ रहे हैं जिनके जवाब भारत को देने हैं.
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यह एक चक्र है. पहले खबर आती है, फिर उबला कश्मीर. और जब हिंसा खत्म होती है तो खबर आती है, कश्मीर में हालात सामान्य. बस, बात यहीं खत्म हो जाती है. हर बार यही होता है. लेकिन इस चक्र की जड़ें 1947 के उस बंटवारे से जुड़ी हैं जिसने भारत और पाकिस्तान बनाए और ये दोनों मुल्क कश्मीर के लिए लड़ने लगे.
तब कश्मीर के राजा रहे महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर को अस्थायी तौर पर भारत में मिला दिया था. लेकिन इसके साथ एक शर्त थी कि अपनी किस्मत का फैसला कश्मीरी खुद करेंगे. एक जनमत संग्रह का वादा किया गया था जो कभी निभाया नहीं गया. राज्य को बिना कश्मीरियों की मर्जी जाने भारत में मिला लिया गया. बस तभी यह विवाद और यह चक्र जारी है.
कश्मीरी अवाम का एक बड़ा हिस्सा भारत से अलग होने का हिमायती रहा है. इसी के नाम पर हिंसा होती रही है जो 1980 और 1990 के दशक में अपने चरम पर थी. तब पाक समर्थित आतंकवाद अपने चरम पर था. भारत ने गोली का जवाब गोली से दिया. फौजों का पूरा जमावड़ा कश्मीर में हो गया. लेकिन उन दो दशकों में हजारों कश्मीरी मारे गए, गायब हो गए या हमेशा के लिए अपंग हो गए. बलात्कारों की तो बात ही क्या करनी. मानवाधिकारों का खुलेआम उल्लंघन होता रहा और आफ्सपा जैसे कानून फौज की ढाल बने रहे.
नई सदी के साथ थोड़ी शांति आई थी. एक उम्मीद जगी थी कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बातचीत को जिस तरह पाकिस्तान के साथ आगे बढ़ाया था, कुछ शांतिपूर्ण लेकिन स्थायी हल निकलेगा. लेकिन बातें ही होती रहीं और 2008 का मुंबई आतंकी हमला हो गया. जिसके बाद सारे दरवाजे बंद हो गए.
दुनिया की सबसे कड़ी सीमाएं
धरती के सीने पर खींची गई सरहदें कई बार देशों के साथ साथ दिलों को भी बांट देती हैं. दुनिया के कुछ ऐसे ही कठोर बॉर्डर...
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पाकिस्तान-भारत: 'लाइन ऑफ कंट्रोल'
1947 में ब्रिटिश शासकों से मिली आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध 1949 तक चला था. तभी से कश्मीर इलाके को दोनों देशों के बीच एक लाइन ऑफ कंट्रोल से बांटा गया. मुस्लिम-बहुल आबादी वाला पाकिस्तान अधिशासित हिस्सा और हिन्दू, बौद्ध आबादी वाला भारत का कश्मीर. इस लाइन के दोनों ओर पूरे कश्मीर को हासिल करने का संघर्ष आज भी जारी है. 1993 से अब तक यहां हुई हिंसा में 43,000 लोग मारे जा चुके हैं.
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सर्बिया-हंगरी: बाल्कन रूट के केंद्र में
2015 के शरणार्थी संकट के प्रतीक बन चुके हैं ऐसे दृश्य. सर्बिया और हंगरी के बीच बिछी रेल की पटरियों पर चलकर यूरोप में आगे का सफर करते लोग. सितंबर में इस क्रासिंग को बंद कर दिया गया लेकिन यूरोप के भीतर खुली सीमा होने के कारण ऐसे और रूटों की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
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कोरिया का अंधा पुल
पिछले 62 सालों से दक्षिण और उत्तर कोरिया के बीच की सीमा बंद है और उस पर कड़ा सैनिक पहरा रहता है. दक्षिण कोरिया की तरफ से जाते हुए अगर आपको ऐसा साइन बोर्ड दिखे तो वहां से आगे बढ़ने के बाद आप वापस इस तरफ नहीं आ सकेंगे. 1990 के दशक के अंत से करीब 28,000 उत्तर कोरियाई अपनी सीमा पार कर दक्षिण कोरिया में आ चुके हैं.
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अमेरिका-मैक्सिको का लंबा बॉर्डर
मैक्सिको से लगी इस सीमा को अमेरिकी "टॉर्टिया वॉल" कहते हैं. यहां दीवार और बाड़ खड़ी कर करीब 1126 किलोमीटर लंबा बॉर्डर खड़ा किया गया है. पूरी पृथ्वी में इतनी कड़ी निगरानी वाली कोई दूसरी सीमा नहीं है. यहां करीब 18,500 अधिकारी बॉर्डर सुरक्षा में तैनात हैं.
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हर दिन 700 को देश निकाला
कड़ी सुक्षा व्यवस्था के बावजूद गैरकानूनी तरीके से मैक्सिको से अमेरिका जाने वाले प्रवासियों की संख्या काफी बड़ी है. केवल 2012 में ही लगभग 67 लाख लोगों ने सीमा पार की. हर दिन ऐसी कोशिश करने वाले करीब 700 लोग मैक्सिको वापस लौटाए जाते हैं.
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मोरक्को-स्पेन: गरीबी और गोल्फ कोर्स
मोरक्को से लगे स्पेन के दो एन्क्लेव मेलिया और सिउटा को लोग यूरोप पहुंचने का रास्ता मानते हैं. अफ्रीका के कई देशों से लोग अच्छे जीवन की तलाश में इसी तरफ से यूरोप पहुंच कर शरण मांगने की योजना बनाते हैं. कई लोग सीमा पर बड़ी बाड़ों को चढ़ कर पार करने की कोशिश करते हैं.
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ब्राजील-बोलीविया: हरियाली किधर?
उपग्रह से मिले चित्र दिखाते हैं कि वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण ब्राजील के अमेजन के जंगल काफी कम हो गए हैं. पिछले पचास सालों में जंगलों के क्षेत्रफल में करीब 20 फीसदी कमी आई है. हालांकि अब बोलीविया में भी वनों की कटाई एक बड़ी समस्या बन कर उभर रही है.
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हैती-डोमिनिक गणराज्य: एक द्वीप, दो विश्व
देखिए एक ही द्वीप पर स्थित दो देश इतने अलग भी हो सकते हैं. डोमिनिक गणराज्य पर्यटकों की पसंद रहा है जबकि हैती दुनिया के सबसे गरीब देशों में शामिल है. बेहतर जीवन की तलाश में हैती से कई लोग डोमिनिक गणराज्य जाना चाहते हैं. बढ़ती मांग को देखते हुए 2015 में डोमिनिक गणराज्य ने आप्रवास के नियम सख्त किए हैं. तबसे करीब 40,000 हैतीवासी अपने देश वापस लौटे हैं.
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मिस्र-इस्राएल: एक तनावपूर्ण शांति
एक ओर रेगिस्तान तो दूसरी ओर घनी आबादी - यह सीमा मिस्र की मुस्लिम-बहुल और इस्राएल की यहूदी-बहुल आबादी के बीच खिंची है. करीब 30 सालों से चली आ रही शांति के बाद हाल के समय में सीमा पर कुछ हिंसक वारदातों और कड़ी सैनिक निगरानी की खबर आई है. 2013 के अंत तक इस्राएल ने इस सीमा पर बाड़ लगाने का काम पूरा कर लिया था.
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तीन देश, एक सीमा
दुनिया के कुछ हिस्सों में सीमाओं पर कोई दीवार, बाड़ या सैनिक निगरानी नहीं होती. जर्मनी, ऑस्ट्रिया और चेक गणराज्य की इस सीमा पर एक तीन-तरफा पत्थर इसका सूचक है. शेंगेन क्षेत्र के इन तीनों देशों के बीच खुली सीमाएं हैं. फिलहाल शरणार्थी संकट के चलते यहां अस्थाई बॉर्डर कंट्रोल लगाना पड़ा है.
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इस्राएल-वेस्ट बैंक: पत्थर की दीवार
साल 2002 से इस 759 किलोमीटर लंबी सीमा पर विवादित दीवारें और बाड़ें बनाई गई हैं. येरुशलम के इस घनी आबादी वाले क्षेत्र (तस्वीर) में दोनों के बीच कंक्रीट की नौ मीटर ऊंची दीवार बनाई गई है. 2004 में अंतरराष्ट्रीय अदालत ने फलिस्तीनी क्षेत्र में दीवार खड़ी करने को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया.
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कश्मीर में आज जो हिंसा हो रही है, उसकी शुरुआत का पहला कदम 2008 में ही उठा था. शांति को पहला धक्का तब पहुंचा जब अमरनाथ की जमीन गैर स्थानीय लोगों की दी जाने लगी. फिर 2009 में शोपियां में दो कश्मीरी लड़िकयों को बलात्कार के बाद कत्ल कर दिया गया. और जब 2010 एक बच्चे तुफैल मट्टू को झूठे एनकाउंटर में मार डाला गया तो विरोध पूरी ताकत के साथ सड़कों पर उतर आया. फिर यह कुचक्र बन गया. एक कत्ल का विरोध करने उतरे प्रदर्शनकारियों में से 100 को मार डाला गया. गुस्सा बढ़ता गया. तब भी बहुत सारे वादे किए गए थे. बातचीत के लिए तीन शांतिदूत भी भेजे गए थे. लेकिन हुआ क्या? उनकी सिफारिशों को रद्दी में फेंक दिया गया.
इस हफ्ते कश्मीर फिर से उबाल पर है. एक स्थानीय उग्रवादी बुरहान वानी को मुठभेड़ में मार डाला गया. जिस पल पुलिस ने वानी के मारे जाने की खबर की पुष्टि की, भारी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया. अब तक दर्जनों लोगों की जान जा चुकी है. सैकड़ों घायल हैं. लोगों के गुस्से की हद यह है कि पुलिस की चेतावनियों के बावजूद वानी के जनाजे में दो लाख से ज्यादा लोग पहुंचे थे.
ऐसा क्यों होता है कि जब कश्मीरी विरोध करते हैं तो उन पर कथित अ-घातक हथियारों से कहर बरपाया जाता है? इन अ-घातक हथियारों ने कैसे दर्जनों जानें ले लीं और सैकड़ों को घायल कर दिया? एक जांच का वादा तो इस बार भी किया गया है लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि इस जांच का हश्र भी वही नहीं होगा जो पहले की दर्जनों का हुआ? फरवरी 2016 में जब हरियाणा में जाट अपने आरक्षण के लिए प्रदर्शन कर रहे थे तो उन्होंने जोरदार हिंसा की. सार्वजनिक संपत्ति को आग लगाई. करीब 50 लाख डॉलर का नुकसान हुआ. और जाट कितने मारे गए? एक भी नहीं.
इसलिए अब जो कश्मीर में हो रहा है, हैरतअंगेज नहीं है. दिक्कत यह है कि जब कश्मीर में हालात थोड़े शांत होते हैं और टूरिस्ट आने लगते हैं तो भारत सरकार सोचती है कि कश्मीरी स्वीकार कर रहे हैं. लेकिन सच यह है कि कश्मीर आग पर चढ़ी केतली है में रखा पानी है. वह उबलता रहता है. और जैसे ही आंच थोड़ी तेज हुई, उफनने लगता है. फिर वह उफान उस नकली शांति को बहाकर ले जाता है.
और इसमें राष्ट्रीय मीडिया की पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग का कम हाथ नहीं होता. कश्मीरियों को लगता है कि यह कैसा नेशनल मीडिया है जो हमारी बात ही नहीं करता.
लहरों पर घर
तकनीक का शानदार इस्तेमाल. बनाए पानी पर तरह तरह के मकान.
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लंबी परंपरा
दुनिया के कई हिस्सों में लोग पानी पर रहते हैं. कश्मीर में 25 से 40 मीटर लंबी हाउस बोट होती हैं. ये पर्यटकों के लिए खास बनाई गई थी. इनका आयडिया ब्रिटिश लोगों के साथ आया था.
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बाढ़ से बचाव
नीदरलैंड्स की आर्किटेक्ट कंपनी वॉटरस्टुडियो.एनएल ने किले जैसे आकार में यूरोप के पहले स्विमिंग अपार्टमेंट कॉम्पेल्क्स का नक्शा बनाया है. डेल्फ्ट और द हेग के बीच बनेंगे 60 अपार्टमेंट. बढ़ते जल स्तर से भी हो सकेगा बचाव.
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लोगों के लिए नहीं
यह डिजाइन भी वॉटर स्टुडियो का है. लेकिन इंसानों के लिए नहीं, जानवरों के लिए. सी ट्री नाम की इस इमारत की नींव समंदर की सतह में बनाई गई है.
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तैरती मस्जिद
संयुक्त अरब अमीरात के लिए तैरती हुई मस्जिद का डिजाइन भी हॉलैंड के आर्किटेक्ट्स ने ही बनाया है. अंदर त्रिकोणाकार खंबे हैं जो छत को सहारा तो देते ही हैं और पारदर्शी होने के कारण रौशनी भी भरपूर आती है.
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हाईटैक पर्यटन
बढ़ते जल स्तर का खतरा हिंद महासागर के द्वीपों को भी है, मालदीव को भी. लेकिन अब पर्यटकों के लिए गोल्फकोर्स वाला तैरता हॉलीडे पार्क, ग्रीन स्टार. डिजाइन नीदरलैंड्स का ही.
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फूल जैसा
मालदीव के लिए वॉटरस्टुडियो.एनएल ने बनाया है फूल जैसा डिजाइन. 185 तैरती हुई लक्जरी विला जिसपर नाव से जाया जा सकेगा. पहले द फाइन लगून घर बिकने को तैयार हैं.
भविष्य के तैरते हुए द्वीप का खाका ही नहीं. कई साल पहले से ही लोग पानी पर रहते हैं. सिर्फ नीदरलैंड्स में ही वॉटरवोनिंग की परंपरा नहीं है. एम्सटरडम में करीब ढाई हजार हाउस बोट हैं.
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पूरा गांव
उत्तरी वियतनाम के हालोंग में तो पूरे गांव ही तैरते हुए हैं. करीब 1600 लोग इन तैरते हुए लकड़ी के घरों में रहते हैं. मछली पालन, मोतियों की खेती और पर्यटकों से इनकी आजीविका है.
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बिकेगा यूरोप
अरब के प्रायद्वीप में पानी पर रहने की शुरुआत हो गई है. दुबई में द वर्ल्ड द्वीप समूह का उद्घाटन हुआ है. 270 द्वीपों में यूरोप बिकने को है. एक घर की कीमत चार करोड़ अमेरिकी डॉलर.
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आलोचना
दुबई में ही पाम द्वीप बनाए गए. पर 2001 से अब तक सिर्फ एक ही पाम तक जाया जा सकता है. प्रोजेक्ट की पानी के खराब सर्कुलेशन के कारण आलोचना हो रही है. पानी के कारण वहां काई जमने लगी है.
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एक बात समझनी होगी. कश्मीर में उग्रवाद बढ़ रहा है. और इस बार उसे जनता का बहुत जोरदार समर्थन मिल रहा है. भारत आम कश्मीरी का साथ खो रहा है. इस चलन को रोकने का एक ही तरीका है. कश्मीर की नीति में क्रांतिकारी बदलाव हो. भारत और पाकिस्तान के बीच गंभीरता से बात हो और हल निकालने की सोच के साथ बात हो.